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________________ - शतपदी भाषांतर. (१३७ ) (२) आर्यरक्षित आचार्य आर्याओने वडी दीक्षा, तथा प्रायश्चित्त आपवा बंध कर्या. (व्यवहार.) (३) एज आर्यरक्षित सूरिए चारे अनुयोग सूत्रोमांथी जूदा क__ हाडी जूदु अनुयोगद्वारसूत्र कयु. (आवश्यक.) (४) वळी पूर्वे शस्त्रपरिज्ञा भण्या वाद वडी दीक्षा थती; हमणां छजीवणी शीखी रहेतां वडी दीक्षा देवाय छे. पूर्वे लोकविजय अध्ययनमांना “ सव्वामगंधं " ए सूत्र आवहे त्यारे पिंडकल्पिक (गोचरी करवानो अधिकारी) थतो; अने हमणां दशवैकाळिकना पिंडेषणाध्ययनवडेज थाय छे पूर्व उत्तराध्ययन आचारांग पछी भणातुं; हमणा दशकालिक पछी भणावाय छे. पूर्वे छ मासी तपथी जे शुद्धि थती ते हमणां नीवी वगेराथी थाय छे. . (व्यवहार.) (५) बुद्धिनी हानि जाणीने पुस्तको राखवानी आचरणा थई छ. (निशीथचूर्णि.) (६) गुरुना अर्थे मात्रक (मोटो घडो) प्रथमथीज रखातो, पण आर्यरक्षितसूरिए जीवदयादि कारणे वर्षाकाळमां पोताना अर्थे पण बीजो मात्रक राखवानी अनुज्ञा आपी. (नि.चू.) आ तथा आवी रीतनी बीजी बाबतो पण अशठाचरणामां आवे छे अने ते अमोने प्रमाणज छे. विचार १०३ मो. (आचरणाओनी विचित्रतानो विचार.) प्रश्न:-आजकाळनी आचरणाओ केम प्रमाण नथी करता? उत्तर:-आजकाळनी आचरणाओ विचित्र रहेली छे, जेना १८
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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