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________________ . ( १७४ ) . शतपदी भाषांतर. ज प्रस्तावना छे. बाकी घरना अनुष्ठान माटे तो कलम ६ हीमां वात आवशे. माटे इहां तो घरे फक्त एक सामायिकज उच्चरवं. वळी कलंम वीजीना अंते लख्युं छे जे "त्यां जो चैत्य होय तो प्रथम वांदी लेवा." इहां प्रथम शब्द कहेवाथी एम जणाय छे के सामायिक कर्या पछी पण चैत्यवंदन थइ शके छे. कारण के तेम न होय तो मोघममां एमज लखत के "चैत्य होय तो वांदी लेवा" पण प्रथम पद न लखत. कलम त्रीजीमां लख्युं छे जे "रजोहरण के निषद्या साधु पासेथी मागी लेवा" ते जे साधु पासे वधाराना होय तेज मागवा. कारण के पोतापूरता उपकरण जो बीजाने आपे तो तेने प्रायश्चित्त आवे. ( रजोहरणथी प्रमार्जना आवे छे,) केटलाक एम माने छे के साधु पासेथी मागेला रजोहरणवडे श्रावके वांदणा देवा. तेमने पण रजोहरण नहि होतां निषद्यावडे अने ते पण नहि होतां वस्त्रांचळवडे पण वांदणा देवा कबूल करवा पडशेज. त्यारे एमज मानवामां शी हरकत छे के रजोहरणथी प्रमार्जनाज करवी; पण वांदणा साथे रजोहरणनो संबंध नथी. - पूर्वाचार्योए पण दरेक ठेकाणे रजोहरणथी प्रमार्जनाज बतावी छे. दाखला तरीके पंचाशकचूर्णिमां आ प्रमाणे लख्युं छे. "कोइ पूछे के शुं पोसहवाळाने रजोहरण होय? तेनु ए उत्तर छे के हा, होय. जे माटे आवश्यकचूर्णिकारे सामायिकनी सामाचारी कहेतां थकां कडं छे के साधु पासे रहेलं वधारानुं रजोहरण मागीने श्रावक प्रमार्जना करे. कदाच ते न होय तो पोतना (वस्त्रना) छेडावडेज प्रमार्जे."
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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