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________________ ( १२२ ) शतपदी भाषांतर. ते सूत्रार्थ भण्या समजवा. माटे ए नवकार मंत्रने अविधिए ग्रहनहि कर, किंतु एवी रीते ग्रहण कर के जेथी भवांतरमां पण नाश नहि पामे. आ सूत्रना अभिप्रायथी स्पष्ट जणाय छे के जे उपधान विधि विना नवकार भणे भणावे के अनुज्ञा आपे ते बघा अनंत संसारी थाय; अने आजकाल तो कोइ विरला आचार्यो, तथा दरेक गच्छों कोइ कोइक वे चार साधुसाध्वीओ अने एकाद वे श्रावको तथा थोडी एक श्राविकाओज उपधानविधि करता देखाय छे. त्यारे बाकीना जेओए उपधानविधि नथी करी एवा आचार्य, साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका तथा नवकार भणनार भद्रकजनो महानिशीथना अभिप्राये तो अनंत संसारीज थया. वळी जेमणे उपधान वह्या छे तेओ पण शरुआतमां नानपणमां तो वगर उपधानेज नवकार शीखेला, तेमज उपधान वह्या बाद पण बाळकोने वगर उपधाने नवकार भणावता दीसे छे अने वेळी उपधानविधि वगरना श्रावक, श्राविका, भद्रकजन, के तिर्यंचोने मरण वेला नमस्कार आपता देखाय छे. तेथी एमने पण अनंतसंसारीपणं टळवं मुस्केलज छे. हवे भगवान्ना अभिप्राय प्रमाणे तो उपधानविधि विना पण नवकार वगेरा भणतां भणावतां के अनुज्ञा देतां कोइने पण अनंतसंसारीपं धतुं नथी, किंतु सकळ कल्याणमाळानीज मा प्ति थाय छे. ए बाबत नीचेना दाखला विचारो. भक्तपरिज्ञामां कं छे के गोवाळ अज्ञानी छतां, अने मिंठक्लिष्टकर्मी छतां नवकारथी सुखी थया. आवश्यकमां त्रिदंडी नवकारथी आ लोकमां सुखी थयो वगेरा कयुं छे.
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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