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शतपदी भाषांतर.
३ असंसृष्ट हाथ, संसृष्ट पात्र, सावशेष द्रव्य. ४ असंसृष्ट हाथ, असंसृष्ट पात्र, सावशेष द्रव्य. ५ संसृष्ट हाथ, संसृष्ट पात्र, निरवशेष द्रव्य. ६ संसृष्ट हाथ, असंसृष्ट पात्र, निरवशेष द्रव्य. ७ असंसृष्ट हाथ, संसृष्ट पात्र, निरवशेष द्रव्य. ८ असंसृष्ट हाथ, असंसृष्ट पात्र, निरवशेष द्रव्य.
( ११ )
आ आठ भांगाम ज्यां पश्चात्कर्मना दोषनो संभव थाय ते अशुद्ध भांगा अने बाकीना शुद्ध भांगा जाणवा. एम कल्पचूर्णि मां कधुं छे.
अने दशवैकालिकमा जे लख्युं छे के असंसृष्ट हाथे नहि लें त्यां पण ज्यां पश्चात्कर्म थाय एम कहेलुं होवाथी पश्चात्कर्मना संभवमांज स्थविरकल्पिना माटे निषेध पाडेल जणाय छे.
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विचार ७५ मो.
प्रश्नः - अलेपित पात्रमां जमतां तेमां पनक बंधाय छे, दुर्गंध थाय छे, अने तेथी उलटी तथा जुगुप्सा आवतां आत्म, संयम, तथा प्रवचननी विराधना थवानो संभव रहेल छे माटे अलेपित पात्रमां आहार करवो नहि जोइये. ए वात विषे तमारो शो अभिप्राय छे ?
उत्तरः- अमारुं एम मानवुं छे के ए दोषो तुंबाना पात्रमां - ज देखाय छे माटे तुंबानं पात्र अलेपित होय तो तेमां जमवुं नहि कल्पे बाकी लाकडाना पात्रा विषे कंइ नियम नथी.