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शतपदी भाषांतर. . ( ८९ )
विचार ७१ मो. प्रश्नः-भिक्षादिक अर्थे बाहेर जतां बधां उपकरणो साथे केम नथी लेता?
उत्तरः-ए वातनो पण एकांत नथी. केमके वैरस्वामिनी कथामां वात आवेली छे के बधा साधुओ बाहेर जतां तेमना वींटणाओने मंडळीमा स्थापीने वैरस्वामिए देशना देवा मांडी.
वळी ओघनियुक्तिमां पण कडं छे के भिक्षार्थे जतां उत्सर्गे बधां उपकरण साथे लेवां. कदाच बर्षा उपकरण साथे लेवा असमर्थ होय अथवा नवदीक्षित, ग्लान, के वृद्ध होय तो जेटलां ऊ. पाडी शकाय एटलां ऊपाडवां.
व्यवहारचूर्णिमां लख्युं छे के वर्षाऋतुमा बधां उपकरण न. हि ऊपाडवां.
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विचार ७२ मो. प्रश्न:-भिक्षादिकनो उपयोग सवारमा करी लेवो के जती वेला करवो?
उत्तरः-भिक्षादिकनो उपयोग भिक्षादिक अर्थे जती वेलाज करवो एम ओघवृत्तिमा कहेल छे.
निशीथचूणिमा लख्युं छे के उपयोगनो कायोत्सर्ग करता भि- - क्षानो प्रथम लाभ थवा लगी दांडो भूमिए नहि अडकाववो.
ओघभाष्यमां पण कधुं छे के अर्थपोरसी पूरी थतां उपयोग तथा कार्योत्सर्ग करी भिक्षाए नीकलबुं.