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शतपदी भाषांतर. पूर्वभवमां तेना यज्ञनो बचेल आहार मुनिओए वोर्यो छे.
(६) कोइ कहे के त्यारे धर्मना अर्थे करेला कूबा तळावमांथी पाणी लेतां स्थिरीकरण थाय के नहि ? तेनुं ए उत्तर छे के त्यां स्थिरीकरण नथी थतुं, कारण के जो सां स्थिरीकरण थतुं होय तो श्रावकने माटे एवं लखवामां आवत के तेणे पोते जूदा कूवा तळाव कराववां; पण तेम तो क्या कह्यु नथी.
(७) कोइ कहेशे के यक्षयक्षणीयाने धर्मार्थे पूजतां मिथ्यात्व लागे पण सांसारिक काम माटे पूजतां केम मिथ्यात्व लागे तेनुं ए उत्तर छे के एम मानीए तो शिवादिक देवना भक्तोने पण मिथ्यात्व नहि लागशे कारण के माये .तेओ पण तेमने सांसारिक अर्थेज पूजे छे.
(८) कोइ कहेशे के जेम अविरत राजा के वैद्यने नमस्कार करवामां आवे छे तेम गोत्रदेवीओने पण पूजतां शो दोष छे ? तेनुं ए उत्तर छे के राजादिकने नमस्कार करतां आरंभनी अनुमति लागे छे, पण कंइ मिथ्यात्वनी अनुमति नथी. पण गोत्रदेवतादिकने नमतां तो अदेवमां देवबुद्धिरूप मिथ्यात्वज छे. एटला माटेज आवश्यक चूर्णिमां कडं छे के पुत्र मळवा माटे ना. गरथिके घणा देवदेवी पूज्या; पण मुलसा श्राविका होवाथी तेणीए नहि पूज्या. तथा त्यांज "देवयाभियोगेणं" नी व्याख्या करतां कह्यु छ के एक गृहस्थ श्रावक थतां तेणे व्यंतरो पूजवा छोडी दीधा. त्यारे एक व्यंतरीए कोप करी तेनो गाय चारनार छोकरो गायो साथे अलोप को हवे छोकरानी शोध करवामां ते श्रावक ज्यारे आकुल थयो त्यारे व्यंतरी एक स्त्रीना शरीरमां प्रवेश करी कहेवा लागी के मने केम पूजता नथी? श्रावके विचार्य के मारा धमनी विराधना नहि थाय तेम उपाय कर वो तेथी तेणे कडं के त्यारे जिनप्रतिमानी पाछल बेशो. व्यंतरीए ते