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________________ शतपदी भाषांतर. ( ४५ ) कबूल करतां तने जिनप्रतिमा पाछल वेशाडी. अने तेणीए गायो तथा छोकरो आणी आप्पो. (९) हमणाना आचार्योए पण कछं छे के जेम कुलीन स्त्रीओए वेश्याना घरे न जवू तेम मुश्रावके तीर्थमां नहि जवू. कारण के त्यां जतां बीजा विचारे के ज्यारे आ, धर्ममां कुशल श्रावक पण इहां आवे छे त्यारे आ धर्म पण सरस लागे छ, ए रीते तेना भक्तोने स्थिरीकार थाय अने ए रीते वीजा भव्य प्राणीओने जे मिथ्यात्व उत्पन्न करावे ते जिनभाषित बोधि नहि पामी शके. माटे जे पुरुष मिथ्यात्वना कारणाने दूर नहि करे ते स्व अने परने संसारमा पाडे छ, वळी ते मूढपुरुष लोकिकतीर्थोमां जइने पुन्ययोगे चिंतामणि माफक मेळवेलं सम्यक्त्व हारी नाखे छे. विचार ३१ मो. प्रश्नः-श्रावकने मिथ्यात्वी साथे वसतां अनुमति लागे के नहि? उत्तरः-श्रावकने मिथ्यात्वी लोको साथे वसतां पण मिथ्यास्वनी अनुमति नथी लागती ए बाबतनो खुलासो दर्शनसत्तरीमा जेम छे तेम लखीर छीये. . .. शास्त्रमा अनुमति त्रण प्रकारे कही छे-संवासानुमति, उपभोगानुमति, अने प्रतिश्रवणानुमति. त्यां साथे वसवू ते संवासानुमति, तेना करेलने भोगवळू ते उपभोगानुमति, अने तेणे पूछतां हा पाडवी ते प्रतिश्रवणानुमति. . इहां कोइ कहेशे के श्रावकने मिथ्यात्वनो त्रिविधे त्रिविधे परिहार मानीए तो संवासानुमति केम टळे ? तेनुं ए उत्तर छे के ए त्रण प्रकारनी अनुमति आरंभनी बावतमां कही छे. माटे आ
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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