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________________ (१७०) शतपदी भाषांतर. (३) लोट, गोरस, छाश, तेल, तथा घी क्यारे पण अभडाय नहि. (४) पांदडा, फळ, लोट, गोरस, तथा पक्कानमा रहेल पाणी नथी अभडातुं. (५) अटवीमां, निर्जळदेशमां, तथा चोर के वाघना भयमां शौच न करे तोए दूषाय नहि. (६) कांजी, दूध, दहि, छाश, शत्तु, घीतेलमा पकावेल रसोइ, तथा लाडवा अभडाय नहि. विचार ११० मो. (सामाथिक बाबत चूर्णिनो पाठ.) सामायिक बाबत आवश्यकचूर्णिमां आ प्रमाणे अधिकार छे. "अणुव्रत ने गुणव्रत एकवार लीधा तेज लीधा पण शिक्षाव्रत विद्याभ्यास माफक वारंवार अभ्यासाय छे. ए शिक्षाव्रत चार छे तेमां पहेलं सामायिकवत छे. ते करवानी विधि आ प्रमाणे छे. (१) सामान्यश्रावके देरासरमां, साधु पासे, घरमां, पोसहशाळामां, के ज्यां नवरास मळे त्यां सामायिक करवं. तेमां पेला चार स्थळे सामायिक करतां तो अवश्य सर्व (आवश्यक)ज करवू. (२) ए आवश्यक जो साधु पासे करवान होय तो जो को. इना वेडझघडा के करजनी पंचात नहि होय तो घरेथीज सामायिक लई ऊघाडे पगे साधुना मुजब समितिगुप्ति सांचवी साधु पासे जइ त्यां बीजीवार सामायिकनो पाठ उच्चरवो. अने तेमां “जाव साहू पज्जुवासामि" एवं पद कहेवू. अने त्यां जो चैत्य होय तो प्रथम वांदी लेवां. (३) पछी साधु पासेथी (वधारान) रजोहरण के निषद्या मागी
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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