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शतपदी भाषांतर.
रीते चतुर्विध संघ प्रतिष्टाकारी छे एम मानीए छीए.
वळी जे प्रतिष्ट्राकल्पोना आधारे सावद्यप्रतिष्टा चाले छे. तेओ पण बरोबर युक्ति सहित नथी. जुओ हरिभद्रसूरिकृत मतिष्टाकल्पमां जिननुं आह्वान करवुं कह्युं छे, ते शुं सिद्धिक्षेत्रथी जिन आवता हशे ! तेमज कोइक प्रतिष्टाकल्पमां सूरिमंत्रथी प्रतिष्टा करवी कही छे. अने उपाध्यायादिकं वर्द्धमानविद्या वगेराथी पण प्रतिष्टा करे छे. तथा पंचाशकमां नोंकारमंत्रवडे पण प्रतिष्टा करवी कही छे.
वळी हरिभद्रसूरिकृत प्रतिष्ट्राकल्पमां गायना मूत्र, छाण, दूध, दहि, तथा घृतरूप पंचगव्यथी स्नान लख्युं छे. अने क्यांक पांच उदुंबरनी अंतर्छालथी स्नान कह्युं छे. तथा क्यांक पांच मृत्तिकावडे स्नान कह्युं छे.
एम प्रतिष्टानी विधिओ अनेक होवाथी क्यां आस्था थाय ? कदाच कोई कहेशे के अमे फक्त अंजनशलाकारूप निरवद्य प्रतिष्टाज करशुं तो तेम तेनाथी कहीं शकाशे नहि, कारण के म तिष्टाकल्पोमां अनेक सावद्यकामो करवां कलां छे.
अवांतर प्रश्नः – जो तमे यतिप्रतिष्ठा प्रमाण नथी करता तो तेमणे प्रतिष्टित करेली प्रतिमाओ केम वांदो छो ?
उत्तर १ लुं: - प्रतिष्ठा करनार त्रण कहेवाय छे. एक सूत्रधार एटले शिलाट प्रतिष्टा करे छे, बीजी श्रावक करे छे, अने त्रीजी यति करे छे. तेथी अमे बचली श्रावकनी प्रतिष्टा मनमां करीने वांदीए छीए.
उत्तर २ जुं: - प्रतिष्ठा करनार यति प्रतिष्ठा करती वेला - ए, साधु माटे ठेरावेला प्रमाणथी अधिक अने दशासहित कोरां वस्त्र पहेरीने तथा सोनानी वींटी, मींडोळ, अने कुसुंभना सूत्रवडे