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( ६ )
शतपदी भाषांतर.
अलंकार करीने वरराजा जेवो वेष करे छे, वचने करी अढार स्नान तथा सेंकडो औषधीओना मूळादिकवडे प्रतिष्ठानी सावविधिओ चलावे छे, अने कायाए करी फूल, चांखा वगेरानो तथा स्त्री अने उद्योतिका एटले अग्निप्रकाशनो स्पर्श करे छे तेथी जेम सामायिक करतां श्रावक यति जेवो कहेवाय छे तेम प्रतिष्टा वेला यति पण श्रावक जेवोज प्रतिभासे छे. ( माटे तेणे करेली प्रतिष्ठा वास्तविक श्रावक प्रतिष्टाज थाय छे.)
उत्तर ३ जुं: -वळी जे केटलाक सर्वथा संयमरहित अविरत जेवा पासत्थाओ प्रतिष्ठा करे छे ते केवी यतिप्रतिष्ठा कहेवाय ?
उत्तर ४ थुं :- वळी यतिए प्रतिष्टा करी एटलाथी कई प्रतिमा अवंदनीय थती नथी. कारण के कोइएक विधिए करी प्रतिमा करावे छे, थपावे छे, अने पूजे छे अने कोइ अविधिए करावे छे, थपावे छे, अने पूजे छे. परंतु त्यां विधिअविधिनुं फळ तो करनारने छे; वांदनारने तो वीतरागनी प्रतिमा जाणी शुद्ध चित्तथी वांदतां लाभज छे. शास्त्रमां पण निश्राकृत ने अनिश्राकृत चैत्यो सरखी रीते बांदवा लायक कहां छे.
बळी तमोए मानेली प्रतिष्ठामां पण पेटामां श्रावकनी प्रतिष्टा रहेल छे छतां तमो के वांदो छो? इहां जे तमारुं उत्तर तेज अमारुं छे.
( यादी - वळी केटला एक सैकां थयां प्राये चैत्यवासियोनीज प्रतिष्ठा देखाय छे. तथा केटलाक अविवेकि श्रावको जिनमंदिरमां गणेश बेशाडे छे तेनी, तथा क्षेत्रपाळ, अंबिका, सरस्वती, गोमुख वगेरा यक्ष, ने चक्रेश्वरी वगेरा देवीओनी पण चैत्य वासिओ प्रतिष्टा करे छे. माटे चैत्यवासिओनां केटलां काम तपाशिए. माटे जिनप्रतिमानी प्रतिष्टा श्रावकनुंज कृत्य छे.