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( ९४ ) शतपदी भाषांतर.
विचार ७९ मो. प्रश्नः-साधु साध्वीओने वाचना आपी शके के नहि ?
उत्तरः-उत्सर्ग तो एमज छे के साधु साधुओने वाचना आपे अने साध्वी साध्वीओने वाचना आपे. पण अपवादे उलटपालट पण करी शकाय छे. त्यां अपवाद ते ए के प्रवर्तिनीना पासे ते श्रुत न होय सारे आचार्य तेमने भणावे. अथवा प्रतिनी पासे श्रुत होवा छतां आचार्य पासेथी शीखतां विशेष मंगळ के श्रद्धा थती होय अथवा भय के गौरवथी भणवामां वधु उत्साह थवा संभव होय तो ते कारणे पण आचार्य शीखावq. तेमज साधुओ पासे अमुक श्रुत नहि होय ने कोइ साध्वी पासे ते होय तो त्यारे साध्वीए ते साधुओने शीखाव. आ रीते व्यवहारसूत्रनी वृत्तिमां वात कहेल छे. ___ वळी तेज ग्रंथमां कयु छे के जो के स्त्रीओ विषतुल्य छे तेथी तेमना साथ मुनि वातचीत करे तो महोटुं प्रायश्चित्त आवे छे तो पण कारणे एटले के ज्यारे साध्वीओ पासे श्रुत न होय सारे तेओने मुनिए भणाव. कारण के भण्या विना तेमनुं चारित्र नाश थवानो संभव रहे छे. माटे ज्ञानदर्शन अने चारित्रनुं रक्षण करवा निर्दोष रहीने भणाव. __हवे ऊपरना कारणे ज्यारे साध्वीओने भणाव, पडे त्यारे नीचेनी विधिए शीखव. त्यां आदिमां विधि ए छे के जे साध्वी प्रज्ञावंत सरळ अने आज्ञा पाळनार होवा छतां माता बहेन के पुत्रीरूपे होय तेने मुनिए शीखवq. अने तेवो योग नहि होय तो जे साध्वी तरुण होय, जे साध्वीने फरी दीक्षा दीघेल होय, जे साध्वी पूर्वे वेश्या होय, जे साध्वी पूर्वे शीखवनारनी भार्या होय,