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________________ शतपदी भाषांतर. विचार ७८ मो. प्रश्नः - साधु तथा साध्वीओ एक क्षेत्रमां रहे के नहि ? उत्तरः- एक क्षेत्रमां सर्वथा नहि रहे एवो एकांत नथी. कारण के तीर्थंकरो साथे साध्वीओ विचरती हती, तथा जमाळि साथै हजार साध्वी ओना परिवारे प्रियदर्शना सावत्थीमां विचरेल छे, वैरस्वामि मळ्या के गुरुए तरतज साध्वीओने सोप्या छे, कीर्त्तिमतीराणी अने क्षुल्लककुमार पण साथै विचरेल छे, पटणामां स्थूलभद्रने वांदवा साते आर्याओ आवेल छे, इत्यादि घणा दाखला छे. ( ९३ ) वळी व्यवहारसूत्रमां पण कर्तुं छे के आठम, पांखी, तथा दररोजनो वाचनाकाल टाळीने शेषकाळे साध्वीओए साधुओना अपाश्रयमां नहि आववुं. तथा पर्युषणाकल्पमां लख्युं छे के वरशाद वरसतो होतां वे साधु अने बे साध्वीने एकठा रहेवुं नहि कल्पे, पण वच्चे नानुं के मोहोट्टं पांचमुं कोई होय तो एकठा रहेवुं कल्पे. माटे सर्वथा निषेध नथी जणातो, केमके कल्पसूत्रमां पण एम लखेल छे के एकज वगडा अने एकज दरवाजावाळा गामनगरमां साधुसाध्वीओए साथै नहि रहेवुं. अनें कदाच कारणवशे तेवा स्थळे साथ रहेवुं पड़े तो यतनाथी रहेवुं एटले के गोचरी तथा संज्ञाभूमिए आगलपाछल जवं. कदाच त्यां एकज वेलाए देशकाळ होय तो साधुसाध्वीओए सामसामा मळतां एकबीजाने वंदननमन के वातचीत वगेरां नहि करवां. बाकी अनेक वगडा अने अनेक दरवाजावाळा गाम के नगरम तो साधुसाध्वीने उत्सर्गे पण साथ रहेवुं कल्पे छे. कारण के त्यां गोचरी तथा स्थंडिळनी जग्या अलंगअलग मळी शके छे.
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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