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शतपदी भाषांतर.
( ९५ ) जे साध्वी साथ शीखवनारे पूर्वे कोई वेला हास्य कीधुं होय, ते मज जे साध्वी पूर्वे व्यभिचारिणी होय तेवी साध्वीओने वजने शेष साध्वीओने मुनिए शीखव. कारण के जो कदापि शीखनार शीखवनार ए बन्नेनुं चित्त वज्र जेवुं मजबूत होय तोपण बीजाने शंका आववानो संभव रहे छे.
बळी मुनिओमां पण जे परिणत अने आचार्य होय तेणे शीखावj. कदाच आचार्यनो योग न होय तो बीजो पण जे परिणत होय तेणे शीखववुं.
तथा आवे प्रसंगे द्रव्य, क्षेत्र, काळ, वगेरानी नीचे मुजब यतना राखवी.
(१) द्रव्यनी यतना ते ए के बन्ने जणाए हलकुं भोजन लेबुं. कारण के तेथी खरचुपाणींनी शंका नहि रहे.
(२) क्षेत्रनी यतना ते ए के शून्य घर, छानुं स्थान, उद्यान, देवळ, सभा, आराम, तथा ए वगेरा शंकनीयस्थळ मुंकीने खुल्ले स्थळे वाचना देवी. तेमज पोताना के आर्याओना उपाश्रयमां पण जो पोतपोतानुं मंडळ न होय तो एकांतपणे वाचना नहि देवी.
(३) काळनी यतना ते ए के साधुओने सूत्रार्थनी वाचना देनार जो बीजो कोइ होय तो आचार्य प्रभातनाज साध्वी ओनी वसतिमां वाचना देवा जाय. अने जो साधुओने अर्थनो देनारज होय पण सूत्रनो देनार कोइ नहि होय तो सूत्र आपीने बीजी पोरसीए आचार्य साध्वीओनी वसतिमां जाय. कदाच सूत्रनो देनारज होय अने अर्थनो देनार कोइ नहि होय तो आचार्य पेली पोरसीमां साध्वीओनी वसतिमां जई आवी बीजी पोरसीए साधुओने अर्थ आपे अने जो सूत्र के