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________________ शतपदी भाषांतर. ( १२९ ) उत्तरः - - शाश्वता शक्रस्तव साथे नवी थएल गाथा मेळ - ववी वाजबी नथी लागती. कदाच कोई पूछे के त्यारे ए गाथा कोणे चलावी छे, तेने उत्तर आपवामां आवे छे के गणधर सप्ततिकामां ३३२ मां पाने क छे के त्रिभुवनागेरिवाळा महेंद्रसूरिए " जेय अईया सिद्धा” ए चैसवंदननो बीजो अधिकार तथा उ जंत सेलसिहरे, चत्तारि अहदसदोवि, वेयावच्चगराणं, ए दशमा अगीआरमा तथा बारमा अधिकार चलाव्या छे. प्रश्न – “नमोजिणाणं जियभयाणं" ए पाठ तो सूत्रमांज छे माटे केम नथी कहेता . ? उत्तर:- ए पाठ प्राये कल्पसूत्रनीज कोइ कोइ विरली म तोमा देखाय छे. वळी क्यांक तो "नमोजिणाण" ए एकज पद देखाय छे पण " ठाणं संपत्ताणं" सूधीनो पाठ अंग, उपांग, कल्पसूत्रनी घणी तो, आवश्यकचूर्णि उपदेशमाळावृत्ति वगेरा घणा स्थळे देखाय छे. माटे तेज अमो प्रमाण करीये छीये. 4 1 वळी विचारो के जो एकाद प्रतमां देखा तो पाठ पण प्रमा ण करशो तो तो "दीवो, ताणं, सरण, गइ, पठ्ठा" ए पाठ पण केम नथी कहेता. कारण के ए पाठ पण केटली केटलीक मतोमां देखायज छे. कोई पूछे के त्यारे चालता शक्रस्तवनो पाठ क्या ग्रंथमां छे तेणे जाणवुं के एज पाठ जीवाभिगम तथा रायपसेणीमां शक्रस्तवनी व्याख्या करतां मळयगिरिए वर्णव्यो छे. कोइ बोले के वृत्तिकारनी वातं केम प्रमाण थाय तो तेणे जाणवुं जोइये के वृत्तिकार ज्यां प्रासंगिक वात चलावे यांम माण अप्रमाणनो विचार चाले, पण ज्यां सूत्रना ऊपरज व्याख्या चलावतां यावत् शब्दनी तथा " वन्नओ, राया निग्गओ, १७
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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