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________________ ( ३० ) शतपदी भाषांतर. रुणीनी स्थापना स्थापे, कारण के गुरुणी पासेज हमेश तेओ रहे छे तथा शीखे छे. अने साध्वीओने गुरुकुलवासनां लक्षण गुरुणी साज घटमान थाय छे. (१२) कोई कहेशे के प्यारे गुरुना मुजब जिननी पण मनमां श्रावक स्थापना करशे, प्रतिमानी शी जरुर छे? तेनुं ए उत्तर छे के ए बात अयुक्त छे, कारण के जिनप्रतिमाओ तो शाश्वती तथा भरतादिके करावेली अनेक ठेकाणे वर्णवेली छे. तथा व्यवहारभाष्यमा क छे के लक्षणयुक्त, मनोहर, समस्त अळंकारशोभित प्रतिमा जेम जेम मनने आनंद ऊपजावे तेम तेम वधु निर्जरा थाय. तथा तेनी स्नपन, विलेपन, पुष्प, वस्त्राभरणरूप पूजा ठेकाणे ठेकाणे कही छे. माटे ते तो श्रावके अवश्य कराववी जोइये. अने स्थापनाचार्य तो शाश्वतो अथवा कोइ श्रावके करेलो के करावेलो कह्यो नथी. तेमज तेनी पूजाविधि पण क्यां बतावी नथी. माटे ते पेटे तो मनमां गुरुभाव लावीने " गुरुना समक्ष हुं आ सर्व अनुष्टान करूं छु” एवो विचार घरवो जोइए. अने एवो भाव दंडकादिरूप स्थापनाचार्य मां के मनमां स्थापेला गुरुमां बन्नेमां सरखो लावी शकाय छे. GK# विचार २२ मो. प्रश्नः - तमे साधुने वांदतां वे खमासमण केम नथी आपता ? उत्तरः- तमारा पक्षमां पण केटलाक अनुष्ठानमा एकज खमासमण अपाय छे. जुओ अगाडपछाडनी मंडळीमां साधुओमां एकबीजाने वांदतां, तथा सांजसवार पडिकमणामां आचार्य उपा ध्याय तथा सर्व साधुने वांदतां, तथा श्रुतनी वाचनामा काउसग
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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