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शतपदी भाषांतर. (२९) सेना माटे राखो छो? तेमज तेनाज, माटे धोएली मोपती ऊपर तेने केम स्थापो छो? तथा ते गृहस्थनां घरे केम वास करी शकशे? तथा शी रीते गामांतर जतां वाहन ऊपर लइ जइ शकाश? इत्यादि विचार करतां घटमान युक्तिओ पण. जणाती नथी.
(८) वळी मनमां गुरुनो भाव राख्याथी पण स्थापनाचार्य थई शके छेज; कारण के विशेषावश्यक, आवश्यकचर्णि, अनुयोगद्वारवृत्ति, विशेषावश्यकत्ति, तथा योगशास्त्रदृत्तिमा साक्षात् गुरुना अभावे दंडकादि स्थापनाचार्य स्थापवो अथवा मनमा गुरुनो भाव धारवो एम बे प्रकारे प्रतिपादन करेल छे.
(९) स्थविरकल्पमां ए स्थापनाचार्य युक्त छे.
कोई कहेशे के ज्यारे स्थापनाचार्य बे प्रकारे थाय छे अने जिनकल्पिओ तथा श्रावको दंडकादिरूप स्थापनाचार्य नथी स्थापता सारे स्थविरकल्पिओने पण तेम करतां शो दोष आवशे? तेनुं उत्तर ए छे के स्थविरकल्पिओने गुरुना विरहमां गुरुकुलवासि. पणुं जणाववा माटे सिद्धांतमा ठेकाणे ठेकाणे दंडकााद स्थापनाचार्य कहेल छे माटे तेमणे तो ते स्थापवोज जोइये. इहां आवश्यकचूर्णि, योगसंग्रह, तथा ओघनियुक्तिनां प्रमाण रहेलां छे.
(१०) इहां जे युक्तिओ छे ते पण शास्त्रानुगतज छे.
कोई कहेशे के तमो अनेक प्रकारनी युक्तिओज बतावो छो, पण एम नथी बतावी शकता जे फलाणा सिद्धांतमां श्रावकने दं. डकादिरूप स्थापनाचार्यनी ना पाडेल छे तेनुं ए उत्तर छे के युतिओ पण सिद्धांतने अनुगनज आपेली छे, कई स्वमतिविकल्पित युक्तिओ आपी नथी.
(११) कोई पूछे के स्थविरकल्पि मुनि स्थापनाचार्य राखे छे त्यारे साध्वीओ शुं स्थापे? तेनुं ए उत्तर छे के तेओ पोतानी गु.