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शतपदी भाषांतर. (१५९) हेरता का नथी. केमके आवरण रखाय पण पहेराय नहि एम तो क्यां कछु नथी.
वळी ए पावरण पण माशुक वस्त्र लई का नथी करता, तथा रजकादिकना हाथे को धोवरावो रंगावो छो ?
वळी जो दिगंबरपणुंज खरुं छे तो तमारी आर्याओ का थो. डांक कपडां पहेरे छे ?
धर्मोपकरण, निग्रंथमुनिए पायाभ्यंतर परिग्रह छांडवो पण धर्मोपकरण छोडवा न जोइये कारण के धर्मोपकरण छांडतां तो संयम तथा आत्मा ए बेनी विराधना थाय छे. तेना दाखला.
(१) मोपती विना मोंमां मछर, माख, पाणीना बिंदु के धूल पडे छे; देशना देतां के छीकतां मोंना गरमवायुवडे बाहेरना वायुनी विराधना थाय छे, तथा आपणी थूको ऊडीने बीजाने स्पर्शे छे. __(२) रजोहरण वगर भूमि शरीर, उपकरण, थंडिल वगेरा केम प्रमार्जी शकाय? वळी राते सामे आवता वीछी-सर्पने केम अटकावी शकाय तथा शरीरपर चडता कीडी-माकण केम निवारी शकाय?
(३) कपडं राख्या वगर (तमारामांना केटलाक आजकाल) शीआळामां कांतो अग्निनो पडखो ले छे अथवा तो शुषिर अने सबीज पलालमां मूए छे, अथवा तो शास्त्रमा निषेधेल छतां तैलमर्दन करावे छे, अथवा शीतना भये देरासरना गूढमंडपमा जइ सूइ आशातना करे छ, के छेवट गृहस्थना लांबा मोटा वगर तपासेल पटु, धुपटा, बूरी, के खेश वापरे छे.
(४) वळी कांबळी वगर (तमारामांना केटलाक) वर्षाकाळमां कांतो जेनी पडिलेहणा नहि थई शके एवं क्रीतादिदोषदुष्ट छत्र धरावे छे, अथवा तो गरमशरीरवडे अपकाय विराधे छे. पण