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शतपदी भाषांतर.
विचार ८० मो. प्रश्नः-यतिने प्रावरण एटले ऊपर ओढवा- कपडं कल्पे के नाहि!
उत्तरः-उत्सर्गे नहि कल्पे, पण अपवादे कल्पे पण खरं. कारण के कल्पचूर्णिमां नीचे लखेला प्रसंगे प्रावरण राखQ कह्यु छे. (१) क्षेत्रने आसरी मावरण रखाय जेम के सिंध देशमा प्राव
रण ओढीनेज फराय छे. (२) वर्षाकाळमां प्रावरण रखाय छे. (३) अभावित एटले जे अभोमियो शिष्य होय ते ज्यां सूधी
भावित एटले भोमियो थाय त्यो सूधी तेने प्रावरण रखावq. (४) शीत के ताप नहि खमी शकतां प्रावरण रखाय छे. (६) प्रभाते भिक्षादिक अर्थे जतां प्रावरण रखाय छे. (६) मुशाफरीए जता दंड शिवाय बधी उपधि खंधे बांधी तेना.
पर प्रावरण राखी चलाय छे. (७) चोरना भये प्रावरण ढांकी नीकलाय छे.
वळी जे ओघनियुक्तिमा प्रावरणनी ना कही छे ते विषे तेनी टीकामां खुलासो करेल छे के जेम साध्वीओ प्रावरण ओढे तेवी रीते प्रावरण नहि ओढवू. तेथी कई सामान्यपणे प्रावरणनी मनाई जणाती नथी..
बाकी नीचे प्रमाणे वस्त्र पेहेरवा बाबतनी अविधिओ गळवार्नु पंचकल्पनी चूर्णिमा लख्युं छे. (२) चोवढं के मोकलं वस्त्र करीने खंधपर नहि राखq. (२) वस्त्रथी माथापर लटकता पूछवाळु फेंटुं नहि बांधq. (३) साध्वीना माफक बे बाहु ढांकीने नहि ओढवू. (४) बे खभानी नीचेथी नाखीने बे खभापर वे छेडा राखी नहि
वापरबुं.