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________________ ( २०४ ) लघुशतपदी. माटे तेणे ज्यारे ए बात नथी करी त्यारे जणाय छे के सूत्रमां देशपौषधने व्रत तरीके नथी गण्यं. दि कहेशो के देशपोसहने पण पोसहना दंडक प्रमाणे उचार करवाथी पौषधत्रत थशे पण तेम पण घटतुं नथी कारण के त्या चौदे नियम देशपोसहरूप रहेला छे तेथी श्रावकोने सर्वदा देशपोसह उच्चरवो सिद्ध थशे अने तेम तो कोइ मानतुं नथी. कारण के नियमो जो के देशपोसहरूप छे छतां देशावगासीना दंडकथी उच्चराय छे. तेथी ते दशमात्रतमांज अंतर्भूत थाय छे. अने चूर्णिमां पण देसावगासीना अधिकारे लख्युं छे जे " सर्वे व्रतोना जे प्रमाण राखेला छे ते देशावगा सीमां संकोची शकाय छे." माटे सामायिकसहित जे सर्वपोसह कराय तेज अगीयारमुं व्रत गणवुं. ए आम छतां जेओ पोसहव्रत लइने यथेच्छ खायपीये छे ते महा साहसी जाणवा कारण के पोसहमां भोजननी चिंतना करतां पण अतिचार लागे छे तो खावाथी शुं थशे ते अमे नथी जाणता. " पोसहना पारणे अतिथिसंविभागवत अवश्य ग्रहण करवुं. कारण के चूर्णिमां कहुं छे के “ पोसह पारतां साधुने दीधा वगर पारखं न कल्पे माटे पहेलां साधुओने वोरावी पछी पारखं." विचार ३५ मो. शीळाचार्ये उद्दिष्टाशब्दे कल्याणिकतिथि कही छे. पण सूयगडांगनी चूर्णिमां तथा दशाश्रुतस्कंधनी चूर्णिमां तथा भगवती अने स्थानांगादिकनी वृत्तिमां ते शब्दे अमावास्याज कही छे. (वळी जेओ डाह्या थइ उद्दिष्टाशब्दे सर्वागमप्रसिद्ध अमावास्यारूप मूळ अर्थ छोडी कल्याणिकरूप अर्थ प्ररूपे छे, तेमणे वि
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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