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लघुशतपदी.
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चार घटे छे के ज्ञातासूत्रमां भद्रासार्थवाहीना अधिकारे पण चौदश, आठम, पूनम अने उद्दिष्टा एवोज पाठ छे त्यां उद्दिष्टा शब्दे शो अर्थ लेवो. कारण के भद्रासार्थवाही कल्याणिकनुं तो नाम पण जाणती न हती. )
कोइ पूछे के पंचपर्वी कां नथी मानता ? तेने ए उत्तर छे के भगवती तथा स्थानांगादिकनी व्याख्याना भागे चऊपर्वीज प्रतिपादित करेल छे.
वळी कल्पसूत्रमां "अमासना दिने पोसह थाप्यं" एम लखेल छे अने पोसह ए पर्वदिननुं अनुष्टान छे माटे अमावास्या स्पष्ट रीते पर्व थइ चूकी.
आवश्यकचूर्णिमां पण कधुं छे के " आठम अने पंचदशीनुं नियमा पोसह करवुं . "
श्राद्धदिनकृत्यमां पण लख्युं छे के " छ तिथिमांथी आजे कइ तिथि छे ते विचारखुं " तेनी टीकामां छ तिथि ते बे आठम बे चौदश अने पूनम तथा अमावास एम लखी छ. योगशास्त्रवृत्तिमां पण आठम चौदश पूनम अमावासरूप चौपर्वी कही छे.
हवे महानिशीथमां त्रिभागे आयुबंध पडवानी युक्ति आपी पंचपर्वी वर्णवी छे पण ते युक्ति बीजा सिद्धांत साथे विरुद्ध पडे छे. कारण के सिद्धांतमां एम कधुं छे के सोपक्रम आयुवाळा पोताना आयुनो त्रीजो भाग वगेरा शेष रहेतां आयु बांधे छे पण is पंचपर्वीमां आयुबंध नथी कह्यो.
वळी पंचपर्वी आराधतां सिद्धांतमां अनेक वार कट्टेल पंचदशीरूप मुख्य पर्व तो वेघळोज रही जाय छे.
कदाच ते पण आराधवी मानशो तो पंचपवना बदले छप