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________________ ( ५६ ) सतपदी भाषांतर. जेणे, नहि के पौषधव्रतवालो एम कराय छे तेम इहां पण उपसर्ग सूधी पौषध क्रियानो अभिग्रह पाळतो थको एम व्याख्यान करी शकाय छे. . (५) वळी वसुदेवहिडिमां मेघरथराजानी कथामां लख्युं छे के मेघरथराजा एकदा अठम भक्त लइ प्रतिमामां ऊभो रह्यो. तेने इंद्रे प्रणाम करी तेनां वखाण करतां इंद्राणीओ डगाववा आवी पण ते डग्यो नहि तेथी इंद्राणीओ तेने नमी जती रही. अने सूर्य ऊगतां राजाए प्रतिमापौषध पार्यु. इहां ए उत्तर छे के ए राजाए कई अष्टमभक्तपूर्वक पौषध नथी ली, किंतु काउसग्ग करेलो छे. कोई पूछे के त्यारे अंते प्रतिमापौषध पार्यु एम लख्युं छे तेनो शो अर्थ तेनुं ए उत्तर छे के प्रतिमापौषध एटले प्रतिमारूप अनुष्टान अथवा प्रतिमारूप अभिग्रह ए अर्थ संभवे छे. . कदाच कोई पूछे के शुं अग्यारमा व्रत विना वीजा ठेकाणे पण पौषध शब्द वर्ते छे? तेनुं ए उत्तर छे के हा वर्ते छे. कारण के साधुना अधिकारे “पक्खियपोसहिअसु समाहिपत्ताणं" एनी चूर्णिमां.लख्युं छे के इहां पौषधव्रतवगर सामान्यपणे साधुना धर्म कृत्यनो वाचक पौषध शब्द छे वळी आवश्यकचूर्णिमा सामायिकना अतिचारना अधिकारमा मनदुःमणिधाननी व्याख्यामां लख्यु छ के पोसहवाळो एम चितवे जे घरे आ काम ठीक छ, आ अठीक छे, ए मनदुःप्रणिधान. इहां पोसह शब्द सामायिक. वाची छे. तथा देशावकाशिव्रतना अतिचारमां अमनोज्ञप्रयोगनी व्याख्यामां पोसह क्यारे पूर थशे एम चितवq ते अमनोज्ञप्रयोग एम लख्युं छे. इहां पौषधशब्द देशावकाशीवाचक छे. तथा एज चूर्णिमां एक कथामां एकांतर मैथुननी निवृत्तिनी वातमां
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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