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(२०) शतपदी भाषांतर. स्थापनाचार्य के मुखवस्त्रिका साथे लीयां नहि. अने जेणे प्रहार नी पीडामां पण पर्यंतालोचना करी तेणे द्वादशावर्त्तवांदणां नहि दीधा होय एम तो कही शकाय नहि. . हवे कया ग्रंथोमां श्रावकने मुखवस्त्रिकानो निषेध करेल छे ते जणावीये छीये.
पिंडनियुक्ति, तथा व्यवहारभाष्यमां दशमी प्रतिमा सुधी श्रावकने लिंगथी वैधर्मी गण्यो छे. अने त्यां टीकाकारे लिंग एटले रजोहरण तथा मुखवस्त्रिकारूप कर्तुं छे.
कदाच कोई कहेशे के लिंगथी वैधर्मी ते एमके संपूर्ण लिंग न होय पण एकली मुखवस्त्रिका होय तेमां शी हरकत छे तो तेणे जाणवू के शास्त्रमा रजोहरण वगर एकली मुखवत्रिका क्यां पण देखाती नथी. अगर जो एकली पण होय तो जिनकल्पीने संक्षेपे पण रजोहरण ने मुखवस्त्रिकारूप बे उपकरण शा माटे कह्यां छ ? - कोई कहेशे के सारे श्रावक एकलुं रजोहरण पण केम राखे तेनुं ए उत्तर छे के लिंग ग्रहण करवानी मनाइ छ बाकी औपअहिक रजोहरण राखतां कंइ लिंग थतुं नथी. अने ए औपग्रहिक* रजोहरणथी प्रमार्जनज करे वंदनादिक नहि करे माटे तेमां हरकत नथी. ___सारे कोई कहेशे के औपग्रहिक रजोहरण माफक मुखवस्त्रिका पण औपग्रहिक श्रावक राखशे त्यां ए उत्तर छे के आवश्य. कचूणि वगेरामां जेम रजोहरण साधु पासेथी मागवानुं अथवा श्रावकना घरे होवानुं लख्युं छे तेम क्यां मुखवस्त्रिका माटे लख्यु नथी. माटे मुखवस्त्रिका औपग्रहिक नहि थइ शके.
* कारणनी अपेक्षाथी संयम माटे रखाय ते.