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शतपदी भाषांतर. (१८१ ) विचार ११७ मो.
(अठाइ बाबत.) प्रश्नः-उपदेशमाळामां कडं छे जे “संवच्छरी, चोमासा, तथा अठाइ तिथिओमां विशेष आदरथी जिनपूजादि धर्मकरणी करवी." एम त्यां अठाइनी तिथिओ जूदी लीधी छे, छतां तमे आसु अने चैत्रनी शाश्वती अठाइयो केम नथी मानता.? ___ उत्तरः-ए अठाइयो सूत्रमा शाश्वतीपणे तो दूर रही पण नाम मात्रे पण नथी देखाती; माटे केम मानीए
वळी उपदेशमाळानी टीकामां पण एगाथानो एवो अर्थ करेल छे के "अष्टाह्निका एटले चैत्रादिकनी यात्राओ तथा तिथि
ओ ते चौदश वगेरा" एम टीकाकारे पण अष्टाह्निका एटले चैत्रादिकनी यात्राओ एटलुंन कह्यु छ पण आठमथी मांडीने पूनम सुधी एम नथी कह्य तथा आसुनी अठाइनुं तो नामज नथी लीधुं. अने जे चैत्रादिकनी यात्राओ कही ते ए कारणे के लौकिक तथा लोकोत्तरमा चैत्र अने वैशाखमांज यात्राओ प्रवर्ते छे.
वळी शाश्वती अठाइयो तो आगममां चारज कही छे. तेनो पुरावो. ___ जीवाभिगममा लख्युं छे जे “ते सिद्धायतनोमां घणा भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी, तथा वैमानिक देवो चोमासानी पडवेना दिवसोमां तथा संवछरीमां तथा बीजा अनेक जिनकल्याणिक वगेरा कार्योमां एकठा मळी आनंदथी रमता थका अठाइ रूप महामहिमाओ करता रही मुखचेनथी विचरे छे."
आ रीते केटलाक विषम विचारोना प्रश्नोत्तरनी पद्धतिरूप शतपदिका नामे ग्रंथ पूर्ण थयो.