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________________ शतपदी भाषांतर. ( १४३) चर्चा, पूजा, के सिद्धार्नु आह्वान वगेरा कशुं नथी कयुं, किंतु प्रतिष्टानी प्रस्तावना लख्या पछी तेनी विधिमां कडं छे के "चैत्यवंदन, वधती स्तवस्तुति, तथा शासन देवीनो काउसग करी नवकार मंत्र के बीजा कोइ मंगळांतरवडे प्रतिमानी स्थापना करवी" एटलुंज लख्युं छे; छतां हमणा तमे नवकारमंत्रे :तिष्टा न करता सूरिमंत्रे करवी का मानो छो, तथा तेमणे त्यां नहि कहेला अंजनशलाकादिक पांचे काम कां करो छो? (६) समरादित्यचरित्रमा हरिभद्रसूरिए साध्वीओना उपाश्रय मों जिनप्रतिमाओ हती एम लख्युं छे. तेना आधारे हमणा पण जालोर, खंडेरकना सीमाडे आवेल वरकाणा, नागोर, आघाटपुर (आगरा), खुमाणोर, तथा भरतपुर वगेरामां चैत्यवासि साध्वीओना उपाश्रयोमां पत्थरना मोटा मोटा वि. व प्रत्यक्ष देखाय छे छतां तमे कां तेम नथी मानता. (७) पंचाशकमां कह्या प्रमाणे श्रावकने समकित के व्रत देतां ते. नी आंखो ढंकावी समवसरणमां पुष्पादिक नखावी शुभाशुभनी परीक्षा केम नथी करता, तथा राते देव केम नथी वंदा. वता, तथा दीवा अने चंद्र वगेराना निमित्त केम नथी जोता? (१) वळी तिहां कहुं छे के "श्रावक पोताना गुरुने पोता. नी सघळी मालमिल्कत अर्पण करे. (अने गुरु जो के मिल्कतनो कबजो तो नथी करता छतां) तेना चित्तनी समाधिना अर्थे ते वात अनुमत करे." ए वात पण शी रीते घटमान थाय. (२) तेमज छठा पंचाशकमां द्रव्यस्तवमा साधुने अनुमति अने कारापण ठेराव्या छे. ते पण केम घटे कारण के तेमणे त्रिविधे त्रिविधे सामायिक करेल छे. .
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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