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शतपदी भाषांतर.
( ३५ )
(१) त्यां कल्पभाष्यमां लख्युं छे के त्रण साध्वीयो साथै विचारतां कूतराना के तरुण पुरुषांना पराभवथी पोतानो बचाव करी शके, परिहरवा लायक तथा नहि परिहरवा लायक घरो जाणी शके छ कान थवाथी छानुं रहस्य करतां अटकी शके, तेमज जे द्रव्य भेगुं करतां आत्म तथा संयमविरुद्ध थाय जेबुं के- दर्दि अने तेल अथवा दूध अने कांजी, ते, तथा जे देहवि - रुद्ध थाय जेवुं के शीत अने उष्ण, तेवां द्रव्य जूदां जूदां लइ शके.
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(२) व्यवहारभाष्य तथा निशीथभाष्यमां त्रणथी ओछी साध्वीयाने गोचरी वगेरा कामे जतां निषेध पाड्यो छे.
(३) वळी ओघनिर्मुक्तिना भाष्यमां साध्वीयोना उपाश्रयमां माहूणा साधु आवतां तेमने वांदवानी विधियां पण एकुंज लख्युं छे के जो गणिनी स्थविरा होय तो बे के ऋण जणी थइने अने तरुणी होय तो चार के पांच जणी थइने दरवाजानी बाहेरली बाजु नीकळी तेने वांदे अने बाकीनी साध्वीयो अंदर रही थकी वांदे तथा सुखसाता पूछे.
ए संबंधे कल्पभाष्यमां एम लख्युं छे जे बे के ऋण जण थइ आवेला पाहूणा साधुआंने त्रणजणीयो थइने गणिनी वांदीने सुखसाता पूछे.
(४) कोइ केहेशे के ज्ञातासूत्रमां तेतलिपुत्रना घरे साध्वीयोनो संघाडो आवेल कह्यो छे माटे बे पण सिद्ध थइ शके. तेनुं ए उत्तर छे के साध्वीयोनो संघाडो ऋण साध्वीयोंथीज थाय छे. जे माटे पर्युषणाकल्पनी चूर्णिमां लख्युं छे के साधु उत्सर्गे बे होय अने साध्वीयो त्रण; चार, के पांच होय.
(५) कोई कहेशे के आवश्यकचूर्णिमां लख्युं छे के बाहुब - ळिने काउसगमां बारमास पूरा थतां ऋषभदेवस्वामिये ब्राह्मी