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शतपदी भाषांतर.
मायिक करतां कुंडळ, नाममुद्रा, पुष्पतंबोळ, अने प्रावारक वगेरां मूकवानां कहां छे, माटे मावारक एटले ऊपरनुं वस्त्र ऊतारखं सि द्ध थाय छे. ते वात पण रद छे कारण के प्रावारक शब्दे सिद्धां तमां दुःप्रत्युपक्षित एटले मुश्केलीए जोइ शकाय तेतुं वस्त्र विशेष लील छे. अने जो इहां सामान्यपणे ऊपरनुं वस्त्र लइए तो सामायिकवाळाने सर्वथा वस्त्र अग्राह्य थशे अने तेम तो कंइ छे न. हि, केमके सामायिक के पौषधवाळा पण वस्त्रनी अनुज्ञा लइ वस्त्र ग्रहण करता देखाय छे.
वळी मावारक शब्दे पटी कहो छो, त्यारे तमे सर्व सामायिक करीने ते केम राखो छो तेमज ए अर्थ करतां तो श्राविकाने पण उत्तरीय वस्त्र मूकवुं पडशे.
माटे प्रावारक शब्दनुं निजमतिकल्पित व्याख्यान नहि क रतां पूर्व श्रुतधरकृत व्याख्यानज करवुं जोइये.
(४) कोइ कहे के कुंडकोळिक श्रावकना अधिकारमां वात आवे छे के " कुंडकोळिया श्रावक एक वेळा अशोकवनिकामां आवी पृथिवीशिळा पट्ट उपर नाममुद्रा अने उत्तरासंग मेळीने वीर भगवान्नी धर्मप्राप्ति कबूल करी विचरे छे." माटे इहां नाममुद्रा ने उत्तरासंग मेळवाथी अर्थापत्तिए मुखवस्त्रिका लइने धर्मज्ञप्ति एटले पौषध लीधो देखाय छे. तेनुं ए उत्तर छे के एम व्याख्यान थइ शकतुं नथी कारण के पौषधनुं अशोकवनिका स्थानज नथी. केमके आवश्यकचूर्णिमां तेना स्थान चैत्य, साधु मूळ, घर के पौधशाळारूप चारज बताव्या छे. वळी वृत्तिकारे पण धर्मज्ञ अर्थ पौषध नथी कर्यो. किंतु श्रुतधर्म प्ररूपणा एटले के मत के सिद्धांतविचाररूप कर्यो छे.
(५) को कशे के आवश्यकचूर्णिमां सर्व पौषधमां वस्त्रा