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शतपदी भाषांतर. भरणनो साग करवो कहेल छे माटे तेथी मुखवस्त्रिका सिद्ध थशे तेनुं ए उत्तर छे के त्यां कंइ सामान्यपणे सर्वे वस्त्र त्याग करवा लखेल जणातुं नथी, किंतु भरतभरेला वगेरा बहुमूल्य माटे लागे छे कारण के अभयदेवमूरिए पण तेवुज व्याख्यान कर्यु छे. अग. र सर्व वस्त्र माटे लइये तो हेठे पहेरवानुं वस्त्र पण त्याग करवू पडे. वळी घणा स्थळे पौषधमां प्रमार्जन वस्त्रांचळादिकथी करवू लख्यु छे ते जो सर्वथा वस्त्र साग करवामां आव्यां होय तो केम संभवे?
(६) कोइ कहेशे के प्रतिक्रमणभाष्य तथा आवश्यक वृत्त्यादिकमां पीआरमी प्रतिमा लेतां रजोहरणने पात्रां लेवा कह्यां छे, त्यां मुखवस्त्रिका नथी कही, माटे ते अगाउ होवी जोइए. तेनुं ए उत्तर छे के अगीआरमी प्रतिमा लेतां तो अवश्य चौदे उपकरण होवां जोइए, तेथी तेमांना बे साक्षात् कही बताव्यां छे, अने तेनो ए अर्थ थाय छे के रजोहरण शब्दे रजोहरण, मुखवस्त्रिका, वगेरा छ उपकरण, अने पात्रा शब्दे, पात्रक, पात्रकबंध वगेरा आठर्नु उपलक्षण थाय छे. ए अर्थ पंचाशक टीकामां छे. . ___(७) कोइ कहे के आवश्यकचूर्णिमां श्रावकने औपग्रहिक रजोहरण कहेल छे, माटे श्रावक साधु पासेथी रजोहरण मागी तेनावडे वांदणां आपे तेनुं ए उत्तर छे के तेम मानशो तोपण ते कदाच साधु पारी नाहि होय त्यार वस्त्रांचले वांदणां देवरावां पडशेज. माटे रजोहरणथी भूप्रमार्जनज करवू घटे छे. अने पूर्वाचार्योए पण रजोहरणथी प्रमार्जनाज कहेली छे
वळी जो श्रावकने साधु पासेथी मागेला रजोहरणवडे वांदणां करवानां होय तो त्यारे साधुओने तेवां रजोहरण घणां राखवां पडशे कारण के वांदणां तो समकाले घणाने करवानां होय छे.अने प्रमाजना तो बेत्रण रजाहरण हो। पण एकबीजाने आप