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शतपदी भाषांतर.
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(२) " पचवीशमा तीर्थंकर", तथा "त्रिभुवनगुरु" एवा पोताना अनुचित बिरुद बोलाता जिनपत्तिसूरि कबूल राखे छे. (३) पंचाशकमां मासकल्पविहार तीर्थपर्यंत चालु को छे छत जिनपत्ति कहे छे के मासकल्प विहार विच्छेद गयो. (४) सिद्धांतमां तथा पंचवस्तुकमां साधुना चौद अने साध्वीनां पचीश उपकरण कहां छे, छतां जिनपत्ति कहे छे के ते वात विच्छेद गई.
(५) सिद्धांतमां तिलोदक तुषोदकादिक अनेक प्रकारनां पाणी साधुने माटे कां छे. छतां तेने उल्लंघी जिनपत्तिसूरि कहे छे के फक्त (चोखुं ) प्राशुक पाणीज लेवुं, बाकी धोवणना पाणी न लेवा. अने ओसामण तथा सौवीर ( छाशनुं पाणी ) लेतां तो छूति लागे एम कहे छे.
(६) वळी सिद्धांतोमां अनेक स्थळे साधुने स्नान करवानी मनाई करी छे तथा मेलां ने जूनां वस्त्र पहेरवां कहां छे, ते उल्लंघी जिनपत्तिसूरि कहे छे के साधुओए मेलुं शरीर नहि राखकुं तथा मेलां कपडां नहि पहेरवां.
(७) माशुकजळनुं जीवाणी ( संखारुं) जिनपत्तिमूरि सांजे श्राविकाओने हाथे अपावे छे ए पण अयुक्त वात छे, केमके एथी त्रसजीवनी विराधना थवानो संभव रहे छे तेमज पूर्वसुविहितो ते आचर्य नथी.
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ए रीते खरतरना दरेक आचार्योंए जूदी जूदी समाचारी चलावी छे माटे तेमां कइमां आस्था रही शके.
हवे आ स्थळे जिनवल्लभसूरिना शिष्य रामदेवगणिए पडशीतिनामा ग्रंथनी प्राकृत टीकामां एक चर्चा चलावी छे ते (उपयोगी जाणी) इहां टांकीये छीये.
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