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शतपदी भाषांतर.
- शिष्योने आजकाल ते आपवो. तेटला माटेज चूर्णिकारे सर्वोत्कृष्ट गुरुशिष्यना गुणो जणाववा ए आलावा लखेल छे; पण कई ए-वाज गुणवाळा गुरुए एवाज गुणवाळा शिष्यने अनुयोग आपको एवो नियम बांधवा माटे ए आलावो नथी लख्यो.
माटे चूर्णिमां वर्णवेला अधिक गुणवाळा गुरुशिष्य नहि मळता होय तोपण काळानुसारे गुणनी तरतमता विचारी दुःप्रसभ सूधी आवश्यकनो अनुयोग प्ररूपाशे.
वळी सुधर्मास्वामि तथा भद्रबाहुस्वामिना वखतमां पण शास्त्रोक्त गुणवाळा गुरुशिष्यनो संभव विरलोज हतो, कारण के " बार प्रतिमाना धारक" इत्यादि विशेषणो सर्व आचार्योमां संभवी शके नहि.
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विचार ८९ मो.
प्रश्नः - शास्त्रमां कह्युं छे के मुनिए अज्ञात उंछ ( भोजन ) लेवं, माटे परिचित श्रावकोना घरे वहोखुं नहि जोइये; छतां तमे केम बहोरो छो ?
उत्तरः- अजाण्या घरोथीजं वहोरखं एवं कंइ एकांत नथी. कारण के ओघभाध्यमां क छे के एक संघाडाए ठवणाकुलमां जवं अने बीजाओए बीजा घरोमां जनुं ( इहां ठवणाकुल ते श्रावकोना घर जाणवा.) वळी आगल चालतां लख्युं छे के अति उमदा चीजो जेकुलोमां मळे तेने अतिशेषी कहेवा तथा श्रद्धावाळा कुळाने श्रद्धि कवा ते कुलोमां सर्व संघादाओए नहि जवुं किंतु गीतार्थ संघाडाए जj. एज प्रमाणे निशीथचूर्णियां पण कधुं छे.
वळी कल्पसूत्रमां कह्युं छे के जे कुल श्रावक थएला अने बहु