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शतपदी भाषांतर. - (१०९) कदाच कोइ कहेशे के योग वह्या शिवाय श्रावको आवश्यक नियुक्ति वगेरा केम शीखी शके ? तेनुं ए उत्तर छे के योग तो सूत्रोनाज वहेवाय, बाकी नियुक्त्यादिकना योग नथी. वळी सू. त्रोमां पण सामायिकादिक सूत्रो तो योग वहेराव्या वगर पण पूर्वाचार्योए लाखो श्रावकोने भणाव्या छे.
विचार ८८ मो. .. प्रश्न:-आवश्यकचूर्णिनी आदिमांज लख्युं छे के जे शि
ष्य गुरुकुळवासी, जाति-कुळं-रूप-श्रुत-आचार-सत्त्व-विनय -संपन्न होय इत्यादि अनेक गुणोवाळा शिष्यने अनुयोग एटले अर्थव्याख्या देवी एम कधुं छे, माटे तेपरथी जणाय छे के यति पण जे विशिष्ट गुणवंत होय तेनेज आवश्यकनो अनुयोग आपी शकाय, त्यारे श्रावकने ते केम आपवो घटे ? ___ उत्तरः-एज चूर्णिमा आगल लख्युं छे के श्रावक उत्कृष्टपणे छजीवणी सूधी सूत्रार्थे अने पिंडेषणा सूधी अर्थे शीखे. तथा कल्पपीठमा लख्युं छे के आचार्यने कोइ अन्य आचार्य, भिक्षु, के श्रावक कहे के आप आपना इच्छाकारे अमने अनुयोग आपो त्यारे आचार्ये तेमने अनुयोगनी विधिए अनुयोग देवो. ए पुरावाथी जणाय छे के श्रावकोने पण अनुज्ञात ग्रंथोनो अनुयो. ग आपी शकाय छे. - हवे जे विशिष्टगुणवाळानेज अनुयोग देवो ते बाबत एम जाणयु के जेम सर्वगुणसंपूर्ण सुधर्मास्वामिए विशिष्टगुणवंत जंबूने अनुयोग आप्यो, वळी काळांतरे भद्रबाहुस्वामिए स्थूळभद्रने आप्यो तेम बीजा पण गुणवंत गुरुओए काळानुसारे मळता गुणवंत