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________________ शतपदी भाषांतर. ( १२७) यावज्जीव मूकवत धारण कयु. (१८) स्तवस्तुतिवडे त्रिकाल जे चैत्य न वांदे तेने पेहेलीवारे तप, बीजीवारे छेद, अने त्रीजीवारे उपस्थापना आवे. (१९) अविधिए चैत्य वांदे तो पारांचित लागे. (२०) सहसात्कारे वासीभोजन लेवाइ गयुं ते जो तत्काळ निरु पद्रवस्थंडिळमां नहि परठवे तो मासखमण प्रायश्चित्त लागे. (२१) राते जे छींके के खांसी करे अथवा फळक, पीठ, के दंड थी थोडो पण अवाज करे तो मासखमण प्रायश्चित्त आवे. आवी आवी घणी वातो छ के जे तमो पण मानी शकता नथी तेथी तमोएज ए ग्रंथने अप्रमाण को देखाय छे. माटे उपधान पण एज ग्रंथमां कहेला होवाथी अमारे प्रमाण नथी. हवे ज्यारे अमो उपधान प्रमाण नथी करता त्यारे तेना ऊजमणा रूपे रहेल माळारोपण तो सहेज अप्रमाणज थयु. विचार ९७ मो. प्रश्नः-निशीथचूर्णिमा कर्जा छे के "आठम अने चौदशमा प्रभावती राणी राते प्रतिमा आगल नृत्यपूजा करता हता" माटे तमे रात्रिए पूजानो निषेध केम करो छो? उत्तरः-आवश्यकचूर्णिमां कडं छे के प्रभावती त्रिसंध्य पूजा करता तेपरथी तथा श्रेणिकराजा त्रिसंध्य सोनाना एकशो आठ यववडे पूजा करता हता तेपरथी तेना अनुरोधे इहां पण रात श. ब्दे संध्याज लेवी. वळी “रात्रि एटले संध्या अने विकाल एटले संध्या पछीनो वखत" एम निशीथचूणिमांज स्थळांतरे व्याख्या करी छ.
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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