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शतपदी भाषांतरः ( १०७)
विचार ८६ मो. प्रश्न:-साधु तथा श्रावके जघन्यथी आठ समितिओ शीखवी, ते उत्तराध्ययनमा रहेल प्रवचनमात नामे अध्ययन शीखवू के बीजं कोई अध्ययन शीखवु ?
उत्तरः-इहां जो के भगवतीना टीकाकारे बकुशनी व्याख्यामां कडं छे के "ए उत्तराध्ययन, अध्ययन तो मोहोटुं छे माटे जघन्यपदमां नथी संभवतुं, किंतु “अठण्हं पवयण माईणं" ए पदनुं जे विवरणसूत्र छे ते संभवे छे. अने तेथी माषतुषादिकनी वातमां पण व्यभिचार आवतो अटके छे." तोपण टीकाकारे जे विवरणसूत्र जणाब्युं छे ते हाल देखवामां नथी आवतुं, अने श्रावकने तो समितिओनुं खप अवश्य रहेल छे तेथी बीजा सूत्रनो अभाव होतां उत्तराध्ययन- प्रवचनमात नामे अध्यनयज अमेश्रावकने शीखवीए छीये.
विचार ८७ मो. प्रश्न:-श्रावको आवश्यकनियुक्तिने तथा सिद्धांतोना अनेक आलावाओने केम भणी शके ? ___ उत्तरः-जो श्रावको आवश्यकनियुक्तिने तथा सिद्धांतोना अनेक आलावाओने नहि भणे तो तेमने " लद्धडा, गहियहा" इसादिक भगवतीमां कहेलां विशेषणो केम घटी शके ?
वळी सुबुद्धिमंत्रीए पाणीनो दाखलो आपी "सुगंधि पुद्गलो दुर्गधि थाय छे, अने दुर्गधि पुद्गलो सुगंधि थाय छे" ए आला. वावडे जितशत्रु राजाने प्रतिबोधी धर्मदेशना पूर्वक समकितमूळ बारव्रत दीघां ए वातथी पण सिद्ध थाय के श्रावक सूत्रोना आ