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शतपदी भाषांतर.
(१२५) क्यांक पूठी, क्यांक बेबे त्रणत्रण पानां इत्यादि घणो ग्रंथ नाश पामेल हतो. ए रीते पहेला अध्ययनना पर्यते लख्युं छे. तथा त्रीजा अध्ययनमा लख्यु छे के महानिशीथना पूर्वादर्शना उदेहीए कटकेकटका कर्याथी घणां पानां सडीगयां हता. तथा चोथा अध्ययनना अंते लत्यु छे के आ चोथा अध्ययनमा घणा सैद्धांतिक (सिद्धांत माननारा पुरुषो) केटलाक आलावा सम्यक् श्रद्धता नथी. माटे हरिभद्रसूरि कहे छे के तेथी मने ते बाबत सम्यक् श्रद्धान नथी."
वळी ए महानिशीथमां उपधानना माफक बीजी पण अघ.. टित वातो छे तेमांनी केटलीक इहां बतावीए छीये. (१) आउकायना परिभोगमां, तेउकायना समारंभां, अने मैथुन
ए त्रणेमां बोधिधात्रज थाय छे. तेमां कई प्रायश्चित्तथी शु
द्धि थई शके नहि. (२) मार्गे चालता साधुए सो सो डगले इरियावही पडिकमवी. (३) आर्याओथी तेर हाथ वेगला रहे, अने मनथी श्रुतदेवीनी
माफक सर्व स्त्रीओने परिहरवी. (४) कल्प नहि वापरे तो चउत्थर्नु प्रायश्चित आवे. (५) कल्प परिठवे तो द्वादशमतपर्नु प्रायश्चित्त आवे. (६) पात्राबंधनी गांठो नहि छोडे तो चउत्थ लागे. (७) आठ साधुथी ओछा साधुओने उत्सर्गे के अपवादे साध्वी
ओ साथे चालवू न कल्पे स्यां वळी साध्वीओ पण उत्सर्गे ओछामां ओछी दश अने अपवादे चार जोइये. वळी तेवी रीते चालवानुं पण सो हाथ सूधीज कल्पे ते उपरांत साथे
चालवू नज कल्पे. (८) काळी जमीनथी पीळीमां जतां, पीलीथी काळीमां जतां, .
जळथी स्थळमां जतां, स्थळथी जळमां जतां विधिए करी