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________________ शतपदी भाषांतर. ( ७५ ) विचार ५७ मो. प्रश्नः-साधुओए नित्य लोच करवो के केम ? उत्तरः-जिनकल्पी ऋतुबद्धकाळ तथा वर्षाकाल ए बने. काळमां नित्यलोच करे. अने स्थविरकल्पीए वर्षाकाळमां उत्सर्गे नित्यलोच करवो, पण कदि तेम सहन नहि थइ शके तो पण पर्युषणनी रात उल्लंघवी नहि, अने ऋतुबद्धकाळमां चार चार मासे लोच करवो. ए रीते निशीथचूर्णिमां लखेल छे. @ विचार ५७ मो. प्रश्नः-साधुए बीजे पहोरे भिक्षा करवी के केम ? उत्तरः-उत्सर्ग एमज छे पण एकांत थइ शके नहि. कारण के उत्तराध्ययननी टीकामां लख्युं छे के ए वात उत्सर्गनी छे. वाकी स्थविरकल्पी माटे साधारण वात तो ए छे के जे देशमा जे वखते मळे ते देशमा ते वखतेज गोचरीए जq. ___ ओघभाष्यमां कर्तुं छे के वारना हिशाबमा साधारण रीते स्थंडिल जवाना पाणी माटे तथा भिक्षा माटे एम बेवार गोचरीए नीकळg, पण आचार्यादिकना कारणे घणीवार पण जवाय छे. तेमज काळना दिशाबमां साधारण रीते अडधी पोरिसी थतां नीकळवू पण भूखतरस नहि सही शकातांलोको जागतां पण जवाय छे. वळी निशीथचूर्णिमां लख्यु छ के ज्यां प्रभातथीज भोजन - वेळा थती होय सां सूर्योदयथी मांडीने यावत् अपराह्न सूधी मुनि गोचरीए नीकले. आवश्यकचूर्णिमां श्रावके साधुने निमंत्रण करवानी विधि
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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