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शतपदी भाषांतर.
विचार १५ मो.
प्रश्नः - तमे चैवंदन करतां इरियावहीप्रतिक्रमण पूर्वक चा र काउसग अन वे नमोत्थुणा वगेरा विधि केम नथी करता ? उत्तरः- आगममां साधुने त्रण थुइवडेज चैत्यवंदन करवुं क हेल छे. कारण के व्यवहारभाष्यमां कहां छे के साधु मळमळन अने अस्नात होवाथी त्रण त्रण श्लोकवाळी त्रण थुइओ कला उपरांत विनाकारणे वधु वखत चैत्यमां नहि रहे.
( १४ )
विचार १६ मो.
प्रश्नः - चैत्यवंदन करतां तमो संसार दावानळ वगेरा थुइओ केम नथी करता ?
उत्तरः- आगममां साधुने चैत्यवंदन करवानी विधि आवी रीते छे के निश्राकृत अथवा अनिश्राकृत सर्व चैत्योमां त्रण थुइ कहेवी.
कोइ कहेशे के चीसत्था वगेराने थुइ क्यां कही छे ? तो ते जाण जोइये के कार्योत्सर्गनियुक्तिनी चूर्णिमां चउवीसत्था, पुक्खरवरदीवढे, तथा सिद्धाणं बुद्धाणं, एत्रणेने थुइरूपे कां छे.
कोई कहे के कल्पचूर्णिमां हीयमान स्तुतिओ कहेवी कही छे अने चवीसत्थादिक तो शाश्वती थुइओ छे माटे तेमने हीयमानपणुं केम घटे. तेनुं उत्तर ए छे के आवश्यकचूर्णिमां जेम पडिकमणानी समाप्तिमां कहेवानी थुइओ स्वरे करीने वर्द्धमान एटले लांबी करीने कवी कही छे तेम इहां पण स्वरे करीने ही - यमान एटले नानी करी कहेवी.
वळी कल्पनी विशेष चूर्णि तथा वृहद्भाष्य तथा आवश्य