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शतपदी भाषांतर. (२७) त्युपेक्षणा करी छे तेम कंइ स्थापनाचार्यनी प्रत्युपेक्षणा करी नथी.
(४) स्थापनाचार्य शिवाय पण अनियतस्थानमा सामायिक थई शके छे. केमके आवश्यकचूर्णिमां अनृद्धिप्राप्त श्रावकने चारे स्थळे सामायिक कर कह्यु छे ते चार स्थान ए के चैत्यमां, साधुना पासे, पौषधशालामां, के जे कोइ स्थळे अवकाश मळे त्यां सामायिक करवू. इहां "जे कोइ स्थळे'नो ए अर्थ छे के खेतर,खळा, सभा, प्रपा, वखार, के सथवाराना पडाव वगेरा स्थळे जीवजंतुरहित शुद्ध भूमि जोइ श्रावके सामायिक करवू. माटे इहां स्थापनाचार्य शी रीते संभवी शके ? कारण के श्रावको कंइ खेतरपधरे के गामांतरे जतां स्थापनाचार्य गांठे बांधी जता आवता नथी.
(५) स्थापनाचार्य शिवाय अनुष्ठान करतां कंइ शून्यवाद प. ण नथी. कारण के आवश्यकचूर्णि, तथा पंचाशक वगेरामां अ. नियतस्थाने पण सामायिक करवू कहेल छे तथा आवश्यकचूर्णि, अनुयोगद्वार, विशेषावश्यक, तथा योगशास्त्रनी टीकामां मनमां गुरुनो भाव राख्याथी पण स्थापनाचार्य थाय छे एम कहेल छे. तेमन जिनकल्पी मुनिओ दंडकादि स्थापनाचार्य विना पण अनुष्टान करे छे. तथा बळी मदेशि राजा, अने शंख श्रावक वगेरानी पौषधशालामा स्थापनाचार्य कह्यो नथी तेथी ए ग्रंथो तथा ए पूर्वपुरुषोनुं प्रमाण लइ आजकालना श्रावको पण दीठेला वांदेला गुरु महाराजने मनमा साक्षात् खडा करी चिंतवता थका तेना आलंबने अनुष्टान करे तेमां शो शून्यवाद थाय ?
शून्यवाद तो सारे थाय के ज्यारे साक्षात् गुरु पासे के स्था. पनाचार्य पासे रह्या छतां पण चित्त बीजा स्थळे आपेल होय. .
वळी जो बाहेरनी स्थापना शिवाय मनमां गुरुनु स्मरण छ. तां पण क्रिया नज कराय एम होय तो तमारा पक्षना पण विवेकी