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शतपदीनुं सारांश.
(६) सामायिक बेटाज करवुं ने बे घडीनुंज कर. (३९) (७) श्रावक आवश्यकनियुक्ति, चूर्णि तथा सूत्रोना लूटक आलावा भणी शके. (८७-८८)
(८) श्रावक प्रायश्चित्त लइ शके छे. (९३)
(९) उपधान नहि वहेवा, तथा माळारोपण न करावर्त्री. (९६) (१०) षडावश्यक, चूर्णिनी विधिए कर. (११० - १११) (११) सामान्य साधुने पण वांदणा दइ शकाय . ( ११४) (१२) स्त्रीओए मुनिने ऊभे ऊभेज वांद (११६) पर्व बाबतना विचारो.
(१) कल्याणिक नहि मानवा. (३७-३८)
(२) आसो तथा चैत्रनी अठाइओ न मानवी. (११७)
(३) संवछरी पडिकमणुं आषाढी पूनमथी पचाशमे दहाडेज करवुं. ८१ (४) अधिकमास पौष के आषाढज थाय. (८२)
(५) अधिकमासमां वीसापजूसण एटले श्रावण सुदि ५ नी पर्युषणा करवी. (८३)
(६) लौकिक ठीपणुं नहि मानतुं. ( ८४ ).
(७) चोमासुं तथा पाखी पूनमनाज करवा (११२ - ११३) साधुना आचार संबंधी विचारो ( सामान्य कृत्यो. )
(१) दांडो वंशनो तेम बीजा लाकडानो पण थाय. ( ९ ) (२) द्रव्यस्तव त्रिविधे त्रिविधे नहि कर. (१३) (३) पर्वदिनेन चैत्य वांदवा. (१४)
(४) चैस वदतां त्रण थुइज कहेवी. कृत्रिम थुइ न कहेवी. (१५-१६)