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शतपदी भाषांतर.
( ६१ )
is एक दिननी अपेक्षा नथी किंतु जेटला काळनी अपेक्षावाळु सर्व सामायिक छे तेटला काळनीज अपेक्षाए बहुवार देशसामायिक करयुं जणाय छे.
कोइ कहेशे के आवश्यकचूर्णिमां कहां छे के “ज्यारे अवकाश मळे त्यारे सामायिक करे." तेथी अनियत सामायिक सिद्ध थशे तेनुं ए उत्तर छे के एनो अर्थ एम छे के सामायिक करवानी वेलाए कामनी अडचणथी सामायिक नहि थंई शक्युं होय तो ज्यारे अवकाश मळे त्यारे सामायिक करे. कारण के त्यां एवो संबंध छे के " अनवस्थितकरणता एटले सामायिक लइने तत्क्षण पारखं तेम कर न कल्पे माटे पुरतो वखत जाणीने सामायिक करवुं. अथवा तो धां कामकाज आटोपी ज्यारे अवकाश मळे सारे करे तोपणं भंग न थाय. "
जाव
कोई पूछे के देश सामायिकमां " जावनियमं " के " साहु पज्जुवासामि" एम कहेल छे माटे बे घडीना काळनुं मान केम लेवाशे ? तेनुं ए उत्तर छे के विशेषावश्यकमां लख्युं छे के गृहस्थे छिन्नकाळनं एटले बे घडी वगेरा काळनं सामायिक करं.
विचार ४० मो.
प्रश्नः - साधुओनी आगल गीत नृस कल्पे के नहि. उत्तर: – साधुओनी आगल गीत नृत्य नहिज कल्पे. छतां जेओ कल्पे एम माने छे तेमनी मोटी भूल छे. कारण के कल्प भाष्यमा साधुओने चैत्यमां जतां पण एवी विधि लखी छे जे सां जो नाटक तुं होय तो ऊभवुंज नहि, कदाच ऊभा रही जवाय