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शतपदी भाषांतर. ( ८३ ) मां जतां हानि थती होवाथी नैर्ऋत दिशामा बहिर्भूमिए जq. माटे तेवा स्थंडिळनो योग होय तो कोण बीजी रीते करे.
विचार ६८ मो. प्रश्नः-साधुओए हाथ पग पखाळवा के नहि ? उत्तरः-साधुओए हाथ पग पखाळवा नहि जोइये.
(१) दश वैकालिकमां अनेक स्थळे स्नाननो निषेध कर्यो छे, तेनी चूर्णि तथा टीकामा स्नान शब्दे सर्वस्नान तथा देशस्नान बे लीधा छे. सां लख्यु छे के शौचकर्म शिवाय आंखनु पापण पखाळतां देशस्नान गणाय.
(२) आवश्यकचूर्णिमा एक कथामा लख्युं छे के एकजणीए साधुना मेळनी गंध आवतां चिंतव्यु के भगवाने आवो अपवित्र धर्म केम चलाव्यो. जो प्रामुक पाणीथी न्हावा- होय तो शो दोष थाय. आम चिंतव्याथी ते राजगृहीमां वेश्या थइ. . (३) प्रकरणमां पण कयु छ के कामी पुरुष होय ते स्नान तथा विभूषा करे, ब्रह्मचारी नांहे करे.
(४) निशीथमां पण साधुनुं वर्णन करतां लख्यु छे के साधु- . नो अंग मेळथी खरडेलुं होय छे तथा वस्त्र पण मळिन होय छे.
(५) उत्तराध्ययनमां मुनिने यावज्जीव काया ऊपर मेळ धारवा लख्युं छे.
(६) ज्ञातामां पण द्रौपदीना अधिकारमा मुकुमालिकाने हाथ 'पग वारंवार धोतां दोषित वर्णवी छे.
(७) उववाइमां लख्यु छे के जे अर्थे नग्नपणुं, मुंडपणुं,स्नानसाग, दातणयाग, केशलोच, ब्रह्मचर्य, छत्रत्याय, उपानह त्याग, तृण