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शतपदी भाषांतर.
विदंड', लट्ठि', विलट्ठि, ने नळिका), त्रण मात्रक (उच्चारनुं, प्रश्रवणनुं, तथा श्लेष्मनं), पादलेखनिका, त्रण चामडां (प्रावरण, उत्तरपट्ट, तथा नळिका, अथवा कर्त्तित, तळिका, अने उन्भा), बे पाटा (संथारपट्ट अने उत्तरपट्ट अथवा सन्नाहपट्ट अने पलांठीपट्ट), ए मध्यम उपधि जाणवी.
(३) मध्यम उपधि उपरांत वे प्रकारनुं अक्षसंघाटक ( एकां - गिक अने अनेकांगिक), तथा पांच प्रकारनां पुस्तक, अने फलक ए उत्कृष्ट उपाधि जाणवी.
इहां दंडक, विदंडक, यष्टि, अने वियष्टि ए सर्व साधुओने जूदां जूदां होय छे अने ए उपरांत चर्मकृत्ति", चर्मकोशक', चर्मच्छेद, योगपट्ट, अने चिलिमिनि ए गुरुनी उपधिओ होय छे.
वळी त्यां लख्युं छे के ए उपधिओ तथा एना जेवी उपानहू वगेरा बीजी उपधिओ जे तपसंयमनी साधक होय ते औपग्रहिक उपाधि जाणवी.
निशीथचूर्णिमां लांबा मार्गमां ऊतरतां नीचे मुजब औपग्रहिक उपकरण लेवां लख्यां छे.
चामडानां नव उपकरण - (नळिका, पन्टीला, खल्लक, वभा,
१. दंड करतां नानो ते विदंड. ए वर्षाकाळे गोचरी जतां लेवाय छे. वरशाद आवतां तेना ऊपर कपड़े नाखी तेनी हेठे चालतां अपूकायनो ओछों स्पर्श थाय छे. २ पोता करतां चार आंगल ऊणी ते लाउ. तेना वडे षडदो बंधाय छे. ३ लाठ करतां नानी ते विलहि. ते क्यांक उपाश्रयना वारणा ढांकतां काम आवे छे. ४ पोता करतां चार आंगल मोटी ते नळिका. ते पाणीमां पेसतां पाणीनी ऊंडाइ तपासवाना काममां आवे छे. ५ छवट्टिका. .६ जेमां नेण वगेरा रखाय ते. ७ वाधरनो कटको अथवा कातर.