Book Title: Jain Siddhant Prakaran Sangraha
Author(s): 
Publisher: Ajramar Jain Vidyashala
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. (३५ थोकडाी ) छपावी प्रसिद्ध करनार, श्री अजरामर जैन विद्याशाळा. लीबडी. वी. सं. २४५४ वीक्रम सं. १९८४ अर्धी कीमते मूल्य १-०-० Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ תיש kakakakaka ॐ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ( ३५ थोकडाओ ) छपावी प्रसिद्ध करनार, श्री अजरामर जैन विद्याशाळा. लींबडी. बी. सं. २४५४ -883-20 वीक्रम सं. १९८४ अर्धी कीमते मूल्य १-०-0 M AA A धी धर्म विजय स्टीम प्रिन्टींग प्रेस : लींबडी. CEIERERRES Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ( निवेदन ) - आ ग्रंथना मूळ योजक पंडितराज महाराजश्री, ७ उत्तमचंद्रजी स्वामी के जेओ बहुसूत्री; शास्त्र विशारद अने उत्तम उपदेशक हता. ते ओश्रीए अभ्यासीओनी सुगमता अर्थे उपकार करी जैन शास्त्रमाथी पचीश थोकडाओनी रचना करी हती. ते पुस्तको खलास थवाथी शाह त्रीभोवन रुगनाथे फरी महाराजश्री कृष्णजी स्वामी पासे सुधरावी तेमां बीजा थोकडाओ वधारी बत्रीश थोकडा छपाव्या. तेनी कीं० २-४-० राखेल आ ग्रंथ जैन शास्त्रना अभ्यासीओने प्रथम भगवानुं होइ तेनी कींमत ओछी होय तो माणसो वधु लाभ लइ शके ए हेतुथी मुनिश्री चुनिलालजी स्वामीनी दीक्षानी यादगीरी निमित्ते आ पुस्तक तथा जैन सिद्धांत पाठमाळा ( के जेमां दश वैकालिक तथा उत्तराध्ययन ए बन्ने सूत्रो शुद्ध अने तथा भक्तामर आदि छ स्तोत्रो अने पुछींसुणं दाखल करेल छे. ) तथा बीजा छ पुस्तका मळीने आठ पुस्तको महावीर ज्यंति सुधी अने पाळधी जेठ शुद्ध १५ सुधी ग्राहक थनारने अरधी किंमते आपवानो निश्चय कर्यो, अने तेमांनो आ ग्रंथ अमे छपावेल छे. अमारा छपाता बधा ग्रंथो महाराज श्री ज्ञानचंद्रजी स्वामी बखतो वखत मुफो तपासी शुद्ध करी आपे छे ते प्रमाणे आ वखते पण ओश्रीने आ सटमांना छपाता पुस्तको शुद्ध करवाना ने तपासवाना होइ तेओश्री बहार स्थळे विचरता होवाथी तथा प्रेस तरफनी heath मुश्केलीओ होवाथी ग्राहकोने आपेली मुदत करतां आ सटना पुस्तको अमो मोडा आपी शक्यां छीए ते माटे क्षमा याचीए छीए. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ आ ग्रंथमां त्रण थोकडा वधु उमेरी ३५ थोकडा करेला छे. तथा घटतो थोडो सुधारो पण महाराजश्रीए कर्यो छे. आ ग्रंथने छपाववानी मदद मळवाथी आठे पुस्तको अर्धी कींमते आपेली मुदत सुधी, अने आ ग्रंथ तो पहोंचे त्यां सुधी अर्धी कींमते आपबानो निश्चय कर्यो छे. अफसोसनी बिना एछे के मुफो बबेवार सुधारवा छतां प्रेसनी बेदरकारीने ली काना, मात्र, हस्व दीर्घ अने कोइ कोइ अक्षरो उडी गया छे तेथी तेनुं शुद्धिपत्र लांबु करवुं पडयुं छे. बांचनार ते शुद्धिपत्रथी सुधारीने वांचशे ए विज्ञप्ति छे. प्रकाशक आभार. रु २०० मुनिश्री चुनीलालजी स्वामीनी दीक्षा प्रसंगे एकठा थयेला मांथी मल्या छे. रु १०० लींबडी निवासी मरहूम मास्तर मुळजीभाइ तलकशीभाइना स्मरणार्थे तेमना विधवा बाइ पार्वतीबाई तरफथी मल्या छे. रु १०० लींबडी निवासी शाह ल्हेरचंद फुलचंदनी सुशील पुत्री व्हेन रतनगौरी तरफथी मल्या छे. उपरना चारसो रुपीया मुनिश्री चुनीलालजी स्वामीनी दीक्षानी यादगीरी अ आ पुस्तक ओछी कींमते आपी शकाय ए आशयथी अर्पण करेल छे तेथी ते सर्वनो सप्रेम उपकार मानीए छीए. आ मददने ली आ ग्रंथ सहीत आठ ग्रंथोने अर्धी कींमते आपी शक्या छीए. प्रकाशक आ पुस्तको अनुक्रमणिका छेले (२३४) पाने छे. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूचना-आ पुस्तक शुद्धिपत्र प्रमाणे प्रथम शुध्ध करीने शिखq. अशुद्ध, आडा अवला तथा उडी गयेला अक्षरोनुं शुद्धिपत्र. पृष्ट पंक्ति अशुद्ध शुद्ध | पृष्ट पंक्ति अशुद्ध शुद्ध २ ७ पुरुपवेद पुरुषवेद , २३ एके एक ३ २४ ४ ८ । ४३ १० देवतना-देवताना ४४ कर्मरहित ३कसैरहित , २२ १९ १८ ६ २२ ४ ८ ४४ १६ १२९ १२८ ७ ८ नारकिना नारकिना ४६ १८ २०५ २८५ ८ ६ स्पले स्पर्श . , १९ २०५ २८५ ४८ ६ जावाजोनि-जीवाजोनि ११ १३ आज्ञन अज्ञान " १० समाकत समकित , २३ मेद भेद ६१ २४ जने वर्जिने १७ २३ खस सुख ६२ ७ ९ ७ २५ १७ फरे करे , ९ ९ ७ २६ १७ आज्ञन अज्ञान , २३ नममे नवमे ३५ ३ भुमामा भुमिमां ६४ २ गठागु गुणठा , १६ उंच ओज , ७ अहारपणु-अहारकपणु ३७ १० मनुष्यन मनुष्यने ६७ २४ ९७ ,, २२ तिमच तेमज । ६८ ४ ९ ७ ३८ १० समोविया समोहिया , १३ जोग १४-जोग १५ , ११ ले छे ६९ २ मनुष्यनो मनुष्य ३९ १३ बारदेल बारदेव असंज्ञीनो . 0 4 . Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ट पंक्ति अशुद्ध शुद्ध ७० १७ गुण०१३ - गुण०१४ 99 17 ७४ १५ समुचय - समुचय जोग०१४ - जोग०१५ १५० १९ मतिज्ञाना - मतिज्ञानी 99 ७५ १ केवळ ज्ञाना- केवळ ज्ञानी ७ जावना जीवना " ७६ १ गुण०- गुण० ९ ७८ २० नो बादमां नोवादरमा ८४ ३ भजन भोजन ८५ ९ आरने आराने तिवाये तिवारे १४ 99 ८८ ७ आरंमां आरामां १३ उतराने उतरीने " ९२ ३ माक्ष मोक्ष १०९ २४ राहत रहित ११८ २२ अलोक त्रिछो अलोक १२३ २० आणका अणिका १२६ १३ आउनुं आठमें १२७ ११ जोजन - जोजनना १२ ४६ ४८ पृष्ट पंक्ति अशुध्ध शुध्ध १३३ १० देवाओ देवीओ 19 १२८ १२ उघ जय १३२ २२ आलिका - आवलिका ८ द्वार ८ द्वार छे-द्वार कहेछे ८ तिहांज तिहां १५२ १५७ - २३ उंबुद्विप जंबुद्विप १५९ ३ उपर्ज्या उपरना २० केशरी केशरा " १६० १४ कार्त्ति कीर्ति १६२ २ ४ ८ १६५ १ समुच्चन समुच्चय १६७ २१ चारसेहजार ० १८३ ९ छेदा० छेदो० २४ तत्थेय तित्थेय " १८७ १ दाष न १९४ ९ प्रत्येकस १९७ १२ लाक लोक २४ खाली खीली "" २०० २२ पहेजे पहेले दोष न प्रत्येक सें " २०१, २०५ १७ मनुष्यान मनुष्यनि प्राकर्म पराक्रम २०९ ८ मोक्षना मोक्षनी खोटी २१० १२ खाटी २११ ५ महावरना - महावीरना १६ करणा करणी Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्टः पंक्ति अशुध्ध शुध्ध | पृष्ट पंक्ति अशुध्ध शुध्ध २१२ १४ तणखा तणखो |, २० अठ आठ २१९ १२ बाघनो बोधनो २२४ २२ एका एक " २३ प्रमाणापेत प्रमाणोपेत , २४ हाय . होय | २३९ । ३ भण भणे २२० ५ पाथा पायो १६ भ्यंतर अभ्यंतर " १८ ढि गढ । २३१ ११ कुमाग कुमार्गे " २२ परम णुः परमाणु , १७ त ते २२१ १७ जाड ाणु जाडपणु , २० तत्रीसमे तेत्रीसमें Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ॥ अथ श्री नवतत्वनो थोकडो ॥ ॐ श्रीपार्श्वनाथाय नमः ॥ अथ श्री नवतख लिख्यते ॥ हवे विवेकि सम्यक्त्वदृष्टि जीवने, नव पदार्थ जेहवा छे तेहवा तथारुप बुद्धिममाणे गुरु आम्नायथि धारवा, ते नवपदार्थना नाम कहेछे. जीवतव, अजीवतत्व, पुण्यतत्व, पापतत्व, आश्रवतत्व, संवरतत्व, निर्जरातत्व, बंधतत्व, मोक्षतत्व. हवे जीवतत्व ते केहने कहिये. चैतन्यलक्षण, सदासउपयोगी, असंख्यात प्रदेशी, सुखदुःखनो जाण, सुखदुःखना वेदक तेहने जीवतत्व कहिये. अजीवतत्व ते केहने कहीये, जडलक्षण, चैतन्यरहित, तेहने अजीवतत्व कहिये. पुण्यतत्व ते शुभ कमाणिये करी, शुभ कर्मने उदये करी, जेहना फल आत्माने भोगवतां मीठां लागे तेहने पुण्यतत्व कहिये. पापतत्व ते अशुभ कमाणिये करी, अशुभ कर्मने उदये करी, जेहना फल आत्माने भोगवता कडवां लागे, तेहने पापतत्व कहिये. आश्रवतत्व ते, अवतने अपच्चखाणे करी, विषय कषायने सेववे करी, आत्मारुपतलावने विषे इंद्रियादिक घडनाले छिद्रेकरी, कर्म पापरुप जलना प्रवाह आवे, तेहने आश्रवतत्व कहिये. संवरतत्व ते जीवरुप तलावने विषे, कर्मरुप जल आवतां व्रतपच्चखाणादिक द्वार देवेकरी रोकीये, तेहने संवरतत्व कहिये. निर्जरातत्व ते आत्माना प्रदेशथि बार भेदे तपस्याये करी देशथकि कर्मनुं निर्जर झरीने दुर था, तेहने निर्जरातत्व कहिये. बंधतत्व ते आत्माना प्रदेशने कर्मपुद्गलना दल खीरनीरनी परे, लोहपिंड अग्निनी परे, लोलीभूत Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवतत्व. थइबंधाय, तेहने बंधतत्व कहिये. मोक्षतत्व ते सकल आत्माना प्रदेशथि सकल कर्मनुं छुटवं, सकल बंधन मुकाव, सकल कार्यनि सिद्धि थाय, तेहने मोक्षतत्व कहिये, ए नव पदार्थनुं जाणपणुं, तेहने तत्व कहिये, हवे जीवनएक भेद ते, सकल जीवान चैतन्य लक्षण - एक छे. माटे संग्रहनये करि एक भेदे जीव कहिये. तथा प्रकारे पण जीव कहिये. त्रस, थावर, तथा सिद्ध, ने संसारी. तथा त्रणभेदेजीव, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद, तथा भवसिद्धिया, अभवसिद्धिया, नोभवसिद्धिया, नोअभव सिद्धिया. तथाच्चारभेदे जीव. नारकी, तियेच, मनुष्य, देवता, तथा चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी, केवलदर्शनी. तथा पांच प्रकारे जीव. एकेंद्रिय, वे इंद्रिय, तेइंद्रिय, चारिद्रिय, पंचेद्रिय, तथा सजोगी, मनजोगी, वचनजोगी, कायजोगी, अजोगी. तथा छ प्रकारे जीव, पृथवीकाय, अप्काय, तेउकाय, वाउकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय. तथा सकषायी, कोहकषायी, मानकषायी, मायाकषायी, लोभकषायी, अकषायी. तथा सात प्रकारे जीव. नारकी, तियेच, तिर्यंचणी, मनुष्य, मनुष्यणी, देवता, देवी. तथा आठ प्रकारे जीव. सलेशी, कृष्णलेशी, निललेशी, कापुतलेशी, तेजुलेशी, पद्मलेशी, शुकललेशी, अलेशी. तथा नव प्रकारे जीव, पृथवी, अप, तेउ, वाउ, वनस्पति, बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चउरिद्रिय, पंचेंद्रिय. तथा दश भेदे जीव, एकेंद्रिय, बेइंद्रिय, तेइिंद्रय,चउरिद्रय, पंचेंद्रिय, ए ५ ना अप्रजाप्ता ने प्रजाप्ता, एवं १०. तथा इग्यार भेदे जीव एकेंद्रिय, बेइंद्रियद्र, तेइंद्रिय, चउरिद्रिय, नारकी, तिर्यंच, मनुष्य, भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी, वैमानिक. तथा १२ भेदे जीव, पृथवी, अप, तेउ, वाउ, वनस्पति, त्रसकाय, Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ए छना अप्रजाप्ता ने प्रजाप्ता एवं १२, तथातेरभेदे जीवः कृष्णलेशी निललेशी, कापुतलेशी, तेजुलेशी, पद्मलेशी, शुकललेशी, ए छना अप्रजाप्ता, ने प्रजाप्ता एवं १२ ने एक अलेशी एवं १३. हवे जीवना १४ भेद कहे छे; सुक्ष्म एकेंद्रियनो अप्रजाप्तो ने प्रजातो, बादर एकेंद्रियना अप्रजातो, ने प्रजातो, बेइंद्रियनो अप्रजातो ने प्रजातो, तेइंद्रियनो अप्रजातो, ने प्रजातो, चउरिद्रियनो अप्रजातो, ने प्रजातो, असंज्ञी पंचेंद्रियना अप्रजातो, ने प्रजातो, संज्ञी पंचेंद्रियनो अप्रजातो, ने प्रजातो. हवे ज्यवहार विस्तार नये करीने पांचसेनेत्रेसठभेद जीवना कहे छे. तेहमां त्रणसेनेत्रण भेद मनुध्यना, एकाअठाणुभेद देवताना, अडतालीस भेद तिर्यचना, चउदभेद नारकीना, एवं ५६३ भेद जीवतत्वनां कह्या. हवे तेहमां मनुष्यना ३०३ भेद कहे छे. ते १५ कर्म भूमिना मनुष्य, ३० अकर्मभूमिना मनुष्य, ५६ अंतर द्विपना मनुष्य, एवं १०१ क्षेत्रना गर्भज मनुष्यना, अप्रजाप्ता, ने प्रजाप्ता, एवं २०२ ने एकसानेएक क्षेत्रना समुर्छिम मनुष्यना अप्रजाप्ता एवं ३०३ भेद मनुष्यना. हवे कर्मभूमि ते केहने कहिये, असी, मशी, कृषी, ए, ३ प्रकारना व्यापारे करी जीवे तेहने कर्मभूमिनां मनुष्य कहिए. ते कर्मभूमिना क्षेत्र केटला छे. ५ भरत, ५ इरवत, ने ५ महाविदेह, एवं १५ ते कर्मभूमि किहां छे एक लाख जोजनना जंबुद्विप छे तेहमां १ भरत, १ इरवत, १ महाविदेह ए ३ क्षेत्र कर्मभूमिनां जंबुद्विपमां छे, तेहने फरतो बे लाख जोजननो लवण समुद्र छे, तेहने फरतो चारलाख जोजनना धातकीखंड द्विप छे, तेहमां २ भरत, २ इरवत, २ महाविदेह छे, तेहने फरतो ४ लाख जोजननो कालोदधि समुद्र छे, Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवतत्व. तेहने फरतो ४ लाख जोजननो अर्द्धपुष्कर द्विप छे, तेहमां २ भरत, २ इरवत, २ महाविदेह छे एवं छदु १२ ने ३ पनर कर्मभूमिना मनुष्य कह्या, हवे ३० अकर्मभूमिना मनुष्य कहे छे. अकर्मभूमि ते केहने कहिये,कर्मरहित दशमकारना कल्पवृक्षे करीने जीवे तेहने अकर्मभूमिना मनुष्य कहिए. ते ५ हेमवय, ५ हिरणवय, ५ हरिवास, ५ रमकवास, ५ देवकुरु, ५ उतरकुरु, एवं ३० अकर्मभूमिना मनुष्य जाणवा. हवे जंबुद्विपमां,१ हेमवय, १हिरणवय, १ हरिवास, १ रमकवास, १ देवकुरु, १ उतरकुरु, एवं ६ क्षेत्रबुद्विपमां छे.धातकिखंडमां बबे जाणवा,एवं १८ अर्द्धपुष्करद्विपमां बबे जाणवा, एवं ३० अकर्मभूमिना मनुष्य कह्या. हवे छपन अंतरद्विपना मनुष्य कहे छे. जंबुद्विपना भरतक्षेत्रनि मर्यादानो करणहार, चुलहिमवंत नामे पर्वत छे, ते पीला सेनामय छे, ते सा जोजननो उंची छे, सेा गाउनो उंडा छे, एकहजार बावन जोजन ने वार कलानो पहोलो छे, चौविशहजार नवशेबत्रिश जोजननो लांबा छे, तेहने पूर्वपश्चिमने छेडे बबे डाढा निकलि छे, अकेकि डाढा चोरासीशे चौरासीशे जेोजननी झाझेरी लांबि छे, ते एकेकि डाढाउपरे सातसात अंतरद्विपा छे, तेअंतरद्विपा किहांछे जगतिना कोटथकि ३०० जोजनलवणसमुद्रमांजाइये, तिवारे पहेलो अंतरद्विपो आवे, ते ३०० जोजना लांबा ने पहोलोछे, तिहांथि ४०० जोजन जाइये तिवारे बिजो अंतर द्विपो आवे ते ४०० जोजननो लांबा ने पहोलो छे. तिहांथि ५०० जोजन जाइये तिवारे त्रिजो अंतरद्विपो आवे ते ५०० जोजनना लांबा ने पहोलो छे. तिहांथि छमें जोजन जाइये तिवारे चोथो अंतरद्विपो आवे ते ६०० जोजनना लांबा ने पहोलो छे. तिहांथि ७०० जोजन जाइये Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ५ तिवारे पांचमी अंतरद्विपो आवे ते ७०० जोजनना लांबा ने पहोलो छे. तिहांथि ८०० जोजन जाइये तिवारे छठा अंतरद्विपो आवे ते ८०० जोजनना लांबो ने पहोलो छे. तिहांथि ९०० जोजन जाइये तिवारे सातमी अंतरद्विपो आवे ते ९०० जोजनना लांबा ने पहोलो छे. एवं सात चोकुं २८ अंतरदिपा जाणवा. एमज इरवतक्षेत्रनी मर्यादाना करणहार शिखरीनामे पर्वत छे ते चुल हिमवंत शरिखो जाणवो, तिहां पण २८ अंतरद्विपा छे, अठाविश दु ५६ अंतर द्विपा जाणवा, अंतरद्विपाना मनुष्य ते केहने कहिये, हेठे समुद्र छे अने उपर अधर डाढाना द्विपामां रहेनार छे, माटे. अथवा तोफरतु पाणी अने वचमां बेटडा होय तेमां रहेनारा होय तेने अंतर द्विपाना मनुष्य कहिये. हवे १०१ क्षेत्रना समुर्छिम मनुष्य १४ स्थानकमां उपजे छे ते कहे छे. उच्चारेसुवा ते वडिनितमा उपजे, पासवणेमुवा ते लघुनितमां उपजे, खेले सुवा ते बलखामां उपजे, संघाणेसुवा ते लिंटमां उपजे, वंतेसुवा ते वमनमां उपजे, पीतेसुवा ते निलापिला पीतमां उपजे, पुइएमुवा ते परुमां उपजे, सेाणिएसुवा ते रुद्धिरमां उपजे, सुक्कसुवा ते विर्यमां उपजे, सुक्कपागलपरिसाडिएसुवा ते विर्यादिकना पुद्गलसुकाणा ते फरि भिना थाय तेहमां उपजे, विगय जिव कलेवरे सुवा ते मनुष्यना कलेवरमां उपजे, इथि पुरिस संजोगे सुवा ते स्त्री पुरुषना संजोगमां उपजे, नगर निधमणे सुवा ते नगरनी खाळेोमां उपजे, सव्वेसुचेवअसुइठाणेसुवा ते सर्वमनुष्य संबंधिअसुचिस्थानकामां उपजे, एवं १०१ क्षेत्रनासमुर्छिम मनुप्यना अपजाप्ता, एवं सर्व मिली ३०३ भेद मनुष्यना कह्या. हवे देवताना १९८ भेद कहे छे, तेहमां दश भवनपतिना नाम; असुर Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवतत्व. कुमार, नागकुमार, सुवर्णकुमार, विज्जुकुमार, अग्निकुमार, द्विपकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार, पवनकुमार, थणितकुमार. हवे १५ परमाधामिना नाम कहे छे. अंब, अंबरिस, शाम, सबल, रुद्र, वैरुद्र, काल, महाकाल, अशिपत्र, धनुष्य, कुंभ, वाल, वेतरणी, खरस्वर, महाघोष. सोल वाणव्यंतरना नाम; पिशाच, भूत, जक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरिस, महारग, गंधर्व, आणपत्नी, पाणपनी, इसिवाइ, भूइवाइ कंदिय, महाकंदिय, काहंड, पयंगदेव. दश जंभकाना नाम; आणजंभका, पाणभका, लयणजंभका, शयणभका, वछजंभका, पुष्पजंभका, फलजंभका, बीयजभका, विज्जुजंभका, अवियतजंभका. दश ज्योतिषीना नाम; चंद्रमा, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारा, ए ५ चल,ते अढि द्विपमा छे. ने ५स्थिर ते अढि द्विषबाहिर छे, एवं १० हवे ३ किल्विपिना नाम;३ पलिया, ३ सागरिया, १३ सागरिया. नवलोकां तिकनां नाम, सारस्वत, आदित्य, विह्नि, वरुण, गईतोया, तोषिया, अव्यावाधा, अगिच्चा, रिठा. हवे बार देवलोकना नाम; १ सुधर्म, २ इशान, ३ सनत्कुमार, ४ माहेंद्र, ५ ब्रह्मलोक, ६लंतक, ७ महाशुक्र, ८ सहसार, ९ आणत, १० प्राणत, ११ आरण, १२ अच्चुय. हवे नव ग्रीवेकना नाम; भद्दे, सुभद्दे, सुजाए, सुमाणसे, प्रियदर्शणे, सुदर्शने, आमाहे, सुपडीबद्धे, जशोधरे. पांच अनुत्तर विमानना नामविजय, विजयंत, जयंत, अपराजित, सर्वार्थसिद्ध, ए ९९ जातना देवता अप्रजाप्ता ने,९९ जातना प्रजाप्ता एवं १९८ भेद देवताना कह्या. हवे तिर्यचना ४८ भेद कहेछे; पृथवी, पाणि, तेउ, वाउ, ए ४ सुक्ष्म, ४ बादर, एवं ८ ए ना अप्रजाप्ता, ने ४ ना प्रजाप्ता, एवं १६ अने वनस्पतिना ३ भेद. सुक्ष्म प्रत्येक ने साधारण ए ३ ना अप्रजाप्ता ने ३ ना प्रजाप्ता ए ६ एवं २२ एकंद्रियना. त्रण विकलेंद्रिय, बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सिद्धांत प्रकरण संग्रह. चउरिंद्रिय, ए ३ ना अप्रजाप्ता ने ३ ना प्रजाप्ता ए ६ एवं २८ जलचर, थलचर, उरपर, भुजपर, खेचर ए ५ समुर्छिम ने ५ गर्भज एवं १० ना अप्रजाप्ता ने १० ना प्रजाप्ता ए २० एवं ४८ भेद तिर्येचना कवा. हवे १४ भेद नारकिना कहे छे. सात नरकना नाम, घमा, वंशा, शिला, अंजणा, रिठा, मघा, माघवइ. हवे ए ७ ना गोत्र कहे छे. रत्नप्रभा शर्करप्रभा, वालुप्रभा, पंकप्रभा, घुमप्रभा, तमप्रभा, तमतमाप्रभा ए ७ ना अप्रजाप्ता ने ७ ना प्रजाप्ता एवं १४ भेदन रकिना कला एवं सर्व मिलीने ५६३ भेद जीवना जाणवा इति जीवतत्त्व समाप्तं १ ୭ वे जीवतत्वना १४ भेद कहे छे. धर्मास्तिकायनो स्कंध, देश, प्रदेश, अधर्मास्तिकायनो स्कंध, देश, प्रदेश, आकाशास्ति कायनेो स्कंध देश, प्रदेश. अद्धासमयकाल, ए १० भेद अरुपि अजीवना कथा. हवे रुपि अजीवना ४ भेद कहे छे. पुद्गलास्तिकाय ना स्कंध, देश प्रदेश, परमाणु पुद्गल एवं १४ हवे व्यवहार विस्तारनयेकरी ५६० भेद अजीवतत्वना कहे छे. तेहमां ३० भेद अरुपि अजीवना कहे छे. धर्मास्तिकाय द्रव्यथकि एक क्षेत्रथकि आखा लोक प्रमाणे, कालथ कि, अनादिअनंत, भावथकि अवर्णे, अगंधे, अरसे, अफासे, अमूर्ति, गुणथकि चलणसहाय, अधर्मास्तिकाय द्रव्यथकि, एक, क्षेत्रथकि आखा लेाकप्रमाणे, कालयकि अनादि अनंत, भावयकि, अवर्णे, अगंवे, अरसे, अफासे, अमूर्ति, गुणयकि स्थिर सहाय, आकाशास्तिकाय द्रव्यथकि एक, क्षेत्रथकि लोकालोक प्रमाणे, कालयकि अनादि अनंत, भावयकि, अवर्णे, अगंवे, अरसे, अफासे, अमूर्ति, गुणथकि अवगाहनादान, हवे काल. द्रव्यथकि अनेक, क्षेत्रथ कि अदिद्विपप्रमाणे काय कि अनादि अनंत, भावयकि, अवर्णे, अगंधे, अरसे, अफासे, Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवतत्व. अमूर्ति, गुणथकि वर्तनालक्षण, एवं २० ने १० पूर्वे कथा ते एवं ३० भेद अरुपि अजीवना जाणवा. हवे ५३० भेदरूपि अजीवना कहेछे. तेहमां वर्ग ५ कालो,निलो,रातो,पिलो,धोलो,एकेका वर्गमाहि वीश वीश भेद लाभे ते, २ गंध, ५. रस, ५ संठाण, ८ स्पर्श, एवं विशपंचा सेो. हवे २ गंध ते सुरभिगंध, दुरभिगंध, एकेका गंधमाहि विश त्रेधीश भेद लाभे ५ वर्ग, ५ रस, ५ संठाण, ८ स्पन, एवं २३ दुछेतालिश भेद जाणवा. हवे ५ रस ते तिखा, कडवा, कसायला, खाटो, मिठो, एकेका रसमां वीश वीश भेद लाभे. ५ वर्ण, २ गंध, ५ संठाण, ४ स्पर्श, एवं वीस पंचा सेो. हवे ५ संठाण, परिमंडल संठाण, वटसंठाग, त्रंश संठाण, चउरस संठाण, आयतसंठाण. एकेका संठाणमां वीश वीश भेद लाभे ५ वर्ण, २ गंध, ५ रस, ८ स्पर्श, एवं वीशपंचा सेा. हवे ८ स्पर्श. खरखरो, सुहाली, भारि, हलवा, टाढा, उन्हो, चौपडयो, लुखो, एकेका स्पर्शमां बीस त्रेवीस भेद लाभे. ५वर्ण, २ गंध, ५ रस, ५ संठाण, ६ स्पर्श, एवं २३ भेद लामे. खरखरामा खरखरो ने सुहाला बे वर्जवा. एम बजे स्पर्श वर्जवा एवं २३अठा १८४ एवं सर्व मलिने ५३० भेदरूपि अजीवना कद्या. एवं सर्व मलिने ५६० भेद अजिवना जाणवा. इति अजिवतवं समाप्त. हवे नव भेदे पुण्य उपराजे ते कहे छे. अन्नपुन्ने, पाणपुग्ने, लयणपुन्ने, शरणपुन्ने, वत्थपुन्ने, मनपुन्ने वचनपुन्ने, कायपुन्ने, नमस्कारपुन्ने, ए नव भेदे पुण्य उपराजे तेहना शुभ फळ ४२ भेदे भोगवे. ते कहे छे शातावेदनिय, उंचगोत्र, मनुष्यगति, मनुष्यानुपूर्वी, देवतानी गति, देवतानुपूर्वी, पंचेंद्रिय नीजाति उदारिक शरिर, वैक्रेय शरिर, अहारक शरिर, तैजस शरिर, कारमण शरिर, उदारिकना अंगउपांग, वैक्रेयना अंगउपांग Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. आहारकना अंगउपांग वज्जरिषभनाराचसंघयण, समचउरंशसंठाण, शुभवर्ण, शुभगंध, शुभरस, शुभस्पर्श, अगुरु लघुनाम,पराघातनाम, उस्वासनाम, आतापनाम, उद्योतनाम, शुभचालवानिगति, निर्माणनाम, सनाम, बादरनाम, प्रजाप्तनाम,प्रत्येकनाम,स्थिरनाम, शुभनाम, सौभाग्यनाम, सुस्वरनाम, आदेयनाम, जशोकीर्तिनाम, देवतानुआउष्य, मनुष्यआउष्य, तिर्थचनुं आउष्य जुगलवत्, तिर्थकरनामकर्म, एवं ४२ भेद पुण्यना जाणवा.इति पुण्यतत्वं समाप्तं.३. हवे १८ प्रकारे पाप उपराजे ते कहे छे. प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशून्य, परपरिवाद, रतिअरति, माया मोसो, मिछादंसणसल्ल, एवं १८ हवे तेहना अशुभ फल ८२ प्रकारे भोगवे ते कहे छे. मतिज्ञानावरणिय, श्रुतज्ञानावरणिय, अवधिज्ञानावरणिय,मनपर्नवज्ञानवरणिय,केवलज्ञानावरणिय,दानांतराय,लाभांतराय, भोगांतराय, उपभोगांतराय, वीर्यातराय, निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलापचला, थीणद्विनिद्रा, चक्षुदर्शनावरणिय, अचक्षुदर्शनावरणिय, अवधिदर्शनावरणिय, केवलदर्शनावरणिय, निच्चगोत्र, अशातावेदनीय, मिथ्यावमोहनिय, स्थावरपणुं, सूक्ष्मपणुं, अपजाप्तापणुं, साधारपणुं, अस्थिरनाम, अशुभनाम, दौर्भाग्यनाम, दुःस्वरनाम, अनादेयनाम, अजशोकीर्तिनाम, नरकनिगति, नरकनुंआउखु, नरकानुपूर्वी, अनंतानुबंधि क्रोध, मान, माया, लोभ, अपच्चखाणावरणिय क्रोध, मान, माया, लोभ, पञ्चखाणावरणिय क्रोध, मान, माया, लोभ संजलनो क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, भय, शोक, दुगंछा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद, तिर्यचनी गति, तियेचनी अनुपूर्वी, एकेंद्रियपणुं, बेइद्रिय Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवतत्व. पणुं, तेइंद्रियपणुं, चारिद्रियपणुं, अशुभ चालवानि गति, उपघातनाकर्म,अशुभवर्ण,अशुभगंध,अशुभरस,अशुभस्पर्श, रुषभनाराचसंघयण, नाराचसंघषण, अर्द्धनाराचसंघयण, किलकुसंघयण, छेवटुसंघयण, निगाहपरिमंडलसंठाण, सादिसंठाण, वामनसंठाण, कुब्जसंठाण, हुंडसंठाण, एवं ८२ भेद पापतखना जाणवा. इति पापतत्वं समाप्तं.४. हवे आश्रवना सामान्य प्रकारे २० भेद कहे छे. मिथ्यात्व ते आश्रब, अव्रत ते आश्रव, प्रमाद ते आश्रव, कषाय ते आश्रव, अशुभजोग ते आश्रव, प्राणातिपात ते आश्रव, मृषावाद ते आ०, अदत्तादान ते आ०, मैथुन ते आ०, परिगृह ते आ०, श्रोतेंद्रियअसंवरे ते आ०, चक्षुइंद्रियअ० आ०, घ्राणेद्रिय अ०आ०, रसेंद्रियअ०आ०, स्पर्सेद्रियअ०आ०, मनअ०आ, वचन अ०आ०, कायअ०आ०, भंडउपगरणउपधिजिमतिमलियेमुके ते आ०, सुचिकुसग्ग करे ते आ० हवे विशेषे ४२ भेद कहे छे. ५ आश्रव, ५ इंद्रिय मोकलि मुके एवं १०, ने ४ कषाय, एवं १४, ने त्रण अशुभ जोग एवं १७, ने २५ क्रिया, ते कायिकी क्रिया, अधिकरणकी क्रिया, पाउसिया, पारितावणिया, पाणाइवाय, आरंभिया, परिग्गहिया, मायावतिया, अपञ्चखाणवतिया, मिछादसणवतिया, दिठीया, पुठिया, पाडचिया, सामतावणिया, नेसथिया, सहथिया, अणवणिया विदारणिया, अणाभोगी, अणवकंखवतिया, अनापउगी, सामुदाणी, पेजवतिया, दोसवतिया, इरियावहिया क्रिया, एवं २५ ने १७ बेतालीस भेद आश्रव तत्वना जाणवा. इति आश्रवतत्वं समाप्तं. ५. ___ हवेसंवरना सामान्य प्रकारे २० मेद कहे छे. समकित ते शंवर, व्रतपञ्चखाण ते सं०, अप्रमाद ते सं०, अकषाय ते सं०, Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. सुभजोग ते सं०, जीवदया पालवी ते सं०, सत्यवचन बोलवू ते सं०, दसव्रत ग्रहण ते सं०, शियल पालवू ते सं०, अपरिग्रह ते सं०. इंद्रिय ५ जोग ३ ए ८ नुं संवर ते सं० एवं १८ भंडउपगरणउपधि जतनायेलिये मुके ते सं०, सुचिकुसग्ग न करे ते सं०. हवे विशेषे ५७ भेद कहे छे. इर्यासुमति, भाषामुमति एषणासुमात, आयाणभंडभत्तनिखेवणासुमति, उच्चारपासवणखेलजलसिंघाणपारिठावणीया सुमति, ए ५ सुमति ने ३ गुप्ति ते, मनगुप्ति, वचनगुप्ति कायगुप्ति ए ८ प्रवचनमाता आदरवा ने २२ परिसह सहेवा ते कहे छे. क्षुधानो परिसह, तृषानो० टाढनो० तापनो० दंशमंशना०, अचेलनो०, अरतिनो०, स्त्रीना०, चरियाना०, बेसवानो०, सेजाना०, आक्रोश वचननो, वधनो०, जाचवानो०, अलाभना०, रोगनो०, तृणस्पर्शनो०, मेलना०, सत्कार पुरस्कारना०, प्रज्ञाना०, आज्ञननो०, दंशण परिसह, ए २२ ने ८ पूर्वे कह्या ते एवं ३०. खंति, मुत्ति, अजवे, मदवे, लाघवे, सच्चे, संजमे, तवे, चियाए, बंभचेरवासे, ए १० प्रकारे जतिधर्म आराधवो ने १२ भावना भाववी, तेहना नाम. अनित्यभावना, अशरणभा०, संसारभा०, एकत्वभा०, अन्यत्वभा०, अशुचिभा०, आश्रवभा०, संवरभा०, निर्जराभा०, लोकभा०, बोधमा०, धर्मभा०, ए ४० ने १२ बावन. सामायकचारित्र, छेदोपस्थापनिय चा०,परिहारविशुद्ध चा०, सुक्ष्मसंपराय चा०, जथाख्यात चा०, ए ५७ भेद संवरतत्वना जाणवा. इति संवरतत्वं समाप्तं. ६ ___ हवे निर्जराना १२ मेद कहे छे. अनसन, उणोदरि, वृत्तिसंक्षेप, रसपरित्याग, कायक्लेश, पडिसलिणया, ए छ भेद Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवतत्व. बहाज्यना कह्या. हवे छ भेद अभ्यंतरना कहे छे. पायछित विनय, वेयावच्च, सझाय, ध्यान, काउसग्ग, एवं १२ भेद निजरातत्वना कह्या, इति निर्जरातत्व समाप्तं. ७ - इवे बंधतत्वना ४ भेद कहेछे. प्रकृतिबंध, स्थितिबंध, अनुभागबंध, प्रदेशबंध. प्रकृतिबंध ते कर्मना स्वभाव तथा परिणाम. स्थितिबंध ते जे कर्मनि जेटलि स्थिति छे. तेटलि. अनुभागबंध ते रस तिव्र मंद रसादि कर्मना० प्रदेशबंध ते कर्म पुद्गलना दल. ए ४ बंधन स्वरूप मादकने दृष्टांते करी बतावे छे. जिम कोइ मोदक घणा प्रकारना द्रव्यने संजोगे निपनो, वायुने तथा पीतने तथा श्लेष्मने जेणे स्वरूपे करि हणे तेने स्वभाव कहिये, तथा तेज मोदक, पक्ष, मास, बेमास, त्रणमास, चारमासमुधि ते रुपे करि रहे तेने स्थिति कहिये, जिम वलि तेज मोदक कोइ कडुयो होय, कोइ तीखो होय तेने रस कहिये, जीम वलि तेज मोदक कोइ अल्प दलने परिमाणे निपना, कोइ वलि बहु दलने परिमाणे निपना, एमज मोदकने विषे दलनु परिमाण तेहने प्रदेशबंध कहिये, एणीपरे कर्मना बंध ४ प्रकारे जाणवो. इति बंधतत्वं समाप्तं ८. ... हवे मोक्षतत्व ते १५ भेदे सिद्ध थाय ते कहे छे. तिर्थ सिद्धा, अतिर्थ सिद्धा, तिर्थकर सिद्धा, अतिर्थकर सिद्धा, ग्रहस्थलिंग सिद्धा, अन्यलिंग सिद्धा, स्वलिंग सिद्धा, स्त्रीलिंग सिद्धा, पुरुषलिंग सिद्धा, नपुंसकलिंग सिद्धा, स्वयंबुद्ध सिद्धा, प्रत्येकबुद्ध सिद्धा, बुद्धबाहिसिद्धा, एक सिद्धा, अनेक सिद्धा, तथा ४ प्रकारे जीवमोक्ष जाय ते कहे छे. ज्ञानेकरि, दर्शनेकरि, चारित्रेकरि, तपेकरि, तथा ९ द्वार मोक्षना कहेछे. सत्पदरूपणा ते मोक्षगति पूर्वकाले हति हमणा पण छे, आगमिये काले हशे ते छति अस्ति छे, पण आकाशना फुलनि Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. परे नास्ति नयिः१. द्रव्यप्रमाणे ते सिद्ध अनंता छे,अभव्य जीवथी अनंतगुणा अधिक छे, वनस्पति वजिने २३ दंडकथी जीव अनंतगुणा अधिक छे २. क्षेत्रद्वार ते सिद्धशिला प्रमाणे छे, ते सिद्धशिला पिशतालिस लाख जोजननी लांबि पहोलि छे, अने त्रिगुणि झाझेरि परिधि छे अने उंचपणे ३३३ धनूष ने ३२ आंगुलप्रमाणे एटला क्षेत्रमा सिद्ध रह्या छे ३. स्पर्शना द्वार ते सिद्धक्षेत्रथि कांइक अधिकी सिद्धनिस्पर्शना छे ४. कालद्वार ते एक सिद्ध आश्रि सादिअनंत सर्व सिद्ध आश्रि अनादिअनंत ५. अंतरद्वार ते फरि सिद्धने संसारमा अवतरवु नथि अने एक सिद्ध तिहां अनंता सिद्ध छे अने अनंता सिद्धतिहां एक सिद्धछे,एटले सिद्ध सिद्धमां अंतर नथि६.भागद्वार ते सघला जीवने सिद्धनांजीव अनंतमे भागे छे,लोकने असंख्यातमे भागे छे ७. भावद्वार तेसिद्धमां क्षायकभाव, केवलज्ञान, केवलदर्शन, क्षायकसमकित छे अने परिणामिकभाव ते सिद्धपणुं जाणवू ८. अल्प बहुत्व द्वार ते सर्वथि थोडा नपुंसक सिद्ध,तेथि स्त्री संख्यातगुणिसिद्ध, तेथि पुरुष संख्यातगुणा सिद्ध, एक समये नपुंसक १० सिद्ध थाय, स्त्री २० सिद्ध थाय, पुरुष १०८ सिद्ध थाय. सपणे, बादरपणे, संज्ञिपणे, वज्ररूषभनाराचसंघयणपणे, शुकलध्यानपणे, मनुष्यगति, क्षायकसमकित, जथाख्यातचारित्र, पंडितवीर्य, केवलज्ञान, केवलदर्शन, भव्य सिद्धिक, परमशुकललेशी, चरमशरीरि, ए १४ बोलनो धणि हेायते मोक्ष जाय, जघन्य बे हाथनि अवघणावाला, उत्कृष्टि पांचशे धनुषनि अवघेणावाला, जघन्य नव वरसनो उत्कृष्ट पूर्वकोडिना आयुषवालो कर्मभूमिनो होय ते मोक्षमां जाय ९. इति मोक्षतत्वं. इति नव तत्वना बोल संपूर्ण. Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ छकायना बोल. ॥ अथ श्री छकायना बोलनो थोकडो. ॥ · अथश्री छकायना बोल लिख्यते पहेले बोले इंद्री थावरकाय, बीजे बोले बंभी थावरकाय, ३ सपि थावरकाय, ४ सुमति थावरकाय, ५ पयावच्च थावरकाय, ६ जंगमकाय ए छकायनां नाम कलां. हवे गोत्र कहे छे. पृथ्वीकाय, अपकाय, तेङकाय, वाउकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय हवे पृथ्वीकायना वे भेदः सुक्ष्म अने बादर. सुक्ष्म ते आखा लोकमां भय छे. ते आपणी नजरे न आवे ज्ञानी जाणे देखे. हवे बादरपृथ्वीकायनां नाम कहे छे. पहेले बोले माटीने मीठानी जात, खडीने खारानी जात, कालमिंट मरडीया पाहणा ने सिल्लानी जात, हिंगला ने हडतालनी जात, गेरु ने गोपीचंदनी जात, रत्नपरवालानी जात. सोल जातिना रत्न आदि लेइनेतें तालीस जातनी पृथ्वीकाय छे. तेना एक ककडामा असंख्याता जीव श्रीभगवंते कह्या छे. ते जुवार तथा पीलु जेटली पृथ्वीकाय लइये. तेमांथी एकेको जीव निकलीने पारेवा जेवडी काया करे तो एक लाख जेोजननो जंबुद्विप छे तेमां समाय नही. तेना कुलवारलाख क्रोड छे, तेनुं आउखं जघन्य अंतर्महूर्तनुं उत्कृष्टुं २२ हजार वर्षनुं तेनी दया पालीये तो अनंता मोक्षनां सुख पामीये १. हवे अपकाय ते पाणी तेना वे भेद शुक्ष्म अने बादर. शुक्ष्मते आखा लेोकमां भय छे ते आपणी नजरे न आवे. बादर पाणीना नाम कहे छे. पहेलेबोले वरसादने कराना पाणी, झाकल ने धुमसना पाणी, कुवा नदी तलावना पाणी, दरिया ने झरणना पाणी, खारां खाटां पाणी, मीठां Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. मोलां पाणी, ए आदि लेइने घणी जातिनां पाणी छे. तेना एक बिंदुमां असंख्याता जीव श्रीभगवंते कह्या छे. तेमांथी एकेको जीव नीकलीने सरसवना दाणा जेवडी काया करे तो एक लाख जोजनना जंबुद्विपमां समाय नही. तेना कुल सात लाख क्रोड छे, तेनुं आउखु जघन्य अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्टुं सातहजार वर्षतुं तेनी दया पालीये तो अनंता मोक्षनां सुख पामीये २. हवे तेउकाय ते अग्नी तेना बे भेद. सुक्ष्म ने बादर, सुक्ष्म ते आखा लोकमां भर्या छे. ते आपणी नजरे न आवे. हवे बादर अग्नीनां नाम कहे छे. पहेलेबोले चूला ने भठीनी अग्नि, धुमाडी तापणीनी अग्नि, चकमक ने वीजलीनी अग्नि, दीवाने उमाडानी अग्नि, लोढा धगधगता ने अरणीनी अग्नि, ए आदिलेइने घणी जातिनी अग्नि छे. तेना एक तणखामां असंख्याता जीव श्रीभगवंते कह्या छे. तेमांथी एकेको जीव नीकलीने खसखसना दाणा जेवडी काया करे तो जंबुद्विपमा समाय नहि. तेना कुल त्रणलाखक्रोड छे. तेनुं आउखु जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्टुं त्रण अहोरात्रनुं तेनी दया पालीये तो अनंता मोक्षनां मुख पामीये ३. हवे वाउकायना बे भेद. सुक्ष्म ने बादर सुक्ष्म ते आखा लोकमां भरयां छे. ते आपणी नजरे न आवे. हवेबादर वायराना नाम कहे छे. पहेले बोले उगमणाने आथमणोवा, उतर ने दक्षीणनो वा, उंचो निचो ने त्रिछो वा, वंतोलियो ने मंडलीयो वा, गुंजवा ने सुधवा, एआदि लेइने घणी जातिनो वायरो छे. ते सुं करवे करी हणाय छे. १ उघाडे मोढे बोल्ये, झापट नांखवे, सुपडे सेावे, झाटकवे, कांतवे, विंझवे, तालोटा वगाडवे, विझणे विझवे, हींचाले हींचकवे. आदिलेइने घणी जातिना शस्त्रे Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छकायना बोल. करी हणाय छे. एकवार उघाडे मोढे बोल्ये, असंख्याता जीव हणाय छे, तेमांथी एकेको जीव निकलीने वडना बीज जेवडी काया करतो जंबुद्विपमा समाय नहि. तेना कुल सात लाख क्रोड छे. तेनुं आउखु जघन्य अंतर्मुहूर्ततुं उत्कृष्टुं त्रणहजार वर्षमुं, तेनी दया पालीये तो अनंता मोक्षनां सुख पामीये ४. पांचमे बोले वनस्पतिकाय तेना बे भेद. सुक्ष्म अने बादर. सुक्ष्म ते आखा लोकमां भी छे. ते आपणी नजरे न आवे. बादरवनस्पतिकायना बे भेद. प्रत्येक अने साधारण. प्रत्येक कोने कहीये ? शरीरे शरीरे एकेको जीव होय तेने प्रत्येक कहीये, अने एक सरीरे अनंता जीव होय तेने साधारण कहीये. हवे प्रत्येकनां नाम कहेछे. पहेले बोले वृक्ष ने वेलानीजात, रिंगणी तलसी ने गुलमनी जात, एरडा आकडा धतुरानी जात, दाडम सेलडी ने केलानीजात, धो केवडा दाभडा ने तरणानी जात, फूल कमल ने नागरवेलनीजात, बारडी केरडा ने कसेलानीजात, जुवार बाजरो मठ मकाइनीजात, तांजलजो. सुवा, मोघरी, वालोर फलौनी जात, ए आदि लेइने घणी जातिनी प्रत्येक वनस्पति छे तेमां भगवाने बे प्रकारना जीव कह्या छे. संख्याता असंख्याता तेनी दया पालीये तो अनंता मोक्षना मुख पामीये. तेनुं आउखुं ज० अंत उत्० दशहजर वर्षर्नु हवे साधारण वनस्पतिना नाम कहे छे. पहेले बोले लीलफूल सेवालनी जात, गाजर मूलानीजात, डुंगली लसणनीजात, गरमरनीजात , रतालं पिंडालुंनी जात, मोथ लुणीनी जात, उगता अंकुरा अने कुणीकाकडी प्रमुखनी जात, ए आदि लेइने घणी जातिनी साधारण वनस्पति छे. एक कंदमुलना ककडामां Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन : सिद्धांत: प्रकरण संग्रह. १७ अनंता जीव छे. तेनुं आउखं जघन्य उत्० अंतर्मुहूर्तनुं, बेहुना कुल २८ लाख क्रोड छे. तेनी दया पालीये तो अनंता मोक्षना सुख पामीये. हवे त्रसकायना चार भेद. बेइद्रिय, तेइंद्रीय चौरेंद्रीय पंचेद्रीय. हवे. वे इंद्रीयना वे भेद. अप्रजाप्ताने प्रजाप्ता बेइंद्रीय ते कोने कहीये. जेने कायाने, जीहा होय, तेने बेइंद्रीय कहीये तेनां नाम. जला, किडा, पोरा, करमीया, सरमिया, मामणमुंडा, अलसीया, लट, लाल, संख, छीप, कोडा आदि लेने घणी जातिना बेइंद्रीय जीव छे. तेनां कुल सातलाखक्रोड छे. तेनुं आउखं जघन्य अंतमुहूर्तनुं उत्कृष्टुं बार वर्षनुं. तेनी दया पालीये तो अनंता मोक्षना सुख पामीये. तेइंद्रीयना वे भेद. अप्रजाप्ता ने प्रजाप्ता. तेइंद्रीय ते कोने कहीये. काया, मूख ने नासिका होय तेने, तेइंद्रीय कहिये तेनां नाम. जु, लींख, चांचड, मांकड, कीडी, कंधुवा, माटला, घनेडा, जूवा, ईतडी, गींगाडा, घीमेल, गधैया, कानखजुरा, मंके डा, ए आदि लेने घणी जातिना तेइंद्रीय जीव छे. तेना कुल आठलाख क्रोड छे. तेनुं आउखु जघन्यअंतर्मुहूर्तनुं उत्कृष्टुं ओगणपचाश दिवसनुं तेनी दया पालीये तो अनंता मोक्षना सुख पामीये. वे चौरिंद्रीयना वे भेद ते अप्रप्ता ने प्रजाप्ता चौइंद्रीय ते कोने कहीये. जेहने काया, मुख, नासिका अने आंख होय तेने चौइंद्रीय जीव कहीये. तेना नाम. माखी, मसला, डांस, मछर, भमरा, तीड, पतंग, करोलीया, कंसारी, वींछी, खडमांकडी, बगां, धुडीया, फूदा ए आदि लेने घणी जातिना चौइंद्रीय जीव छे. तेना कुल नवलाखकोड छे, तेनुं आउखं जघन्य अंतर्मुहूर्तनुं उत्कृष्टु छमासनुं तेनी दया पालीये तो अनंता मोक्षना खसु पामीये. हवे पंचेंद्रीय ते कोने कहीये. जेने काया, मुख, नासिका, आंख, ने कान ए Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आधु दंडक. प्रमाणे होय तेने पंचेंद्रीय कहीये. तेना बे भेद. अप्रजाप्ता अने मजाप्ता. तेनी ४ जाति. नारकी, तिर्यच, मनुष्य, देवता. तेमां १४ भेद नारकीना, ४८ भेद तिर्यचना, ३०३ भेद मनुष्यना, १९८ भेद देवताना. वळी लेमां देवताना चार भेद. भवनपति, काणव्यंतर, जोतिषी, वैमानिक. मनुष्यना चार भेद. १५ कर्मभूमीना मनुष्य, ३० अकर्म भूमिना मनुष्य, ५६ अंतरद्विपना मनुष्य, १४ स्थानकना समूछीम मनुष्य. हवे नारकीने देवतानी स्थिति जघन्य दशहजार वर्षनी, उत्कृष्टी तेत्रीस सागरोपमनी, सिर्यचने मनुष्यना स्थिति, जघन्य अंतर्मुहूर्तनी, उत्कृष्टीत्रणपल्यापमनी, सेवी दया पालीये तो अनंता सुख पामीये. इतिश्री छकायना बोल सम्पूर्ण. ॥ अथ श्री लघु दंडक. ॥ ॐ नमः सिद्धं ॥ अथश्री २४ दंडकना बोल लिख्यते ॥ गाथा. सरीरोगाहण संघयण, संठाणकसाय तहहुंतिसबाओ, लेसिंदियसमुघाए, सनिवेदेयपज्जती ॥ १॥ दिठिदंसणनाण अनाणे, जोगुवउंगेतहाकिमाहारे, उववायठिइसमुहाए, चवणगइ रागइचेव. ॥२॥ ए बे गाथा सूत्रपाठे कही. हवे अर्थ कहे छे. सरीर कहता सरीर पांच उदारीकसरीर, वैक्रेयसरीर, आहारकसरीर, तैजस सरीर, कार्मणसरीर. १ उगाहण कहेता अवघेणा उदारिक सरीरनी अवघेणा जघन्य अंगुलना असंख्यातमोभाग, उत्कृष्टी एक हजार जोजननी झाझेरी, कमलनाडाडानेन्याये. वैक्रेय सरीरनिभवधारणिअवघेणा, जघन्य अंगुलनाअसंख्यातयोभाम, उत्कृष्टी पांचसे धनुषनी अने उत्तर वैक्रेय सरीरमी अक्षणा, Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत मकरण संग्रह. जघन्य अंगुलना संख्यातमो भाग, उत्कृष्टीलाख जोजननि झाझेरी. आहारक सरीरनी अवघेणा जघन्य, मुंढाहायनी, उत्कृष्टी एक हाथनी. तेजस कार्मण सरीरनी अवघेणा, जघन्य अंगुलनो असंख्यातमो भाग, उत्कृष्टी चौद रामलोक प्रमाणे, केवल समुद्घातनी अपेक्षाये तथा पोतपोताना शरीर प्रमाणे एम अवघेणा जाणवी २. संघयण कहेतां संघयण छ. वज्ररुषभनाराचसंघषण, रुषभनाराचसंघयण, नाराचसंघषण, अर्धनाराचसंघयण, किलकुसंघयण, छेवटुसंघयण ३. संठाणकहेतां संठाण छ. समचउरंस संठाण, निगाहपरिमंडल संठाण, सादि संठाण, वामन संठाण, कुबज संठाण, हुंड संठाण ४. कसाय कहेतां कषाय च्यार. क्रोध, मान, माया, लोभ ५. तहहुंति कहेतां तिमज होय, सनाओ कहेता संज्ञा च्यार. आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा, परिग्रहसंज्ञा ६. लेसा कहेतां लेस्या छ. कृष्णलेस्था, नीललेस्या, कापोतलेस्या, तेजुलेस्या, पद्मलेस्या, सुकललेस्था ७. इंदिय कहेतां इंद्रिय पांच श्रोतेंद्रिय, चक्षुइंद्रिय, घ्राणेंद्रिय, रसेंद्रिय, फरसेंद्रिय ८. समुघाए कहेतां समुदघात सात वेदनी, कषाय, मारणांतिक, वैक्रेय, तैजस, आहारक, केवल. ९ सन्नी कहेतां संझी असंज्ञी, मन होय ते संज्ञी, मन न होय ते असंज्ञी १०. वेदेय कहेतां वेद प्रण. स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद ११. पजति कहेतां मर्याप्ति छ. आहारपर्याप्ति, सरीरपर्याप्ति, इंद्रीयपर्याप्ति, स्वासोवासपर्याप्ति, भाषापर्याप्ति, मनपर्याप्ति १२. दिठि कहेतां दृष्टि ३. समकितदृष्टि, मिथ्यातदृष्टि, समामिथ्यातदृष्टी १३. दसण कहेतां दर्शनध्यार. चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन, केवलदर्शन १४. नाण कहेवां ज्ञान ५. मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लघु दंडक. मनपर्यवज्ञान, केवलज्ञान १५. अनाणे कहेतां अज्ञान त्रण. मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान, विभंगज्ञान १६.जोग कहेतां जोगपनर च्यार मनना, च्यार वचनना, सात कायाना. हवे च्यार मनना कहेछे. सत्यमनजोग, असत्यमनजोग, मिश्रमनजोग, व्यवहारमनजोग. हवे च्यार वचनना कहे छे. सत्यवचनजोग, असत्यवचनजोग, मिश्रवचनजोग, व्यवहारवचनजोग. हवे सात कायाना कहे छे. उदारिक, उदारिकनो मिश्र, वैक्रेय, वैक्रेयनो मिश्र, आहारक, आहारकना मिश्र, कार्मणकायजोग, एवं पनर जोग १७. उपयोग कहेतां उपयोग बार. पांच ज्ञान, प्रणअज्ञान, च्यार दर्शन, एवं बार १८. तहाकिमाहारे कहेतां. तिमन अनुको आहार लोए, जघन्य त्रण दिसनों, उत्कृष्टो छ दिसतो, त्रण दिस ते कइ ? उंची, नीची ने त्रीछी. ए त्रण दिशनो लीए. छदिस ते कइ ? पूर्व, पछिम, उत्तर, दक्षिण, उंची, नीची, ए छ दिसनो आहार लीए. तथा वलि त्रण प्रकारनो आहार. सवेत, अवेत, ने मित्र. आज, रोम, ने कवल, ए त्रण प्रकारनो आहार १९. उववाय कहेतां आवीने उपजे, चोविस दंडकनो ते आगल कहेवासे२०. ठिइ कहेतां थिति जघन्य अंतर्मुहूर्तनी अने उत्कृष्टी तेत्रीस सागरोपमनी, ते आगल कहेवासे २१. समुहाए कहेता समाहियामरण, असमाहियामरण, समाहियामरण ते केहने कहिये, कीडीनीलारनीपरे जीवना प्रदेशछुटाछुटा नीकले, तेहने समोहिया मरण कहिये, असमोहियामरण ते केहनेकहिये बंदुकना भडाकानीपरे जीवना प्रदेश सामटा नीकले तेहने असमोहियामरण कहिय २२. चवण कहेतां चविने जाय जेटला दंडकमां ते आगल केहेवासे. २३. गइ कहेतां गति पांच. नरकनीगति, तिर्यचनीगति, मनुष्यनीगति, देवतानीगति, सिद्धनीगति, Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. एहमा जे जावं ते गति अने आगइ कहेता जेमांयी आवg. ते. आगति च्यार. नरकनी, तिर्यंचनी, मनुष्यनी, देवतानी २४. चेव कहेता निश्चे ए बे गाथाना अर्थ कहो. हवे प्राणदश पांच इंद्रीयना पांच प्राण. श्रोतेंद्रीय, चक्षुइंद्रीय, घ्राणेंद्रिय, रसेंइंद्रिय, फरसेंइंद्रिय, मनबल, वचनबल, कायबल, स्वासोस्वास, आउखुं ए १०. ए पचीस दुवार कथा २५. हवे चोविस दंडकना नाम कहे छे. पहेलो नारकीनो दंडक, ते सात नरकना नाम कहे छे. पहेली घमां, बीजी वंसा, त्रीजि सीला, चौथी अंजणा, पांचमी रिठा छठी मघा, सातमी माधवइ, ए सात नरकना नाम कह्या. हवे गोत्र कहे छे. पहेली रतनप्रभा बीजी सकरप्रभा, त्रीजी वालुपमा, चौथी पंकमभा, पांचमी धुमप्रभा, छठी तमप्रभा, सातमी तमतमाप्रभा, ए सात मलिने एक दंडक थयो. हवे दस भवनपतिना दस दंडक. तेहना नाम कहे छे. पेहेला असुरकुमार, बोजा नागकुमार, त्रीजा सावनकुमार, चोथा विजुकुमार, पांचमा अग्निकुमार, छठा दिपकुमार, सातमा उदहिकुमार, आठमा दिसाकुमार, नवमा पवनकुमार, दशमा थणितकुमार. एवं अगियार दंडक थया. हवे पांच थावरना पांच दंडक कहे छे. इंदिथावरकाय, बंभीथावरकाय, सपीथावरकाय, मुमतिथावरकाय, पयावचथावरकाय, ए नाम कह्या. हवे गोत्र कहे छे. प्रथवीकाय, अपकाय, तेउकाय, वाउकाय, वणसइकाय, एवं सोल दंडक थया. हवे त्रण विगलेंद्रीयना त्रण दंडक कहे छे. बेइंद्रीय, तेरिंद्रीय, चरिंद्रीय, एवं उगणीस दंडक थया. हवे विसमो तिर्यंच परेंद्रीयनो दंडक कहे छे. तिर्यंच पंचेंद्रीयना पांच भेद. जलचर थलचर, उरपर, भुजपर, खेचर. हवे जलचर ते केहने Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ कहिये. जे जलमां चाले तेहने जलचर कहिये, तेहना अनेक भेद मछ कच्छ, गाहा, मगर सुसुमार प्रमुख. हवे थलचर ते केहने कहिए जे यल पृथ्वी ए चाले तेहने थलचर कहिये, तेहना च्यार भेद. एकखुरा, दुखुरा, गंडीपया, सणपया. एफखुरा ते घोडा खर प्रमुख, दुखुरा ते गाय, भेस प्रमुख, गंडीपया ते मुंहाला पग, सोनीनी अहिरण ने घाटे पग होय ते हाथी गेंडा प्रमुख, सणपया ते नोहोराला जीव, ते सिंह, वाघ, चित्रा, कुतरा, बिलाडा प्रमुख. उरपर ते केहने कहिये हझ्याभर चाले ते सर्पनी जात. तेहना बे भेद. एक फेण मांडे ने, एक फेण न मांडे. भुजपर ते केहने कहिये मुजाए तथा हइयाभर चाले ते भुजपर. तेहना अनेक भेद. नोल, कोल, काकींडा, गोह, उंदर, खीसकोलि, प्रमुख. खेचर ते केहने कहीये जे आकाशे चाले ते पंखीनी जाति. ते पंखीना च्यार भेद चरमपंखी १. रोमपंखी २. विततपंखी ३. समुगपंखी ४. चरमपंखी ते चामडानी पांख, ते छापा, वागुल प्रमुख. रोमपंखी ते रामरायनी पांख. ते सुडा, चरकला, पारेवा, प्रमुख. ए बे पंखी अढी द्वीप माहे अने बाहिर छे. विततपंखी ते जेहनी पांख पोहोली रहे ते वितत पंखी कहिए. समुग पंखी ते डाबडानीपेरे बीडीरहे पांख जेहनी ते समुग पंखी ए बे पंखी अढी द्विप बहारेज छे. ए पांच तिर्यच पचेंद्री; ते पांच समुछिम ने पांच गर्भज जाणवा. ए बिसमा तिर्यच पचेंद्रिनो दंडक थयो. हवे एकविसमा मनुष्य पचेंद्रीयना दंडक कहेछे. ते मनुष्य परेंद्रीना च्यार भेद. पनर कर्मभुमिनामनुष्य, त्रीस अकर्मभुमिनामनुष्य, छपन्न अंतरद्वीपनामनुष्य, चउद धान Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. कना समुर्छिम मनुष्य. ते एकसो एक क्षेत्रना गरभज मनुष्यना अपर्याप्ता, ने एकसो एक पर्याप्ता एवं २०२, ने एकसो एक क्षेत्रना समुर्छिम मनुष्यना अपर्याप्ता. एवं त्रणसें त्रण भेदना एकविसमा मनुष्यना दंडक थयो . हवे बाविसमा वाणव्यंतर नो ise कछे. तेहनी सोल जाति, पिसाच, भूत, जक्ष, राक्षस, किनर, किंपूरुष, महोरग, गंधर्व, आणपनी, पाणपनी इसीबाइ, भूइवाइ, कंदिय, महाकंदिय, कोहंड, पयंगदेव, इति बाविसमो वाणव्यंतर नो दंडक संपूर्ण. हवे त्रेविसमा जोतीषी ना दंडक कहे छे तेहनी दस जाति, चंद्रमा, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, वारा, ए पांच चल ते अद्विीप मध्ये छे अने पांच स्थिर ते अद्विीप बाहीर छे. एवं दस जात, वे चंद्रमाने वे सूर्य जंबुद्वीप मध्ये छे. प्यार चंद्रमाने च्यार सूर्य लवण समुद्र मध्ये छे. बार चंद्रमाने बार सूर्य धातकीखंड मध्ये छे, बेतालिस चंद्रमाने, बेतालिस सूर्य कालोदधि समुद्र मध्ये छे, बहुतेर चंद्रमा, बहुतेर सूर्य पुष्करार्ध्य द्विप मध्ये छे. एवं सर्व मलीने मनुष्य क्षेत्रमां एकसो बत्रीस चंद्रमा एकसे बीस सूर्य परिवार सहित चल छे परिवार ते जिहां एक चंद्रमा एक सूर्य तिहां अठासी ग्रह अठाविस नक्षत्र छास हजार नवसे पंच्यातेर कोडा कोडी तारा छे. एवं सर्व चंद्रमा सूर्यना परिवार गणवेो. असंख्याता चंद्रमा असंख्याता सूर्य परिवार सहित मनुष्यक्षेत्र बाहेर असंख्याता द्विपसमुद्र मांहि स्थिर छे. एवं दस भेदना वेविसमा ज्योतिषीना दंडक था. ed चाविसमा वैमानिकनो दंडक कहे छे. तेहना छविस भेद छे. वार, देवलोक, नव ग्रीवेयक, पांच अनुत्तर विमान, एवं छवीस. हवे तेश्मा नाम कहे छे. सुधर्म, इसान, सनंतकुमार, माहेंद्र, अशोक, Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लंतक महाशुक्र, सहसार, आणत, प्राणत, आरण, अचुय, ए बार देवलोकना नाम कया. हवे नव ग्रैवेयकना नाम कहे छे. भदे, शुभदे, मुजाए, सुमाणसे, प्रीयदंसणे, सुदंसणे, आमोहे, सुपडिबधे, जसेघरे, ए नवौवेयकना नाम कह्या, हवे पांच अनुत्तर विमानना नाम कहे छे. विजय, विजयंत, जयंत, अपराजित, सर्वार्थ सिद्ध, ए पांच अनुत्तर विमानना नाम कह्या. ए छविस भेदनो वैमानीकनो दंडक थयो. हवे पनर परमाधामीना नाम कहे छे. अंब, अंबरीस, साम, सबल, रुद्र, वैरुद्र, काल, महाकाल, असीपत्र, धनु, कुंभ, वाल, वेतरणी, खरस्वर, महाघोष. ए पनर परमाधामी ते असुरकुमारमा भल्या. हवे दस जातिना जंभका तेहना नाम कहे छे.. आणजंभका, पाणभका, लयणभका, सयणजंभका, वच्छभका, पुष्पजभका, फलजंभका, बीय जंभका, विजुजंभका अवीयतजंभका, ए दस जातिना जंभका ते वाण व्यंतरमा भल्या. ३ किलविषीना नाम. त्रण पलिया, त्रण सागरिया, तेर सागरिया, ए त्रणकिलविषी देवलोक अंतरनिवासी माटे विमानीकमां भल्या. नव लोकांतिकना नाम कहे छे. सारस्वत, आदित्य, विन्ही, वरुण, गर्दताया, तोसीया, अवाबाहा, अगीचा, रिठा ए नव लोकांतिक बंभलोकवासी माटे उत्तम वैमानिकमां भल्या. इति चोविस दंडकना नाम कह्या. हवे सात कोडी बोहोत्तेर लाख भवनपतिना भवन छे. चोरासी लाख नरकावासा छे. असंख्याता वाणव्यंतरना नगर छे. असंख्याता जोतिषीना विमान छे. असंख्याती राज्यधानी द्वीपा जोतिषीना छे. चोरासी लाख सताणु हजार त्रेवीस विमान बेमानिकना के. संख्याता वास मनुष्यना छे. सेष दंडक नवना Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. २५ असंख्याता - असंख्याता वास छे. तेसर्ववर्णव अन्य सिद्धांतादिकथिजाणवो. हवे सिद्धसिलाना बार नाम कहे छे. इसितिवा, इसिपमारातिवा, तणुतिवा, तणुतणुतिवा, सिधितिवा, सिद्धालएतिवा मुतितिवा, मुत्तालएतिवा, लोयगेतिवा, लोगथुभियातिवा, लोगपडिबोहेतिवा, सवपाणभुयजीवसत्तसुहावहेतिवा, ए बार मोक्षना नाम कह्या. ए नामदुवार किंचित्मात्र संपूर्ण. हवे चोविस दुवार ते चोविस दंडक उपरे उतारवा ते कहे छे. पेहलो नारकीनो दंडक, ते माहे सरीर त्रण. वैक्रेय, तेजस, कार्मण. अवघेणा भवधारणि सरीरनी ज० अंगु० असं०. उ० पांचसे धनुषनी अने उत्तरवैक्रेय सरीरनी ज० अंगु० संख्या० उ० हजार धनुषनी. पेहेली नरके भवधारणी ज० अंगु० असं०. उ० पोणाआठधनुष ने छ आंगुलनी. अने उत्तरचक्रेय करे तो ज० अंगु० संख्या०. उ० साढापनर धनुष ने बार आंगुलनी बीजी नरके ज० अंगु० असं० उ० साढा पनर धनुष ने बार आंगुलनी अने उत्तरवैक्रेय करे तो ज० अंगु० संख्या० उ० सवाएकत्रिस धनुषनी. त्रीजि नरकेज० अंगु० असं० उ० सवाएकत्रिस धनुषनी अने उत्तरवैक्रेय करे तो ज० अंगु० संख्या० उ० साडाबासठ धनुषनी. चाथी नरके ज० अंगु० असं० उ० साडाबासठ धनुषनी अने उतरवैक्रेय करे तो ज० अंगु० संख्या० उ० सवासोधनुषनी. पांचमी नरके ज० अंगु० असं० उ० सवासो धनुषनी अने उत्तर वैक्रेय करे तो ज० अंगु० संख्या० उ० अढीसे धनुषनी. छठि नरकेज० अंगु० असं० उ० अढीसे धनुषनी. अने उत्तरवैक्रेय करे तो ज० अंगु० संख्या० उ० पांचसें धनुषनी सातमी नरके ज० अंगु० असं उ० पाचसें धनुषनी Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ लघु दंडक. अने उत्तर वक्रैय करे तो ज० अंगु संख्या उ० हजार धनुषनी. संघयण क० नारकीअसंवेणी. संठाण एक हुंडसंठाण. कषाय च्यारे क्रोध मान माया ने लोभ. पण नारकीने क्रोध घणो. संज्ञा च्यारे आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा, परिग्रहसंज्ञा, पण नारकीने भय घणो. लेस्था नारकीने त्रण समुचे, पेहेली. ने बीनी नरके एक कापुत लेस्या. त्रीजी नरके बे लेस्या. कापुत घणी अने नील थोडी. चेाथी नरके एक नील लेस्था. पांचमी नरके बे लेस्था नील घणी अने कृष्ण थोडी. छठी नरके एकली कृष्ण लेस्या. सातमी नरके महाकृष्ण लेस्था. इंद्रीय पांच.श्रोतेंद्रिय चक्षुइंद्रीय, घ्राणेंद्रीय, रसेंद्रीय, स्पसेंद्रीय. समुद्रघात च्यार, वेदनो, कषाय, मारणांतिक, वैक्रेय. सनि कहेतां पेहेली नरके संज्ञी असंज्ञी बे होय. बीजीथी मांडी सातमी नरक मुधी एकला संज्ञी छे. वेद एक नपुंसकवेद. पर्या ५ लाभे ते भाषा मन भेला वांधे. द्रीष्टी त्रण. समकीतदृष्टी, मिथ्यातदृष्टी समामिथ्यादृष्टी. दर्शण त्रण. चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन ज्ञान त्रण. मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान. अज्ञान ऋण. मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान, विभंग आज्ञन. जोग इग्यार. च्यार मनना, च्यार वचनना, त्रण कायना. ते वैक्रेय वैक्रेयनो मिश्र ने कार्मणकाय जोग एवं इग्यार जोग. उपयोग नव, त्रण ज्ञान त्रण अज्ञान, त्रण दर्शन एवं नव. तहा तेमज आहार लेतो जघन्य उत्कृष्टो छ दिसनो आहार ले. ते बे प्रकारनो. आज आहार ने रोम आहार, तेपण अमुभ ने अचेत. उववाय ते आवीने उपजे, पहेलीन: बे दंडकना ते. मनुष्यगर्भज. ने तिर्यगर्भजने समुछिम. ए बे दंड कमां आविने उपजे अने बीजीथी मांडीने Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. २७ सातमी सुधी गर्भजतिर्वचने गर्भज मनुष्यनां आवी उपजे स्थिति पहेली नरके जघन्य दस हजार वरसनी, उत्कृष्टी एक सागरनी बीजी नरके ज० एक सागरनी उ० त्रण सागरनी. त्रीजी नरके ज० त्रण सागरनी, उ० सात सागरनी. चोथी नरके ज० सात सागरनी, उ० दस सागरनी. पांचमी नरके जं० दस सागरनी, उ० सतर सागरनी छठी नरके ज० सतरसागरनी, उ० बावीस सागरनी. सातमी नरके ज० बावीस सागरनी, उ० date सागरनी. समोहिया मरण ने असमेोहिया मरण वे मरण छे. चवण ते नारकी चविने पेहेलीथी छठी सुधिना वे दंडकमां जाय, मनुष्यने तिर्यचमां अने सातमी नरकना एक दंडकमां ते तिचमां जाय. गइ कहेतां पेहेलीथी मांडी छठी सुधिना नारकी मरीने बेगतिमां जाय ते. मनुष्यने तिर्यचमां जाय आवे पण वेगतिना मनुष्य ने तिर्यचना. सातमी नरकना नारकी वे गतिमांथी आवे मनुष्य ने तिचना ने जाय एक तिर्यच निगतिमां प्राणदस लाभे जे ग त्रण मन वचन ने काथाना एत्रण. ए प्रथम दंडक नारकीनो संपूर्ण. हवे दस भवनपतिना दस दंडक कहे छे. तेहमां सरीर त्रण. वैक्रेय, तेजस, कार्मण, अवघेणा भवन- पतिनी. जघन्य अंगुलनो असंख्यातमो भाग, उत्कृष्टी सातहाथनी, अने उत्तर वैक्रेय करे तो जधन्य अंगुलनो संख्यातमो भाग, उत्कृष्टी लाख जोजननी. संवेण नथी. संठाण एक समचउरंस संठाण. कषाय - चारे पण देवताने लाभ घणो संज्ञाचारे पण देवताने परिग्रह संज्ञा घणी. लेस्था च्चार. कृष्णलेस्था, नोललेस्या, कापुतलेस्या, तेजुलेस्या. इंद्री पांच छे. समुद्घात पांच. वेदनी, कषाय, मरणांतिक, वैक्रेय ने तेजस संज्ञी, असंज्ञी वे Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ लघु दंडक. जाणवा. वेद वे स्त्री ने पुरुष, प्रजा ५ भाषामन भेला बांधे. दृष्टि त्रण, दर्शन त्रण, केवल दर्शन एक नही. ज्ञान त्रण. मति ज्ञान, श्रुत ज्ञान ने अवधि ज्ञान. अझान त्रण. मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान, विभंगअज्ञान. जोग इग्यार, च्यारमनना, च्यार वचनना, त्रण कायाना, वैक्रेय वैकेयनो मिश्र, कार्मण कायजोग, एवं इग्यार. उपयोग नव. त्रण ज्ञान, त्रण अज्ञान, त्रण दर्शन. एवं नव, तहा तिमज आहार ले. जघन्य अने उत्कृष्टो छ दिसनो आहार ले. वली बे प्रकारे आहार ले, ओजआहार ने रोम आहार. ते पण शुभ ने अचेत आहार. उववाय ते आवीने उपजे बे दंडकनो. मनुष्यने तिर्यचनो. स्थिति भवनपतिमां दक्षण दिसना असुरकुमारनी, ज० दस हजार वरसनी उ० एक सागरनी, तेहनी, देवीनी ज० दस हजार वरसनो, उ० साढा त्रण पल्यापमनी तेहना नवनी कायना देवतानी, ज० दस हजार वरसनी, उ० दोड पल्योपमनी, तेहनी देवीनी ज० दस हजार वरसनी. उ० पोणा पल्यनी, उत्तर दिसना असुरकुमारनी, स्थिति ज० दस हजार वरसनी, उ० एक सागर झाझेरानी, तेहनी देवीनी ज० दश हजार वर्षनी, उ० साडा चार पल्यापमनी, तेहना नवनिकायना देवतानी ज० दसहजार वरसनी, उ० बे पल्यापम देसेउंणी, तेहनी देवीनी ज० दस हजार वरसनी, उ० एक पल्यापम देसे उणीनी समोहिया मरण अने असमाहिया मरण ए वे मरण लाभे. चवण ते चविने पांच दंडकमां जाय. प्रथ्वी, पाणी, वनस्पति, मनुष्य ने तियेच ए पांचमांजाय. गइकहे. मरीने वे गतिमां जाय मनुष्यने तिचमां. आगइ ते आवे पण बेगतिनो, मनुष्यने तिर्यचनो, प्राण दस लाभे जोग त्रण. इति दस भवनपतिना दस दंडक संपूर्ण. Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. २९ • हवे पांचस्थावरना पांचदंडक कहेछे. पृथ्वी, पाणी, तेज, वनस्पति, ए च्यार ने सरीर ऋण उदारिक, तेजस ने कार्मण, अने वायराने सरीर च्यार उदा रिक, वैक्रेय, तेजस ने कार्मण. अवघेणा, प्रथ्वी, पाणि, तेउ, बाउ, ए च्यारेनी जघन्य ने उत्कृष्टी अंगुलना असंष्यातमो भाग. अने वनस्पतिनी जघन्य अंगुलनो असंख्यातमो भाग. उत्कृष्टि हजार जोजननी झाझेरी कमल प्रमुखनी. संवेण एक छेवटु. संठाण एक हुंड. पांचे ना संठाण कहे छे. प्रथवीनुं संठाण मसुरनी दाल तथा चंद्रमाने आकारे, पाणीनं संठाण पाणीना परपोटाने आकारे, तेनुं संठाण सायना भाराने आकारे, वायरानुं संठाण धजापताकाने आकारे, वनस्पतिनुं संठाण नाना प्रकारनुं कषाय च्यारे. संज्ञा च्यारे, लेस्या, पृथ्वी, पाणी, वनस्पति ने अपर्याप्ता वेला च्यार पहेली अने पांचे ने लेस्या त्रण पहेली. इंद्री एक कायानी. समुद्घात पृथ्वी पाणी तेउ वनस्पति ने ३ वेदनी कषाय, मारणांतिक अने वागराने समुद्घात च्यार वैक्रेयनी वधी संज्ञी • पांचे स्थावर असंज्ञी. वेद एक नपुंसक, पर्याचार. आहारपर्या, शरिरपर्या, इंद्रीपर्पा, स्वासेोस्वासपर्या द्रष्टि एक मिध्यात. दर्शन एक अचक्षुदर्शन. ज्ञान नथी. अज्ञान वे मतीअज्ञान, श्रुतअज्ञान. जोग पृथ्वी, पाणी, तेज, वनस्पतिने त्रण उदारिक, उदारिकन मिश्र, कार्मण कायजोग, अने वायराने पांच ते वैक्रेय, वैक्रेयना मिश्र, ए वे वध्या. उपयोग त्रण वे अज्ञान, एक अचक्षुदर्शन, एवं त्रण. तहा तिमज आहार ले ज० त्रण दिसनो उ० छ दिसनो ते वल वे प्रकारने आज ने रोम कवलवजिने तथा ३ प्रकारनो ते सचेत, अचेत ने मिश्र उबवाय ते आवीने उपजे, • Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लघु दंडक. पृथ्वी, पाणी ने वनस्पतिमां वीस दंडकना एक नारकी वरजीने अने तेउ वाउमां दस दंडकना आवीने उपजे. पांच स्थावर, त्रण विग्लेंद्री, मनुष्यने तिर्यच, एवं दसना, स्थिति पृथ्वीनी ज० अंतर्मुहूर्तनी, उ० बाविस हजार वरसनी. पाणीनी ज० अंतर्मुहूर्तनी उ० सात हजार वरसनी, तेउनी ज० अंतर्मुहूर्तनी उ० त्रण अहोरात्रीनी, वायरानी ज० अंतर्मुहूर्तनी उ० त्रण हजार वरसनी, वनस्पतिनी ज० अंतमुहूर्तनी उ० दस हजार वर्षनी. समोहियामरण अन्ने असमोहियामरण ए बे मरण छे. चवण ते चविने पृथ्वी, पाणी ने वनस्पति दस दंडकमां जाय. पांच स्थावर, त्रण विगलेंद्रि मनुष्यने तिर्यंचमां जाय. अने तेउ, वाउ नव दंडकमां जाय. पांच स्थावर त्रण विगलेंद्रिने तिचए नव. गइ क० ते मरीने पृथ्वी, पाणीने वनस्पति बे गतिमां जाय. मनुष्य ने तिर्यंचमां अने तेउ वाउ एकगतिमां जाय तिर्यचमां. आगइ ते आवे पृथ्वी पाणी ने वनस्पतिमां त्रण गतिनो आवे. देवता मनुष्यने तिर्यचनो, अने तेउ वाउमां बेगतिनो आवे, मनुष्य ने तिर्यचनो. प्राण पांचे ने च्यार एकेंद्रिपणुं. कायबल, स्वासोस्वास, आउखु, जोग एक कायजोग. इति पांच स्थावरना पांच दंडक संपूर्ण. हवे त्रण विगलेंद्रियना ३ दंडक कहेछे. बेइंद्रि, तेरेंद्री, चोरिंद्रीमां सरीर त्रण. उदारिक, तेजस, कार्मण, अवघेणा. बेइंद्रीनी ज० अंगुलना असंख्यातमो भाग. उ० बार जोजननी, तेरीदिनी ज० अंगुलना असंख्यातामा भाग उ० त्रण गाउनी. चरिंद्रीनी. ज० अंगुलना असंख्यातमो भाग, उ० च्यार गाउनी. संघेण एक छेवटु. संठाण एक हुंड. कषाय चारे. संज्ञा च्यारे. लेस्या त्रण पेहेली. इंद्री बेरिंद्रीने बे काया, जिभ. तेरिंद्रीने इंद्री, ३. Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. " नासिकावधी. चरिद्रीने इंद्रीचार. आँख वधि समुद्घात त्रण, वेदनी, कषायने मारणांतिक ए त्रण. संज्ञी के० ते असंज्ञी, वेद एक नपुंसक. पर्या पांच मन नही. द्रष्टि बे, समकितद्रष्टी ने मिथ्यात द्रष्टी. दर्शन पेद्री इंद्रीने एक अचक्षूदर्शन. चउरिंद्रीयने वे दर्शन. चक्षूदर्शन ने अचक्षदर्शन. ज्ञान वे, मतिज्ञान ने श्रुतज्ञान, अज्ञान बे मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान. जोग चार उदारिक, उदारिकनौ मिश्र, कार्मणकाय जोग, व्यवहार वचन उपयोग बेइंद्री तेइंद्री ने पांच. वे ज्ञान वे अज्ञान, एक अचक्षुदर्शन ए पांच चंडरिंद्रीने उपयोग छ, बे ज्ञान, वे अज्ञान, वे दर्शन ए छ. तहा कहेतां तिमज आहार ले. जघन्य अने उत्कृष्टो छदिसंनो. तथा त्रण प्रकार आहार ले. ओज, राम, ने कवल, ऊववाय ते आवीने उपजे दस दंडकना. पांच स्थावर त्रण विंगकेंद्री मनुष्यने तिर्यच ए दस स्थिति बेरिंद्रीनी जघन्य अंतर्मुहूर्त्तनी उत्कृष्टि बार वरसनी. तेइंद्रींनी जघन्य अंतर्मुहूत्तनी उत्कृष्टी उगणपचासदिवसनी चउरिंद्रीयनी जघन्य अंतर्मुहूर्त्तनी उत्कृष्टी छ महिनानी समेोहिया मरण अने असमाहिया मरण वे छे. चवण ते चविने जाय दस दंडकमां, पांच स्थावर, ऋण विगलेंद्री, मनुष्य ने तिर्यचमां जाय, गइ ते मरीने बेगतिमां जाय, मनुध्य ने तिचिमां आगड़ ते आवे पण बेगतिना मनुष्यने तिर्यचनो. प्राण बेरिंद्री ने छ प्राण, बेइंद्रीना वे प्राण, कार्यबल, स्वासास्त्रास, आउखू, वचन, ए छ तेरिंद्री ने सात प्राण. ते नासिका वी. चरिंद्रीने आठप्राण आंख वधी. जोग बे. वचनजोग ने कायजोग. इति त्रण विगलेंद्रिना ऋण दंडक संपूर्ण. हवे विसमा तिर्यच पंचेंद्रिीना दंडक कहे छे. हवे पांचे समु ३१ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बघु दंडक. छिमने सरीर त्रण. उदारिक, तेजस ने कार्मण अने गर्भजने च्यार सरीर वैक्रेय वध्यु. अवघेणा पांचेनी कहे छे. हवे जलचर समुर्छिम ने गर्भजनी ज० अंगु० असं० उ० हजार जोजननी. थलचर समुर्छिमनी ज० अंगु० असं. उ० प्रत्येक गाउनि. गर्भजनी ज० अंगु० असं० उ० छ गाउनी. उरपर सर्प समुछिमनी ज० अंगु असं० उ० प्रत्येक जोजननी. अने गर्भजनी ज० अंगु० असं० उ० हजार जोजननी. भुजपर समुर्छिमनी ज० अंगु० असं० उ० प्रत्येक धनुषनी. गर्भजनी ज० अंगु० असं० उ० प्रत्येक गाउनी. खेचर समुर्छिमने गर्भजनी ज० अंगु असं० उ० प्रत्येक धनुष्यनी. उत्तर वैक्रेय करे तो ज० अंगु० संख्या० उ० नवसें जोजननी. संघेण समुर्छिमने एक छेवटु गर्भजने छ संघेण. संठाणसमुछिमने एक हुंड, गर्भजने छ संठाण. कषाय च्यारे पण तियेचने माया घणी. संज्ञा चारे पण तिर्यचने आहार संज्ञा घणी, लेस्या समुर्छिमने त्रण पेहेली. गर्भज ने छ लेस्या. इंद्री पांचे छे. समुद्घात समुर्छिमने त्रण वेदनी कषाय ने मारणांतिक. अने गर्भज ने समुद्घात पांच वेदनी कषाय मारणांतिक वैक्रेय ने तेजस. संज्ञी क० समुर्छिम असंज्ञी. गर्मजसज्ञी. समुर्छिममां वेद एक नपुंसक. गर्भजने त्रण वेद. पर्या समुर्छिमने पांच, मन नही. अने गर्भजने पर्या छ. द्रष्टि समुर्छिमने बे. समकित ने मिथ्यात. गर्भजने त्रण द्रष्टी. दर्शन समुर्छिम ने बे चक्षुदर्शन ने अचादर्शन. गर्भजने त्रण दर्शन. ज्ञानसमुर्छिम ने वे मतिज्ञान, श्रुतज्ञान. गर्भजने त्रण. अज्ञानसमुर्छिम ने बे मतिअज्ञान ने श्रुतअज्ञान. गर्भजने त्रण अज्ञान. जोग समुर्छिमने च्यार. उदारिकना चे, कार्मण ३, व्यवहार वचन ४. गर्भजने तेर जोग Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. आहारकना बे नही. उपयोगसमुर्छिमने छ. वे ज्ञान, बे अज्ञान, बे दर्शन. गर्भजने नव उपयोग. त्रण ज्ञान, त्रण अज्ञान, प्रण दर्शन. तिमज आहार ले जघन्य उत्कृष्टो छ दिसनो आहार ले. तथा त्रण प्रकारे आहार ले, ओज, रोमने, कवल, आहार ले. ते पण सचेत अचेतने मिश्र. उववाय ते आवीने उपजे. समुर्छिममां दस दंडकना. पांच स्थावर, त्रण विगलेंद्री, मनुष्यने त्रिजंच, गर्भजमां चौविसे दंडकना आवीने उपजे. स्थिति जलचर समुर्छिमने गर्भजनी ज० अंत० उ० पूर्व क्रोडनी. थलचर समुछिमनी ज० अंत० उ० चौरासी हजार वर्षनी. अने गर्भजनी ज० अंत० उ० त्रण पल्योपमनी. उरपरसर्प समुर्छिमनी ज० अंत० उ० पनहजार वरसनी. अने गर्भजनी अ० अंत० उ० पूर्वक्रोडनी. भुजपर समुर्छिमनी ज० अंत० उ० बेतालीस हजारवरसनों अने गर्भजनी ज० अंत० उ० पूर्व क्रोडनी. खेचर समुर्छिमनी ज० अंस० उ० बोहोतेर हजार वरसनी अने गर्भजनी ज० अंत० उ० पल्यापमना असंख्यातमो भाम. समोहियामरण ने असमाहियामरण ए बे मरण छे. चवण के० चवीने, समुर्छिम जाय तो बाविस दंडकमां. ज्योतिषीने विमानीकमां जाय नहि. अने गर्भज चोवीसे दंडकमां जाय. गइ ते. समुछिम अने गर्भज मरीने चार गतिमां जाय. आगइ ते आवे समुर्छिममां बे गतिनो मनुष्य ने तिर्यंचनो, अने गर्भजमां चारे मतिनो आवे. प्राण समुछिमने नव मन नही, अने गर्भजने प्राण दशे लाभे. जोग समुर्छिमने बे. कायजोग ने वचनजोग. अने गर्भजने त्रण जोग. मन, वचन, ने कायजोग. इति विसमा तिर्यचपंचेंद्रीनो दंडक संपूर्ण हवे एकविसमा मनुष्यनो दंडक कहे छे. तेमां समुर्छिम मनु Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लघु दंडक. ध्यमां शरीर त्रण. उदारिक, तेजस ने कार्मण. जुगलीयामां सरीर त्रण तेहीज. कर्मभुमिमनुष्यमां सरीरपांच लाभे. अवघेणा, समुछिमनि जघन्य ने उत्कृष्टी अंगुलना असंख्यातमा भाग, अने गर्भज मनुप्यनी भरत ईरवतमां आराना परे जाणवी. पहेले आरे बेसतांत्रण गाउनी, उतरतां बे गाउनी. बीजे आरे बेसतां बे गाउनी, उतरतां एक गाउनी. त्रीजे आरे बेसतां एक गाउनी, उतरता पांचसें धनुषनी. चोथे आरे बेसतां पांचसें धनुषनी, उतरतां सात हाथनी. पांचमे आरे बेसतां सात हाथनी, उतरतां एक हाथनी, छठे आरे बेसतां एक हाथनी,उतरतां मुंढा हाथनी. पछे चडतां अवला सवली जाणबी. ५ महाविदेहमां पांचसें धनुषनी उत्तर वैक्रेय करे तो ज० अंगु० संख्या० उ० लाख जोजन ज्ञाझेरी. हेमवय, इरणवयमां ज० अंगु० असं० उ. एक गाउनी. हरिवास, रमकवासमां ज० अंगु० असं० उ० बे गाउनी. देवकुरु उत्तरकुरुमां ज० अंगु० असं० उ० त्रण गाउनी. हवे छपन्न अंतर द्विपामां ज० अंगु० असं० उ० आठसें धनुषनी, संघयण समुर्छिम ने एक छेवटुं जुगलियाने एक वज्ररुषभनाराचसंघयण. पन्नर कर्मभुमिना गर्भज मनुष्यने छ संघयण. संठाण समुछिमने एक हुंड. जुगलियाने एक समचउरंस. कर्मभुमिना गर्भज मनुष्यने छ संठाण कषाय चारे पण मनुष्यने मान घj. संज्ञा चारे पण मनुष्यने मैथुन संज्ञा घणी. लेस्यासमुर्छिमने त्रण पेहेली जुगलीयाने लेस्या चार पहेली. गर्भज ने छ लेस्या. इंद्री पांचे. समुद्घात समुर्छिमने त्रण, वेदनी कषाय ने मरणांतिक. जुगलियाने समुद्घात त्रण तेहीज कर्मभुमीना गर्भज मनुष्यने सात समुद्घात. समुर्छिम असंज्ञी, गर्भजसंज्ञी. वेद समुर्छिमने एक नपुंसक. जुगलियामां वेद वे. स्त्री ने पुरुष. कर्म Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. सुमिना गर्भज मनुष्यमांत्रण वेद.स्त्री पुरुष ने नपुंषक. पर्या:समुर्छिमने चार, भाषाने मन नही. गर्भजने छ पर्या. दृष्टी समुछिमने एक मिथ्यात. दस अकर्मभुमामां बे दृष्टी. समकित ने मिथ्यात. वीस अकर्मभुमीने छपन्न अंतरद्वीपामां एकमिथ्यातदृष्टी. कर्मभुमिना मनुष्यमा त्रणे दृष्टी. दर्शन समुर्छिम अने जूगलीयाने बे. चक्षुदर्शन ने अचक्षुदर्शन. गर्भजने दर्शन चारे लाभे. दसअकर्मभुमीमां ज्ञान बे अने वीसअकर्म भूमी ने छपन्न अंतरद्वीपा ने समुर्छिममा ज्ञान नथी. गर्भजने ज्ञान पांच. अज्ञान समुर्छिमने ये मति अज्ञान न श्रुतअज्ञान, गर्भजने त्रण.जोग समुर्छिम ने त्रण उदारिकना बे ने १ कार्मणकायजोग ए त्रण. जूगलीयाने जोग ११ ते मनना ४, वचनना ४, उदारिकना २, कार्मण १, एवं जोग ११. गर्भजने पनर जोग. दश अकर्मभूमी ते पांच देवकुरु पांच ऊत्तरकुरु ए दशमां ऊपयोग ६. ते २ ज्ञान, २ अज्ञान, २ दर्शन ए ६. अने वीस अकर्मभूमी ५६. अंतरद्वीपामां ने समुर्छिमने बे अज्ञान, बे दर्शन ए ४. गर्भजने बार ऊपयोग. तिमज आहार ले तो जघन्यने उत्कृष्टो छ दिसनो. तथा त्रण प्रकारे आहार ले. उंच रोमने कवल ते पण सचेत, अचेतने मिश्र. ऊववाय ते आवीने उपजे. समुर्छिममा आठ दंडकना, पृथ्वी, पाणी, वनस्पति, त्रण विगलेंद्री, मनुष्य ने तिर्यच ए आठनो. जुगलीयामां २ दंडकनो ते मनुष्य ने तिर्यचनो गर्भज मनुष्यमां बाविस दंडकना ऊपजे ते तेऊवाऊना नही. स्थिति समुछिमनी जघन्यने उत्कृष्टी अंतर्मुहूर्तनी. गर्भजनी आरानी परे जाणवी. पहेले आरे बेसतां त्रण पल्योपमनी, ऊतरतां बे पल्योपमनी. बीजे आरे बेसतां बे पल्यापयनी, उतरतां एक पल्योपमनी. त्रीजे आरे बेसतां एक पल्यापमनी, उतरतां पूर्व क्रोडनी. चौथे आरे बेसतां पूर्व क्रोडनी, उतरतां Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लघु दंडक. सो वरस झाझेरानी. पांचमे आरे बेसतां सा वरस झाझेरानी, उतरते आरे विस वरसनी. छठे आरे बेसतां वीस वरसनी, उतरते आरे शोल वरसनी. एम चडतां उतरतां अवला सवली जाणवी. हिमवय इरणवयमा एक पल्योमनी, हरिवास रमकवासमां थे पल्यापमनी, देवकुरु उत्तरकुरुमां त्रण पल्योपमनी छपन्न अंतरदिपामां पल्यापमनो असंख्यातमा भाग ५ महाविदेहमां पूर्व क्रोडनी. समोहिया ने असमाहिया ए बे मरण छे. चषण ते चवीने समुर्छिम दस दंडकमां जाय. पांच स्थावर ने त्रण विगलेंद्री, मनुष्यने तियेच एवं दस. जुगलीया एक देषगतिमां जाय. गर्भजचोविसे दंडकमां जाय. गइ ते मरीने समुर्छिम बे गतिमां मनुष्य ने तिर्यंचमां जाय. गर्भज मनुष्य पांच गतिमां जाय. आगइ ते समुर्छिमने जुगलीयामां आवे तो बे गतिनो, मनुष्य ने तिचनो. गर्भजमां चार गतिनो आवे. प्राण समुर्छिमने आठभाषा ने मन नही. गर्भजने दस माण. जोगसमुछिमने एक कायानो. गर्भजने त्रण जोग, इति एकविसमो मनुष्यनो दंडक संपूर्ण. २१ हवे बाविसमा वाणव्यंतरनो दंडक. तेमां शरीर त्रण वैक्रेय, तेजस ने कार्मण. अवघेणा ज० अंगु० असं० उ० सात हाथनी, अने उत्तर वैक्रेय करे तो ज० अंगु० संख्या० उ० लाख जोजननी. संघयण नथी. संठाण एक. समचउरंस. कषाय चारे पण देवता ने लोभ घणो, संज्ञा चारे पण देवताने परिग्रह संज्ञा घणी. लेस्या चारपहेली. इंद्री पांचे. समुद्घात पांच. आहारकने केवल नही. संज्ञी असंज्ञी बे. वेद बे. स्त्री ने पुरुष. पर्या ४ भाषा मन भेला बांधे. दृष्टि त्रण. दर्शन त्रण. ज्ञान त्रण. अज्ञान त्रण. जोग अगीयार. चार मनना, चार वचनना, त्रण कायाना. Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ते चक्रेय, वैक्रेयमो मिश्र, कार्मन कायजोग एवं अमीयार. उपयोग नव. त्रण ज्ञान, त्रण अज्ञान, ऋण दर्शन एवं नव. तेमज आहार ले तो जघन्य ने उत्कृष्टो छ दिसनो. तथा चे प्रकारे ओज ने रोम ते पण सुभ ते पण अचेत आहार. उधवाय ते आवीने ऊपजे. बे दंडकना. मनुष्यने तिर्यंचना. स्थिति वाणध्यंतरनी, ज० दस हजार वरसनी, ऊ० एक पल्योपमनी. तेहनी देवीनी, ज० दस हजार वरसनी, ऊ० अरध पल्योपमनी. समोहिया ने असमाहिया ए बे मरण छे. चवण ते चविने जाय पांच दंडकमां, पृथ्वी, पाणी ने वनस्पति मनुष्य ने तिर्यंच ए पांच. गइ ते मरीने बे गतिमां जाय, मनुष्य न तिर्यंचमां. आगइ ते आवे पण घे गतिना मनुष्य ने तिर्यंचना. प्राण दस. जोग त्रण मन वचन, ने कायाना. इति बाविसमो वाणव्यंतरनो दंडक संपूर्ण. २२, हवे नेविसमा जोतिषीनो दंडक.तेहमां सरीर त्रण. वैक्रेय,तेजस ने कार्मण.अवघेणा ज० अंगु० असं० ऊ० सातहाथनी अने ऊत्तर वैक्रेय करे तो ज० अंगु संख्या० ऊ० लाख जोजननी, संघयण नथी. संठाण एक. समचऊरंस. कषाय चारे. संज्ञा चारे. लेस्या एक तेजु. इंद्री पांचे. समुद्घात पांच आहारकने केवल नही. संज्ञी छे. वेद घे. पर्या ५ भाषा मन भेला बांधे. दृष्टी त्रण. दर्शण त्रण. ज्ञान त्रण. अज्ञान त्रण. जोग अगीयार. चार मनना, चार वचनना, त्रण कायाना. ते वैक्रेय, वैक्रेयनो मिश्र ने कार्मण कायजोग एवं अगीयार, ऊपयोग नव. त्रण ज्ञान, प्रण अज्ञान, त्रण दर्शन एवं नव. तिमच आहार ले तो जघन्य ने उत्कृष्टो छ दिसनो तथा बे प्रकारे ऊज ने रोम ते पण सुभ ने अचेत आहार. उववाय ते आवीने ऊपजे, बे दंडकना. मनुष्य ने तिर्यचना. स्थिति चंद्रमाना Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ घु दंडक देवतानी, ज० पा पल्पनी, ऊ० एक पल ने लाख वरसनो. तेहनी देवीनी ज० पा पल्यनी, ऊ० अरघ पल्य ने पचास हजार वरसनी. सूर्यना देवतानी, ज० पा पल्यनी, ऊ० एक पल्य ने हजार वरसनी. तेहनी देवीनी ज० पा पल्यनी, ऊ० अरव पल्य ने पांचसे. वरसनी. ग्रहनादेवतानी ज० पा पल्यनी, उ० एक पल्पनी, तेहनी देवीनी ज० पापल्यनी, उ० अरघ पल्यनी, नक्षत्रना देवतानी ज० पापल्यनी, उ० अरघ पत्नी, तेहनी देवीनी, ज० पल्पना आठ भाग, उ० पा पल्यनी. ताराना देवतानी ज० पल्यना आठमा भाग, उ० पा पल्यनी. तेहनी देवीनी ज० पल्यना आठमा भाग, उ० पल्या आठमा भाग झाझेरी. समोहिया ने असमेोविया ए बे मरण ले. चवण ते चविने जाय. पांच दंडकमां, पृथ्वी, पाणी, वनस्पति, मनुष्य ने तिर्यचमां गइ ते मरीने वे गतिमां जाय. मनुष्य ने तिर्यचमां. आगर ते मनुष्य ने तिर्यचनो आवे. प्राण दस जोग त्रण. इति त्रैविसमा ज्योतिषीना दंडक संपूर्ण २३. • हवे चाविसमा वैमानिकनेो दंडक. तेहमां सरीर त्रण. वैक्रेय, तेजस ने कार्मण. अवघेणा सुधर्म, इशान ए वे देवलेोके ज० अंगुळ असं० उ० सात हाथनी. त्रीजे, चोथे देवलोके छ हाथनी. पांचमे छठे देवलोके पांच हाथनी. सातमे, आठमे देवलोके चार हाथनी, नवमे, दसमे, इग्यारमे, बरमे दे० त्रण हाथनी. नव ग्रैवेयकें बे हाथनी. चार अनुत्तर विमानमां एक हाथनी. सर्वार्थसिद्धम मुंढा हाथनी. अने उत्तरवैक्रेय करे तो बार देवलोक सुधी ज० गु० संख्या ० उत्कृष्टी लाख जोजजनी. संघयण नथी. संठाण एक. समचउरंस, कषाय चारे पण लाभ घणो. संज्ञा चारे पण परिग्रहसंज्ञा घणी. लेस्या पेहेले बीजे देवलेोके एक तेजु Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. लेस्या. त्रीजे, चोथे, पांचमे, एक पदम लेस्या. छठाथी मांडी नव ग्रैवेयकमां. एक सुकल लेस्या, अने पांच अनुत्तर विमानमां, १:परमसुकल लेस्या. इंद्री पांचे. समुद्घात बार देवलोकमां पांच. आहारक ने केवल नही. नव ग्रैवेयक ने पांच अनुत्तर विमानमा त्रण. वेदनी, कषाय ने मारणांतिक, संज्ञी एकला छे. वेद पेहेले बीजे देवलोके बे. स्त्रीवेद, पुरुष वेद. त्रीजाथी ते सार्वार्थसिद्ध लगे एक पुरुष वेद. पर्या ५ भाषा मन भेला बांधे. दृष्टी बारदेवलोकमां त्रण दृष्टी. नवग्रैवेयकमां बे दृष्टी. समकित ने मिथ्यात. पांच अनुत्तर विमानमा एकदृष्टी. समकित. बारदेवलोक ने नव ग्रैवेयकमां त्रण ज्ञान, त्रण अज्ञान, त्रण दर्शन. पांच अनुत्तर विमानमां अज्ञान नथी. जोग अगीयार, चार मनना, चार वचनना, त्रण कायाना ते. वैक्रेय. वैक्रेयनो मिश्र ने कार्मण कायजोग एवं अगीयार. उपयोग बारदेललोक ने नव ग्रैवेयकमां नव. त्रण ज्ञान, त्रण अज्ञान, त्रण दर्शन एवं नव. पांच अनुत्तर विमानमा छ उपयोग त्रण ज्ञान, त्रण दर्शन ए छ. तिमज आहार ले तो जघन्य ने उत्कृष्टो छ दिसनो तथा बे प्रकारे ओज ने रोम ते पण अचेत ने सुभ आहार, उववाय ते आवीने उपजे पहेला देवलोकथी मांडीने आठमा देवलोक सुधी बे दंडकना. मनुष्य ने तिर्यचना अने नवमेथी ते सर्वार्थसिद्ध लगे एक मनुष्यनो आवे. स्थिति पेहेले देवलोके जघन्य एक पल्यनी, उत्कृष्टी बे सागरनी. तेहनी परीग्रहीत देवीनी ज० एक पल्यनी, उ० सात पल्यनी, अने अपरिग्रहीत देवीनी ज० एक पल्यनी, उ. पचास पल्यनी, बीजे देवलोके एके पल्यनी झाझेरी, उ० बे सा० झाझेरी. तेहनी परिग्रहीत देवीनी, ज० एक पल्यनी झाशेरी, उ० Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मधु दंडक. नव पल्पनी, अने अपरिग्रहित देवीनी, ज० एक पल्यनी झामेरी उ० पंचावन पल्यनी. त्रीजे देवलोके ज० बे सा० उ० सात सा० तिहां देवी नथी पण तेडावी जाय. चोथे देवलोके ज० बे सा० झाझेरी, उ० सात सा० झाझेरी. पांचमे देवलोके ज० सात सा० उ० दस सा०. छठे देवलोके ज० दस सा० उ० चऊद सा० सातमे देवलोके ज० चऊद सा० ऊ० सतर सा० आठमे देवलोके ज० सतर० सा० उ० अढार सा०, नवमे देवलोके ज० अढार सा० उ० उंगणीस० सा० दसमे देवलोके ज० उंगणीस सा०, ऊ० वीस सा० अग्यारमे देवलोके ज० वीस सा० उ० एकविस सा०, बारमे देवलोके ज० एकविस सा० उ० बाविस सा० प्रथम ग्रैवेयके ज० बाविस सा० उ० त्रेविस सा० बीजो ग्रैवेयके ज० त्रेविस सा० उ० चोविस सा०, त्रीजी ग्रैवेयके ज० चोविस सा० उ० पचीस सा०, चाथी ग्रैवेयके ज० पचीस सा० उ० छविस सा०, पांचमी अवेयके ज० छविस सा० उ० सताविस सा० छठि ग्रैवेयके ज० सताविस सा० उ० अठाविस सा०, सातमी ग्रैवेयके ज० अठाविस सा० उ० उंगणत्रिस सा०, आठमी अवेयके ज० उंगणत्रिस सा० उ० त्रिस सा०, नवमी ग्रैवेयके ज० त्रीस सा० नी उ० एकत्रिस सा० ४ अनुत्तर विमानमां ज० एकत्रोस सा० उ० तेत्रीस सा० सर्वार्थसिद्धमां ज० ने उ० तेत्रीस सा० समेहिया ने असमाहिया ए वे मरण लाभे. चवण ते चविने पेहेला बीजा देवलोकना देवता पांच दंडकमां जाय. पृथ्वी, पाणी वनस्पति, मनुष्य ने तिचए पांच त्रीजाथी ते आठमा देवलोकना देवता बे दंडकमांजाय. मनुष्य,नेत्रियचमां नवमेथी मांडीने सर्वार्थसीद्धलगेना देवता एक दंडकमां जाय. मनुष्यमां. गइ ते मरीने पेहेलाथी मांडीने आठमां देवलोकना देवता Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. बे गतिमां जाय. अने नवमांथी मांडोने सर्वार्थसिद्ध मुधिना एक मनुष्यनी गतिमां जाय. आगइ ते पेहेलाथी मांडीने आठमां देवलोक लगे वे गतिनो आवे. मनुष्य ने त्रिचनो अने नवमाथी मांडीने सर्वार्थसिद्ध लगे एक मनुष्यनो आवे. प्राण दस. जोग त्रण. इतिश्री चोविसमा वैमानिकनो दंडक संपूर्ण. ... ___ हवे सिद्धनो द्वार कहे छे. सिद्धने सरीर नथी. अवघेणा सिद्धनी अरूपि जीवना प्रदेशना घननी, ज० एक हाथने आठ आंगुलनी, मझम चार हाथने सेोल अंगुलनी, अने उत्कृष्टी त्रणसें तेत्रीस धनुष ने बत्रीस अंगुलनी. सिद्धने संघयण नथी, सिद्धने संठाण नथी. सिद्धने कषाय नथी. सिद्धने संज्ञा नथी. सिद्धने लेस्था नथी. सिद्धने इंद्रीय नथी. सिद्धने समुद्घात नथी. सिद्ध संज्ञी असंही नथी. सिद्धने वेद नथी, सिद्धने प्रजा नथी. सिद्ध समकितद्रष्टी छे, सिद्धने एक केवल दर्शन छे. सिद्धने एक केवल ज्ञान छे. सिद्धने अज्ञान नथी. सिद्धने जोग नथी. सिद्धने उपयोग बे छे. केवलज्ञान, केवल दर्शन, सिद्धने आहार नथी. उववाय ते आवीने उपजे, एक दंडक ते मनुष्यना. सिद्धनी स्थितिनो छेडो नथी. सिद्धने मरण नथी. सिद्धने चवई नथी. गइ ते मरीने सिद्धने कोइगतिमां जावू नथी. आगइ ते सिद्धमा एक मनुष्यनो आवे. सिद्धने प्राण नथी. पण भाव प्राण बे छे, केवल ज्ञान ने केवल दर्शन. सिद्धने जोग नथी. इति सिद्धना द्वार इतिश्री लधुदंडकना बोल संपूर्ण. अथ श्री गतागतना बोल. पहेलीनर्के आगत २५ भेदनी ते १५ कर्मभूमी, ५ संज्ञी Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गतागतना बोल. .0 तिर्यंच मे ५ असंज्ञीतिर्यच ए २५ ना प्रजातानि गत ४० भेदनि ते १५ कर्मभूमी ने ५ संज्ञीतियेच ए २० ना अप्रजाप्ता ने प्रजातानि. बिजी नर्के आगत २० भेदनि ते, ५ असंहीतिर्यचना प्रजाप्ता वा. गत ४० नी पूर्ववत्, जिीनर्के आगत १९ भेदनि ते पूर्वे २० कह्या तेहमाथि १ भूजपर वा. गत ४० नि पूर्ववत्. चौथी नर्क आगत १८ भेदनी ते पूर्वे १९ कह्या तेहमाथि १ खेचर वा. गत ४० नि पूर्ववत्. पांचमो नर्के आगत १७ भेदनि ते पूर्वे १८ कह्या तेहमांथी १ थलचर वा . गत ४० नि पूर्ववत्. छठी नर्के आगत १६ भेदनि ते १७ पूर्वे कह्या तेहमांथि १ उरपर वा. गत ४० नि पूर्ववत्. सातमी नर्के आगत १६ भेदनि ते १५ कर्मभूमि ने १ जलचरमच्छ, ए १६ ना प्रजाप्ता तेमां स्त्री वर्जीने. गत १० भेदनि ते ५ संज्ञीतिर्यचना अपजाप्ता ने प्रजातानि.दस भवनपति, १५ पर्माधामी, १६ वाणव्यंतर, १० जंभका. ए ५१ जातिना देवतामां आगत १११ भेदनि ते १०१ क्षेत्रना संज्ञीमनुष्य, ५ संज्ञीतियेच ५ असंज्ञीतिर्यंच ए १११ ना प्रजातानि. गत ४६ नि ते १५ कर्मभूमि, ५ संज्ञीतिर्यंच, ए २० ने पृथ्वी १, पाणि २, वनस्पति ३, ए २३ ना अम० ने प्रजातानि ८. दस ज्योतषी ने पहिला देवलोकमां आगत ५०भेदनि ते, १५कर्मभूमी, ५ संज्ञी तिर्यच ने ३० अकमभूमी ए ५० ना प्रजातानि.गत ४६ निपूर्ववत्. ९.बिजा देवलोकमां आगत ४० भेदनि ते पूर्वे ५० भेद कह्या तेहमाथि ५ हेमवय ने ५ एरणवय ए १० ना प्रजाप्ता वा . गत ४६ नि पूर्ववत्. १०. पहिला किल्विषीमां आगत, ३० भेदनि ते पूर्व ४० कह्या. तेहमाथि ५ हरिवास, ५ रमकवास ए १० ना प्रजाप्ता वा.गत ४६ नि पूर्ववत्, ११. त्रिजा देवलोकयो आठमा देवलोकसुधि ६ देवलोक, ९ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ४.३. araiतिक, २ किल्विषी, ए १७ जातिना देवतामां आगत २० भेदिनि ते १५ कर्मभूमी, ५ संज्ञीतिर्यंच, ए २० ना प्रजातानि. गत ४० नि ते पनर कर्मभूमी, पांच संज्ञीतिर्यच, एवीशना अम० प्रजा० एवं ४० ॥ १२. नवमां देवलेाकथि ते सर्वार्थसिद्धलगे ४ देवलोक, ९ ग्रैवेयक, ५ अनुत्तर विमान ए १८ मां आगत १५ कर्मभूमिना प्रजाप्तानि गत ३० नि ते पनर कर्मभूमीना अप्र० प्रजा० एवं ३० ।। १३. पृथ्वि, पाणि, वनस्पति ए ३ मां आमत २४३ भेदनि ते १०१ समुर्छिम मनुष्यना अप्रजाता, १५ कर्म भूमीनाः अप्र० ने प्रजाप्ता एवं १३१ ने ४८ भेदतिर्यचना एवं १७९ नी लट ने ६४ भेद देवतना ते १० भवनपति, १५ परमाधामी, १६ वाणव्यंतर, १० जंभका १० ज्योतषी एवं ६० ने २ देवलोक, एक किल्विषी एवं ६४ ना प्रजाप्ता एवं २४३ नि. गत १७९ लटनि. १४. तेउ वाउ ए २ मां आगत १७९ लटनि. गत ४८ भेदतिर्यंचनी. १५. त्रण विगलेंद्रियमां आगत १७९ लटनि गत पण १७९ लटनि. १६. असंज्ञीतिर्यचमां आगत १७९ लटना. गत ३९५ भेदनि ते ५६ अंतरद्विपा ने ५१ जातिमा देवता ते १० भवनपति, १५ परमाधामी, १६ वाणव्यंतर, १० जंभका ए ५१ जातिना देवता एवं सर्व मिलि १०७ भेद थया, अने १ पहिली नर्क एवं १०८ ना अप्र० ने प्रजाप्ता एवं २१६ अने १७९ लट सर्वमिली ३९५ भेदनि. १७. संज्ञीतिर्यचमां आगत. २६७ भेदनि ते ८१ भेद देवताना ते ९९ मांहिथि ४ देवलेाक, ९ ग्रैवेयक, ५ अनुत्तरविमान ए १९ वर्ज्या ने १७९ लट एवं सर्वमिलि २६० ने ७ नर्कना प्रजाप्ता एवं २६७ नि. पांचे त्रीयेचनी गत जुदी जुदी कहे छे. जलचरनी ५२७ नी ते ५६३ मांहिथि नवमा देवला Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ गतागतना बोल. कधी सर्वार्थ सिद्ध सुधि ए १८ ना अप्र० ने प्रजा० एवं ३६ वर्ज्या शेष ५२७ रह्या, थलचरनी गत ५२१ नी ते ५२७ मांहिथी पांचमी, छठी, सातमी ए ऋण नर्कना अम० प्रजा० ए छ वर्ज्या शेष ५२१ रह्या. उरपरनी गत ५२३ नी ते ५२७ मांहिथि छठी. सातमी, एबे नर्कना अप्र० प्रजा० ए चार वर्ज्या शेष ५२३ रह्या भुजपरनी गत ५१७ नी ते त्रीजी, चोथी, पांचमी, छठी, सातमी, ए पांचना अप्र० प्रजा० ए दस वर्ज्या शेष ५१७ रखा. खेचरनी गत ५१९ नी ते ५२७ मांहिथि चोथी, पांचमी. छठी, सातमी, ए चारना अप्र० प्रजा० ए आठ वर्ज्या शेष ५१९ रह्या. १८. समुर्छिम मनुष्यमां आगत १७१ भेदनि ते, १७९ लाटमांथि ८ तेउ, वाउना वर्ज्या, शेष १७१ नि. गत १७९ लटनि. १९. संज्ञीमनुष्यमां आगत २७६ भेदनि. ते १७९ लटमांहिथि तेउ, वाउना ८ वर्ज्या शेष १७१ रह्या अन ९९ जातिना देवतानामजाप्ता एवं २७० ने ६ नर्कना प्रजाप्ता सर्व मिलि २७६ नि. गत ५६३ भेदनि. २०. त्रीश अकर्मभूमीमां आगत २० भेदनि ते. १५ कर्मभूमी, ५ संज्ञीतिर्यच, ए २० ना प्रजातानि गत जुढ़ी जुदी कहे छे. ५ देवकुरु ५ उतरकुरुनि गत १२९ भेदनि ते १० भवनपति, १५ परमाधामी, १६ वाणव्यंतर, १० जंभका, १० ज्योतषी २ देवलेाक पहेलो बिजो ने १ किल्विषी ए ६४ जातिना देवताना अप्र० प्रजा० एवं १२८ नि. ५ हरिवास ५ रमकवास नि. गत १२६ नि ते पूर्वे १२८ भेद कला. तेमांहीथि पहेला कील्विषीना अप्रजा० प्रजा० ए २ भेद वर्ज्या ५ हेमवय, ५ एरणवयनि गत. १२४ भेदनि ते पूर्वे १२६ भेद कणा. तेहमांथ बिजा देवलेोकना अम० प्रजा० ए २ भेद वर्ज्या २१. छपन्न अंतरद्विपमां आगत. २५ भेदनि ते १५ कर्मभूमी, ५ संज्ञीतिर्यच, ५ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. असंज्ञीतिर्यंच ए २५ ना प्रजातानि, गत १०२ भेदनि ते, १० भवनपति, १५ परमाधामी, १६ वाणव्यंतर, १० जंभका, एवं ५१ ना अप्र० प्रजाप्ता सर्व मिलि १०२ भेद. २२. इति २४ दंडकनि गता गत समाप्तं. तिथंकरदेवमां आगत. ३८ भेदनि ते. १२ देवलोक, ९ लोकांतिक, ९ ग्रैवेयक, ५ अनुत्तरविमान ने पहेली ३ नरक एवं ३८ ना प्रजातानि. गत मोक्षनि. २३. चक्रवर्तिमां आगत ८२ भेदनि ते ९९ जातिना देवतामांहिथि १५ परमाधामी, ३ किल्विषी, ए १८ वा. शेष ८१ रथा ने १ पहेली नरक एवं ८२ भेदनि. गत संसार त्यागे तो देव तथा मोक्षनी अने चक्रवर्तिपणे मरे तो चौद भेदनी. ते ७ नरकना अप० ने प्रजाप्तानि एवं चाद. २४. बलदेवमां आगत. ८३ भेदनि ते, ८२ पूर्वे कह्या ते ने १ बीजी नरक वधी एवं ८३ नि. गत ७० भेदनि ते १२ देवलोक, ९ लोकांतिक, ९ ग्रैवेयक, ५ अनुत्तर विमान एवं ३५ना अप्र० प्रजाप्तानि एवं ७०. २५. वासुदेवमां आगत, ३२ भेदनि ते. १२ देवलोक, ९ लोकांतिक, ९ ग्रैवेयक ए ३० ने पहेली.२ नरक एवं ३२ नि. गत १४ भेदनि ७ नरकना अप्र० प्रजातानि. २६. केवलीमां आगत. १०८ भेदनि ते. ९९ भेदना देवता मांहियि १५ परमाधामी ने ३ किल्विषी ए १८ वा. शेष ८१ रह्या ने १५ कर्मभूमी, ५ संज्ञी तिर्यंच एवं १०१ तथा ४ नरक पहेली ने पृथ्वी, पाणी, वनस्पति, एवं १०८ नि. गत मोक्षनि. २७. साधुमां आगत २७५ भेदनि ते १७९ नि लटमांहीथि तेऊ, वाऊना ८ वा शेष १७१ रह्या ने ९९ जातिना देवता अने ५ नरक एवं २७५ नि. गत ७० भेदनि ते. १२ देवलोक, ९ लोकांतिक, ९ ग्रैवेयक, ५ अनुत्तर विमान एवं ३५ ना अप० प्रजाप्ता एवं Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ गतागतना बोल. ७० नी. २८. श्रावकमां आगत. २७६ भेदनी ते पूर्व २७५ कह्या ते अने एक छठी नरकवधि ए २७६ नि. गत ४२ भेदनि ते १२ देवलोक ने ९ लोकांतिक ए २१ ना अप्र० प्रजाप्तानी. २९. समदृष्टिमां आगत ३६३ भेदनि ते ९९ जाति देवताना प्रजाप्ता, १०१ समुर्छिम मनुष्यना अप्रजाप्ता, १०१ संज्ञी मनुष्यना प्रजाप्ता, १५ कर्मभूमीना अप्रजाप्ता, ७ नरकना प्रजाप्ता अने ४८ तिर्यचमाहिथि तेऊ वाऊना ८ वा. शेष ४० रह्या ते एवं सर्व थइने ३६३ नि. गत २२२ नि ते ८१ जातिना. देवता ते ९९ मांहीथि १५ परमाधामि ने ३ किल्लिषि ए १८ भेद वा. ने १५ कर्मभूमी, ५ संज्ञी तिर्यंच, ने ६ नरक एवं १०७ ना अप्र० प्रजाप्ता बसें चउद अने ३ विगलेंद्रिना अप० अने ५ असंज्ञी तिर्यंचना अप्र० एवं २२२ नि० ३०. मिथ्यातिमां आगत ३७१ भेदनि ते पूर्वे ३६३ कयां तेहमां तेउ, वाउना ८ वध्या. गत ५५३ भेदनि ते ५६३ भेदमांही थि ५ अनुत्तर विमानना अप्र० ने प्रजाप्ता ए १० वा शेष ५५३ नि. ३१. स्त्रीवेद, पुरुषवेद, एबेमां आगत ३७१ भेदनि ते मिथ्यातिनी परे. गतपुरुषनि ५६३ नि. स्त्रीवेदनि ५६१ नि ते सातमी नरकना २ भेद वा, ३२. नपुंसकवेदमां आगत २०५ भेदनि ते ९९ जाति देवताना प्रजाप्ता, १७९ नि लट ७ नरक ए २०५ नि. गत ५६३ भेदनि. ३३. नारकी देवता अपर्याप्ता मरे नहि माटे अपर्याप्ता मरती वखते गणवा नहि. इति गतागतना बोल संपूर्ण. पद, पुरुषवेद, पता ५६१ तिमिथ्यातिनी Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. अथ श्री गुणस्थानद्वार. गाथा. नाम, लवण, गुण ठिइ, किरिया, सत्ता, बंध, वेदेय, उदय, उदिरणा, चेव, निज्जरा, भाव, कारणा, १ परिसह, मग्ग, आयाय, जीवाय भेदे, जोग, उविऊग, लेस्सा, चरण, सम्मत्तं अप्पाबहुच्च, गुणठाणेहिं २ ४७ ए द्वार २२ नी गाथा २ कहि. हवे पहेला नामद्वार कहे छे. पहेलुं मिथ्यात्व गुणठाणुं. विजुं सास्वादान गु०, त्रिजुं समामिध्यात्व गु०, चाथुं अविरति सम्यक्त्वदृष्टि गु०, पांचमुं देशविरति गु०, छठु प्रमत्तसंजति गु०, सातमुं अप्रमत्तसंजति गु०, आठमुं नियट्टिबादर गु०, नवमुं अनियट्टिबादर गु०, दशमुं सुक्ष्मसंपराय गु०, इग्यारमुं उपशांतमाह गु०, बारमुं क्षिणमोह गु०, तेरसुं सजोगि केवल गु०, चउदमुं अजोगि केवल गुणठाएं. ए नामद्वार समाप्तं. हवे लक्षणगुणद्वार कहे छे. पहेला मिध्यात्व गुणठाणाना लक्षण कहे छे. श्रीवीतरागनि वाणीथी ओछु अधिक विपरीत शर्द्ध हे परुपे फरसे तेहने मिथ्यात्व कहिये. ओछी परुपणा ते केहने कहिये. जिम कोइ कहे जे जीव अंगुठा मात्र छे, तंडुल मात्र छे, शामा मात्र छे, दीपक मात्र छे, तेहने ओछी परुपणा कहिये १. अधिकी परूपणा ते केहने कहिये. एक जीव सर्व लोक ब्रह्मांड मात्रमां व्यापी रह्यो छे तेहने अधिकी परुपणा कहीये. २ विपरीत परुपणा ते केहने कहिये कोइ कहे जे पंच भूत थकि आत्मा उपना छे, अने एहने विनाशे जीव पण विणशे छे, ते जड छे, ते थकि चैतन्य उपजे विणशे इम कहे तेहने विपरीत परुपणा कहिये. ३. ए मीथ्यात्व इम नव पदार्थनुं विपरीतपणुं सरदहे परूपे फरसे Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुणस्थानद्वार. तेहने मीथ्यात्र कहिये, अने जैनमार्गे आत्मा अकृत्रिम अखंड अविनाशी नित्य छे, शरिर मात्र व्यापक छे तिवारे गौतम स्वामि वंदना करीने श्रीभगवंतने पूछता हवा. स्वामिनाथ ! ते मिथ्यात्वी जीवने सुं गुण निपनो ? तिवारे श्रीभगवंते कयं ते जीवरुप दडि ने कर्मरुप गेडिये करि ४ गति, २४ दंडक, ८४ लाख जावाजानि मांहि वारंवार परिभ्रमण करे पण संसारना पार पामे नहि १. हवे बिजा गुणठाणाना लक्षण कहे छे. जिम कोइ पुरुप खिरखांडगें भोजन जम्यो, तिवारपछि वमन कर्यु, तिवारे काइक पुरुषे पुछयु भाइ कांइ स्वाद रह्यो, तिवारे कहे जे थोडा स्वाद रह्यो, ते समान समाकत अने वम्यो ते समान मिथ्यात १. बिजु दृष्टांत कहेछे. जेहवो घंटाना नाद पहेलो गहेर गंभीर, पछि रणको रहि गयो, गहेर गंभीर समान समकित ने रणको रहि गयो ते समान मिथ्यात्व २. हवे त्रिजु दृष्टांत आंबानो. जीवरूप आंबो ने प्रणामरूप डाल, समकितरूप फल, ते मोहरूप वायरे करि, प्रणामरूप डालथि समकितरूप फल त्रुटयु, मिथ्यात्वरुप धरतीये आवि पडयु नथि विचमां छे, तिहांसधि सास्वादान समकित कहिये,अने जीवारे धरतीये आवि पडयु,तिवारे मिथ्यात्व ३. तिवारे गौतमस्वामि हाथ जोडि मान मोडि श्रीभगवंतने पुछता हवा, स्वामिनाथ ! ते जीवने सुंगुण निपना? तिवारे श्रीभगवंत कहेछे, कृष्णपक्षी हतो ते शुकलपक्षी थयो, अर्द्ध पुद्गल संसार भोगववो रह्यो, जिम कोइ पुरुषने माथे लाख क्रोडर्नु देणुं हतुं ते परदेश जइने कमाइ आव्यो, देणुं देतां एक अधेलिनुं देणुं रघु तेहनुं व्याज थयु, तेटलो संसार भोगववो रह्यो, सास्वादान समकित पांचवार आवे २. हवे त्रिजा गुणठाणानां लक्षण कहे छे. त्रिजुं मिश्रगुणठाणुं. ते बे Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. वस्तु मिलिने मिश्र श्रीखंडनो दृष्टांत. श्रीखंड जिम खाटो ने मिठो, मिठास. समान समकित ने खटास समान मिथ्यात्व, ते जिनमार्ग पण रुडा जाणे, तथा अन्य मार्ग पण रुडा जाणे. जिम काइक नगर बाहिर साधु महापुरुष पधार्या छे, तेहने श्रावक वांदवा जाय छे, तेहवामां मिश्रदृष्टिवालो मित्रामिल्यो, तिणे पुछयु जे किहां जाओछा ? तिवारे श्रावक कहे जे साधु महापुरुषने वांदवा जइये छीए, तिवारे मिश्रदृष्टिवालो कहे एहने वांदे शुं थाय ? तिवारे श्रावक कहे जे महालाभ थाय, तिवारे कहे जे हुं पण वांदवा आवं, इम कहिने मिश्रगुणठाणावाले वांदवाने पग उपाडया, तेहवामां विजो महामिथ्यात्वी मित्र मिल्यो,तेणे पुछयु के स्थाभणि जावछो ? तिवारे मिश्रगुणठाणावालो कहे जे साधु महापुरुषने वांदवा जइये छीए, तिवारे महामिथ्याति कहे जे एहने वांदे शुं थाय ? ए तो मेला घेला छे, इम कहिने भोलवि नांख्या अने पाछो वाल्यो, तिवारे साधुज्ञानिने श्रावके वांदिने पुछयु, जे स्वामि वांदवा पग उपाइयो तेहने शुं गुण निपनो ? तिवारे ज्ञानिगुरु कहे छे, जे काला अडद सरिखो हतो ते छडिदाल सरिखो थयो, कृष्णपक्ष टलिने शुक्लपक्षी थयो, अनादि कालना उलटो हतो ते सुलटो थयो, समकित सन्मुख थयो पण पग भरवा समर्थ नहि, तिवारे गौतम स्वामि हाथ जोडी मान मोडि वंदणा नमस्कार करिने श्रीभगवंतने पुछता हवा, स्वामिनाथ ! ते जोवने शुं गुण निपना? तेवारे श्रीभगवंत कहेछे, ते जीव ४ गती, २४ दंडकमां भमिने पण उत्कुष्टो देशे उणो अर्द्ध पुद्गल परावर्तनमा संसारनो पार पामशे ३. चाथु अविरतिसम्यक्त्व दृष्टिगुणठाणुं तेहना शुं लक्षण ? ७ प्रकृति ने क्षयोपशमा अनंतानुबंधि क्रोध, मान, माया, लोभ, सम्यक्त्वमोहनीय, मिथ्या Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० गुणस्थानद्वार. त्वमोहनीय, मिश्रमोहनीय, ए ७ प्रकृतिने कांइक उदय आवे तेहने क्षय करे अने सत्तामा दल छे तेहने उपशमावे तेहने क्षयोपशम सम्यकत्व कहिये. ते सम्यक्त्व असंख्याति वार आवे अने ७ प्रकृतिना दलने सर्वथा उपशमावे ढांके तेहने उपशमसम्यत्व कहिये. ते समकित पांच वार आवे अने ७ प्रकृतिना दलने सर्वथा क्षय करे तिवारे क्षायकसमकित कहिये. ते सम्यक्त्व १ वार आवे. चोथे गुणठाणे आव्यो थको जीवादिक पदार्थ द्रव्यथकि, क्षेत्रथकि, कालथकि, भावथकि, नोकारसी आदि छमासी तप जाणे सरदहे परुपे पण फरसि शके नहि. तिवारे गौतम- स्वामि हाथ जोडि मान मोडि श्रीभगवंतने पुछता हवा, स्वामिनाथ ! ते जीवने शुं गुण निपनो ? तिवारे श्रीभगवंत कहे गौतम ! ते जीव समकितव्यवहारपणे शुद्ध प्रवर्ततो ते जीव जघन्य त्रीजे भवे मोक्ष जाय, उत्कृष्टो पंदर भवे मोक्ष जाय. वेदक समकित एकवार आवे, एक समयनि स्थिति छे, पूर्वे जो आयुषनो बंध पडयो न होय तो ७ बोलमां बंध पाडे नहि. नरकनुं आयुष, भवनपतिनुं आयुष, तिर्यचनुं आयुष, वाणव्यंतरनुं आयुष, ज्योतिषीनुं आयुष, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, ए ७ बोलमां आयुषना बंध पाडे नहि ते जीव ८ आचार समकितना आराधि चतुर्विधसंघनि वाछलका परमहर्षभर भक्तिकरतो थको जघन्य पहेले देवलोके उपजे, उत्० बारमे देवलोके उपजे पन्नवणानि शाखे. पूर्व कर्मने उदये करीने व्रत पच्चखाण करो न शके पण अनेक वरसनि श्रमणोपाशकनि प्रवाना पालक कहिये. दशाश्रुतस्कंधे श्रावक कह्या छे ते माटे दर्शन श्रावकने अविरय समद्रष्टि कहिये ४ पांचमुं देशविरतिगुणठाणुं तेहना शुं लक्षण ? इग्यार प्रकृतिने क्षयोपशमावे ते ७ पूर्वे कहि ते अने अपत्याख्यानी Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. क्रोध, मान, माया, लोभ, एवं ११ प्रकृतिने क्षय करे तो क्षायकसमकित कहिये. अने ११ प्रकृ० ढांके उपशमावे तो उपसम समकित कहिये. अने ११ प्रकृतिने कांइक ढांके कांइक क्षय करे तेहने क्षयोपशम समकित कहिये. पांचमे गुणठाणे आव्याथको जीवादिक पदार्थ द्रव्यथि, क्षेत्रथि, कालथि, भावथि, नोकारसी आदी देइने छमासीतप जाणे सरदहे, परूपे शक्तिप्रमाणे फरसे, एक पच्चखाणथि मांडीने १२ व्रत ११ श्रावकनि पडिमां आदरे. जावत् संलेखणासुधि अनशन करि आराधे, तिवारे गैातमस्वामी हाथ जोडि मान मोडि श्रीभगवंतने पुछता हवा, ते जीवने शुं गुण निपनो? तिवारे श्रीभगवंते का, ज० त्रिजे भवे मोक्ष जाय, उ० १५ भवे मोक्ष जाय. ज० पहिले देवलोके उपजे, उन्० १२ मे देवलोके उपजे, तेने साधुना व्रतनि अपेक्षाये देशविरति कहिये, पण परिणामथि अत्तनि क्रिया उतरि गइ छे, अल्प इच्छा, अल्प आरंभ, अल्प परिग्रही, सुशिल, सुवति, धर्मिष्ट, धर्मति, कल्पउग्रविहारी, महासंवेगविहारी, उदासी, वैराग्यवंत, एकांतआर्य, सम्यगमागी, सुसाधु, सुपात्र, उत्तम, क्रियावादि, आस्तिक्य, आराधक, जैनमार्गप्रभावक, अरिहंतना शिष्य वर्णव्या छे, गीतार्थ जाणे छे, सिद्धांतनि शाख छे, श्रावकपणुं एक भवमा प्रत्येक हजारवार आवे ५. छठं प्रमतसंजतिगुणठाणुं तेहर्नु शुं लक्षण १५?प्रकृतिने क्षयोपशमावे ते ११प्रकृति पुर्वे कहि ते अने पच्चखाणावरणीय क्रोध, मान, माया, लोभ, एवं १५प्रकृतिने क्षयकरे तो क्षायिकसमकित कहिये. अने १५ प्रकृतिने ढांके तो उपसम समकित कहिये. अने कांइ ढांके ने कांइ क्षय करे तो क्षयोपशमसमकित कहिये. तिवारे गौतमस्वामि हाथ जोडि मान मोडि श्रीभगवंतने पुछता हवा. ते जीवने सं.गण निपना ? तेवारे श्री Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुणस्थानद्वार. भगवंते कर्जा जे ते जीव द्रव्यथि, क्षेत्रथि, कालथि, भावथि, जीवादिक नव पदार्थनो तथा नाकारसी आदि छमासि तप जाणे सरदहे परूपे फरसे. साधुपणुं एक भवमां नवसेंवार आवे ते जीव जघन्य विजे भवे मोक्ष जाय, उत्० १५ भवे मोक्ष जाय, आराधीक जीव जघ० पहिले देवलोके उपजे, उत्० अनुत्तरविमाने उपजे, १७ भेदे संजम निर्मल पाले, १२ भेदे तपस्या करे, पण जोग चपल, कषाय चपल, वचन चपल, दृष्टि चपलताना अंशछे. तेणे करिने यद्यपि उतम अप्रमादिथका रहेछे तोपण प्रमाद रहेछे. माटे प्रमादपणे करि तथा कृष्णादिक लेशा अशुभ जोग कोइक काले प्रणति प्रणमे छे. माटे कषाय प्रकृष्टमत्त थइ जाय छे. तेहने प्रमत्तसंजतिगुणठाणुं कहिये. सातमुं अप्रमत्तसंजतिगुणठाणुं तेहतुं शुं लक्षण ? पांच प्रमाद छांडे तिवारे सात मे गुणठाणे आवे ते, ५ प्रमादना नाम. गाथा मद,विषय, कषाया, निंदा, विगहा, पंचमा भणिया, एए पंच पमाया, जीवापाडंति संसारे, १ ए ५ प्रमाद छांडे अने १६ प्रकृतिने उपशभावे. १५ पूर्वे कहि ते अने संजलना क्रोध एवं १६. प्रकृतिने क्षयोपशमावे तेहने शुं गुण निपना? ते जीव जीवादि पदार्थ द्रव्यथि क्षेत्रथि,कालथि,भावथि तथा नोकारसि आदि देइने छमासी तपध्यान जुगतपणेजाणे. सरहदे परुपे फरसे,ते जीव जघन्य तेज भवे पक्ष जाय,उतकृष्टोत्रीजेभवे मोक्ष जाय. गति तो पाये कल्पातीतनि थाय,ध्यानने विषे अनुष्टानने विषे अप्रमत्त उद्यत थका रहेछ. तथा शुभ लेश्यापणेज करिने नथि प्रमत्त कषाय जेहने तेहने अप्रमत्त संजतिगुणठाणुं कहिये. आठमुं नियहि बाद्रगुणठाणुं तेहतुं शुं लक्षण ? १७ प्रकृति ने क्षयोपशमावे. १६ पूर्वे कहि ते अने संजलनो मान ए १७ प्रकृति ने क्षयोपशमावे तिवारे गौतमस्वामी हाथ जोडि मान मोडि श्रभगवंतने पुछता हवा Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिदांव प्रकरण संबह. स्वामीनाथ ते जीवने शुंगुण निपना? तिवारे श्रीभगवंते कह्यं परिणामधारा, अपूर्व करण जे काइकाले जीवने, कोइ दिने आव्यु नथि. तेश्रेणि जुगत जीवादिकपदार्थद्रव्यथि, क्षेत्रथि,कालथि,भावथि,नोकारसी आदि दइ छमासी तप जाणे,सरदहे परुपे फरसे तेजीव जघन्य तेज भवे मोक्ष जाय. उत्० त्रिजे भवे मोक्ष जाय. इहांथि श्रेणि २ करे. उपशमश्रेणि, ने क्षपकणि. उपशम श्रेणिवालो जीव ते मोहनीय कमनी प्रकृतिना दलने उपशमावतो इग्यारमा गुणठाणा मुधिजाय, पडिवाइ पण थाय, हायमान परिणामपण परिणमे, अने शपकश्रेणिवालो जीव ते मोहनीय कर्मनि प्रकृतिना दलने खपावतो शुद्ध मुलमाथि निर्जरा करतो नवमे दशमे गुणठाणे थइने बारमे गुणठाणे जाय, अपडिवाइज होय वर्द्धमान परिणाम परिणमे. हवे नियट्टिबादरनो अर्थ ते निवत्यो छे. बादर कषायथि, बादर संपराय क्रियाथि, श्रेणि करवे, अभ्यंतर परिणामे अध्यवसाय स्थिरकरवे,बादर चपलताथी निवृत्यो छे माटे नियट्टिबादरगुणठाणुं कहिये. तथा बिजुं नाम अपूर्व करणगुणठाणुं पण कहीये. श्यामाटे जे कोइ काले जीवे पुर्वे ए श्रेणि करि.नहति अने ए गुणठाणे पहिलंज करण ते पंडितवीर्यनु आवरण क्षयकरणरुप, करणपरिणामधारा,वर्द्धन रुप श्रेणि करे तेहने अपूर्वकरण गुणठाणुं कहिये. हवे नवमुं अनियट्टिवादरगुणठाणुं तेहनु शु लक्षण ? एकविश प्रकृतिने क्षयोपशमावे ते १७ प्रकृति पुर्वे कहि ते. अने संजलनि माया. स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद. एवं २१ प्रकृतिने क्षयोपशमावे तिवारे गौतमस्वामि हाथ जोडी मान मोडी श्रीभगवंतने 'पुछता हवा स्वामिनाथ ते जीवने शुं गुण निपनो.? तिवारे भगवंते का ते जीव जीवादिक पदार्थ तथा नाकारसी आदि देइने छमासी तप द्रव्यथि, क्षेत्रथि, Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुणस्थानद्वार. कालयि, भावयि निर्विकार अमायी विषयनिरवंछापणे जाणे सरदहे परुपे फरसे ते जीव जघन्य तेज भवे मोक्षजाय. उत्० त्रीजे भवे मोक्ष जाय. हवे अनियहि बादर ते सर्वथा प्रकारे निवा नथि. अंश मात्र हजि बादरसंपरायक्रिया रहि छे माटे अनियट्टिबादर गुणठाणुं कहिये. तथा आठमा नवमा गुणठाणाना शब्दार्थ घणा गंभीर छे ते अन्य पंचसंग्रहादिक ग्रंथ तथा सिद्धांतथि समजवा. दशमं सूक्ष्म संपरायगुगठाणुं तेहर्नु शुं लक्षण ? २७ प्रकृति ने क्षयोपशमावे, २१ प्रकृति पूर्वे कहि ते, अने हास्य १,रति २, अरति ३, भय ४, शोक ५, दुगंछा ६. एवं २७ प्रकृतिने क्षयोपशमावे तिवारे गौतमस्वामि हाथ जोडि मान मोडि श्रीभगवंतने पुछता हवा. स्वामिनाथ ते जीवने शुं गुण निपनो ?तिवारे भगवंते कयं ते जीव द्रव्यथि, क्षेत्रथि, कालथि, भावथि जीवादिक पदार्थ तथा नाकारसी आदी देईने छमासीतप,निरभिलाष,निर्वछक, निर्वेदकतापणे,निराशी, अव्यामोह,अविभ्रमपणे,जाणे सरदहे परूपे फरसे ते जीव जघन्य० तेजभवे मोक्ष जाय उत्० त्रीजे भवे मोक्ष जाय. सूक्ष्म थोडीक लगारेक पातलीसी संपरायक्रिया रहि छे तेहने सुक्ष्मसंपराय गुणठाणुं कहिये. इग्यारमुं उपशांतमोहगुणठाणुं तेहतुं शुं लक्षण ? २८ प्रकृति ने उपशमावे ते.२७ प्रकृति पूर्वे कहि ते, अने संजलनो लोभ १. एवं २८ मोहनीय कर्मनी प्रकृतिने उपशमावे सर्वथा ढांके, भस्म भारि प्रछन्न अग्निवत् तिवारे गौतमस्वामि हाथ जोडी मान मोडि श्रीभगवंतने पुछता हवा. स्वामिनाथ ते जीवने शुं गुण निपना? तिवारे श्रीभगवंते कधुं. ते जीव जीवादिक पदार्थ द्रव्यथि, क्षेत्रथि, कालथि, भावथि, नाकारसी आदि देइने छमासी तप वातराग भावे जथाख्यात चारित्रपणे जाणे सरदहे परूपे फरसे Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. एहवामां जो काल करे तो अनुत्तर वीमानमां जाय. पछि मनुष्य थइ मोक्ष जाय. अने जो सूक्ष्म लोभनो उदय थाय, तो कषाय अग्नि प्रकटे पछि पडे, दशमाथि पडे तो पहिला गुणठाणासुधि जाय. पण इग्यारमेथि चढवू तो नथि. उपशांत एटले ? उपशम्यो छे मोह सर्वथा. जले करी अग्नि ऊलव्यानिपरेनहि, पण ढांक्योछे माटे उपशांतमाह गुणठाणुं कहिये. बारसुं क्षीणमोह गुणठाणुं तेह-शुं लक्षण ? जे २८ प्रकृति ने सर्वथा खपावे, क्षपकश्रेणि, क्षायकभाव, क्षायकसमकित, क्षायकजथाख्यातचारित्र, करणसत्य, जोगसत्य, भावसत्य, अमायी, अकषायी, वीतरागी, भावनिग्रंथ, संपूर्ण संबुड, संपूर्ण भावितात्मा, महातपस्वी, महामुशिल, अमोही अविकारी, महाज्ञानी, महाध्यानी, वर्धमान परिणामी, अपडिवाइ थइ अंतर्मुहूर्त रहे ए गुणठाणे काल करवो नथि. पुनर्भव छे नहि छेहले समये पांच ज्ञानावरणिय, नव दर्शनावरणिय, पंचविध अंतराय क्षयकरणोधमकरि, तेरमा गुणठाणाने पहिले समये क्षयकरे केवल ज्योति प्रकटे माटे क्षोणतेक्षयकों छे मोह सर्वथा जेगुणठाणे, तेहने क्षीणमोह गुणठाणुं कहिये. तेरमुं सजोगी केवलि गुणठाणुं तेहर्नु लक्षण ? दश बोल सहित तेरमे गुणठाणे विचरे. सजोगी, सशरिरी, सलेशी, शुकललेशी, जथाख्यातचारित्र, क्षायकसमकित, पंडितवीर्य, शुकलध्यान, केवलज्ञान, केवलदर्शन, ए १० बोलसहित जघन्य अंतर्मुहुर्त उत्० देशेउणी पुर्वक्रोडिसुधि, विचरे घणा जोवने तारि प्रतिबोधि निहाल करिने बिना त्रिजा शुकलध्यानना पायाने ध्याइने चउदमे जाय. सजोगी ते शुभ मन, वचन, कायाना जोगसहित छे. बाहाज्य चलोपकरण छे. गमनागमनादिक चेष्टा शुभ सहित छे. केवलज्ञान, केवलदर्शन उपयोग Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुणस्थानद्वार. समयांतर अविछिन्नपणे शुद्ध प्रणमे माटे सजोगी केवलिगुणठाणुं कहिये. हवे चउदU अजोगी केवली गुणठाणुं तेहर्नु | लक्षण.? शुकलध्यानना चौथो पायो समुछिन्नक्रिय, अनंतर अप्रतिपाती, अनिवृतिध्याता मनजोग रुधि, वचनजोग रुधि, कायजोग रुधि, आन प्राण निरोध करि, रुपातित परमशुकलध्यान ध्याता. ७ बोलसहित विचरे, तेरमे १० बोल कह्या तेहमांथि सजोगी, सलेशी, शुफल लेशी, ए त्रण वर्जीने शेष ७ बोलसहित सकल गिरीना राजा मेरु तेहनि परे अडोल अचल स्थिर अवस्थाने पामे शैलेशी पणे रहि पंचलघु अक्षर उच्चार प्रमाण काल रहि. शेष वेदनीय, आयुष, नाम, गोत्र, ए ४ कर्म क्षीण करिने मुक्तिपद पामे. शरिर उदारिक, तेजस, कार्मण सर्वथा छांडिने समश्रेणि रुजुगति अन्य आकाशप्रदेशने न अवगाहतो अणफरसतो एक समय मात्रमा उर्द्धगति अविप्रहगतिये तिहां जाय. एरंडबीज बंधन मुक्तवत्, निर्लेप तुंबिवत्, कोदंड मुक्तबाणवत्, इंधनवनिमुक्तधुम्रवत् तिहांसिद्धक्षेत्रे जइ साकारो पयोगे सिद्ध थाय. बुद्ध थाय. परांगत थाय. परंपरगत थाय. सकल कार्य अर्थसाधि कृतकृतार्थ निष्ठितार्थ अतुल सुखसागर निर्मग्न सादिअनंत भागे सिद्ध थाय, ए सिध्ध पदनो भावस्मरण चिंतन मनन कदा काले मुझने होशे? शो घटि पल धन्य सफल होशे. हवे अजोगी ते जोगरहित केवलसहित विचरे तेहने अजोगी केवली गुणठाणुं कहिये. इति लक्षण गुणद्वार बीजो संपूर्ण २. हवे त्रिजो स्थितिद्वार कहे छे. पहेला गुणठाणानि स्थिति ३ प्रकारनि छे. अणादिया अपज्जवसिया ते जे मिथ्यात्वनि आदि नथि ने अंतपण नयि ते अभव्यजीवना मिथ्यात्व आश्रि१ अणादिया सपज्जवसिया ते जे मिथ्यात्वनि आदि नथि पण अंतछे ते भव्यजीवना मिथ्यात्व आश्रि, Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ५७ सादियासपजवसिया ते जे मिथ्यात्वनि आदि पण छे ने अंतपणछे पडिवाइ समद्रष्टिना मिथ्यात्वआश्रि. तेहनी स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त उतू० अर्द्धपुद्गल परावर्तन देशे उणी, पछि अवश्य समकित पामीने मोक्ष जाय. ३. बिजा गुणठाणानि स्थितिजघ० १ समयनी उत्० ६ आवलिकाने ७ समयनि.त्रिजा गुणठाणानि स्थिति ज० उ० अंतपुहूर्तनी चोथागुणठाणानि स्थिति ज. अंतर्मुहूर्तनी उ० ६६ सागरोपम झाझेरानी ते २२ सागरोपमनि स्थितिये ३ वार बारमे देवलेोके उपजे, त्रण पूर्वक्रेाडि अधिक मनुष्यना भव आश्रि जाणवि. तथा बेवार अनुत्तरविमानमा ३३ सागरोपमनि स्थितिये उपजे ३३ दु छासठ सागरोपम, ने ३ पूर्वक्रोडि अधिक मनुष्यना भव आश्रि जाणवि. पांचमा छठा तेरमा गुणठाणानि स्थिति ज० अंत० उ० देशेउणि ते साडा आठ वर्षे उणि पूर्वक्रेाडनि. सातमाथि ते इग्यारमा गु० सुधि ज०१ समय० उ० अंत० बारमा गु० स्थिति ज० उ० अंत० चउदमां गुणठाणानि स्थिति पांच इस्व अक्षर अ१ इ२ उ३ रु४ ल५ बोलवा प्रमाणे जाणवि इति विजो स्थितिद्वार समाप्तं ३. हवे चौथो क्रियाद्वार कहे छे. पहिले ने विजे गुणठाणे २४ क्रिया लाभे. इरियावहियाक्रियावर्जिने. विजे चौथे गु० २३ क्रिया लाभे. इरियावहिया ने मिथ्यात्वनि ए २ वजिने. पांचने गु० २२ क्रिया लाभे. मिथ्यात्व, अविरति, इरियावहिया ए ३ वर्जिने. छठे गुणठाणे २ क्रिया. आरंभिया, मायावत्तिया, ए २ लाभे. सातमे गुणठाणेथी ते दशमा गुणठाणा सुधी १ मायावत्तिया क्रिया लाभे. इग्यारमे, बारमे, तेरमे गुणठाणे १ इरियावहिया क्रिया लाभे. चउदमे । गुण० कोइ क्रिया लाभे नहि इति ४ था क्रियाद्वार समाप्त ४. Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ मुणस्थानद्वार. ___ हवे पांचमा सत्ताद्वार कहे छे. पहिलागुण ठाणायिते इग्यारमा गुणठाणा सुधि आठ कर्मनि सत्ता. बारमे ७ कर्मनि सत्ता.१ मोहनियकर्म वर्जिने, तेरमे, चउदमे गुण० ४ कर्मनि सत्ता, वेदनीय, आयुष, नाम, गोत्र, इति पचमो सत्ताद्वार समाप्तं ५. हवे छठो वंधद्वार कहेछे पहिला गुणठामाथि ते सातमा गुणठाणासुधि त्रिजुगुणठाणुं वर्जिने ८ कर्म बांधे,अने जो ७ बांधे तो आयुष्य वर्जिने. त्रिजे,आठमे,नवमे गु० ७ कर्म बांधे,आयुष वर्जिने. दशमे गुण० ६ कर्म बांधे, आयुष, ने मोहनीय ए २ वाजने. इग्यारमे, बारमे, तेरमे गुण०१ सातावेदनीय बांधे. चउदमे गुण अबंध० इति०६ ठो बंधद्वार समाप्तं. . हवे ७ मा वेद द्वारने ८ मा उदयद्वार भेला कहे छे. पहिला गुणठाणाथि ते दशमा गुणठाणासुधि ८ कर्म वेदे ने ८ नो उदय. इग्यारमे, बारमे ७ कर्म वेदे ने ७ नो उदय,मोहनीय वर्जिने. तेरमे चउदमे ४ कर्म वेदे ने ४ नो उदय. वेदनीय, आयुष, नाम, गोत्र, इति ७ मा वेद ने ८ मा उदयद्वार समाप्तं. हवे नवमा उदीरणाद्वार कहे छे. पहिला गुणठाणाथि मांडिने ७ मा गुणठाणासुधि ८ कर्मनी उदोरणा तथा ७ नी करे तो आयुष वजिने. आठमे, नवभे गुणठाणे७ कर्मनि उदीरणा ते आयुष वर्जिने, तथा ६ नि करे तो आयुष, मोहनीय, ए २ वर्जिने. दशमे ६ नि उदीरणा करे. आयुष मोहनीय, ए २ वर्जिने, अने ५ नि करे तो आयुष, मोहनीय, वेदनीय, ए ३ वर्जिने.इग्यारमे, बारमे गु० ५ नि उदीरणा, आयुष मोहनीय, वेदनीय ए ३ वर्जिने, तथा २ नि करे तो, नाम, गोत्र ए २ नि. तेरमे गुणठाणे २ कर्मनि उदीरणा. नाम, गोत्र, ए २ नि. चउदमे गुण० उदीरणा करे नहि. इति ९ मो उदीरणाद्वार समाप्त. चेवक० निश्चे. Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ५९ हवे १० मा निर्जराद्वार कहे छे. पहिलाथि ते ११ मा गुणठाणा. मुधि ८ कर्म नि निर्जरा. बारमे ७ कर्मनि निर्जरा मोहनीय वजिने. तेरमे, चउदमे ४ कर्मनि निर्जरा. वेदनीय, आयुष, नाम, गोत्र, ए ४. इति १० मा निर्जराद्वार समाप्तं. हवे इग्यारमा भावद्वार कहे छे. उदयभाव, उपशमभाव, क्षायकभाव, क्षयोपशमभाव, परिणामिकभाव, संनिवाइभाव. पहिले ने त्रिजे गुणठाणे ३ भाव. उदय, क्षयोपशम, परिणामिक. बिजे, चोथे, पांचमे, छठे, सातमे ने आठमेथि ते इग्यारमा गुणठाणा मुधि उपशम श्रेणिवालाने ४ भाव उदय, उपशम, क्षायोपशमने परिणामिक तथा कोइक उपशमने ठेकाणे क्षायकपण कहेछे अने ८ मांथि मांडिने बारमा सुधि क्षपकश्रेणिवालाने ४ भाव उदय, क्षयोपशम, क्षायक, . परिणामिक. तेरमे चउदमे गु० ३ भाव. उदय, क्षायक, परिणामिक. सिद्धमा २ भाव. क्षायक, परिणामिक. इति ११ मो भावद्वार समाप्त. हवे १२ मा कारणद्वार कहे छे. कारण ५ कर्मबंधना मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय, जोग. पहिले त्रिजे गु० ५ कारण लाभे. बीजे चौथे ४ कारण लाभे. मिथ्यात्व वर्जिने. पांचमे छठे गुण० ३ कारण लाभे. मिथ्यात्व, अविरति ए २ वर्जिने. सातमेथि ते दशमा गुणठाणासुधि २ कारण लाभे. कषाय, जोग, ए २ लाभे. इग्यारमे, बारमे, तेरमे १ कारण लाभे ते १ जोग चउदमे कोई कारण नथि. इति १२ मो कारणद्वार समाप्तं. हवे १३ मा परिसहद्वार कहेछे. पहिलाथि ते चौथा गुणठाणा मुधि यद्यपि परिसह २२ लाभे पण दुःखरुप छे. निर्जरारुप प्रणमे नहि. पांचमाथि ते ९ मा गुणठाणासुधि २२ परिसह लाभे. एक समये २० वेदे टाढना तिहां तापनो नहि. तापनो तिहां टाढनो Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुणस्थानद्वार. नहि. चालवानो तिहां बेसवानो नहि. बेसवानो तिहां चालवानो नहि. दशमे इग्यारमे बारमे १४ परिसह लाभे. आठ जे मोहनीय कर्मने उदये इता ते वा ते कहे छे. अचेलनो, अरतिनो, स्त्रीनो, बेशवानो, आक्राशनो,मेलनो,सत्कार पुरस्कारनो ए ७ चारित्र मोहनीय कर्मने उदय हता ते. ने ८ मो दसण परिसह दर्शन मोहनीयने उदय हतो ते ए ८ वजिने शेष १४ रह्या ते माहिला एक समये १२ वेदे टाढनो तिहां तापनो नहि. तापनो तिहां टाढनो नहि. चालवानो तिहां स्थानकनो नहि. स्थानकनो तिहां चालवानो नहि. तेरमे चउदमे गूणठाणे ११ परिसह लामे. पूर्वे १४ कह्या तेहमाथि प्रज्ञानो, अज्ञाननो ए वे ज्ञानावरणिय कर्मने उदय हता ते अने १ अलाभनो अंतराय कर्मने उदय हतो ते ए ३ वर्जिने शेष ११रह्या. ते माहिला एक समये ९ वेदे टाढना तिहां तापनो नहि. तापनो तिहां टाढनो नहि.चालवानो तिहां स्थानकनो नहि.स्थानकनो तिहा चालवानो नहि इति १३ मो परिसहद्वार समाप्तं १३. ___ हवे १४ मो मार्गणाद्वार कहे छे.पहेलेगुणठाणे मार्गणा ४.बाजे, चोथे,पांचमे,सातमे जाय.विजे गुण० मार्गणा१.पडे तो पहेले आवे पण चडवू नथिनिजे मागणा ४. पडे तो पहेले आवे अने चडे तो चोथे, पांचमे अने सातमे जाय. चोथे मार्गणा५. पडे तो पहेले विजे, त्रिजे आवे अने चडे तो पांचमे सातमे जाय. पांचमे मार्गणा५. पडे तो पहेले, बिजे, त्रिजे, चौथे आवे अने चडे तो सातमे जाय. छठे मार्गणा६. पडे तो पहेले, विजे, त्रिजे, चाथे, पांचमे आवे अने चडे तो सातमे जाय. सातमे मार्गणा३. पडे तो छठे, चोथे आवे अने चडे तो ८ मे जाय. आठमे मागगा ३. पडे तो सातमे, चोथे आवे चडे तो नवमे जाय. नवमे मार्गणा३. पडे तो आठमे, चोथे आवे Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ६१ अने चडे तो दशमे जाय. दशमे मागणा४. पडे तो नवमे, चोथे आवे चडे तो इग्यारमे बारमे जाय. इग्यारमे मार्गणार. काल करे तो अनुत्तर विमाने जाय, पडे तो दशमांथी पहेलासुधि आवे, चडवु नथि. बारमे मार्गणा १. तेरमे जाय. पडवुं नथि. तेरमे मार्गणा १ चादमे जाय पडवुं नथि. चउदमे मार्गणा एके नथि मोक्ष जाय. इति मार्गणाद्वार १४ मो सभाप्तं. हवे परम आत्माद्वार कहेछे. आत्मा ८ द्रव्यआत्मा, कषायआत्मा, योगआत्मा, उपयोगआत्मा, ज्ञानआत्मा, दर्शन आत्मा, चारित्रआत्मा, वीर्य आत्मा एवं ८. पहेले, त्रिजे गुण ० ६ आत्मा, ज्ञान ने चारित्र ए २ वर्जिने. विजे चोथे गुण ० ७ आत्मा चारित्र वर्जिने. पांच गुणठाणे पण ७ आत्मा देशथि चारित्र छे, छठेथि दशमा गुणठाणासुधि ८ आत्मा. इग्यारमे, बारमे, तेरमे गू० ७आत्मा कषाय वर्जिने चउदमे गु० ६ आत्मा कषाय ने जोग वर्जिने. सिद्धमां ४. आत्मा. ज्ञान आत्मा, दर्शन आत्मा द्रव्यआत्मा, उपयोग आत्मा. इति १५ मो आत्मद्वार समाप्तं. . हवे १६ मो जीवभेदद्वार कहे छे. पहेले गुणठाणे १४ भेद लाभे. विजे गुण ० ६ भेद लाभे. बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चरिंद्रिय, असंज्ञितिर्यच पंचेंद्रिय, ए ४ ना अपर्जाप्ता ने संज्ञी पंचेद्रियना अपर्णाप्तो ने पर्जाप्तो ए ६. त्रिजे गुण ० १ संज्ञी पंचेद्रियना पर्जाप्तो लाभे. वाथे गुणठाणे २ भेद लाभे. संज्ञी पंचेद्रियनो अपजप्तो ने पर्जाप्तो ए २. पांचमाथि ते १४ मा. गुणठाणासुधि १ संझी पंचेद्रियनो प्रर्जातो लाभे इति १६ मो जीवभेदद्वार समाप्तं १६. हवे १७ मोजोगद्वार कछे पहेले विजे ने चोथे गुणठाणे जोग १३ लाभे वे आहारकना वर्जिने. त्रिजे गुण ० १० जोग लाभे ते ४ मनना, Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुणस्थानद्वार. ४ वचनना, १ उदारिकनो, १ बैक्रेयनो ए १० लाभे. पांचमे मुणठाणे १२जोग आहारकना २ ने एक कार्मणनो ए ३ वर्जीने १२ लामे. छठे गु० १४ जोग लाभे १ कार्मणनो वजिने, सातमे गु० ११ जोग ते ४ मनना, ४ वचनना, १ उदारिकनो, १ वैक्रेयनो, १ आहारकनो एवं ११. आठमांथि मांडिने १२ मां गुणठाणासुधि जोग ९ लाभे ते ४ मनना ४ वचनना ने १ उदारिकनो ए ९. तेरमे गुणठाणे जोग ९ लाभे ये मनना बे वचनना ए ४ ने उदारिकनो, उदारिकनो मिश्र, कार्मणकायजोग, एवं ९. चौदमे गुण जोग नथि इति १७ मो जोगद्धार समाप्तं. हवे १८ मो उपयोगद्वार कहेछे. पहेले ने विजे गुणठाणे ६ उपयोग लाभे ३ अज्ञान ने ३ दर्शन एवं ६. विजे, चोथे, पांचमे गुण ६ उपयोग लाभे. ३ज्ञान, ३ दर्शन, एवं ६.छठाथि ते बारमा गुणठाणासुधि उपयोग ७ लाभे ते ४ ज्ञान ने ३ दर्शन एवं ७. तेरमे, चौदमे गुणठाणे तथा सिद्धमा २ उपयोग, केवलज्ञान ने केवलदर्शन इति १८ मो उपयोगद्वार समाप्त, ____ हवे १९ मो लेशाद्वार कहे छे. पहेलाथि ते छठा गुणठाणासुधि ६ लेशालाभे.सातमे गुण उपली ३ लेशा लाभे.आठमेथि मांडिने बारमा गुणठाणासुधी १ शुकल लेशा लाभे. तेरमे गुणठाणे १ परमशुकललेशा लाभे. चौदमे गु० लेशा नथि. इति १९ मो लेशाद्वार समाप्तं. हवे २० मो चारित्रद्वार कहेछे.पहेलाथि ते चौथा गुणठाणासुधि कोइ चारित्र नथि, पांचमे गुणठाणे देशथि सामायक चारित्र छे. छठे सातमे गुणठाणे ३ चारित्र लाभे. सामायकचारित्र, छेदोपस्थापनीयचारित्र, परिहारविशुद्धचारित्र ए ३ लाभे. आठमे, नममे गुणठाणे २ चारित्र लाभे. सामायक ने, छेदोपस्थापनीय. दशमे गुण० १ सुक्ष्मसंपराय Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. चास्त्रि लाभे. इग्यारमेथि ते चौदमा गुणठाणा- सुधि १ जथाख्यात चारित्र लामे. इति २० मो चारित्रद्वार समाप्त. . हवे२१मोसमकितद्वार कहेछे.पहेलेनेत्रिजे गुणठाणे समकितनथि बोजेगुणरसास्वादानसमकित लाभे.चाथेथितेसातमा गुणठाणामुधिष्ट समकित लाभे.उपशम,क्षयोपशम,वेदक,क्षायकसमकित. आठमे,नवमे गुणठाणे ३ समकित लाभे. उपशम, क्षयोपशम क्षायक. दशमे, इग्यारमे गुणठाणे २ समकित लाभे,उपशम ने क्षायक. बारमे, तेरमे, चौदमे गुणठाणे तथा सिद्धमां १ क्षायकसमकित लाभे. इति २१ मो समकितद्वार समाप्तं. हवे २२ मो अल्पबहुत्वद्वार कहेछे. सर्वथि थोडा इग्यारमा गुणठाणावाला, एक समये उपशमश्रेणीवाला ५४ जीव लामे. माटे १, तेथि बारमा गुणठाणावाला संख्यातगुणा, एक समये क्षपकश्रेणिवाला एकसो ने आठ जीव लाभे. माटे २. तेथि आठमा, नवमा, दशमा गुणठाणावाला संख्यातगुणा, जघन्य बशे उत् नवसें लाभे माटे ३. तेथि तेरमा गुणठाणावाला संखेजगुणा,जघ० बे क्राडि उत्० नव क्रोडि लाभे माटे ४, तेथि सातमां गुणठाणावाला संख्यातगुणा, जघ० बसेक्रोडि उत्० नवसें क्रोडि लाभे माटे ५. तेथि छठां गुणठाणावाला संख्यातगुणा, जघ० बे हजार क्रोडी उत्० नव हजार क्रोडि लाभे माटे ६. तेथि पांचमांगुणठाणावाला असंख्यातगुणा, तिर्यंच श्रावक भल्या माटे ७. तेथि बिजा गुणठाणावाला असंख्यातगुणा, ४ गतिमां लाभे माटे ८. तेथि त्रिजा गुणठाणावाला असंख्यातगुणा, ४ नतिमां विशेष छे माटे ९. तेथी चाथा गुणठाणावाला असंख्यातगुणा,घणि स्थितिछे माटे १०. तेथि चादमां गुणठाणावाला ने सिद्धभमवंतजि अनंतगुणा ११. तेथि पहेला गुणठाणवाला अनंत Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ गुणस्थानद्वार. गुणा एकेंद्रिय प्रमुख सर्व मिध्यादृष्टि छे माटे १२. इति २२ मो अल्पबहुत्वद्वार समाप्तं इतिण्ठागुणाना २२ द्वार समाप्तं. हवे भाव ६ कछे. उदयभाव, उपशमभाव, क्षायकभाव, क्षयोपशमभाव, परिणामिकभाव ने सन्निवाइभाव. हवे उदयभावनाना २ भेद. जीवउदय निष्पन्न ने अजीवउदयनिष्पन्न. जीव उदयनिष्पन्नमा ३३ बोल. पामे ४ गति, ६ काय, ६ लेश्या, ४ कषाय, ३ वेद एवं २३ ने मिथ्यात्व १, अज्ञान २, अविरति ३, असंज्ञिपणुं ४, अहार पणुं ५, छद्मस्थपणुं ६, सजोगिपणुं ७, संसार परियट्टा ८, असिद्ध ९, अकेवलि १० एवं ३३. हवे अजीव उदयनिष्पन्नना ३० बोल पामे ५ वर्ण २ गंध ५ रस ८ स्पर्श, ५ शरीर, ५ शरीरना व्यापार एवं ३०. एवं उभय मलिने ३३. ने ३० त्रेशठ भेद उभयभावना कह्या १. हवे उपशमभावे ११ बोल छे. चार कषायनो उपशम ४, रागना उपशम ५, द्वेषना उपशम ६, दर्शन मोहनियनो उपशम ७, चारित्र - मोहनियनो उपशम, एवं ८ मोहनियनि प्रकृति अने उवसमिया दंशणलद्धि ते समकित ९, उवसमियाचरित्तलद्धि १० उवसमियाअकषायछउमथवीतरागलद्धि एवं ११. हवे क्षायक भावे ३७ बोल छे. ५ ज्ञानावरणिय, ९ दर्शनावरणिय, २ वेदनीयनि, १ रागनि १ द्वेषनि, ४ कषार्यान, १ दर्शनमोहनीयनि १ चारित्रमोहनीयनि, ४ आयुषनि, २ नामनि, २ गोत्रनि, ५ अंतरायनि, एवं ३७ प्रकृतिने क्षय करे तेहने क्षायकभाव कहिये ते ९ बोल पामे. क्षायकसमकित क्षायकजथाख्यातचारित्र, केवलज्ञान, केवलदर्शन. अने क्षायकदानादि पांच लब्धि एवं ९ बोल. ३ हवे क्षयोपशमभावे ३० बाल छे. ४ ज्ञान प्रथमना ३ अज्ञान, ३ दर्शन, ३ दृष्टि, ४ चारित्र प्रथमना १ चरित्चाचरित ते श्रावकपणु पामे. १ आचार्य - Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. गणिनि पदवी १ चौद पूर्व ज्ञाननी प्राप्ति, ५ इंद्रियनिलब्धि, ५ दानादिलब्धि, एवं सर्व मिली ३० बोल ४. हवे परिणामिक भावनाना २ भेद सादिपरिणामिक, अनादिपारणामिक. सादि विणशे अनादि विणशे नहि.सादिपरिणामिकना अनेक भेद छे. जुनी सुरा, मदिरा, जुनो गोळ, तंदुल ए आदि ७३ बोल भगवतिनी शाखे छे. अनादिपरिणामिकभावना १० बोल धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय,पुद्गलास्तिकाय,जीवास्तिकाय,काल, लोक,अलोक, भव्य, अभव्य, एवं १०, ॥५॥ हवे सन्निवाइभावना २६ भांगा. १० द्विकसंजोगीना. १० त्रिकसंजोगीना, ५ चौकसंजोगीना, १ पंचसंजोगीना एवं २६ भांगा. एहनो विचार श्रीअनुयोगद्वार सिद्धांतथि जाणवो ६. हवे १४ गुणठाणा उपर १० क्षेपकद्वार उतारेछे. तेहमां प्रथम हेतुद्वार कहे छे. २५ कषाय, १५ जोग एवं ४० ने ६ काय, ५ इंद्रिय १ मन, ए १२ अव्रत,एवं ५२ ने ५ मिथ्यात्व एवं ५७ हेतु. पहेले गुणठाणे ५५ हेतु ते अहारकना २ वर्जिने. बिजे गु० ५० हेतु ते ५५ मांथि ५ मिथ्यात्व टल्या. त्रीजे गु० ४३ हेतु ते ५७ मांथि अनंतानुबंधि ४ उदारिकना मिश्र १. वैक्रेयनो मिश्र १, आहारकना २, कारमणना १, मिथ्यात्व ५, एवं १४ वा. शेष ४३.चोथे गु० ४६ हेतु ते पूर्व ४३ कह्या ते अने उदारिकनो मिश्र, वैक्रेयनोमिश्र, कार्मण कायजोग ए ३ वध्या सर्व मलिने ४६. पांचमे गुणठाणे ४० हेतु ते पूर्वे ४६ कह्या तेहमांथि अप्रत्याख्यानीनि चोकडि ४, ऋशकायना अव्रत कार्मणकायजोग. एवं ६ घटया. शेष ४० हेतु. छठे गुण० २७ हेतु पूर्वे ४० कडा तेहमाथि प्रत्याख्यानावरणियनि चाकडि ४ पांच स्थावरनो अवत ५ इंद्रियनो अव्रत ने एक मनना आव्रत १ एवं १५ वा. Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ गुणस्थानद्वार शेष २५ रह्या ने आहारकना २ वध्या एवं सर्व मलि २७ हेतु. सातमे गुण ० २४ हेतु ते पूर्वे २७ कह्या तेहमाथि उदारिकमिश्र, वैक्रेयमिश्र, आहारकमिश्र ए ३ व शेष २४ हेतु आठमे गुण ० २२ हेतु ते पूर्वे २४ ह्या तेहमाथि वैक्रेयनेा, आहारकना, ए २ व शेष २२ हेतु. नवमे गुण० १६ हेतु ते पूर्वे २२ कला तेहमांथि हाथ, रति, अरति, भय, शोक, दुर्गेछा, ए छ वर्ज्या. शेष १६ हेतु. दशमे गुण ० १० हेतु ते ९ जोग ने १ संजलना लाभ एवं १० हेतु. इंग्पारमे, बारमे गुण० ९ हेतु ते ९ जोग जाणवा. तेरमे गुण ० ७ हेतु ते ७ जाग जाणवा. चौदमे गुण० हेतु नथि. इति पहिला हेतुद्वार समाप्तं. हवे बीजो दंडक द्वार कहेछे. पहिले गुण० २४ दंडक, बिजे गुण० १९ दंडक, ते ५ स्थावरना वर्ज्या. त्रिजे चाथे गुण० १६ दंडक ते ३ विकलेंद्रिय वर्ज्या पांचमे गुण० २ दंडक. संज्ञिमनुष्य, संज्ञितिर्यंच ए २. छठाथि ते चौदमा गुणठा० सुधि १ मनुष्यनेा दंडक. इति २ दंडकद्वार समाप्तं. जीवाजेोनिद्वार कहे छे. पहेंले गुण ० ८४ लाख जीवा जोनि. बिजे गुण ० ३२ लाख ते एकेंद्रियनि वर्जि. त्रिजे, चाथे गुण ० २६ लाख जीवा जोनि पांचमे गुण० १८ लाख जीवा जोनि. छठाथि ते १४ मा गुणठाणा सुधि १४ लाख जीवा जोनि इति त्रिजेा जोनिद्वार समाप्तं. हवे ४ थे। अंतरद्वार कहेछे. पहिले गुण ० जघ० अंतरमुहूर्त्त उतू ०६६ सागर झाझेरानुं अथवा १३२ सागर झांझेरानुं ते ६६ सागर चाथे गुण रहे, अंत० त्रीजे गु० रहि पाछा चौथे गुण ० ६६ सागर रहि मिथ्यात्वे आवे. बीजाथि मांडिने इग्यारमा गुणठाणा सुधि ज० Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ६७ अंत अथवा पल्यनो असंख्यातमो भाग ते एटला काल विना उपसम श्रेणीकरिने पडे नहीं उत्० अर्द्धपुद्गल देशे उणुं, बारमे तेरमे ने चौदमे गुण० आंतरं नथि. ए एक जीवआश्रि इति ४ अंतरद्वार समाप्त. __ हवे ५ मो ध्यानद्वार कहेछे पहेले, बिजे, त्रिजे गुण० २ ध्यान पहेला, चौथे, पांचमे गुण० ३ ध्यान पहेला. छठे गुण० २ ध्यान आर्त, ने धर्म ध्यान. सातमे गुण. १ धर्मध्यान०. आठमेथि मांडिने चौदमा गुण०१ शुकलध्यान. इति ५ मो ध्यानद्वार समाप्त. हवे छठो फरसनाद्वार कहेछे. पहेलं गुणठाणुं १४ राजलोक स्पर्शे. विजुं गुण० हेटुं पंडगवनथि ते ६ ठि नरक लगे फरसे तथा उंचं अधोगामनी विजयथि ते ९ ग्रैवेयकसुधि फरसे. त्रिजु गुण. लोकना असंख्यातमा भाग फरसे.चोयुं गुण अधोगामनी विजयथि १२मा देवलोफसुधि फरसे अथवा पंडगवनथि छठी नरक सुधी फरसे. पांचमुं गुण. पण इमन अवोगामनी विजयथि १२ मा देवलोक सुधि फरसे. छठाथि ते इग्यारमा गुणठाणावाला अधोगामनी विजयथि ५ अनुत्तरविमानसुधिफरसे. वारसुं गुण० लोकना असंख्यातमो भाग फरसे. तेरसुं गुण० सर्वलोकफरसे, चैदमु गुण. लेोकना असंख्यातमाभाग फरसे इति ६ ठो फरसनाद्वार समाप्त. हवे तिर्थकर गात्र ४ गुणठाणे बांधे. चोथे, पांचमे, छठे ने सातमे, ए ४ गुणठाणे बांधे शेष गुणठाणे न वांधे. तिर्थकर देव ९ गुणठाणा फरसे ते ४, ६, ७, ८, ९, १०, १२, १३, १४. ए ९ फरसे इति ७ मो द्वार समाप्तं. गुणठाणा १४ मां १, ४,५६, १३. ए ५ शास्वता, शेष ९ गुण० अशास्वता. इति आठमो द्वार समाप्त. गुणठाणा १४ मा १,२,३,४,५,६,७, ए ९ गुण० ६ संघयण. नात. Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोहोटो वासठियो. आठमाथि ते १४ मा गुणठाणा सुधि एकवज्रऋषभ नारायसंघयण. इति ९ मा द्वार समाप्त आर्याजी, अवेदि, परिहारविशुद्धचारित्र वंत, पुलाक लब्धिवंत, अप्रमादि साधु, चौद पुर्वी साधु अने आहारकशरीर ए ९ नु कोइ देवता साहारणकरि शके नहि. इति १० मा द्वार समाप्त. इति क्षेपक द्वार समाप्तं इति गुणठाणाद्वार समाप्तं. अथ श्री मोहोटो बासठियो. गाथा॥ जीव, गइ, इंद्रिय, काए; जोग, वेय, कसाय, लेस्सा; सम्मत्तं, नाण, दंसण; संजय, उवऊग, आहारे;॥१॥ भासग, परित्त, पज्जती; सुहूम, सन्नि, भवथि, चरिमेय; जीवेयखेत्ते, बंधे; पुग्गलए, महादंडएचेव;॥२॥ ____उपली २ गाथानो अर्थ विस्तारी कहे छे.. १ समुच्चय जीवमा जीवना भेद १४. गुणठाणा १४. जोग १४. उपयोग १२. लेशा ६. इति प्रथम द्वार. १ नरक गतिमां जीवना भेद ३, संज्ञीनो अप्र० ने प्रजाप्तो, असंज्ञी पहेली नरकनो अप्र० ए ३. गुण ४ प्रथम, जोग ११, ते ४ मनना, ४ वचनना, १ वैक्रेय, वैक्रेयना मिश्र, कार्मणकायजोग एवं ११.उपयोग ९.३ ज्ञान, ३ अज्ञान, ३ दर्शन.लेशा ३ प्रथमनी. २. तिर्यंचनि गतिमा जीवना भेद १४. गुण० ५ प्रथमना. जोग १३,आहारकनार वर्जिने.उप०९.३ ज्ञान,३ अज्ञान,३ दर्शन लेशा ६. ३.तिर्यंचणीमां जोवना भेद २ संज्ञीनो अम० ने प्रजातो, गुण. ५ प्रथमना, जोग १३. उप० ९. ज्ञान३. अज्ञान३. दर्श०३ लेसा६. Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ४. मनुष्यनी गतिमां जीवना भेद ३ संज्ञीनो अप० ने प्रजातो. तथा सुछिममनुष्यना अप्र० गुण०१४.जोग०१५.उप०१२. लेसा६. ५. मनुष्यणीमां जीवना भेद २ संज्ञीना. गुण० १४. जोग १३ आहारकना ३ वर्जिने. उप १२. लेशा ६. ६. देवतानि गतिमां जीवना भेद ३ संज्ञीनो अप्र० १ ने मजातो २असंज्ञीनो अप० ए ३. गुण० ४ पहिला. जोग ११,४ मनना, ४ वचनना, २ वैक्रेयना, १ कार्मणनो. एवं ११ उप० ९. लेशा ६. ___७. देवांगनामां जीवना भेद २. संज्ञीनो अप्रजातो १ ने प्रजाप्तो २. गुण० ४ प्रथमना. जोग ११, ४ मनना ४ वचनना, २ वैक्रेयना ने १ कार्मणनो एवं ११. उपयोग ९. लेशा ४ प्रथमनी. ८. सिद्धगतिमा जीवना भेद नथि. गुणठाणा नथि. जोग नथि. उपयो० २, केवलज्ञान, केवलदर्शन. लेशा नथि. एहना अल्पबहुत्व. सर्वथि थेाडि मनुष्यणी. तेहथि मनुष्य समुछिम भेलवता असंख्यातगुणा, तेहथी नारकी असंख्यातगुणा, तेहथी तिर्यचणी असंख्यातगुणि,तेहथि देवता असंख्यातगुणा, तेहथि देवी संख्यातगुणी, तेहथि सिद्ध भगवंत अनंतगुणा, तेहथि तिर्यंच वनस्पति भेलवतां अनंतगुणा, इति बिजो द्वार, १. सइंदियमांजीवनाभेद १४. गुण० १२. प्रथमना, जोग १५. उपयोग १०. केवलज्ञान, केवलदर्शन ए २ वर्जीने. लेशा ६. २. एकेंद्रियमा जीवना भेद ४. सूक्ष्म एकेंद्रियनो अपजाप्तो ने प्रजातो. बादरएकेंद्रियनो अप्रजाप्तो ने प्रजातो. गुण० १ प्रथमनु. जोग ५ उदारिक, उदारिकनो मिश्र, वैक्रेय, वैक्रेयना मिश्र, कार्मणकायजोग, उपयोग ३. बे अज्ञान ने १ अचक्षु दर्शन. लेशा ४. ५. बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चउरिद्रिय, ए ३ मां जीवना भेद २. Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोटा बासठिया. पोतपोताना अमजाप्तो ने प्रजाप्तो गुण० २ पहेला. जोग ४. २ उदारिकमा, १ कार्मणना, ने १ व्यवहार वचननो एवं ४. उपयोग इंद्रिय इंद्रियमां ५, २ ज्ञान, २ अज्ञान, ने १ अचक्षुदर्शन एवं ५ अने चउरिंद्रियमां ६ ते १ चक्षुदर्शन वध्युं एवं ६. लेशा ३. ६. पंचेंद्रिय जीवना भेद ४. संज्ञिना अप्रजाप्तो ने प्रजाप्तो, असंज्ञीना अप्रजाप्तो ने प्रजाप्तो एवं ४ गुण० १२ प्रथमना. जोग १५. उपयोग १० केवळज्ञान, केवलदर्शन. ए २ वर्ज्या. लेशा ६. ७० ७. अणिदियामां जीवना भेद १. संज्ञिना प्रजातो. गुणठाणा २ तेरमुं ने चउदमुं. जोग ७. २ मनना ते सत्य मन ने व्यवहार मन, २ वचनना ते सत्यवचन ने व्यवहारवचन एवं ४. अने उदारिक, उदारिकन मिश्र ने कार्मणकायजोग ए ७. उपयोग २. केवलज्ञान, केवलदर्शन. लेशा १ शुकल. एहनाअल्पबहुत्व सर्वथि थोडा पंचेंद्रिया, तेहथी चउरिंद्रिया विशेषाहिया, तेहथि तेइंद्रिया विशेषाहिया, तेहथी वे इंद्रिया विशेषाहिया, तेहथी अणिं दिया अनंतगुणा, तेहथि एकेंद्रिया अनंतगुणा, तेहथि सइंद्रिया विशेषाहिया. इति त्रिजेोद्वार समाप्तं. १. सकायामांजीवनाभेद १४. गुण०१३. जोग १४. उप० १२. लेशा६. ४. पृथ्वीकाय, अपकाय, वनस्पतिकाय ए ३ मां जीवना भेद ४. गुण० १. जोग ३. उप० ३. लेशा ४. ६. ते काय, वाकाय. ए २ मां जीवना भेद ४ गुण० १. जोग मां ३ नेवामां ५ ते. २ वैक्रेयना वध्या. उप० ३. लेशा ३. ७. ऋशकायमां जीवना भेद १० ते ४ एकेंद्रियना वर्ज्या. गुण० १४. जोग १५. उपयोग १२. लेशा ६. ८. अकायामां जीवना भेद नाथ. गुण० नथि. जोग नथि. Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. उप० २, लेशा नथि. एहनो अल्प बहुत्व सर्वथी थोडा त्रसकाया, तेहथि तेउकाया असंख्यातगुणा, तेहथि पृथ्वीकाया विशेषाहिया, तेहथि अपकाया विशेषाहिया, तेहथि वाउकाया विशेषाहिया, तेहथी अकाया अनंतगुणा, तेहथि वनस्पतिकाया अनंतगुणा, तेहथि सकायाविशेषाहिया, इति चोथो द्वार समाप्त.. १. सजोगीमां जीदना भेद १४.गुण० १३. उपल्युं एक नही. जोग १५. उप० १२. लेशा ६. २. मनजोगीमां जीवनो भेद १. संज्ञीनो प्रजातो. गुण० १३. जोग १४. एक कार्मणनो वर्जिने. उपयोग १२. लेशा ६. . ३. वचनजोगीमां जीवना भेद ५. बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चउरिद्रिय, असंज्ञीपंचेंद्रिय, ने संज्ञीपंचेंद्रिय ए ५ ना प्रजाप्ता. गुण० १३. जोग १४. कार्मणनो वर्जिने उप० १२. लेशा ६. ४. कायजोगीमां जीवना भेद १४. गुण० १३. जोग १५. उप० १२, लेशा ६. ५. अजोगीमां जीवनो भेद १ संज्ञीनो प्रजातो. गुणठाणुं १ चौदसुं. जोग नहि. उपयोग २ केवल ज्ञान ने केवलदर्शन. लेशा नथि. एहनो अल्पबहुत्व सर्वथि थोडा मन जोगी, तेहथि वचन जोगी असंख्यातगुणा, तेहथि अजोगी अनंतगुणा, तेहथि कायजोगी अनंतगणा, तेहथि सजोगी विशेषाहिया. इति पांचमो द्वार. १. सवेदीमां जीवना भेद १४. गुण० ९. प्रथमना जोग १५. उ० १० केवलज्ञान ने केवलदर्शन ए बे वर्जिने, लेशा ६, ३. स्त्रीवेद, पुरुषवेद, ए २ मां जीवना भेद २ संज्ञीमा. गुण०९ जोग पुरुषवेदमां १५ अने स्त्रीवेदमां १३ ते अहारकना चे बजिने उप० १०. लेशा ६. Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोहोटो वासठियो. ४. नपुंसकवेदमां जीवना भेद १४. गुण० ९. जोग १५. उपयोग १०. केवलज्ञान १ केवलदर्शनवर्जिने. लेशा ६. . ५. अवेदीमां जीवनो भेद १ संज्ञीनो प्रजाप्तो गुण० ६ नवमाथि ते १४ मां सुधि. जोग ११. ४ मनना, ४ वचनना, २ उदारिकना ने, १ कार्मणनो एवं ११. उपयोग ९. ३ अज्ञान वर्जिने. लेशा १ शुकल. एहना अल्पबहुत्व सर्वथि थोडा पूरुषवेदी, तेहथि स्त्रीवेदी संख्यातगुणी, तेहथि अवेदी अनंतगुणा, तेहथि नपुंसकवेदी अनंतागुणा, तेहथि सवेदी विशेषाहिया. इति छठो द्वार समाप्तं. १. सकषायीमां जीवना भेद १४.गुण०१० प्रथमना.जोग१५. उपयोग १० केवलज्ञान, केवलदर्शन, वर्जिने. लेशा ६. ४. क्रोध, मान, माया, ए ३ मां जीवना भेद १४. गुण ९. जोग १५. उपयोग १०. लेशा ६. . ५. लोभकषायीमा जीवना भेद १४. गुणठाणा १० पहेला. जोग १५. उपयोग १०. लेशा ६. ३. अकषायीमां जीवना भेद १. संज्ञीनो प्रजातो. गुण० ४ उपरना. जोग ११. ४ मनना, ४ वचनना, २ उदारिकना, १ कार्मणना एवं ११. उपयोग ९. ५ ज्ञान, ४ दर्शन, एवं ९. लेशा ६. एहनो अल्पबहुत्व सर्वथि थोडा अकषायी. तेहथि मानकषायी अनंतगुणा. तेहथि कोहकषायी विशेषाहिया. तेहथिमायाकषायी विशेषाहिया. तेहथि लोभकषायी विशेषाहिया. तेहथि सकषायी विशेषाहिया. इति सातमा द्वार समाप्तं. १. सलेशीमां जीवना भेद १४. गुण० १३. जोग १५. उप० १२. लेशा ६. ४. कृष्ण, निल, कापुत, ए ३ लेशामां जीवना भेद १४. गुण Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ठाणा ६ प्रथमना. जोग १५. उपयोग १०. बे केवलना वा. लेशा पातपातानि. ५. तेजु० लेशामां जीवनां भेद ३. संज्ञिनो अप्रजातो, प्रजातो. बादर एकेंद्रियना अप्रजातो. गुण० ७ प्रथमना. जोग १५. उपयोग १०. लेशा १ तेजु. ६. पद्मलेशीमां जीवना भेद २ संज्ञिना. गुण ७ प्रथमना जोग १५. उपयोग १०. लेशा १ पद्म. __७, शुकललेशीमा जीवना भेद २ संज्ञिना, गुण० १३ प्रथमना, जोग १५. उपयोग १२. लेशा १ शुकल. ८, अलेशीमांजीवनो भेद १ संज्ञिनो प्रजातो. गुण०१चौदमुं. जोग नथि. उपयोग २. केवलज्ञान ने केवलदर्शन. लेशा नथि. एहनो अल्पबहुत्व सर्वथि थोडा शुकललेशी,तेहथि पद्मलेशी संख्यातगुणा, तेहथि तेजुलेशोसंख्यातगुणा, तेहथि अलेशी अनंत गुणा, तेहथि कापुतलेशी अनंतगुणा,तेहथि निललेशी वीशेषाहिया,तेहथि कृष्णलेशी विशेषाहिया, तेहथि सलेशी विशेषाहिया. इति ८ मो द्वार. १. समुचय सम्यक्तदृष्टिमां जीवना भेद ६, बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चरिद्रिय, असंज्ञीपंचेंद्रिय, ए ४ ना अप्रजाप्ता अने संज्ञीपंचेंद्रियनो अपजाप्तो ने प्रजातो. एवं ६. गुण० १२ पहेलं, त्रिजु वर्जिने. जोग १५. उपयोग ९. ३ अज्ञान वजिने. लेशा ६. २. सास्वादान सम्यक्तदृष्टिमां जीवना भेद ६. गुण० बिजु. जाग १३आहारकना २ वजिने.उप०६.३ ज्ञान. ३ दर्शन. लेशा ६. ३. उपशम सम्यक्तद्दष्टिमा जीवना भेद २ संज्ञीना. गुण ८ चोथाथि ११मां सुधि. जोग १५. उप०७. ४ ज्ञान,३ दर्शन.लेशा ६. ५. क्षयोपशम ने वेदकसम्यक्तदृष्टिमां जीवना भेद २ संज्ञीना. Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ मोहोटो बासठिया. गुण० क्षयोपसम सम्यक्तदृष्टिमा ४ थी नवमा सुधि अने वेदकमां ४ थी सातमा सुधी. जोग १५. उप० ७, लेशा ६. क्षायक सम्य० जीवना भेद २ संज्ञीना. गुण० ११. चोथाथि ते १४ मां सुधि. जोग १५. उपयोग ९.३ अज्ञानवर्जिने. लेशा ६. ७. मिथ्यात्व दृष्टिमां जीवना भेद १४. गुण० १ प्रथम. जोग १३ आहारकना २ वर्जिने. उपयोग ६.३ अज्ञान ३ दर्शन. लेशा ६. ८. समामिथ्यात्वदृष्टिमां जीवनो भेद १. संज्ञिनोपजातो, गुण० १ त्रिजुं. जोग १०. ४ मनना, ४ वचनना, १ उदारिकना १ कार्मणना एवं १०. उप० ६. लेशा ६. एहनो अल्पबहुत्व सर्वथि थोडासास्वादान समकिति, तेहथि उपसम समकिति संख्यातगुणा, तेहथि मिश्रदृष्टी संख्यातगुणा,तेहथि क्षयोपशम समकितिअसंख्यातगुणा, तेहथि वेदकसमकिति संख्यातगुणा, तेहथि क्षायक समकित अनंतगुणा, तेहथि समुचयसमकिति विशेषाहिया, तेहथि मिथ्यात्वदृष्टि अनंतगुणा. इति ९ मो द्वार समाप्त. १. ससुचयज्ञानिमां जीवना भेद ६, बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चारद्रिय, असंज्ञीपंचेंद्रिय, ए ४ ना अप्रजाप्ता ने संज्ञीनो अप्रजाप्तो ने प्रजाप्तो एवं ६. गुण० १२ पहेलं,त्रिजु वजिने. जोग१५.उपयोग९.५ज्ञान ने ४ दर्शन, लेसा ६. ३. मतिज्ञाना, श्रुतज्ञानोमा जीवना भेद ६. गुण० १० पहेलं, त्रिजु, तेरमुं, चौदमुं वजिने. जोग १५, उप० ७. लेशा ६. ४. अवधिज्ञानीमां जीवना भेद २ संज्ञीना. गुण १०. जोग१५ उपयोग० ७. लेशा० ६. ५. मनपर्थवज्ञानीमां जीवनो भेद १ संज्ञीनो प्रजातो गुण० ७ छाथिःबारमा सुधि. जोग १४ कार्मणनो वर्जिने. उप०७ लेसा६. Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ७५ ६. केवलज्ञानामां जीवना भेद १ संज्ञीना प्रजाप्तो. गुण० २ तेरमुं ने १४ मुं. जोग ७. उपयोग २. लेशा १ परम शुकल. ७. अज्ञानीमां जीवना भेद १४. गुण २ पहेलुं ने त्रिजुं. जोग १३ आहारकना २ वर्जिने. उप० ६, ३ अज्ञान, ३ दर्शन. लेशा ६. ९. मतिश्रुत अज्ञानीमां जीवना भेद १४. गुण० २ पहेलुं ने त्रिजुं. जोग १३. उपयोग ६. लेशा ६. १०. विभंग अज्ञानीमां जावना भेद २ संज्ञीना. गुण २ पहेलुं ने त्रिजुं. जोग १३. उप० ६. लेजा० ६. एहना अल्पबहुत्व सर्वथि थोडा मनपर्यवज्ञानी, तेहथि अवधिज्ञानी असंख्यात गुणा, तेह थि मतिज्ञानी ने श्रुतज्ञानी माहेोमांहि तुल्य ने विशेषाहिया तेहथि विभंग अज्ञानी असंख्यात गुणा, तेहथि केवलज्ञानी अनंतागुणा, तेहथि ज्ञानी विशेषाहिया, तेहथि मति श्रुतअज्ञानी माहामांहितुल्यने अनंतगुणा, तेहथि अज्ञानी विशेषाहिया. इति १० मे द्वार समाप्तं. १. चक्षुदर्शनमां जीवना भेद ६. चउरिंद्रिय, असंज्ञि पंचेद्रिय, संज्ञी पंचेद्रिय, ए ३ ना अप्रजाप्ता ने प्रजाप्ता गुण० १२ प्रथमना जोग १४ कार्मणनेोवर्जिने. उप० १० केवलना २ वर्ज्या लेशा ६. २. अचक्षुदर्शनमां जीवना भेद १४. गुण० १२. जोग १५. उप० १०. लेशा ६. ३. अवधिदर्शनमां जीवना भेद २. गुण० १२. जे ग १५. उप० १०. लेशा ६. ४. केवलदर्शनमां जीवनेो भेद १. गुण० २. तेरसुं, चौदमुं. जेाग ७. उप० २. लेशा १. एहना अल्पबहुत्व सर्वथि थोडा अवधि दर्शनी, तेहथि चक्षुदर्शनी असंख्यातगुणा, तेहथि केवलदर्शनी अनंतगुणा. तेहथी अचक्षु दर्शनी अनंतगुणा. इति ११ मो द्वार समाप्तं. Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ मोहोटो बासठियो. १. संजतिमां जीवनो भेद १ संज्ञानो प्रजातो. गुण० छठाथि ते १४.मा सुधि. जोग १५.उप० ९. ३ अज्ञानवर्जिने. लेशा० ६. ३. सामायक, छेदेोपस्थापनीय, ए बे चारित्रमा जीवना भेद १ संझिनो प्रजातो. गुण० ४ छठाथी ९ मां मुधि. जोग १४ कार्मणनो वर्जिने. उपयोग ७. ४ ज्ञान ने ३ दर्शन एवं ७.लेशा ६. ४. परिहार विशुद्धचारित्रमा जीवनो भेद १. संज्ञी प्र० गुण. २ छटुं ने सातमुं. जोग ९. ४ मनना, ४ वचनना ने १ उदारिकनो एवं ९. उप० ७. लेशा० ३ उपलि. ५. सुक्ष्मसंपरायचारित्रमा जीवना भेद १ संज्ञीनो प०. गुण १ दशमुं. जोग ९. उपयोग ७. लेशा १ शुकल. ६. यथाख्यातचारित्रमा जीवना भेद१ संज्ञीनो प्र०.गुण ४उपल्या जोग ११. ४ मनना, ४ वचनना, २ उदारिकना ने १ कार्मणना. उप० ९. ३ अज्ञान वजिने. लेशा० १. ७. संजतासंजतिमां जीवना भेद १ संज्ञीना प्र०. गुण० १ पांचमुं. जोग १२ आहारकना २ ने १ कार्मणनेविजिने. उपयोग ६. ३ ज्ञानने ३ दर्शन. लेशा ६. ८. असंजतिमा जीवना भेद १४. गुण०४ प्रथमना. जोग १३ आहारकना २ वर्जिने. उप०९, ३ ज्ञान,३ अज्ञान,३ दर्शन. लेशा६. ९. नासंजतिनोअसंजतिनासंजतासंजतिमां जीवना भेद नथी. गुण० नथी. जोग नथि. उप० २. लेशा नथि. एहुना अल्पबहुत्व सर्वथि थोडा सुक्ष्म संपरायचारित्रिया, तेहथि परिहारविशुद्धचारित्रिया संख्यातगुणा, तेहथि यथाख्यातचारित्रिया संख्यातगुणा, तेहथि छेदोपस्थापनीयचारित्रिया संख्यातगुणा, तेहथि सामायकचारित्रिया संख्यातगुणा, तेहथि संजति विशेषाहिया, तेहथि संजता Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ७७ संजति असंख्यातगुणा, तेहथि नासंजति नोअसंजति नासनतासंजति अनंतगुणा,तेहथिअसंजतिवनस्पतिभेळवतांअनंतगुणा.९इति१२माद्वार १ सागारोवउत्तामा जीवना भेद १४. गुण०१४. जोग १५. उप० १२. लेशा ६. २ अणागारावउत्तामा जीवना भेद १४.गुण०१३ दसमुं वर्जिने. जोग.१५.उप०१२.लेशा६.एहनो अल्पबहुत्वसर्वथिथोड़ाअणागारो. वउत्ता,तेहति सागारोवउत्ता संख्यातगुणा.इति १३मो द्वार समाप्त. १ आहारकमां जोवना भेद १४. गुण० १३. पहेला. जोग १४ कार्मणनो वाजने. उप० १२. लेशा० ६. २ अणाहारकमांजीवना भेद ८. सात अप्रजाप्ता ने १ संज्ञिनो प्रजातो एवं ८. गुण० ५ पहिलं, बिजु, चाथु, तेरमुं, ने चौदमुं ए ५. जोग १ कार्मणनो. उपयोग १० मनपर्यवज्ञान ने चक्षुदर्शन ए २ वर्जिने. लेशा ६. एहनो अल्पबहुत्व सर्वथि थोडा अणाहारक तेहथि अहारक असंख्यातगुणा. इति १४ मो द्वार समाप्त. १. भासगामा जीवना भेद५. बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चउरिद्रिय, असंज्ञीपंचेंद्रिय, संज्ञीपंचेंद्रिय, ए ५ ना प्रजाप्ता. गुण० १३ प्रथमना. जोग १४ कार्मणनो वर्जिने. उपयोग १२. लेशा ६. २ अभासगामा जीवना भेद १० ते १४ मांथि बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चरिंद्रिय,असंज्ञीपंचेंद्रिय,ए४ वा. गुण०५ ते पहिलं,बिजु, चाy, तेरमुं, चौदमु ए ५ जोग. ५.२ उदारिकना,२ वैक्रेयना ने १ कार्मणनो. उ०११ ते मनपर्यवज्ञान नहि. लेशा ६. एहना अल्पबहुत्व सर्वथि थोडा भासगा,तेहथि अभासगा अनंतगुणा. इति १५ मोद्वार. १ परीत संसारिमां जीवना भेद १४. गुण० १४. जोग १५. उप० १२. लेशा ६. Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोटा बासठिया. २ अपरीत संसारीमां जीवना भेद १४. गुण० १ पहेलु. जोग १३ आहारकना २ वर्जिने. उप०६. अज्ञान ३, दर्शन ३, लेशा ६. ३ नापरीत नाअपरीतमां जीवना भेद नथी. गुण० नथी. जेोग नाथ, उप० २ केवलज्ञान केवलदर्शन. लेशा नथि एहना अल्पबहुत्व सर्वfथ थोडा परीत, तेहथि नापरीत नाअपरीत अनंत गुणा. तेथ अपरीत अनंतगुणा इति १६ मा द्वार समाप्तं. ७८ १. प्रजाप्तामांजीवनाभेद ७. गुण० १४. जोग १५. उप० १२.लेशा६. २. अप्रजाप्तामां जीवना भेद ७. गुण० ३ ते पहेलु, बिजुं ने चो. जोग ५२ उदारिकना, २ वैक्रेयना ने १ कार्मणना. उप० ९. ३ ज्ञान, ३ अज्ञान, ३ दर्शन एवं ९. लेशा ६. ३. नामजाप्ता न अप्रजाप्तामां जीवना भेद नथी. गुण० नथी. जोग नथी. उप० २ केवलज्ञान ने केवलदर्शन. लेशा नथि. एहनो अल्पबहुत्व सर्वधि थोडा नोपजाप्तानोअप्रजाप्ता तेहथि अमजाप्ता अनंतागुणा, तेहथि प्रजाप्ता संख्यातगुणा इति १७ मा द्वार समाप्तं. १. सुक्ष्ममां जीवना भेद २. सुक्ष्म एकेंद्रियनो अमजाप्ता ने प्रजाप्ता २. गुण ० १ : प्रथमनुं. जोग ३. वे उदारिकना ने १ कार्मनो. उप० ३ बे अज्ञान, १ अचक्षुदर्शन ए ३. लेशा ३. २. बादरमां जीवना भेद १२ ते २ सुक्ष्मनावर्ज्या गुण० १४ जोग १५. उपयोग १२. लेशा ६. ३नोसुक्ष्मनोवादमांजीवनाभेदनथी. गुण० नथी. जोग० नथि. उप० लेशानथी. एहने अल्पबहुत्व सर्व थिथोडा ने सुक्षमने । बादर तेहथी बादर अनंतगुणा, तेहथिसुक्ष्म असंख्यातगुणा इति १८ मा द्वार. १ संज्ञीमां जीवना भेद २. गुण० १२ पहेला. जोग १५. उप० १० केवलना २ वर्ज्या, लेशा ६. Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ७९ २ असंज्ञीमां जीवनाभेद १२ ते२संज्ञीनावर्ज्या. गुण ०२ प्रथमना. जोग६.२ उदारिकना, वैक्रेयना. १ कार्मणना, १ व्यवहारवचनने एवं ६.उपयोग६,२ ज्ञान. २ अज्ञान. २ दर्शन एवं६. लेशा ४ प्रथमनी. ३. नासंज्ञी नाअसंज्ञीमां जीवना भेद १. संज्ञीना प्रजाप्तो. गुण० २ तेरमुं चादमुं. जोग ७ उपयोग २. लेशा १. परम शुक्ल. एहना अल्पबहुत्व सर्वथि थोडा संज्ञी, तेहथी नासंज्ञी नाअसंज्ञी, अनंत गणा, तेहथि असंज्ञा अनंत गुणा, इति १९ मा द्वार. १. भव्यमां जीवनाभेद १४. गुण ०१४. जोग १५ उ०१२. लेशा६. २ अभव्यां जीवना भेद १४ गुण० १ प्रथमनुं. जोग १३ आहारकना २ वजिने, उप ६. लेशा० ६. ३ नाभव्य नाअभव्यमां जीवना भेद नथी. गुण० नथी. जोग नथि. उपयोग २. लेशा नथी. एहना अल्पबहुत्व सर्वथि थोडा अभव्य, तेहथि नाभव्यनाअभव्य अनंतगुणा, तेहथि भव्य अनंतगुणा इति २० मा द्वार समाप्तं. १. चरममजीवनाभेद १४. गु०१४. जो०१५. उप० १२ लेशा ६. २. अचरममां जीवना भेद १४. गुण० १: प्रथमनुं. जोग १३ आहारकना २ वर्जिने, उप० ९, लेशा ६. एहना अल्पबहुत्व सर्वथि थोडा अचरम, तेहथि चरम अनंत गुणा. इति २१ मा द्वार समाप्तं . • १. समुच्चयकेवलीमां जीवना भेद २ संज्ञीना. गुण० ११. उपल्या. जोग १२. उप० ९ ३ अज्ञान वर्जिने. लेशा ६. २. वीतरागमांजीवनेाभेद १. गुण ०४ उपल्या. जोग ११. उप० ९. लेशा १. ३. जुगलियामां जिवना भेद २. संज्ञीना. गुण ०२ पहेलुं ने चाधुं. जोग ११ ते ४ मनना, ४ वचनना, २ उदारिकना, १ कार्मणना एवं ११. उप० ६. बे ज्ञान, बे अज्ञान, बे दर्शन एवं ६. लेशा ४ प्रथमनी. Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोटा बासठीयो. ४. असंज्ञीतिर्यच पंचेद्रियमां जीवना भेद २. गुण ०२ प्रथमना. जोग ४ ते २ उदारिकना, १ कार्मणना ने १ व्यवहार वचनना एवं ४. उपयोग ६ ते २ ज्ञान, २ अज्ञान, २ दर्शन एवं ६. लेशा ३प्रथमनी. ८० ५. समुर्छिम मनुष्यमां जीवनेाभेद १ अप्र०. गुण ० १ पहेलुं जोग ३ ते २ उदारिकना ने १ कार्मणना एवं ३. उपयोग ३ ते बे अज्ञान ने १ अचक्षुदर्शन एवं ३. लेशा ३ प्रथमनी. एहना अल्पबहुत्व सर्वथि थोडा जुगलीया, तेहथि समुर्छिम मनुष्य असंख्यात - गुणा, तेहथि असंज्ञीतिर्यच पंचेद्रिया असंख्यातगुणा, तेहथि बीत - रागी अनंतगुणा, तेहथिसमुच्चय केवली विशेषाहिया, इति २२ मेोद्वार. १. उदारिक शरिरमां जीवना भेद १४. गुण १४. जोग १५. उप० १२. लेशा ६. २. वैक्रेयशरिरमां जीवना भेद ४ ते २ संज्ञीना, १ अशंज्ञी तिर्यचनो अप्राप्तो अने १ बादर वाउकायनो प्रजाप्तो एवं ४. गुण० ७ प्रथमना.जोग १२ ते २ आहारकना ने १ कार्मणनो ए ३ वर्ज्या. उप० १० ते २ केवलना वर्ज्या. लेशा ६. ३. आहारकशरिरमां जीवनो भेद १ संज्ञोना प्रजाप्तो. गुण०२ छठु ने सातमुं. जोग १२ ते. २ वैक्रेयना ने १ कार्मणनो ए ३ वर्ज्या. उप० ७ ते ४ ज्ञान ने ३ दर्शन. लेशा ६. ५. तेजसकार्मणशरिरमां जीवना भेद १४. गुण० १४. जोग १५. उपयोग १२. लेशा ६. एहनो अल्पबहुत्व सर्वथि थोडा आहारकशरीरि, तेहथि वैक्रेय शरीरि असंख्यातगुणा, तेहथि उदारिक शरीरि असंख्यातगुणा, तेहथि तेजस कार्मण शरीरि मांहोमांहि तुल्य ने अनंतगुणा. ॥ इति मोटा बासठिया समाप्तं ॥ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. अथ श्री अठाणु बोलनो बासठीयो. ८१ २ मनुष्यणी संख्यातगुणी ३ बादर ते काया प्रजाप्ता अ० ४ अनुत्तर विमानना देवता अ० ५ उपली त्रिकना देवता सं० ६ मझम त्रिका देवता सं० ७ नीचलो त्रिकना देवता सं० ८ वारमा देवलोकना देवता सं० ९ इग्यारमादेवलोकनादेवता सं० १० दसमा देवलोकना देवता सं० ११- नवमा देवलोकना देवता सं० १२ सातमी नरकना नारकी अ० १३ छठी नरकना नारकी अ० १४ आठमा देवलोकना देवता अ० १५ सातमा देवलोकना देवता अ० १६ पांचमी नरकना नारकी अ० १७ छठा देवलोकना देवता अ० १८ चोथी नरकना नारकी अ० १९ पांचमा देवलोकना देवता अ० २० त्रीजी नरकना नारकी अ० २१ चोथा देवलोकना देवता अ० १ सर्वथी थोडा गर्भज मनुष्य | २२ त्रिजा देवलोकना देवता अ० २३ बीजी नरकनां नारकी अ० २४ समुर्छिम मनुष्य असं० २५ बीजा देवलोकनादेवता असं० २६ बीजा देवलोकनी देवी सं० २७ पहेला देवलोकना देवता सं० २८ पहेला देवलोकनी देवी सं० २९ भवनपति देवता असं० ३० भवनपतिनी देवी संख्यातगुणी ३१ पहेली नरकना नारकी असं० ३२ खेचर पुरुष असंख्यातगुणा ३३ खेचरनी स्त्री संख्यातगुणी ३४ थलचर पुरुष संख्यातगुणा ३५ थलचरनी स्त्री संख्यातगुणी ३६ जलचर पुरुष संख्यातगुणा ३७ जलचरनी स्त्री संख्यातगुणी ३८ व्यंतर देवता संख्यातगुणा ३९ व्यंतरनी देवी संख्यातगुणी ४० जोतिषी देवता संख्यातगुणा ४१ जोतिषीनी देवी संख्यातगुणी ४२ खेचर नपुंसक संख्यातगुणा Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अठाणुं बोल. ४३ थलचर नपुंसक संख्यातगुणा ६५ सुक्ष्म पृथ्वी अप्रजाप्ता विसे० ४४ जलचर नपुंसक संख्यातगुणा ६६ सुक्ष्म अपकाया अप्रजाप्ता वि० ४५ चउरिंद्रिय प्रजाप्ता सं०६७ सुक्ष्म वाउकाया अप्रजाप्ता वि० ४६ पंचेद्रीय प्रजाप्ता विसेषाहीया ६८ सुक्ष्म तेउकाया प्रजाप्ता सं० ४७ बेइंद्रिय प्रजाप्ता विसेषाहीया ६९ सुक्ष्म पृथ्वीकाया मजाप्ता वि० ४८ तेइंद्रीय प्रजाप्ता विसेषाहीया ७० सुक्ष्म अपकाया पर्याप्ता विसे० ४९ पंद्रीय अप्रजाप्ता असं०७१ सुक्ष्म वाउकाया पर्याप्ता वि० ५० चउरिंद्रीय अप्रजाप्ता विसे०७२ सुक्ष्म निगोदीया अपर्याप्ता अ० ५१ तेइंद्रीय अप्रजाप्ता विसेषाहीया ७३ सुक्ष्म निगोदीया प्रजाप्ता सं० ५२ बेइंद्रीय अप्रजाप्ता विसेषाहीया ७४ अभव्य अनंतगुणा ५३ वादर प्रत्येक शरीरि वनस्पति ७५ पडिवाइ समद्रष्टी अनंतगुणा प्रजाप्ता असंख्यातगुणा ७६ सिद्धभगवंतजी अनंतगुणा ५४ बादर निगोदीया प्रजाप्ता अ० ७७ बादर वनस्पति प्रजाप्ता अनं० ५५ बादर पृथ्वीकाया प्रजाप्ता अ० ७८ बादर प्रजाप्ता विसेषाहीया ५६ बादर अपकाया प्रजाप्ता अ० ७९ बादर वनस्पतिअपर्याप्ताअसं० ५७ बादर वाउकाया प्रजाप्ता अ० ८० बादर अप्रजाप्ता विशेषाहीया ५८ बादर तेउकाया अप्रजाप्ताअ० ८१ समुचय बादर विसेषाहीया ५९ बादर प्रत्येक शरीरि वन- ८२ सुक्ष्म वनस्पति अपर्याप्ताअसं० स्पति० अप्रजाप्ता असं० ८३ सुक्ष्म अपर्याप्ता विसेषाहीया ६० बादर निगोदीया अप्रजाप्ताअ० ८४ सुक्ष्म वनस्पति पर्याप्ता सं० ६१ वादर पृथ्वी अप्रजाप्ता असं० ८५ सुक्ष्म पर्याप्ता विसेषाहीया ६२ बादर अपकाया अग्रजाप्ता अ० ८६ समुचय सुक्ष्म विसेषाहीया ६३ बादर वाउकाया अप्रजाप्ता अ० ८७ भव्य सिद्धीया विसेषाहीया ६४ सुक्ष्म तेउकाया अपजाप्ता अ० ८८ निगोदीया जीव विसेषाहीया Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ८३ ९० एकेंद्रीया जीव विशेषाहीया ९१. तिर्यच जीव विशेषाहीया ९२ मिथ्यादृष्टी जीव विसेषाहीया ९३ अवरति जीव विसेषाहीया ८९ वनस्पति जीव विसेषाहीया | ९४ सकसाया जीव विसेषाहीया ९५ छदमस्त जीव विसेषाहीया ९६ सजोगी जीव विसेषाहीया ९७ संसारिक जीव विसेषाहीया ९८ सर्व्व जीव विसेषाहीया इतिश्री अठाणुं बोलनो अल्प बहुत्व संपूर्ण अथ श्री छ आराना बोल. दशक्रोडा क्रोडि सागरोपमना छआरा जाणवा, तेहमां पहेलो आरो ४ क्रोडाक्रोड सागरोपमनो जाणवो. ए आरो सुसम सुसम - नामा जाणवो. एकलुं सुखमां सुख जाणवु. ए आराने विषे ३ गाउनुं देहमान अने ३ पल्योपमनुं आउखं. उत्तरते आरे २ गाउनुं. देहमान अने २ पल्योपमनुं आउखु जाणवु. ए आरे बसेनेछपन पांसली, उतते आरे एकसो ने अठाविस पांसली जाणवी. ए आराने विषे, वज्र रुषभनाराच संघयण ने समचउरंस संठाण जाणवुं. स्त्री पुरुषना रूप सोभाग्य घणा दिपे. ए आराने विषे अठम भक्ते आहारनी इच्छा उपजे. तेवारे शरीर प्रमाणे आहार करे. धरतिनी सरसाइ साकर सरखी जाणवी. उतरते आरे खांड सरखिजाणवि, ए आराने विषे दश प्रकारना कल्पवृक्ष मनवंछीत मुख पहोचाडे ते कल्पवृक्षनां नाम, गाथा कहे छे. मतंगायभिंगा तुडियंगा दिव जोइ चित्तगा चित्तरसा मणवेगा गिरगारा अणियगणाउं १. ए गाथा सूत्र पाठे कही तेनो अर्थ कहे छे. मतंगाय कहेता मिठा मधुरा रसना कल्पवृक्ष थइ आवे, भिंगा कहेता रत्नजडाव भाजनंना कल्पवृक्ष थइ आवे. तुडियंगा कहेता गणपचास जातिनां वाजिंत्रना क० थ० Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४ छ आराना बोल. • दिव कहेतां रत्नजडाव दीवीउंना क० जोइ कहेता सूर्यनीं जोतिना क० चित्तगा कहेता चित्रामणसहित फूलनी मालाना क० चितरसा के० चितने गमे तेवा रसवति भजनना क०, मणवेगा के०. रत्नजडाव आभरणना क० गिगारा के० बेतालीस भोमिया अवासना क०. अनियगणाउं के० रत्नजडाव नाकने वायरेउडे एहवा वखना क० ए १० प्रकारना कल्पवृक्ष मनवंछित सुख आपे. ए आराने विषे छेवटे जुगलना आउखा आडा' ६ मास रहे तेवारे जुगल परभवनुं आउखु बांधे. तेवारे जुगलीणी एक जोडलुं प्रसवे. ते छोरुनी प्रति पालना ४९ दिन करे. जुगलजुगलीणी ने क्षण मात्रनो विजोग न पडे. एकने छीक ने एकने बगासुं आवे. मरिने देवता थाय. एहना शरीरनो निहरण देवता करे. गति तो १ देवनी जाणवी. ए आराने विषे जुगलीया ने वेर विरोध इर्षा झेहेर नही. इति पहेलो आरो संपूर्ण १. हवे पहेलो आरो उतरीने बीजो आरो बेठो, तेवारे अनंता वर्ण, गंध, रस, स्पर्सना पर्यव अनंता अनंता हीणा थया. ए आरो ऋण क्रोडाक्रोड सागरोपमनो सूसमनामे जाणवो. एकलं सुख जाणj. ए आराने विषे बे गाउनुं देहमान अने २ पल्योपमनुं आउखं. उत्तरते आरे एक गाउनुं देहमान ने एक पल्योपमनुं आउखं ए आराने विषे वज्ररूषभनारच संघयण, समचउरंस संठाण, ए आरे एकसो अठावीस पांसली. उतरते आरे ६४ पासली जाणfar आरे छ भक्ते आहारनी ईछा उपजे. तेवारे शरीर प्रमाणे आहार करे. धरतिनि सरसाई खांड सरखि, उतरते आरे गोल सरखि जाणवी. ए आरे १० प्रकारना कल्पवृक्ष मनवंछीत सुख पोवाडे, अने छेवटे जूगलना आउखा आडा छ मास Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. रहे तेवारे जुगल परभवनुं आउखु बांधे. तेवारे जूगलिणी एक जोडलं प्रसवे. छोरुनी प्रतिपालण ६४ दिन करे. जुगल जुगलीणीने क्षण मात्रनो विजोग न पडे. एकने छीक ने एकने बगासू आवे. मरिने देवता थाय. एना शरीरनु निहरण देवता करे. गति १ देवतानि जाणवि इति बिजो आरो संपूर्ण. ___ हवे बीजो आरो उतरीने त्रिजोआरो बेठो तिवारेअनंता वर्ण,गंध, रस,स्पर्सना पर्यव अनंता हीणा थया. ए आरो बेक्रोडाक्रोडसागरोपमनो जाणवो.ए आरो मूखम दुखम नामा जाणवो.सुख घणुं ने दुख थोडं जाणवू.ए आरने विषे एक गाउनु देहमान ने एकपल्योपमनुं आउखुं जाणवू. उतरते आरे पांचसे धनुष्य- देहमान ने क्रोडपूर्वनुं आउखु जाणवू. एआराने विषेवऋषभनाराच संघयण ने समचउरंस संठाण जाणवु. ए आरा विषे चोसठ पांसली जाणवी. उत्तरते आरे बत्रिस पांसली जाणवि ए आराने विषे चौथ भक्त आहारनी इच्छा उपजे. तिवाये शरीर प्रमाणे आहार करे. धरतिनि सरसाइ गोल सरखि जाणवि. उतरते आरे थोडेरी जाणवि. ए आरे दस प्रकारना कल्पवृक्ष मनबंछीत सूख पहचाडे. अने छेवटे जूगलना आउखा आडा छ मास रहे. तेवारे जूगल परभवर्नु आउखु बांधे. तेवारे जूगलिणी एक जोडलं प्रसवे. ते छोरुनी प्रतिपालणा ७९ दिन करे. जूगल जूगलिणीने क्षणमात्रनो विजोग न पडे. एकने छीक ने एकने बगासू आवे तेवारे मरीने देवता थाय. एहना शरीरना निहरण देवता करे.ए ३ आरा जूगलना जाणवा. एकलो जूगल धर्म जाणवो. ए आराने विषे जरा, रोग, कुरुप नहि प्रतिपूर्ण अंग उपांग विषय सुख भोगवे ते दान पुन्यना फल जाणवा. ए आराने विषे छेवटे चारासि लाख पूर्व त्रण वर्ष ने साडा आठ महीना बाकी रह्या. Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छ आराना बोल. तेवारे सर्वार्थ सिद्ध महाविमान थकी तेत्रीस सागरोपमर्नु आउखु भोगवीने चविने वनिता नगरीमां नाभी कुलगर राजापिता मरुदेवी मातानी कुंखे ऋषभ देव स्वामी उपना. सवानव मासे जन्म्या. प्रथम ऋषभर्नु स्वप्न देखि ऋषभदेव नाम दिधु. ऋषभदेव स्वामीये जूगला धर्म निवारीने असि, मसि, कसि आदि बोतेर कलाओ अनुकंपा :निमिते सिखवि. विस लाख पूर्वलगे कुंवरपणे रह्या. त्रेसठ लाख पूर्वलगे राज्य भोगव्यु. भरतने राज्य आपिने चार हजार पुरुष संघाते संजम लिधो. एक लाख पूर्व लगे संजम पाल्यो. केवल पामिने अष्टापद पर्वत उपरे पद्मासने बेसीने दसहजार साधु संघाते स्वामि निर्वाण पधार्या. ते स्वामिना ६ कल्याणिक थया. पेहेले कल्याणिके उत्तरासाढा नक्षत्रमा स्वार्थसिद्ध विमान थकी चविने मातानि कुंखे उपना. बाजे क० उ० जन्म्या. त्रीजे क० उ० राज्य वेठा. चोथे क० उ० संजभ लीधो. पांचमे क० उ० केवलज्ञान उपन. ने ६? क. अभीच नक्षत्रमां मोक्ष पधार्या ए ६, ए आराने विषे गति पांच जाणवि मोक्षवधी इति त्रीजो आरो संपूर्ण ३. ____ हवे त्रीजो आरो उतरीने चोथो आरो बेठो.तेवारे अनंता वर्ण, गंध, रस, स्पर्सना पर्यवहीणा थया. ए आरो १ क्रोडाक्रोड सागरोपममां बेतालीस हजार वर्ष उणो जाणवो. ए आरो दुसम सूसम नामे जाणवो. दुःख घणुं ने सूख थोडं जाणवू. ए आराने विषे पांचसे धनुषनुं देहमान ने क्रोड पूर्वन आउखु. उतरते आरे सात हाथर्नु देहमान ने सो वर्ष झाझेरानु आउखु. ए आराने विषे छ संघयण ने ६ संठाण जाणवा. ए आराने विष बत्रिस पांसली उतरते आरे १६ सोल पासली जाणवो. ए आराने विषे दिन दिन प्रते आहारनि इच्छा उपजे. तेवारे ३२ कवळनो आहार करे. धर Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. तिनि सरसाइ सारेरि उतरते आरे थोडेरी जाणवि. ए आराने छेवटे पंच्योतेर वर्ष ने साडाआठ महिना बाकी रह्या तेवारे दशमा देवलोकथि २० सागरोपमर्नु आवखंभोगविने चविने माहणकुंड नामना नगरने विषे रुषभदत्त ब्राह्मणने घेर देवानंदाजीनी कुंखे महाविरस्वामी उपना. तिहां स्वामी साडीब्यासी रात रह्या. त्यासिमी राते शकेंद्रनुं आसन चल्युं तेवारे शकेंद्रे उपयोग मुकीने जोयु. प्रभुने भीक्षक कुले उपना दीठा ते अनंते काले अछेरु थयु. तेथी हरण गमेषी देवताने कयु के जाओ जइने महावरिस्वामिनो गर्भ साहरो, साहरीने क्षत्रीकुंभ गाम नगरने विषे सिद्धार्थ राजाने घेर त्रिसलादेवी क्षत्रियाणीनी कुंखे मुको अने त्रिसलादेवि राणीनी कुंखे पुत्रिपणे गर्भ छे ते देवानंदाजीनी कुंखे मुको. तेवारे हरणगमेषी देवता तेहतप्रमाण करी तेज वेलाए आव्यो. आवीने भगवंतने वंदणा नमस्कार करीने कह्यु जे स्वामी रुडं जाणजो हुं तमारो गर्भ साहरु छं. ते वारे माता देवानंदाजीने अवस्थापिना निद्रा मुकिने नाभिथि गर्भ साहरीने त्रिसलादेवीजीनी कुखे मुक्यां. तिहां स्वामि सर्वे थईने सवानव मासे जन्म्या. त्रिस वर्ष घरमा रह्या. एकाकी पणे संयम लिधो. संयम लेईने साडाबार वर्ष ने एक पखवाडिया सुधि आकरा तप, जप, ज्ञान, ध्यान करिने स्वामि केवलज्ञान केवलदर्शन पाम्या. बहोतेर वर्षनु आउखुं भोगवीने चोथा आराना३ वर्ष ने साडा आठ महिना बाकी रह्या तेवारे महावीरस्वामि निर्वाण पधार्या. ते स्वामिना छ कल्याणिक थया. तेमां ५ कल्याणिक तो उतराफाल्गुनी नक्षत्रमा थया. ते चवण क०. गर्भ साहारण क.. जन्म क०. दिक्षा क०. केवलज्ञान क०. ए पांचने स्वाति नक्षत्रमा निर्वाण पधार्या ६. ए आराने विषे गति ५ जाणवि. महावीरस्वामि Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छ आराना बोल. निर्वाण पधार्या तेज वखते गौतमस्वामिने केवलज्ञान उपमुं. ने ते बार वर्ष केवल प्रवर्जा पालिने निर्वाण पधार्या. तेहज वेलाए सुधर्मास्वामिने केवलज्ञान उपनुं ते आठ वर्ष सुधि केवल प्रवर्जा पालिने निर्वाण पधार्या. तेहज वेलाए जंबुस्वामिने केवलज्ञान उपर्नु ते चुमालिस वर्ष सुधि केवल प्रवर्जा पालिने नीर्वाण पधार्या. महावीरस्वामि पछी भर्तक्षेत्रमा चौसठ वर्ष सुधि केवलज्ञान रह्यं. चौथा आरानो जन्मेलो होय ते पांचमा आरमां मोक्ष जाय. पांचमा आरानो जन्मेलो पांचमा आरामां मोक्ष जाय नही. जंबुस्वामि मोक्ष पहाता पछी दश बोल वीछेद गया ते परम अवधि ज्ञान, मनपर्यवज्ञान,केवलज्ञान,परिहारविसुध चारित्र, सुक्ष्म संपराय चारित्र, जथाख्यात चारित्र, पूलाक लब्धी, क्षायक समकीत, आहरक शरिर, जिनकल्पी साधु. ए १० बोल. इति चौथो आरो संपूर्ण.४. ___ हवे चोथो आरो उतराने पांचो आरो बेठी. तेवारे अनंता वर्ण, गंध, रस, फर्सना पर्यव हीणा थया. ए आरो दुसमनामा एकलं दुःख जाणवू. ए आरो २१ हजार वर्षनो जाणवो. ए आराने विषे ७ हाथर्नु देहमानने १ सो वर्ष झाझेरानुं आउ. उतरते आरे १ हाथर्नु देहमान ने २० वर्षनुं आउखुं. ए आराने विषे ६ संघयण ने छ संठाण जाणवा. उतरते आरे १ छेवटुं संचयण ने १ हुंड संठाण जाणवं. ए आराने विषे १६ सोल पांसली. उतरते आरे आठ पांसलिजाणवि. ए आराने विषे दिन दिन मते आहारनि इच्छा उपजे तेवारे शरीर प्रमाणे आहार करे. धरतिनी सरसाइ काइक सारेरि जाणवी. उतरते आरे कुंभारना निभाडानी छार सरखी जाणवी. हवे पांचमा आरानां लक्षण ३२ कहे छे. मोटा नगर ते गामडा सरिखा था. गाम ते मसाण. सरिखा था. Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण: संग्रह. भला कुलनां छोरु ते दास दासीपणां करशे. प्रधान ते लालचि थाशे. राजा ते जम दंड सरिखा थाशे. भला कुलनी स्त्री ते लजा रहित थाशे. रुडा कुलनी स्त्री वेश्या सरिखि थाशे. पोताना पुत्र पोताने छांदे चालशे. शिष्य गुरुना अपवाद बोलशे. दुर्जन लोक सुखी था. सज्जन लोक दुःखी थाशे. दुर्भिक्ष दुकाल घणा पडशे. उंदर सादीकनी दाढ घणी था. ब्राह्मण अर्थना लोभी थाशे. हिसा धर्मना परूपक घणा था. एक धर्मनां घणा भेद था. मिथ्याति देवता घणा पूजाशे. मिथ्याति लोक घणा थाशे. माणसने देवदर्शन दुर्लभ थाशे. विद्याधरनी विद्याना प्रभाव थोडा थाशे. गोरस दुध दहिमां सरसाइ थोडी रहेशे. बलद प्रमुखनां बल, आउखा थोडा थाशे. साधु साध्विने मास कल्प तथा चोमासां की जेवां खेत्र थोडां था. श्रावकनि ११ पडिमा साधुनी १२ पडिमा विछेद जाशे. गुरु शिष्यने भणावशे नहि. शिष्य अविनित कलहकारी थाशे. अधर्मकारि झगडाकारी कुमाणस घणा थाशे. सुमाणस थोडा थाशे. आचार्य आप आपणा गच्छनी परंपरा समाचारि जूदी नदी प्रवर्तावशे तथा मूढ, मूर्ख जनने मोह.उपजावी मिथ्यात्वपासमां पाडशे. उद सूत्र भांखशे.आप आपणा प्रसंसामा राचशे निंदक कुबुद्धि होशे. सरल, भद्रिक, न्यायी, प्रमाणिक माणस थोडाथाशे. म्लेच्छनांरान घणा थाशे. हिंदु राजा अल्प रूधिया थोडा थाशे. मोटा कुलना राजा थाशे ते निच काम करशे. अन्याय अधर्म कुविसनमा घणा राचशे. एवा ३२ लक्षण ए आरानां जाणवां. ए आराने विपेधातु सर्वे विछेद जाशे. लोढानी धातु रहेशे. चामडानी मोहरो चालशे. जेने घेर सवाशेर कांसु रहेशे ते धनवंत कहेवाशे. ए आराने विषे एक उपवास करशे ते मास खमण सरिखो थाशे. ए Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छ असना बोळ. आराने विषे ज्ञान तथा सूत्र सर्वे विछेद जाशे. तेमां दशवैकालिकना अध्ययन ४ पहेला रहेशे. ते उपरे ४ जीव एका अवतारि थाशे तेनां नाम. दुपसह नामा साधु. फल्गुणि नामा साध्वि. मागील श्रावक. नागधि श्राविका ए ४ आषाड सुद पूनमने दिने शर्केद्नु आसन चलशे तेवार शकेंद्र उपयोग मुकि जोशे जे आज पांचमो आ उतरीने काले छठो आरो बेसशे तेवारे शकेंद्र आवशे. ते ४ जीवने कहेसे जे काले छठो आरो बेसशे माटे आलवी पडिकमी निसलथाओ ते ४ जीव सर्व जीवने खमाविने संथारोकरशे ते वारे संवर्तक वायरो थाशे. तेणे करीने पहाड, पर्वत, गढ, कोठा, वाव, कुवा, सरोवर सर्वे वोसराल थाशे. वैवाढ पर्वत, गंगा, सिंधु, ऋषभकुट, लवण समुद्रनिखाडी ए ५ वर्जिने शेष सर्व स्थानक त्रुटी पडशे. ते ४ जीव समाधि परिणामे काल करीने देवलोकमां जाशे, तेवारे ४ बोल विछेद जाशे. पेहले पोहरे जैन धर्म विछेद जशे. बीजे पोहरे ३६३ पाखंडी मिथ्यातिनो धर्म विछेद जाशे, त्रीजे पोहरे राज नीति विछेद जाशे. चोथे पोहरे बादर अग्नि विछेद जाशे. ए आरे बेसता गति ५ जाणवी. उतरता ४ गति ते मोक्ष अटकी. इति पांचमो आरो संपूर्ण हवे पांचमो आरो उतरीने छठो आरो बेसशे तेवारे अनंता वर्ण, गंध, रस, स्पर्सना पर्यव हीणा थशे. ए आरो एकवीस हजार वर्षनो जाणवो. ए आरो दुसमदुसम नामा एकलुं दुःखमां दुःख जाणवू, ए आरे एक हाथर्नु देहमान ने २० वर्षतुं आउखु. उतरते आरे मूंढा हाथनी काया ने सोल वर्षतुं आउखु जाणवू. ए आराने विषे १ छेवटुं संघयण ने हुंड संठाण जाणवू. उतरते आरे पण एमज जाणवू. ए आराने विष आठ पासली. उतरते Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ९१ आरे चार पासली जाणवी. ए आराने विषे छ वर्षनी स्त्री गर्भ धरशे. ते काला कुदर्शनी रोगी ने रिसाल थशे. नखने मोवाला घेणा एहवा छोकरा घणा जणशे. ते कुतरीनी पेरे परीवार भेलो फेरवरी . ए आराने विषे गंगा सिंधु नदि रहेशे, तेमां ७२ बील छे. तेमां ण णे माल छे. तेमां मनुष्य त्रीयच पंखी बीज मात्र रहेशे. गंगा सिंधुमो साडीबासठ जोजननो पट छे, तेमां रथना चिला प्रमाणे पहोलुं ने गाडानि धुरि बूडे एटलं उड पाणि रहेशे, तेहमां मछ कछ घृणा थाशे. ते ७२ बीलनां मनुष्य सांझे ने प्रभाते. मछ कछ काढीने वेलुमा भारशे. सूर्य घणो तपशे. टांढ घणी पडशे. तेणे करी सीझवाइ रहेशे . तेहना आहार करशे. तेना हाडका चामडा तिर्येच चाटीने रहेशे. मानवीना मायानि तुंबलीमां पाणी लाविने पिशे. एणिपरे एकविस हजार वर्ष पुरां करशे. पाचमां आराना प्राणी नवकार रहित, समकित रहित, व्रत पचखाण रहित हशे ते एहवा छठा आराने विषे आविने अवतरशे. माटे एवं जाणिने जे जीव जैन धर्म करशे ते जीव सुखी थाशे. इति छ आराना बोल संपुर्ण. अथ श्री चोविस जिनांतरा. अढार क्रोडाक्रोडि सागरने आंतरे पेहेला श्री आदिनाथ तिर्थकर थया. विनिता नगरीने विषे नाभी राजा पिता. मरुदेवी राणी माता. हेमवर्णे. वृषभ लंछन. पांचसें धनुषनुं देहमान. चोरासी लाख पूर्वनुं आउखं वीश लाख पूर्व कुंवरपणे रह्या. त्रेसठ लाख पूर्वनुं राज्य पाल्युं. एक लाख पूर्वनीवर्ज्या पाली. प्रवर्ज्या लीधा पछि एक हजार वरसे केवलज्ञान उपनुं. साधु, साधवी, श्रावक, भावीकारुप चतुर्विध संघतिर्थ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोविस जिनांतरा. स्थापीने द्वादशांगीगणीनी पेटी आपीने त्रीजा आराना त्रण वरसने साडाआठ महिना छेवटे बाकी रह्या. तेवारे महा वद तेरसने दहाडे दस हजार साधु संघाते अष्टापद पर्वत उपरे स्वामी माक्ष पधार्या. १. पहेला श्री आदीनाथ तिर्थकर मोक्ष पोहोंच्या पछी पचास लाख क्रोडि सागरने आंतरे बीजा अजितनाथ तिर्थकर थया. अयोध्या नगरीने विषे जीत शत्रुराजा पिता. विजयादेवी राणी माता. हेमवणे. गज कहेता हस्तिनुं लंछन. साडाचारसे धनुपर्नु देहमान. बहोतेर लाख पूर्वन आउखु. तेमा अढार लाख पूर्व कुंवरपणे रखा. त्रेपन लाख पूर्वन राज पाल्यु. एक लाख पूर्वनी प्रवा पाली.पवा लोधा पछी बार वरसे केवलज्ञान उपज्यु. साधु साधवी, श्रावक, श्रावीकारुप चतुर्विध संघतिर्थ थापीने द्वादसांगी गणीनी पेटी आपीने एक हजार साधु संघाते स्वामी मोक्ष पहोंच्या. २. हवे बीजा अजितनाथ तिर्थकर मोक्ष पहोंच्या पछि त्रीस लाख क्रोडि सागरने आंतरे त्रीजा संभवनाथ तिर्थकर थया. सावर्थी नगरीने विषे जीतार्थ राजा पिता, सेन्यादेवी राणी माता. हेमवणे. अश्व कहेतां घोडानुं लंछन. चारसें धनुष देहमान. साठ लाख पूर्वनुं आयुष्य.पनेर लाख पूर्व कुंवरपणे रह्या. चुमालीस लाख पूर्व राज पाल्यु. एक लाख पूर्वनी प्रवा पाली. प्रवा लीधा पछि चौद वर्षे केवलज्ञान उपज्यु. साधु, साधवी, श्रावक श्रावीकारूप चतुर्विध संघतिर्थ थापीने द्वादसांगी गणीनी पेटी आपीने एक हजार साधु संघाते स्वामी मोक्ष पधार्या. ३. श्रीजासंभवनाथ तिर्थकर मोक्ष पोहोंच्या पछि दस लाख क्रोडि सागरोपमने आंतरे चोथा अभीनंदन तिर्थकर थया. विनीता नगरीने विषे संवर राजा पिता. सीद्धार्थी राणी माता. हेमवणे. वानरर्नु Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह लंछन. साडा त्रणसें धनुष्यनुं देहमान. पचास लाखःपूर्व- आयुष्य. तेमां साडा बार लाख पूर्व कुंवरपणे रा. साडी छत्रीस लाख पूर्वनु राज पाल्यु. एक लाख पूर्वनी प्रवर्ध्या पाली. प्रवा लीधा पछी अढार वर्षे केवलज्ञान उपर्नु साधु, साधवी, श्रावक, श्रावीकारूप चतुर्विध संघ तिर्थ स्थापी द्वादसांगी गणीनी पेटी आपीने एक हजार साधु संघाते स्वामी मोक्षने विषे पोहोंच्या. ४. हवे चोथा अभीनंदन तिर्थकर मोक्ष पोहोंच्या पछि नव लाख कोडि सागरने आंतरे पांचमा सुमत्तिनाथ तिर्थकर कुसलपुरी नगरीने विषे यया. मेघरथ राजा पिता. सुमंगला देवी राणी माता. हेमवणे. क्रोंच पंखीनुलंछन. त्रणसें धनुषनुं देहमान. चालीस लाख पूर्वतुं आयुष्य. तेमांदश लाख पूर्व कुंवरपणे रह्या. ओगणत्रीस लाख पूर्वनराज पाल्यु. एक लाख पूर्वनी प्रवर्ध्या पाली. प्रवा लीधा पछि वीस वर्षे केवलज्ञान उपमुं. साधु, साधवी, श्रावक, श्रावीकारूप चतुर्विध संघतिर्थ थापीने द्वादशांगी गणीनि पेटि आपिने एक हजार साधु संघाते स्वामी नीर्वाण मोक्ष पधार्या. ५. पांचमा सुमतिनाथ तिर्थकर निरवाण मोक्ष पोहोंच्या पछि नेQहजार क्रोडि सागरने आंतरे छठा पद्मप्रभ तिर्थकर थया. कोसंबी नगरीने वीषे धरराजा पिता. मुसिमा देवी राणी माता. राते वणे. पद्म कमलनुं लंछन. अढीसो धनुषनुं देहमान. त्रीश लाख पूर्वन आयुष्य साडासात लाख पूर्व कुंवरपणे रहा. साडीएकविस लाख पूर्वराज पाल्यु. एक लाख पूर्वनी प्रवर्ध्या पाली. प्रवा लीधा पछी छठे महीने केवलज्ञान उपज्यु. साधु, साधवी, श्रावक श्रावीकारुप चतुर्विध संघतिर्थ थापीने द्वादसांगी गणीनी पेटी आपीने त्रोंहोंतेर साधु संघाते स्वामी नीर्वाण मोक्ष पधार्या. ६, Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोविस जिनांतरा. छठा पद्मप्रभ तिर्थकर निर्वाण मोक्ष पोंहोता पछि नव हजार क्रोडि सागरने आंतरे सातमा सुपार्श्वनाथ तिर्थकर थया. वाणारसी नगरीने विषे पइठ राजा पिता. पृथ्वि देवि राणी माता. हेमवणे. साथीयानु लंछन. बसे धनुपर्नु देहमान. विस लाख पूर्वन आयुष्य. तेमां पांच लाख पूर्व कुंवरपणे रखा. चौद लाख पूर्व- राज पाल्यु एक लाख पूर्वनी प्रवा पाली. प्रवा लीधा पछि नव मासे केवलज्ञान उपज्यु. साधु, साधवी,श्रावक, श्राविकारुप चतुर्विध संघ तिर्थ थापीने द्वादसांगी गणीनी पेटी आपीने पांचसे साधु संघाते स्वामी नीर्वाण मोक्ष पधार्या. ७. सातमा सुपार्श्वनाथ तिर्थकर मोक्ष पोहोच्या पछे नवसें क्रोडि सागरने आंतरे आठमा चंद्रप्रभ तिर्थकर थया. चंदनपुरी नगरौने विषे महासेनराजा पिता. लखमणदेवी राणी माता. उज्वल वणे. चंद्रमार्नु लंछन. दोढसो धनुष्यनुं देहमान. दशलाख पूर्वन आयुष्य तेहमां अढीलाख पूर्व कुंवरपणे रह्या. साडाछ लाख पूर्वन राज पाल्यु. एक लाख पूर्वनी प्रवा पाली. प्रवा लीधा पछि छठे महिने केवलज्ञान उपर्नु साधु, साधवी, श्रावक, श्राविकारुप चतुविध संघतिर्थ थापीने द्वादसांगी गणीनी पेटी आपीने एक हजार साधु संघाते स्वामी निर्वाण मोक्ष पधार्या. ८ हवे आठमा श्रीचंद्रप्रभ तिर्थकर मोक्ष पोहोंच्यापछि नेवं क्रोडि सागरने आंतरे नवमांश्री सुविधीनाथ तिर्थकर थया. काकंडी नगरीने विषे. सुग्रीव राजा पिता.रामादेवि राणी माता.उज्वल वर्णे. मघरमछर्नु लंछन. सोधनुष्य देहमान. बे लाख पूर्वनु आउखु तेमां अर्थ लाख पूर्व कुंवरपणे रह्या. अध लाख पूर्व- राज पाल्यु. एक लाख पूर्वनी प्रवा पाली. प्रवज्या लीधा पछि चार महीने केवलज्ञान उपज्यु. साधु, Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ९५ साधवी, श्रावक, श्रावीका रुप चतुर्विध संघतिर्थ थापीने द्वादशांगी गणीनी पेटी आपीने एक हजार साधुसंघाते स्वामी निर्वाण मोक्षने विषे पधार्या. ९. हवे नवमा सुविधीनाथ तिर्थकर निर्वाण मोक्ष पोहोंच्या पछि नव क्रोडिसागरने आंतरे दशमा श्री सितलनाथ तिर्थकर-थया. भदलपुर नगरीने विषे द्रढरथ राजा पिता. नंदा देवी राणीमाता. हेम वर्गे. श्रीवछ साथीयानुलंछन. ने, धनुष्यनुं देहमान. एक लाख पूर्व आउखुं तेमां पा लाख पुर्व कुंवरपणे रह्या. अर्ध लाख पूर्व- राज़ पाल्यु. पा लाख पूर्वनी प्रवर्ध्या पाली. प्रवा लीधा पछे त्रण मासे केवलज्ञान उपज्यु. साधु, साधवी, श्रावक, श्रावीकारूप चतुर्विध संघतिर्थ थापी द्वादसांगी गणीनी पेटी आपीने एक हजार साधु संघाते स्वामी निर्वाण मोक्ष पधार्या. १०. ___ हवे दशमा सितलनाथ तिर्थकर मोक्ष पोहोंच्या पछि एकक्रोडिसागर तेमां १०० सागर छासठ लाख छविस हजारवरसने उणेआंतरे इग्यारमाश्रेयांसनाथ तिर्यकर थया. सिंहपुरी नगरीने विषे विश्नु राजा पिता.विश्नु देवी राणी माता.हेमवणे.गेंडानुलंछन.एसी धनुष्य देहमान. चौरासी लाख वर्षनु आयूष. तेमां २१ लाख वरस कुंवरपणे रह्या. ४२ लाख वर्षनुं राज पाल्यु. २१ लाख वर्षनी प्रवा पाली. प्रवा लीधा पछि छ मासे केवलज्ञान उपज्यु. साधु, साधवी, श्रावक, श्रावीकारूप चतुर्विध संघ तिर्थ थापीने द्वादसांगी गणीनी पेटी आपीने एक हजार साधु संघाते निर्वाण मोक्षनेविषे पोहोंच्या.१०. हवे इग्यारमां श्रेयांसनाथ तिर्थकरमोक्ष पोहोंच्या पछी५४सागरने आंतरे बारमा श्री वासुपूज्य तिर्थकर थया. चंपापुरी नगरीने विषे वसुपूज्य राजा पिता. जयादेवी राणी माता. राते वणे. भेसावं Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोविस जिनांतरा. लंछन. सिंतेर धनुष्य- देहमान बोहोतेर लाख वर्षतुं आयुष. तेमां अढार लाख वरस कुंवरपणे रह्या. चोपन लाख वरसनी पवा पाली. प्रवा लीधा पछि एक मासे केवलज्ञान उपज्यु. साधु, साधवी, श्रावक, श्रावीकारूप चतुर्विध संघ तिर्थ थापी. द्वादसांगी गणीनी पेटी आपीने छसें साधु संघाते स्वामी नीर्वाण मोक्ष पधार्या. १२. ____ हवे बारमा वासुपुज्य तिर्थकर निर्वाण मोक्ष पोहोंच्या पछि त्रीस सागरने आंतरे तेरमा श्री वीमलनाथ तिर्थकर थया. कंपीलपुर नगरने विषे कृतवर्म राजा पिता. सामा देवि राणी माता. हेमवणे. वराह के० सुवरनुं लंछन. साठ धनुष्यन देहमान ६० लाख वर्षन आउखु. १५ लाख वर्ष कुंवरपणे रह्या. त्रीस लाख वर्षनुं राज्य पाल्यु. १५. लाख वरसनी प्रवा पाली. प्रवा लीधा पछि बे महीने केवलज्ञान उपज्यु. साधु, साधवी, श्रावक श्राविकारूप चतुर्विध संघतिर्थ थापीने द्वादसांगी गणीनी पेटी आपीने ६०० साधु संघाते स्वामी निर्वाण मोक्ष पोहोंच्या. १३. हवे तेरमां विमलनाथतिर्थकर मोक्ष पोहोंच्या पछी९सागरनेआंतरे चौदमां अनंतनाथ तिर्थकर थया. अयोध्या नगरीने विषे संघेसन राजा पिता. सुजसा देवी राणी माता. हेम वर्णे, सकरातुं लंछन अने पचास धनुष्य, देहमान.३० लाख वरसर्नु आयुष तेमां साडासात लाख वर्ष कुंवरपणेरडा. पन्नर लाख वरसतुंराज पाल्यु. साडासात लाख वरसनी प्रवर्ध्या पाली. प्रवा लीधा पछि ३ महीने केवलज्ञान उपज्युं. साधु, साघवी, श्रावक, श्राविकारुप चतुर्विध संघ तिथ थापी द्वादसांगी गणनी पेटीआपीने सातसें साधु संगाते स्वामी मोक्ष पधार्या.१४. हवे चौदमा अंनतनाथ तिर्थकर निर्वाण मोक्ष पोहोंच्या पछी चार सागरने आंतरे पंदरमा धर्मनाथ तिर्थकर थया. रत्नपुरी Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९७ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. नगरीने वीषे भानु राजा पीता. सुट्टता देवी राणी माता. हेमवणे. वज्रनुलंछन. पिस्तालिस धनुष्य- देहमान. दस लाख वर्षनु आउ. तेमां अढी लाख वर्ष कुंवरपणे रह्या. साडा छ लाख वरसनुं राज पाल्यु. एक लाख वर्षनी प्रवर्ध्या पाली. प्रवा लीधा पछो बे महिने केवलज्ञान पाम्यां.साधु, साधवी, श्रावक, श्रावीकारूप चतुर्विध संघतीर्थ थापीने द्वादसांगी गणीनि पेटी आपिने आठसे साधु संघाते स्वामी नीर्वाण-मोक्षने विषे पधार्या. १५. हवे पन्नरमा धर्मनाथ तीर्थकर निर्वाण-मोक्ष पोहोंच्या पछी त्रण सागर तेमां पोणा पल्यने उणे आंतरे सोलमा श्री शांतिनाथ तिर्थकर थया. हस्तीनापूर नगरने विषे विश्वसेन राजा पीता. अचिरा देवी राणी माता. हेमवणे. मृगर्नु लंछन. चालीस धनुष्यनु देहमान. एक लाख वर्षनुं आउ. तेमां पा लाख वर्ष कुंवरपणे रह्या. .पा लाख वरसनुं राज पाल्यु. पा लाख वर्षनि चक्रवतीनि पदधी भोगवी. पा लाख वरसनी प्रवा पाली. प्रवा लीधा पछी एक महीने केवलज्ञान उपज्यु. साधु,साधवी,श्रावक,श्रावीकारूप चतुर्विध संघतिर्थ थापीने द्वादसांगी गणानी पेटी आपीने नवसें साधु संघाते स्वामी नीर्वाण-मोक्षने विषे पधार्या. १६.. हवे सोलमां शांतिनाथ तीर्थकर निर्वाण-मोक्ष पोहोंच्या पछी अर्द्ध पल्यने आंतरे सतरमां श्री कुंथुनाथ तिर्थकर थया. गजपुर नगरीने वीषे सुर राजा पीता. मुरादेवी राणी माता. हेमवणे. बोकडानुं लंछन. पांत्रीस धनुपर्नु देहमान. पंचा' हजार वरसनु आउ. तेमां पोणी चोवीस हजार वरस कुंवरपणे रह्या. पोणी चोवीस हजार वरसनुं राज पाल्यु. पोणी चोवीस हजार वरस चक्रवृत्तिनी पदवी भोगवी.पोणी चोवीस हजार वरसनी पवा पाली. Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोविस जिनांतरा. प्रवा लीधा पछी सोलमहीने केवलज्ञान उपज्यु. साधु, साधवी, श्रावक, श्राविकारूप चतुर्विध संघतीर्थ थापिने द्वादसांगी गणीनी पेटी आपिने एक हजार साधु संघाते स्वामी निर्वाण-मोक्ष पधार्या. १७. हवे सतरमा कुंथुनाथ तीर्थकर निर्वाण-मोक्ष पोहोंच्या पछी पा पल्यमांथी एक क्रोडने १ हजार वर्षने उणे आंतरें:१८ मां श्री अरनाथ तिर्थकर थया. नागपुर नगरीने विषे सुदर्सन राजा पिता. देवकी देवी राणी माता, हेमवणे, नंदावत साथीयानुं लंछन. त्रीस धनुषनुं देहमान. चोरासी हजार वरसर्नु आउखुं. तेमां २१ हजार वरस कुंवरपणे रह्या. २१ हजार वर्ष, राज पाल्यु, २१ हजार वर्षनी चक्रवृत्तीनी पदवी पाली. २१ हजार वर्षनी प्रवा पाली. प्रवालीधा पछी त्रण वर्षे केवलज्ञान उपज्यु. साधु, साधवी, श्रावक, श्राविकारूप चतुर्विध संघतीर्थ थापीने द्वादसांगी गणीनी पेटी आपिने एक हजार साधु संघाते स्वामी नोर्वाण-मोक्ष पधार्या.१८. __ हवे अढारमा अरनाथ तीर्थकर निर्वाण-मोक्ष पोहोंच्या पछी एक क्रोड ने एक हजार वरसने आंतरे १९ मां मल्लीनाथ तीर्थकरथया. मिथिला नगरीने विष कुंभ राजा पिता. प्रभावति राणी माता. निल वणे. कलसान लंछन. पचविस धनुषनुं देहमान. पंचावन हजार वर्षतुं आउ. तेमां सो वरस तो कुंवरी पणे रखा. बाकी प्रवर्ध्या पालि. प्रवा लीधा पछी त्रीजे पोहोरे केवलज्ञान उपज्यु. साधु, साधवी, 'श्रावक, श्राविकारूप चतुर्विध संघतीर्थ स्थापिने द्वादसांगी गणीनी पेटी आपिने पांचवें साधु अने पांचवें साधवी संघाते स्वामी निर्वाण-मोक्ष पधार्या. १९. हवे ओगणीसमां मल्लिनाथ तीर्थकर मोक्ष पोहोंच्या पछी चोपन लाख वरसने आंतरे २० मां मुनिसुव्रत तीर्थकर थया. राजग्रही Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ९९ नगरीने विषे सुमित्र राजा पीता. पद्मावति राणी माता. साम वर्णे. काचबानुं लंछन. विस धनुषनुं देहमान त्रीस हजार वर्षतुं आउखु तेमां साडा सात हजार वर्ष कुंवरपणे रहा. पंदर हजार वर्षनुं राज पाल्यु. साडासात हजार वर्षनी प्रवर्ध्या पालि. प्रवा लीधा पछी इग्यार महीने केवलज्ञान उपज्यु. साधु, साधवी, श्रावक, श्राविकारूप चतुर्विध संघतीर्थ थापीने द्वादसांगी गणीनी पेटी आपिने एक हजार साधु संघाते स्वामी नीर्वाण-मोक्ष पधार्या. २०. हवे वीसमा मुनिसुवृत तीर्थकर मोक्ष पहोंच्या पछी छ लाख वर्षने आंतरे २१ मा नमिनाथ तीर्थंकर थया. मथुरा नगरीने विषे विजय राजा पिता. विपुलादेवी राणा माता. हेम वर्ण. निलोत्पल कमलनुं लंछन. पनर धनुपर्नु देहमान. दश हजार वर्षतुं आउ. अढि हजार वर्ष कुंवरपणे रखा. साडा छ हजार वर्षतुं राज पाल्यु. एक हजार वर्षनी प्रवर्ध्या पाली. प्रवा लीधा पछी नव महीने केवलज्ञान उपज्यु. साधु, साधवी० एक हजार साधु संघाते स्वामी निर्वाण-मोक्षने विषे पधार्या. २१. हवे एकवीसमां नमीनाथ तीर्थकर मोक्ष पोहोंच्या पछी पांच लाख वर्षने आंतरे २२ मां नेमनाथ तीर्थकर थया. सोरीपुर नगरीने विषे समुद्र विजय राजा पीता. सीवा देवी राणी माता. सामवणे. शंखनु लंछन. दस धनुष, देहमान. एक हजार वर्षनु आउ. तेमां त्रणसें वर्ष कुंवरपणे रहा. सातसें वर्षनी प्रवर्ध्या पाली. प्रवा लीधा पछी चोपन दहाडे केवलज्ञान उपज्यु. साधु० पांचसे ने छत्रीस साधु संघाते स्वामी निर्वाण-मोक्ष पधार्या. २२. . हवे बावीसमां नेमनाथ तीर्थकर मोक्ष पोहोंच्या पछी पांणा चोरासी हजार वर्षने आंतरे २३ मा पार्श्वनाथ तीर्थकर थया. वणा Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० चौविस जिनांतरा. रसी नगरीने विषे अश्वसेन राजा पिता. वामा देवी राणी माता. निलवणे. सपनुं लंछन. नव हायनु देहमान. सो वर्षतुं आउखु. तेर्मा ३० वर्ष कुंवरपणे रखा. सिंतेर वर्षनी प्रवा पाली. प्रवा लीधा पछी चोरासी दहाडे केवलज्ञान उपज्यु. साधु० एक हजार साधु संघाते स्वामी निर्वाण-मोक्ष पधार्या. २३. ___हवे त्रेवीसमां श्रीपार्श्वनाथ तीर्थकर मोक्ष पोहच्या पछी अडिसें वर्षने आंतरे चोवीसमा श्रीमहावीर तीर्थकर थया. क्षत्रीकुंडग्राम नगरने विषे सिद्धार्थ राजा पिता. त्रिसलादेवी राणी माता. हेम वर्ण. सिंह लंछन. सात हाथर्नु देहमान. बोहोतेर वर्षनु आउखुं. तेमा ३० वर्ष कुंवरपणे रह्या. बेतालिस वर्षनी प्रवर्जा पाली. प्रवर्जा लीधा पछी साडाबार वर्ष ने पनर दहाडे केवलज्ञान उपज्यु. साधु, साधवी, श्रावक, श्राविका रूप चतुर्विध संघतीर्थ थापिने द्वादसांगी गणोनी पेटी आपीने कारतक वद अमावास्यानी रात्रे (लौकिक पक्ष आसो वद अमावास्यानी रात्रे) पावापुरी नगरीने विषे चोथा आराना त्रण वर्ष ने साडाआठ महीना बाकी रह्या त्यारे स्वामीनाथ एकाकिपणे बेदीवसनु अणसण करी निर्वाण-मोक्षने विषे पहोंच्या. २४. पहेला तीर्थकर श्री रूषभदेव स्वामी अने चोविसमां तीर्थकर श्री महावीरस्वामी ए बेहू वचे एक क्रोडाक्रोड सागरोपम झाझेरामां बेंतालिस हजार वर्ष उणानुं आंतरं जाणवू, इति श्री चोविस तीर्थकरना आंतरा संपूर्ण, Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. अथ श्री कर्मप्रकृतिना बोल. पहेलं ज्ञानावरणीय कर्म ते आंखना पाटा समान. बिजु दर्शनावरणीय कर्म ते राजाना पोळिया समान. त्रिजु वेदनीय कर्म ते मध तथा अफिणे खरडया खडग समान. चोथु मोहनीय कर्म ते मदिरापान समान. पांच{ आयुष कर्म ते हेड समान. छटुं नाम कर्म ते चितारा समान. सातमुं गोत्र कर्म ते कुंभारना चाकडा समान. आठमु अंतराय कम ते राजाना भंडारी समान. ज्ञानावरणीय कर्मे अनंतज्ञान गुण ढाक्यो छे. दर्शनावरणीय कर्मे अनंत दर्शन गुण ढाक्यो छे. वेदनीय कर्मे अनंत अव्याबाध आत्मिक सुख रोक्युं छे. मोहनीय कर्मे क्षायक समकित गुण रोक्यो छे. आयुष्य कर्मे अक्षय स्थिति गुण रोक्यो छे. नाम कर्मे अमूर्ति गुण रोक्यो छे. गोत्र करें अगुरु लघु गुण रोक्यो छे. अंतराय कर्मे अनंत आत्मिकशक्ति गुण रोक्यो छे. ज्ञानावरणीय कर्म ते ६ प्रकारे बांधे. पहेले वोले नाणपडिणीयाए ते ज्ञानीना वांका बोले. बिजे बोले नाणनिन्हवणयाए ते ज्ञानिनो उपकारओलवे. त्रिजे बोले नाणासायणाए ते ज्ञानिनि अशातना करे. चोथे बोले नाणअंतराएण ते ज्ञाननि अंतराय पडावे. पांचमें बोले नाणपऊसेणं ते ज्ञानि उपर द्वेष करे. छठे बोले नाणविसंवायणा जोगेणं ते ज्ञानि साथे खोटा झगडा विखवाद करें. ए छ प्रकारे बांधे ते पांच तथा १० प्रकारे भोगवे. ते पांच किया ते कहे छे. मति ज्ञानावरणीय, श्रुत ज्ञानावरणीय, अवधि ज्ञाना वरणीय, मनपर्यव ज्ञानावरणीय, केबलज्ञानावरणीय, ए ५ ज्ञान प्रगट थावादेमहि तथा १० प्रकारे भोगवे ते कहे छे. सोया Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ कर्मप्रकृतिना बोल. घरणे, सोय विभाणा वरणे, नेत्तावरणे, नेत्त विनाणा वरणे, घाणा वरणे, घाण विनाणा वरणे, रसा वरणे, रस विन्नाणा वरणे, फासा वरणे, फास विनाणा वरणे ए १० प्रकारे भोगवे, हवे ज्ञानावरणीय कर्मनि स्थिति अघ० अंतर्मुहूर्तनि उत्० त्रिश क्रोडाक्रोडि सागरोपमनी अने अबाधा काल करे तो ऋण हजार वरसनि स्थिति. हवे दर्शनावरणीय कर्म ६ प्रकारे बांधे ते कहे छे. पहेले बोले दंशण पडिणीयाए, दंशण निन्हवणयाए, दंशण आसावणार, दंशण अंतराएणं, दंशणपउसेणं, दंशण विसंवायणाजोगेणं, ए ६ प्रकारे बांधे. ते ९ प्रकारे भोगवे ते कहे छे. चक्षु दर्शना वरणीय, अचक्षु दर्शनावरणीय, अवधि दर्शनावरणीय, केवलदर्शनावरणीय, निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला, थिणद्धिनिद्रा ए ९ प्रकारे भोगवे. दर्शनावरणीय कर्मनि स्थिति जघ० अंतमुहूर्त्तनि उत्० ३० क्रोडाक्रोडि सागरोपमनि अने अबाधा काल करे तो स्थिति त्रण हजार वरसनि. २. त्रिजु वेदनीय कर्म तेहना २ भेद सात्तावेदनीय, असाता वेदनीय. तेहमां सातावेदनीय दश प्रकारे बांधे ते कहे छे. पाणाणु कंपयाए, भुयाणु कंपयाए, जीवाणु कंपयाए, सत्ताणु कंपयाए, बहुणं पाणाणं भुवाणं जीवाणं सत्ताणं अदुखणयाए, असोयणयाए, अजुरणयाए, अतिष्पणयाए, अपिटणयाए, अपरियाquare ए १० प्रकारे बांधे ते ८ प्रकारे भोगवे. मणुणा सदा, मणुणा रुवा, मणुणा गंधा, मणुणा रसा, मणुणा फासा, मणसुया, वयसुहया, कायमुहया ए ८ प्रकारे भोगवे . हवे एहनी स्थिति जघ० २ समयनि. उत्० १५ क्रोडाक्रोड सागरोपमनि. अबाधा काल करे तो जघ० अंतर्मुहूर्तनि उत्० दाढ़ हजार वरसनी स्थिति. हवे Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत भकरण संग्रह. १०३ असाता वेदनीय १२ प्रकारे बांधे ते कहे छे. परदुखणयाए, परसोयणयाए, परजुरणयाए, परतिप्पणयाए, परपिटणयाए, पर परियावणयाए, बहुगं, पाणाणं, भुयाणं, जीवाणं, सताण, दुखणयाए, सोयणयाए, झुरणयाए, तिप्पणयाए, पिटणयाए, परियावणयाए ए १२ प्रकारे बांधे ते ८ प्रकारे भोगवे.अमणुणा सद्दा,अमणुणा रुवा,अमणुणा गंधा, अमणुणा रसा, अमणुणा फासा, मणदुहया, वयदुहया, कायदुहया ए ८ प्रकारे भोगवे. हवे एहनिस्थिति जघ०१ सागरना ७ भागकरिये एहवा ३ भाग एकपल्यने असंख्यातमेभागे उणानि. उत० त्रिसकोडाक्रोडि सागरोपमनि एहनोअबाधा काल ३ हजार वरसनो३. हवे चोथु मोहनीय कर्म ते छ प्रकारे बांधे. तिव्वकोहे, तिव्बमाणे, तिब्वमायाए, तिव्वलोहे, तीव्वदंसण मोहणिजे तिव्वचरित मोहणिजे ए ६ प्रकारे बांधे ते २८ प्रकारे भोगवे. अनंतानुबंधि क्रोध ते पर्वतनि राइ समान, अनंतानुबंधि मान ते पथरना स्तंभ समान, अनंतानुबंधि माया ते वांसनी गांठ समान, अनंताबंधि लोभ ते किरमजना रंग समान. ए ४ गति करे नरकनि, स्थिति करे जावजीवनि, घात करे समकितनि. ४ अप्रत्याख्यानी क्रोध ते तलावना खोट समान, अप्रत्याख्यानी मान ते हाडकाना स्तंभ समान, अप्रत्याख्यानी माया ते घेटाना शंग समान, अप्रत्याख्यानी लोभ ते नगरनि खालना कादव समान ए चारे गति करे तिर्यचनी स्थिति करे वरस एकनि, घात करे देश तृतीनी. ८ पचखाणावरणीय क्रोध ते वेलुनि लिटि समान, पचखाणावरणीयमान ते लाकडाना स्तंभ समान, पचखाणावरणीय माया ते गोमुत्रिका समान,पचखाणा वरणीय लोभ ते गाडाना खंजन समान, ए चारेगति करे मनुष्यनि, स्थिति करे चार मासनि,घात करे सर्व वृतीनि. १२ संज्वसनो Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ कर्मप्रकृतिना बोल. क्रोध ते पाणिनि लिटि समान, संज्वलनुं मानते नेत्रना स्तंभ समान, संज्वलनी माया ते वांसनी छोइ समान, संज्वलनो लोभ ते पतंग तथा हलिदना रंग समान, ए ४ गति करे देवतानि, स्थिति करे पनर दिनान, घात करे केवल ज्ञाननि, ए १६ कषाय. हवे ९ नो कषाय कहे छे. हाश्य १७, रति १८, अरति १९. भय २०, शोग २१, दुगंछा २२, स्त्री वेद २३, पुरुष वेद २४. नपुंसक वेद २५ ए चारित्र मोहनीयनी २५ प्रकृति. हवे दंसण मोहनियनि ३ प्रकृति कहे छे.समकित मोहनीय,मिथ्यात्व मोहनीय, समामिथ्यात्व मोहनीय, ए ३ दर्शन मोहनीयनि एवं सर्व मलि २८ प्रकृति. हवे एहनि स्थिति जघ० अंतर्मुहर्तनी उत्०, ७० क्रोडाक्रोडि सागरोपमनी. अबाधा काल करे तो जघ० अंतर्मुहूर्तनी उत्० ७ हजार वरसनि. ४. हवे पांचमुं आयुष्य कर्म सोल प्रकारे बांधे तेहमांह नारकिर्नु आयुष्य. ४ प्रकारे बांधे ते. महारंभयाए, महापरिग्गहियाए, कुणिमाहारेणं, पचिंदियवहेणं. तिर्यचनुं आयुष्य ४ प्रकारे बांधे. माइलयाए, नियडिलयाए, अलियवयणेणं, कुडतोले कुडमाणे,मनुष्यनु आयुष्य ४ प्रकारे बांधे.पगइभदयाए, पगइविणीयाए, साणुकोसयाए, अमछरियाए. देवतार्नु आयुष्य ४ प्रकारे बांधे, सराग संजमेणं, संजमा संजमेणं, बालतवोक्कमेण, अकाम निजराए ए १६ प्रकारे बांधे ते. ४ प्रकारे भोगवे नारकि देवतानं आयुष्य जघ० १० हजार वर्ष ने अंतर्मुहूर्त अधिकर्नु उत्० ३३ सागर ने पूर्व क्रोडिनो त्रीजी भाग अधिक. मनुष्य तिर्यच, ए २ नुं आयुष्य जघ० अंतर्मुहूर्ततुं उत्० ३ पल्यने पूर्व क्रोडिनो. त्रिजो भाग अधिक. ५. __ हवे छटुं नामकर्म तेहना २ भेद. शुभ नाम, अशुभ नाम. तेमां शुभ नाम कर्म ४ प्रकारे बांधे. कायुजुयाए, भासुजुयाए, Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. . १०५ भावुजुयाए, अविसंवायणाजोगेणं ते १४ प्रकारे भोगवे. इठासदा, इठारुवा, इठागंधा, इठारसा, इठाफासा, इठागइ, इठाठीइ, इठालावणे, इठाजसोकित्ती, इठाउठाण, कम्म, बल, वीरिय, पुरिसाकार, परक्कमे, इठासरया, कंतसरया, पियसरथा, मणुणासरया, ए चौदप्रकारेभोगवे. अशुभनामकर्म चार प्रकारे बांधे. कायअणुजुयाए, भाषाणुजुयाए, भावाणुजुयाए, विसंवायणाजोगेणं ते चौदप्रकारेभोगवे अणिठासहा, अणिठारुवा, अणिठगगंधा, अणिठारसा, अणिठाफासा, अणिठागइ, अणिठाठीइ, अणिठेलावणे, अणिठाजसोकित्ती, अणिठाउठाण, कम्म, बल, वीरिय, पुरिसाकार, परकमे, हिणसरया, दिनसरया, अणिठसरया, अकंतसरया, ए चौद प्रकारे भोगवे. हवे नाम कर्मनी ९३ प्रकृति कहेछे. नरकगति, तिर्यचगति, मनुष्यगति, देवगति, एकेंद्रियजाति, बेइंद्रियजाति,तेइंद्रियजाति, चउरिद्रियजाति, पंचेद्रियजाति, उदारिकशरिर, वैक्रेयशरिर, आहारकशरिर, तेजसशरिर,कार्मणशरिर,उदारिकअंगोपांग,चक्रेयअंगोपांग,आहारक अंगोपांग, उदारिकबंधन, वैक्रेयबंधन, आहारकबंधन, तेजसबंधन, कार्मणबंधन, उदारिकसंघातन, वैक्रेयसंघातन, आहारक संघातन, तेजससंघातन,कार्मणसंघातन.वज्रऋषभनाराचसंधयण,ऋषभनाराचसंघयण,नाराचसंघयण, अर्द्धनाराचसंघयण, कलकुसंघयण,छेवटुसंघयण, समचौरशसंठाण, निगोहपरिमंडलसंठाण, सादिसंठाण, वामनसंठाण,कुब्जसंठाण,हुंडसंठाण,कालोवर्ण,निलोवर्ण,रातोवर्ण,पिलोवर्ण, धोलोवर्ण, सुरभिगंध, दुरभिगंध, तिखोरस, कडवोरस, कसायलोरस, खाटोरस, मिठोरस, खरखरोस्पर्श, मुंहालोस्पर्श,भारेस्पर्श,हलवोस्पर्श, टाढोस्पर्श,उन्होस्पर्श,चोपडयोस्पर्श,लुखोस्पर्श,नरकानुपूर्वी,तिर्यंचान पूर्वी,मनुष्यानुपूर्वी,देवतानुपूर्वी,शुभविहायगति, अशुभविहायगति,ए Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्मप्रकृतिना बोल. ६५ पिंड प्रकृतिथइ. पराघातनाम,उस्वासनाम,अगुरुलघुनाम,आतापनाम, उद्योतनाम, उपघातनाम, तीर्थकरनाम, निर्माणनाम, शनाम, बादरनाम, प्रत्येकनाम, पर्याप्तनाम, स्थिरनाम, शुभनाम,सौभाग्यनाम, सुस्वरनाम,आदेयनाम,जशोकीर्तिनाम,थावरनाम,सुक्ष्मनाम,साधारण नाम, अप्रजातनाम, अस्थिरनाम, अशुभनाम, दौर्भाग्यनाम, दुःस्वरनाम,अनादेयनाम, अजशोकीर्तिनाम, ए ९३ प्रकृति थइ. तेहमां १० बंधननी अधिक भेलवतां १०३ प्रकृति पण ग्रंथवाला कहे छे अथवा नामकर्मनी ४२ पण कही छे, ते गति, जाति, शरीर, अंगोपांग, बंधन, संघातन, वर्ण,गंध, रस, स्पर्स, संघयण, संठाण, अनुपूर्वी, विहायगति, ए १४ अने प्रत्येक प्रकृति ८. सनो दशको स्थावरनो दशको एवं ४२ थइ.तथाविस्तारे चौदनी ६५ तथा प्रत्येक प्रकृति८.प्रशनोदशको, स्थावरनो दशको, एवं विस्तारे ९३ प्रकृति थइ. नाम कर्मनि स्थिति जघन्य आठ मुहूर्तनी. उत्० विश क्रोडाक्रोडि सागरोपमनी. अबाधा काल करे तो २ हजार वरसनो ६. हवे गोत्र कर्मना २ भेद. उंच गोत्र, निचगोत्र. तेहमां उंच गोत्र ८ प्रकारे बांधे. जाइअमदेणं, कुलअमदेणं, बलअमदेणं, रुवअमदेणं, तवअमदेणं, सूयअमदेणं, लाभअमदेणं, इस्सरियअमदेणं ए आठ मद अणकरवे करि उंचगोत्र बांधे. ते ८ प्रकारे भोगवे. जाइविसिठिया, कुलविसिठिया, बलविसिठिया, रुवविसिठिया, तवविसिठिया, सूयविसिठिया, लाभविसिठिया, इस्सरियविसिठिया, ए ८ प्रकारे भोगवे. १. हवे नीच गोत्र ८ प्रकारे बांधे ते. जाइ मएणं, कुल मएणं, बल मएणं, रुप मएणं, तप मएणं, सूय मएणं, लाभ मएणं, इस्सरिय मएणं ए८मदकरवेकरि नीचगोत्र बांधे. ते ८ प्रकारे भोगवे. नाइविहिणया, कुलविहिणया, बलविहिणया, रुप Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १०७ विहिणया,तपविहिणया,सूयविहिणया, लाभविहिणया, इस्सरियविहिणया ए ८. गोत्र कर्मनी स्थिति जघ० ८ मुहूर्त्तनी. उत्०वीशक्रोडाक्रोडिसागरोपमनी. अबाधाकालकरेतो बेहजार वर्षनो. ७. __हवे ८ में अंतरायकर्म पांच प्रकारे बांधे. दानांतराय, लाभांतराय, भोगांतराय, उवभोगांतराय, वीर्यातराय, ए ५ अंतराय पाडवे करि अंतराय कर्म बांधे,ते पांच प्रकारे भोगवे.दानांतराय,लाभांतराय, भोगांतराय, उवभोगांतराय, वीर्यातराय, ए ५ पामे नहि. ए अंतराय कर्मनी स्थिति जघन्य अंतर्मुहर्तनी. उतू० त्रिश क्रोडाडि सागरोपमनी. अबाधा काल करे तो ३ हजार वर्षनो ८. बांधवानि ८५ प्रकृति.ज्ञानावरणीयनी ६,दर्शनावरणीयनी ६,वेदनीयनि२२,मोहनीयनी ६,आयुषनी१६,नामनीट,गोत्रनी१६,अंतरायनी ५,एवं सर्व मलि८५प्रकृति बांध्यानि जाणवी.हवेभोगव्यानि ९३ प्रकृति ते. ज्ञानावरणीयनि१०,दर्शनावरणीयनि ९,वेदनीयनि १६,मोहनीयनि ५, ते. सम्मत्तवेयणिजे, मिछत्तवेयणिज्जे, सम्मामिछत्त वेयणिज्जे, कसायवेयणिज्जे, नोकसायवेयणिज्जे ए ५. आयुषनि ४, नामनी २८, गोत्रनि १६, अंतरायनि ५ ए सर्व मली ९३ प्रकृति भोगव्यानि जाणवी. अथवा १४८ प्रकारे पण भोगवे ते ज्ञानावरणीयनि ५, दर्शना वरणीयनि ९, वेदनीयनि २, मोहनीयनि २८,आयुषनि ४,नाम कर्मनि ९३,गोत्र कर्मनि २,अंतरायनि ५ एवं सर्व मलिने १४८ प्रकृति जाणवि. तथा बंधन नामकर्मनि १० प्रकृति ग्रंथांतरे कहि छे ते भेलवतां १५८ प्रकृति पण थाय.अथवा मूल प्रकृति ८, तेहनि उत्तर प्रकृति ३१, ज्ञानावरणीयनी ५, दर्शनावरणायनी ९,वेदनीयनी २,मोहनीयनी २,आयुषनी ४, नामनी २,गोत्रनी २, अंतरायनी ५ एवं ३१ प्रकृति थाय तेहनो विस्तार १४८ कर्म प्रकृति जाणवि.ए बोल सिद्धांत प्रमाणे छे.इति कर्म प्रकृतिना बोल समाप्तं. Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ धर्मध्यान. अथ श्री धर्मध्यान. उबवाई सूत्रपाठ - सेर्कितं धम्मेझाणे १. चउविहे, चउपडयारेपन्नते तंज्जहा. आणाविज्जए १ अवायविजये २ विवागविजये ३ संठाणविजए ४ धम्मस्सणंझाणस्स चत्तारिलखणा पन्नत्ता तंजहा, आणारुइ १ निसग्गरुड २ मृतरुइ ३ उवएसरुइ४धम्मस्सणंझाणस्सचत्तारिआलंबणापनता तंज्जा, वायणा १ पुछणा २ परियहणा ३ धम्मका ४ धम्मस्सणंझाणस्स चत्तारिअणुप्पेहा पन्नता तंजहा. एगच्चाणुप्पेहा १ अणि - चाणुपेा २ असरणाणुप्पेहा ३ संसाराणुप्पेहा ४ ए सूत्र पाठ कबो हवे सूत्रनो अर्थ कहे छे. धर्म ध्यानना चार भेद. ते मांहि पहेला भेदनो अर्थ कहे छे. आणा विज्जए कहेता वीतरागनी आज्ञानो विचार चौतaat ते वीतरागनी आज्ञा जे समकित सहित बार व्रत, श्रावकनी इग्यार पडिमा, पंच महाव्रत, भिखुनि बार पडिमा शुभध्यान शुभयोग, ज्ञान, दर्सण, चारित्र, तप, छकायनी रक्षा ए वीतरागनी आज्ञा आराधवी, तिहां समयमात्रनोप्रमाद न करवो. चतुर्विध तीर्थनां गुणकीर्तनकरवां. ए धर्मध्याननो पहेलो भेद को. हवे धर्मध्याननोबीजोभेदकहे छे. अवायविजए कहेतांसंसारमांहि जीवजेहथकीदुःखपामेछे तेहनोविचारचींतववो. तेहनो ए विचार, मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय, असुभयोग तथा अढारपापस्थानक, छकायनी हिंसा, एह दुःखना कारण जाणी एहवो आश्रवमार्ग छांडिने संवर मार्ग आदरवो. जेहथी जीव दुःख न पामे. ए धर्मध्याननो बीजो भेद को. ra धर्मध्याननो जो भेद कहे छे. विवागविजए कहेतां जीव जे सुख दुःख भोगवे छे. ते श्याथ की तेहनोविचारचितववो. Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. तेहनो एह विचार. जीवे जेवेरसेकरिपूर्वे जेवा शुभाशुभ ज्ञानावरणीयादिक कर्मउपाया॑ छे. ते शुभाशुभकर्मना उदयथी जीव तेहवां सुख दुःख अनुभवे छे. ते अनुभवताथका कोइ उपर राग द्वेष न आणीये. समताभाव आणीए. मन, वचन, कायाना शुभयोग सहित श्री जैनधर्मने विषे प्रवर्तिये. जेम निराबाध परम सुख पामीए. ए धर्मध्याननो त्रीजोभेद कह्यो. ___ हवे धर्मध्याननो चोथो भेद कहे छे संठाणविजए कहेतां त्रणलोकना आकारनु स्वरुप चिंतवीए.तेनुं ए स्वरुप,आलोक सुपइठकने आकारे छे.जीव अजीवे संपूर्ण भर्यो छे. असंख्याताजोजननी क्रोडाक्रोडि प्रमाणे त्रीछो लोक छे. तिहां असंख्याताद्वीपसमुद्र छे. तथा असंख्याता वाणव्यंतरना नगर छे. तथा असंख्याता ज्योतिषीना विमान छे,तथा असंख्याती ज्योतिषीनी राजधानी छे. तीहां अढी द्वीप मांहि तीर्थकर जघन्य २० उत्कृष्टा एकसो सितेर होय. तथा केवली जघन्य बे क्रोडि, उत्कृष्टा नव क्रोडि तथा साधु जघन्य बे हजार क्रोडि, उत्कृष्टा नव हजार क्राडि, तेहने पंदामि नमंसामि, सकारेमि समाणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पजुवास्सामि.तथा त्रिछा लोकमांहि असंख्याता श्रावक श्राविका छे. तेहना गुणग्राम करिये. ते त्रिछा लोकथकी असंख्यात गुणो अधिको उर्द्धलोक छे. तिहां बार देवलोक नवग्रैवेयक पांचअनुत्तरविमान सर्व थइने चोरासी लाख सत्ताणुं हजार वीस विमान छे. तथा ते उपर सिद्धसिला छे. त्यां सिद्ध भगवंत बिराजे छे. तेहने वंदामि जाव पजुवासामि ते उर्द्ध लोकथी नीचो अधोलोक छे. तिहां चोरासी लाख नरकावासा छे. सातक्रोडि ब्होंतेरलाख भवनपतिनाभवन छे. एहवा त्रण लोकनां सर्व स्थानक समकित राहत करणी विना सर्वजीवे अनंती वार जन्म Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मध्यान. मरणे करी फरसी मुक्या छे. एम जाणी समकित सहित श्रुत अने चारित्र धर्मनी आराधना करीये. जेम अजरामर पद पामीये. ए धर्म ध्याननो चोथो भेद कह्यो. - हवे धर्मध्यानना चार लक्षण,तेमां धर्म ध्याननु पहेलुं लक्षण कहे छे. आणारुइ कहेतां वीतरागनी आज्ञा अंगीकार करवानी रुचि उपजे तेहने आणारुइ कहिये ए धर्म ध्यान- पहेलु लक्षण कयुं. हवे धर्म ध्याननुं बीजु लक्षण कहे छे. निसर्गरुइ कहेतां जीवने स्वभावेज तथा जाति स्मरणादिक ज्ञानेकरी श्रुतसहित चारित्र धर्म करवानी रुचिउपजे. तेहने निसर्गरुचि कहिये ए धर्म ध्याननुं बीजं लक्षण कयु. ___हवे धर्म ध्यानतुं त्रीजु लक्षण कहे छे. सूत्तरुइ कहेतांसूत्रना बे भेद. अंग पविठ अने अंगबाहिर. अंगपविठ, ते आचारांगादि १२ अंग तेमां ११ अंग कालिक, अने वारमुं अंग दृष्टिवाद ते उत्कालिक.अंग बाहिरनां २ भेद आवश्यक,अने आवश्यक व्यतिरिक्त. आवश्यक ते सामायकादिक छ अध्ययन ते उत् कालिक, तथा उत्तराध्ययनादिक कालिकसुत्र, तथा उववाइ प्रमुख उत्कालिक सुत्र सांभलवा तथा भणवानी रुचि उपजे तेहने सुत्र रुचि कहिए. ए धर्म ध्यान- त्रिजु लक्षण कछु. ___ हवे धर्म ध्याननु चोथु लक्षण उवएसरुइ कहे छे. उवएसरुई कहेतां अज्ञाने करी उपाा कर्म ते ज्ञाने करी खपावीए, ज्ञाने करी नवाकर्म न बांघीए. मिथ्याते करी उपार्ष्या कर्म ते समकिते करी खपावोए, समकिते करी नवा कर्म न बांधीए. अव्रते करी उपा कर्म ते व्रते करी खपावीए, व्रते करी नवा कर्म न बांधीए. प्रमादे Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. करी उपाळ कर्म तेअप्रमादे करी खपावीए,अप्रमादे करी नवा कम न बांधीए. कषाये करी उपाा कर्म ते कषायने अणकरवे करीने खपावीए. कषायने अणकरवे करीने नवा कर्म न बांधीए. अशुभ योगे करी उपााकर्म ते सुभ योगे करी खपावीए, शुभ योगे करी नवा कर्म न बांधीए. पांच इंद्रीयना स्वादरुप आश्रवे करी उपाा कर्म ते तपरूप संवरे करी खपावीए, तपरुप संवरे करी नवा कर्म न बांधीए. माटे अज्ञानादिक आश्रव मार्ग छांडीने ज्ञानादिक संवर माग आदरवो एहवो तीर्थकरनो उपदेश सांभलवानी रुचि उपजे. तेहने उपदेश रुचि कहीए. तथा उगाढ रुचि पण कहीए. ए धर्म ध्यान- चोथु लक्षण कडं. हवे धर्मध्यानना चार आलंबनकहेछे.वायणा,पूछणा,परियट्टणा, धर्म कथा. हवे धर्म ध्यान- पहेलं आलंबन वायणा कहे छे. वायणा ते केहने कहिए ? विनय सहित ज्ञान तथा निर्जराने अर्थे सूत्रना, अर्थना जाण गुर्वादिक समीपे सूत्र तथा अर्थनी वांचणी लेवी. तेहने वायणा कहीए ए धर्मध्यान- पहेलं आलंबन का. ___ हवे धर्मध्याननुं बीजं आलंबन पुछणा कहे छे. पुछणा ते केहनें कहिए ? अपूर्वज्ञान पामवाने अर्थ तथा जैनमत दीपाववाने अर्थे तथा संदेह निवारवाने अर्थे तथा परनी परीक्षा लेवाने अर्थे यथायोग्य विनय सहित गुर्वादिकने प्रश्न पूछीए तेहने पुछणा कहिए. ए धर्म ध्याननुं बीजुं आलंबन कयु. __ हवे धर्मध्यान- त्रीजुं आलंबन परियट्टणा कहे छे. परियट्टणा ते कहने कहिए ? पूर्वे जे जिनभाषित सूत्र अर्थ भण्या छे. ते अस्खलित करवाने अर्थे तथा निर्जराने अर्थ शुद्ध उपयोग सहित Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मध्यान. ११२ शुद्ध सूत्र अर्थनी वारंवार सझाय करे तेहने परियट्टणा कहिये ए धर्मध्यान- त्रीजु आलंबन कयुं. हवे धर्मध्याननुं चो, आलंबन धर्मकथा कहे छे. धर्म कथा ते केहने कहिए ? वीतरागे जे भाव जेहवा परुप्या छे. ते भाव पोते ग्रहीने विशेषे निश्चय करीने शंका कंखा वितिगिछा रहितपणे पोतानी निर्जराने अर्थे परना उपकारने अर्थे सभा मध्ये ते भाव तेहवाज प्ररुपीए तेहने धर्मकथा कहीए. एहवी धर्मकथा कहेता थकां अने सांभलीने सरदहता थकां ते बन्ने वीतरागनी आज्ञाना आराधक होय. ते धर्मकथा-संवररुपीवृक्षसेवीए. तेथी मनवंछित सुख पामीए ते संवररुपी वृक्ष वखाणीए छींए ते संवररुपी वृक्ष केहबु छ ? जेहनुं विशुद्ध समकितरुप मूल छे, धीर्यरुष कंद छे, विनयरुप वेदिका छे, तीर्थकर तथा चार तीर्थना गुण कीर्तनरुप स्कंध छे, पांच महाव्रतरुप मोटी शाखा छे, पचीस भावनारुप त्वचा छे, शुभध्यानने शुभयोगरुप प्रधान पल्लव पत्र छे, गुणरुप फूल छे, सीयलरुप सुगंध छे, आनंदरुप रस छे, मोक्षरुप प्रधान फल छे. मेरु गिरिना शिखर उपरे जेम चूलिका बिराजे छे तेम समकितीना हृदयमां संवररुपि वृक्ष बीराजे छे. एहवा संवररुपी शीतल छाया जेहने परिणमे तेहना भवोभवना पाप टळे.ने ते परम अतुल सुख पामे इत्यादिक चार प्रकारना कथा. अक्षेवणी,संवेगणी,निबेंगणी ए चार कथा विस्तारपणे कहे तेहने धर्मकथा कहीए.ए धर्मध्याननु चोथु आलंबन कयु. अक्षेवणा प्रमुख ३ कथानो विस्तार चोथे ठाणे बीजे उद्देशे सुत्र ५८ मध्ये छे. हवे धर्मध्याननी चार अणुप्पेहा कहे छे, अणुप्पेहा कहे छे. अणुप्पेहा ते केहने कहिए ? जीवद्रव्य अने अजीवद्रव्य तेहनो स्वभाव स्वरूप जाणवाने अर्थे सुत्रना अर्थ विस्तारे चौंतवीए तेहने Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ११३ अणुप्पेहा कहिए. - हवे धर्म ध्याननी पहेली अणुप्पेहा कहे छे. एकच्चागुप्पेहा ते केहने कहिए? जीव असंख्यात प्रदेसी अरुपी सदास उपयोगी ते चैतन्यरूप एहवो एक माहरोआत्मा निश्चयनये छे तेम सर्वआत्मा निश्चयनये एवाज छे, अने व्यवहारनये आत्मा अनादिकालनो अचैतन्य जड वर्णादि २० रूप सहित पुद्गलनो संयोगीथको त्रस ने स्थावररूप लेइने अनेकनृत्यकारनटुवानीपरे अनेकरूपे अनेक छांदे प्रवर्ते छे. ते त्रसनो त्रसरूपेप्रवर्ते तो जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्टो बेहजार सागर झाझेरासुधी रहे.अनेस्थावरनो स्थावरपणे प्रवर्ते तोजघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्टो अनंती उत्सर्पणीअवसर्पणी कालथी. क्षेत्रथी अनंतालोकममाण अलोकना आकाशप्रदेश थाय तेटलाकालचक उत्सर्पणी अवसर्पणी जाणवी.तेहना असंख्याता पद्गल परावर्त्तन थाय.अंगुलने असंख्यातमे भागे आकास प्रदेश आवे तेटला असंख्याता पुद्गल परावर्तन थाय. स्थावर मध्ये पुद्गल लइ खेल्यो ए व्यवहार नयथी जीव जाणीए. वली त्रस स्थावर मध्ये रह्यो थको स्त्रीपुरुष नपुंसक वेदे पुदलने संयोगे खेल्यो, प्रवयों, अनेक रुपो धारण कर्या. ते कहे छे. कोइक प्रस्तावे देवीपणे भवनपत्यादिकथी इसानदेवलोकसुधी इंद्रनी इंद्राणी सुरुपवंती अपसरा थई. जघन्य १० हजारवरस उत्कृष्टा५५पल्योपम देवांगनानेरुपे अनंतिवारजीवखेल्यो.देवतापणेभवनपत्यादिकथीजाव नवग्रैवेयकसुधीमहधिकदेवपणे महाशक्तिवंत इंद्रादिक लोकपालप्रमुखपणे रुपवंत देदीप्यमान वंछितभोग संयोगपणे प्रवयो. जघन्य १० हजारवर्ष उत्कृष्टा३१ सागरोपम एम अनंतीवार भोगी थयो. इंद्र महाराजे एक भवमांहि ७ पल्योपमनी देवी, बाविसकोडाक्रोड पंचासी लाख क्रोड, एकोतेर हजार क्रोड, चारसे अठ्यावीस क्रोड, Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ धर्मध्यानं. सतावन लाख चौद हजार बसे ने अठयासी उपर पांचपल्यनी ८. एटली देवी भोगवी तोपण तृप्ति न पाम्यो. मनुष्यमध्ये स्त्री, पुरुषपणे थयो, देवकुरु उत्तरकुरु मध्ये युगलयुगलणी थयो. त्यां महामनोहररूप मनवंछित सुख भोगव्यां दसप्रकारनाकल्पवृक्षथी मनवंछितसुख भोगव्या. स्त्रीपुरुषने क्षणमात्रनोवियोग न पडे. ३ पल्योपम सुधी निरंतर सुखविलस्यां. हरिवास रमकवास मध्ये २ पल्योपम, हेमवयक्षेत्र एरणवयक्षेत्रमध्ये १ पल्यसुधी, छपन अंतरद्वीपा मध्ये पल्योपमनो असंख्यातमो भाग, युगल युगलणीपणे अनंतीवार, स्त्री पुरुषनां रूप लेइ खेल्यो पण आत्मा तृप्ति न पाम्यो, वली चक्रवर्तिनेघरे स्त्रीरत्नपणे लक्ष्मी सरिखा रुप अनंती - वार जीव लेइ खेल्यो पण तृप्ति न पाम्यो. वासुदेव मंडलीक राजा, प्रधान व्यवहारीयाने घरे स्त्रीपणे मनोज्ञ सुखोमां पूर्व क्रोडादिकनां आउखा पणे प्रवत्यों. वलि तेहज जीव मनुष्य मध्ये कुरुपवान, दुर्भागी निच कुल दरीद्रीभर्त्तारनी स्त्रीपणे, अलछरूप दुर्भागीणीपणे, नटवापणे प्रवर्त्यो. छतां मनुष्यपणे स्त्रीपुरुषनाअवतारपूरानथया. वली तीर्यचपंचेंद्रिय जलचरादिमध्ये स्त्री वेदे पुरुष वेदे प्रवर्त्यो. वली ते जीव सात नरकमां, पांच एकेंद्रीय मां, त्रणविककेंद्रीय तथा असंज्ञी तिथेच मनुष्य मध्ये नियमा नपुंसकवेदे अने संज्ञीतिर्यचमनुष्य मध्ये पण नपुंसकहोय ते सर्वे नपुंसक वेदे जीव प्रवर्त्यो. परमार्थे लागठ वेदे प्रवर्त्यो. ते उत्कृष्टा एकसोदसपल्य अने प्रथक पूर्व क्रोड सुधी स्त्री वेदे खेल्यो . जघन्य आउखा भोगव्या आश्री अंतर्मुहूर्त, पुरुषवेदे उत्कृष्टो पृथक् सो सागरज्ञाझेरा सुघी पुरुषवेद मध्ये खेल्यो. जघन्य आउखा भोगव्या आश्री अंतर्मुहूर्त, नपुंसकवेदे उत्कृष्टो अनंता कालचक्र असंख्यातापुद्गल परावर्त्तन सुधी नपुंसकवेदे खेल्यो. Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ११५ ज्यां गयो त्यां एकलो पुद्गलने संयोगे अनेक रुप परावर्तन कीयां ए सर्व व्यवहार नय जीवने विषे जाणवो. एवा परिभ्रमणनो मिटावणहार श्री जैनधर्मनेविषेशुद्धसदहणासहित शुद्ध उद्यम पराक्रमनुं फोरव, थाय त्यारेज आत्मानुं साधन थाय. ते वारे सिद्धपणुं पामे. तीहां एकलोज निश्चय नय आत्मा जाणवो.ज्यारे शुद्ध व्यवहारे प्रवर्त ने अशुद्ध व्यवहार मटाडे तेवारे सिद्ध होय एहवो माहरो एक आत्मा छे. जे भणी अपर परिवार ते स्वार्थ रूपी छे. अने पउगसा मीससा अने वीससा पुद्गल ते पर्यवे करी जेवे स्वभावे छे, तेवे स्वभावे न रहे ते पण असास्वता छे,ते माटे एक माहरोपोतानो आत्मा पोताना कार्यनो साधक सास्वतो जाणीने पोताना आत्मानुं साधन करीये. ए धर्म ध्याननी पहेली अणुप्पेहा कही. हवे धर्मध्याननी बीजी अणुप्पेहा कहे छे. अणीचाणुप्पेहा ते केहने कहीये ? रूपी पुद्गलनी अनेक प्रकारे यतना करिए. ते पण अनित्य छे. नित्य एक श्री जैनधर्म परम सुखदायक छे. पाताना आत्माने नित्य जाणीने समकितादिक संवरे करि पुष्टो करीये. ए धर्म ध्याननी बीजी अणुप्पेहा कही. हवे धर्म ध्याननी त्रीजी अणुप्पेहा कहे छे. असरणाणुप्पेहा ते केहने कहिये ? आ भवनेविषे अने परभव पहोंचतां जीवने एकसमकितपूर्वक जैनधर्मविना जन्मजरामरणना दुःख निवारवा बीजो कोइ शरण समर्थ नथी. एम जाणी श्रीजैनधर्मनु शरण करीये. जेम परम मुख उपजे. ए धर्मध्याननी त्रीजी अणुप्पेहा कही. हवे धर्म ध्याननी चोथी अणुप्पेहा कहे छे. संसाराणुप्पेहा ते केहने कहिये ? स्वार्थरुप संसार समुद्र माहे जन्म जरा मरण संयोग वियोग शारीरी मानसी दुःख, कषाय, मिथ्यात्व,तृष्णारुप घणा जल Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांच बोल. कल्लोलादिकनी लहेरे करी चार गति चोवीस दंडकने विषे परिभ्रमणा करतां जगत जीवने श्री जैन धर्मरुप द्विपानो आधार छे. तथा संजमरुप नावानो शुद्ध समकितरुप निर्जामक नावनो खेडणहार छे. एषी नावाए करी जीव सिद्धिरुप महा नगरने विषे पहोंचे. विहां अनंत अतुल विमल सिद्धना मुख जीव पामे. एधर्म ध्याननी चोथी अणुप्पेहा कही. एहवा धर्मध्यानना गुण जाणीने सदा धर्मध्यान भ्याइये जेम परम सुख पामीये. इति धर्मध्यान संपूर्ण. अथ श्री पांच बोल. पहेलो नारकीनो द्वार, बीजो भवनपतिनो द्वार, बीजो वाणव्यंतरनो द्वार, चोथो ज्योतिषीनो द्वार, पांचमो वैमानीकनो द्वार. __हवे पहेलो नरकनो द्वार कहे छे. पहेले नाम, बीजे गोत्र, त्रीजे अर्थ, चोथे पिंड, पांचमे पोलार, छठे अलोक, सातमे आधार, आठमे आंतरा, नवमे पुष्फाविकीर्ण ने आवलिका बंध, दशमे अंधकार, इग्यारमे नारकी ने उपजवाना स्थानक, बारमे क्षेत्रवेदना, तेरमे पनर परमाधामीना नाम, चौदमे जीव अजीवना परिणाम, पनरमे नारकी ने अवधिनुं देखवू, सोलमे संघयण, सतरमे कोण जीव कइ नरके उपजे, अढारमे चार बोल कहेवाशे. हवे पहेले नाम कहे छे. घमा, वंशा, शिला,अंजणा,रिठा, मघा, माघवइ, ए साते उंधा छत्रने आकारे छे. . बीजे गोत्र कहे छे. रत्नप्रभा, शर्कर प्रभा, वालुप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा,तमप्रभा,तमतमाप्रभा,रत्नप्रभातेश्यामाटे?सोलहजार जोजननो Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. खरकांड छे.ते सोल जातिनारत्नमय छे.एकेकुंरत्नहजारहजार जोजननु जाडपणे छे.बळ्याकोयला शरिखा छे.तेमांहि ८० हजारजोजननो उबल छे. अने ८४ हजारजोजननो पंकबलछे. एम प्रणे कांड थइने एकलाख ने एशीहजार जोजननो पृथ्वीनो पिंड जाणवो. __त्रीजे अर्थ कहे छे. रत्नप्रभा ते रत्ननो पिंड ने रत्ननी पिविका, ते रत्न केहवा छे ? श्यामवर्णा बल्याकोलसा सरिखां छे, शर्करमभा ते ? कांकरानो पिंड ने कांकरानी पिठिका. ते कांकरा केहवा छे? लुखा निरस गोखरुना कांटा सरिखो स्पर्श छे.वालुप्रभा ते? वेलुनो पिंड ने वेलुनी पिठिका.ते वेल केहवि छे ? उनिह धगधगती अनिपरे जाज्वल्यमान छे. पंकप्रभा ते कादवनो पिंड ने कादवनी पिठिका, ते कादव केहवा छे लोहिमय, परुमय, ने वज्रमय कांटा छे. धूमप्रभा ते धुमाडाना पिंड ने धूमाडानी पिठिका, ते धमाडो केहवो छ ? तिखो तमतमो ने दरदरो छे.तमप्रभा ते अंधकारनो पिंड ने अंधकारनी पिठिका, तमतमाप्रभा ते विशेषे अंधकारनोपिंड ने अंधकारनी पिठिका. चोथो पिंडने पांचमो पोलार ए बे द्वार भेळा कहे छे. पहेली नरके एक लाख ने एशी हजार जोजननो पृथ्वीनो पिंड छे. तेहमांथि एकहजार जोजन उंचं मुकिये एक हजार जोजन निचुं मुकिये, वचे १ लाख ने अठोत्तेर हजार जोजननी पोलार छे.ते मांहि १३ पाथडा ने ३० लाख नरकावासा छे. बीजी नरके एक लाख ने बत्रिश हजार जोजननो पृथ्वीनो पिंड छे. तेहमांथि एक हजार जोजन उंचं मुकिये एक हजार जोजन निचुं मुकिये, वचे एक लाख ने ३० हजार जोजननी पोलार छे. तेमांहि ११ पाथडा ने २५ लाख नस्कावासा छे. त्रीजी नरके एक Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ पांच बोक. लाख ने अठ्यावीश हजार जोजननो पृथ्वीनो पिंड छे, तेहमांहि १ हजार जोजन उंचुं मुकीये. १ हजार जोजन निचुं मुकीये. बचे एक लाख ने छविश हजार जोजननो पृथ्विनो पिंड छे. तेमांहि ९ पाथडा ने १५ लाख नरकावासा छे. चोथी नरके एक लाख ने २० हजार जोजननो पृथ्वीनो पिंड छे. तेहमाथि १ हजार जोजन उचुं मुकिये, १ हजार जोजन निचुं मुकिये. वचे १ लाख ने १८ हजारजोजमनि पोलारछे. तेहमांहि ७ पाथडा ने १० लाख नरकावासाछे. पांचमी नरके एक लाख ने अढार हजारजोजननो पृथ्वीनो पिंड छे. तेहमांथी एक हजारजोजन उंचुं मुकीए. एक हजार जोजन नीचुं मुकीए. वचे एक लाख सोळ हजार जोजननी पोलारछे. तेहमांहि ५पाथडा ने ३ लाख नरकावासा छे. छठी नरके एक लाखने १६हजार जोजननो पृथ्वीनो पिंडछे. तेहमाथि १ हजार जोजन उंचुं मुकिये. १ हजार जोजन निचुं मुकिये. वचे १ लाख ने १४ हजार जोजननि पोलार छे. तेहमांहि ३पाथडा ने १ लाखमां ५ उणां नरकावासा छे. सातमी नरके १ लाख ने ८ हजार जोजननो पृथ्वीनो पिंड छे. तेहमाथि साडाबावन हजार जोजन उंचुं मुकिये. साडा बावन हजार जोजन निचुं मुकिये. बचे ३ हजार जोजननो जाडो एक पाथडो छे. तेहमांहि ५ नरकावासा छे. छठे लोक कहे छे. पहेली नरकथी १२ जोजन जइये तिवारे त्रिछो अलोक आवे. बिजी नरकथी १२ जोजन ने २ त्रिजा भागे त्रिछो अलोक आवे. त्रजी नरकथी १३ जोजन ने १ त्रिजा भागे त्रिछो अलोक आवे. चोथी नरकथी १४ जोजन त्रिछो अलोक आवे. पांचमिथी १४ जोजन ने २ त्रिजाभागे अलोक आवे. छठीथी १५ जोजन ने १ त्रिजाभागे त्रिछो अलोक आवे. सातमी नरके १६ जोजने त्रिछो अलोक आवे Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ११९ सातमे आधार कहे छे.साते नरक श्याने आधारे रहिछे ? २० हजार जोजननोघनोदधि जाडपणे छे.असंख्याता जोजननो लांबपणे पहोलपणे छे. असंख्याता जोजननी परिधि छे. ते थीना घी सरिखो जाणवो. असंख्याता जोजननो घनवाय छे. ते विर्या घी सरिखो जाणवो. असंख्याताजोजननो तनुवाय छे. ते तपाव्या घी सरिखो जाणवो. तेहने आधारे ७ नर्क रहि छे. एकेकि नरके त्रण त्रण वळाका छे. असंख्याताजोजननो आकाशास्तिकाय छे. वीशहजार जोजननो घनोदधि जाडपणे छे. छेहडे जाता छ जोजननो रह्यो. पेहली नरके छ जोजननो घनोदपि. बिजी नरके छ जोजनने १ त्रिजोभाग. त्रिजी नरके छ जोजन ने २ त्रिजाभागे. चोथी नरके ७ जोजननो घनोदधि.पांचमी नरके ७ जोजन ने १ त्रिजोभाग.छठी नरके ७ जोजन ने २ विजाभाग. सातमी नरके ८ जोजननो घनोदधि. असंख्याताजोजननोधनवायछे. छेहडेजातां साडाचारजोजननो रह्यो. पहेलिनरकेसाडाचारजोजननोधनवायछे.बिजीनरके पोणापांचजोजननोधनवायछे. त्रिजी नरके ५ जोजननो धनवाय छे. चोथी नरके सवापांच जोजननो घनवाय छे. पांचमी नरके साडा पांच जोजननो धनवाय छे. छठी नरके पोणा छ जोजननो घनवाय छे. सातमी नरके ६ जोजननो घनवाय छे. असंख्याता जोजननो तनुवाय छे. छेहडे जाता दोढ जोजननो रह्यो.पहेलो नरके दोढ जोजननो तनुवाय. बिजी नरके दोढ जोजन ने १ बारियो भाग. त्रिजी नरके दोढ जोजन ने २ बारिया भाग. चोथी नरके दोढ जोजन ने ३ बारिया भाग. पांचमी नरके दोढ जोजन ने ४ बारिया भाग. छठी नरके दोढ जोजन ने ५ बारिया भाग. सातमी नरके २ जोजननो तनवाय छे. तेहने आधारे ७ नरकरहि छे. ७ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० पांच बोल. आठमे आंतराकहेछे.पहेली नरके १३पाथडा ने१२आंतरा छे. अकेका पाथडाने ११५८३ इग्यारहजार पांचसें त्यासीजोजनने १त्रिजा भागनुं आंतरं. बिजी नरके११पाथडा ने१०आंतरा एकेका पाथडाने सता[सें जोजन- आंतलं. त्रिजी नरके ९ पाथडा ने ८ आंतरा एकेका पाथडाने बारहजार त्रणसें पंचोतेर जोजननुं आंतरं. चोथी नरके ७ पाथडा ने ६ आंतरा छे, एकेका पाथडा ने सोल हजार एकसो छासठ जोजन ने २ त्रिजा भागर्नु आंतरं.पांचमी नरके ५पाथडाने४आंतरा,अकेका पाथडाने सवापचीशहजारजोजननुं आंतरं. छठी नरके ३पाथडा ने २आंतरा,एकेका पाथडाने साडाबावन हजार जोजननुं आंतरं. सातमी नरके १ पाथडो छे.आंतरुंनथी ८. हवे नवमे पुष्पाविकीर्ण ने आवलिका बंध नरकावासा कहे छे. पहेली नरके ओगणत्रीश लाख पंचाणु हजार पांचसें सडसठ पुष्पाविकीर्ण नरकावासा छे. अने चुमालिसें तेत्रीस पंक्तिबंध नरकावासा छे. एवं सर्व मळीने ३० लाख. बीजी नरके चोविस लाख सताणुहजार त्रणसें पांच पुष्पाविकीर्ण नरकावासा छे, अने छविसे ने पंचाणु पंक्तिबंध नरकावासा छे.एवं सर्व मळीने २५ लाख. त्रिजी नरके चौदलाख अठाणुंहजार पांचसे पंदर पुष्पाविकीर्ण नरकावासा छे, अने चौदसें पंच्यासी पंक्तिबंध नरकावासा छे. एवं सर्व मळीने १५ लाख. चोथोनरके नव लाख नवाणुं हजार बसें त्राणुं पुष्पाविकीर्ण नरकावासा छे, अने सातसें सात पंक्तिबंध नरकावासा छे, एवं सर्व मळीने १० लाख. पांचमी नरके बेलाख नवाणु हजार सातसें पांत्रीस पुष्पाविकीर्ण नरकावासा छे, अने बसें पांसठ पंक्तिबंध नरकावासा छे. एवं सर्व मलिने ३ लाख. छठी नरके नवाणुं हजार नवसें बत्रीस पुष्पाविकीर्ण नरकावासा छे, अने ६३ पंक्ति Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. . १२१ बंध नरकावासा छे,सर्व मली ९९९९५ सातमी नरके ५ पंक्तिबंध छे, साते नरकना त्यासी लाख नेq हजार त्रणसें सडतालीस पुष्पाविकीर्ण नरकावासा छे. अने साते नरकना नव हजार छसें त्रेपन पंक्तिबंध नरकावासा छे. सर्व मळी ८४ लाख नरकावासाजाणवा ९. दशमे अंधकार कहे छे. नरकनोअने अशुभ पुद्गलनो अंधकार१०. ___इग्यारमे नारकिने उपजवाना स्थानक कहे छे. कुंभिने आकारे घडाने आकारे, पेटोने आकारे, कुंडाने आकारे, एवं नानाविध विषम स्थानके उपजे ११. बारमे क्षेत्र वेदना कहे छे. क्षुधा, तृषा, शित, उष्ण, दाह, ज्वर, भय, शोक, खरज, परवश ए १० प्रकारनी अनंति वेदना छे. तेरमे १५ परमाधामिना नाम कहे छे. अंब, अंबरिस, शाम, सलब, रुद्र, वैरुद्र, काल, महाकाल, अशिपत्र, धनूष, कुंभ, वालु, वेतरणी, खरस्वर, महाघोष. . हवे चौदमे जीव अजीवना परिणाम कहे छे. जीव परिणामना १० भेद ते गति परिणाम, इंद्रिय परिणाम, कषाय परिणाम, लेसा परिणाम, जोग परिणाम, उपयाग परिणाम, नाण परिणाम, दसण परिणाम, चरित्त परिणाम, वेद परिणाम. हवे अजीव परिणामना १० भेद कहे छे, बंधन परिणाम, गति परिणाम,संठाण परिणाम,भेद परिणाम,वर्ण परिणाम, गंध परिणाम, रस परिणाम,स्पर्स परिणाम,अगुरु लघु परिणाम,शब्द परिणाम.१४. पनरमे अवधिज्ञाने देखवू कहे छे.पहेली नरकना नारकि जघ० साडा त्रण गाउ देखे उन्० चार चार गाउ देखे. बिजीनाजघ० ३ गाउ,उत्० साडा अण गाउ देखे. त्रिजीना जघ० अढि गाउ उत्० त्रण गाउ देखे. चोथीनाजघ० बेगाउ,उतू० अढि गाउ देखे.पांचमीना Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ पांच बोल. जघ० दोढ गाउ उत्० २ गाउ देखे, छठीना जघ० १ गाउ, उत् दोढ गाउ देखे. सातमीना जघ० अर्द्ध गाउ, उत्०१ गाउ देखे.१५ __ सोळमे संघयण कहेछे.पहेली बिजी नरके छ संघयणनो धणीजाय. त्रिजी नरके छेवटु वर्जिने पांच संघयणनो धणी जाय. चोथीये किलकु ने छेवटु ए २ वर्जिने चार संघयणनो धणी जाय. पांचमी नरके ३ संघयणनो धणी जाय ते किलकु छेवटु ने अर्द्ध नाराच ए३ वर्जिने. छठीनरके,वज्रऋषभनाराचसंघयण ने ऋषभ नारचसंघयण ए २ नो धणि जाय. सातमीये, १ वज्रषभनाराचसंघयणनो धणि जाय. सत्तरमे कोणजीव केइनरकेउपजे ते कहेछे-असंज्ञीतिर्यच पहेली नरक सुधि उपजे. भुजपर बीजीमुधिउपजे. खेचरतियेच त्रिजीनरक मुधिउपजे.थलचरतिर्यच चोथीनरकसुधिउपजे. उरपरतियेच पांचमी नरकमुधिउपजे. स्त्री छठीनरकमुधिउपजे.सातमी नरके जलचरमच्छ ने संजीमनुष्यआविउपजे. अढारमे अशुभ वर्ण. गंध, रस, स्पर्स भोगवताथका नारकिविचरे छे. १८. इतिनारकिनो बोल समाप्त. हवे बिजो भवनपतिनोद्वारकहे छे-पहेले नाम, बिजे चिन्ह, त्रिजे वर्ण, चोथे वस्त्र, पांचमे सामानिक, छठे आत्मरक्षक, सातमे देवांगना, आठमे अणिका,नवमे अणिकानाअधिपति, दशमेउद्योत, इग्यारमे परिषद, बारमे लोकपाल, तेरमे त्रायत्रिंशक,चौदमेटबोल. पहेले नामकहेछे-असुरकुमार, नागकुमार, सुवर्णकुमार,विज्जुकुमार, अग्निकुमार, द्विपकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार, पवनकुमार, थणितकुमार. बिजे चिन्ह कहेछे-असुरकुमारने चुडामणिमुगटनुचिन्ह. नाग कुमारनेफेणचिन्ह, सुवर्णकुमारनेगरुडनुचिन्ह, विज्जुकुमारनेवज्रनुं Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १२३ चिन्ह, अग्निकुमारनेकलशनुचिन्ह, द्विपकुमारनेसिंहनुचिन्ह, उदधि कुमारनेघोडामुंचिन्ह, दिशाकुमारनेगजनुचिन्ह, पवनकुमारने मगरमच्छर्नुचिन्ह,थणितकुमारनेसंपुटचिन्ह. हवे त्रिजे वर्ण कहेछे, असुरकुमारनो श्यामवर्ण. नागकुमारने उदधिकुमारनो धोलोवर्ण. विज्जुकुमार, अग्निकुमार ने द्विपकुमारनो रातोवर्ण. सुवर्णकुमार, दिशाकुमारने थणित कुमारनोपीलोवर्ण. पवन कुमारनोनिलोप्सलकमलसरिखोनिलोवर्ण, ३. ____ हवेचोथेवस्त्र कहेछे. राता, निला, पिला, घोळा, विविधमकारना तेपण संध्यानारंगसरिखा जाणवा. __हवेपांचमे सामानिक कहेछे.दक्षिणदिशाना चमरेंद्रनेचोसठहजार सोमानिकछे,उत्तरदिशाना बलेंद्रनेसाठहजारसामानिकछे,धरणेंद्रादिक १८ इंद्रने छ छ हजार सामानिकछे. छठे-आत्मरक्षक ते सामानिकयी चोगुणा जाणवा. सातमेदेवांगनाकहेछे-चमरेंद्र तथा बलेंद्रने पांच पांचदेवीओ जाणवी.एकोकदेवी आठआठहजाररुप वैक्रेषकरे,भोगभोगववाने अर्थे धणिपणएटलारुपवैक्रेयकरे,धरणेंद्रादिक१८इंद्रने छछदेविओजाणवी. एकेकीदेवी छछहजाररुपवैक्रेयकरे,भोगभोगववानेअथैधणिपणएटला रुपवैक्रेय करे. हवे आठमे अणिका७कहेछे. गंधर्व, नट, हय, गय, रथ, सुभट, महीष ८. नवमे बोले आणकाना अधिपति एमज जाणवा. हवे १० मे उद्योत कहेछे देवतानो उद्योत, देवीउनो उद्योत, आभरणनोउद्योत, शुभपुद्गलनोउद्योत, १०. हवे११मेत्रणपरिषद कहेछे. दक्षिणदिशाना चमरेंद्रनी३परिषद. समीया, चंडा, जाया, समीयानो २४हजारनोपरिवार, चंडानो २८ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ पांच बोल. हजारनो परिवार, जायानो ३२ हजारनो परिवार, समीया तेडया आवे ने मोकल्या जाय ते साथे गुझ वात करे चंडा तेडया आवे ने अणमोकल्या जाय ते साथे गुझवात न करे अने करणकरावण करे. जायाअणतेडया आवे ने अणमोकल्या जाय एहने कामकाज दिये. हवे एहना नवनीकायना देवतानि ३ परिषद तेमांहि अभ्यंतर परिषदना साठहजार, मझम परिषदना सितेरहजार, बाहिरली परिपदनाऐंसीहजार.दक्षिणदिश ना चमरेंद्रनि देवीओनी परिषद तेमाहि अभ्यंतरनि३५०देवीओ,मझमपरिषदनी३००देवी,बाहिरलीपरिषदनी २५०देवीओ. हवे एहना नवनीकायना देवतानी, देवीओनी ३ परिषद तेमांहि अभ्यंतरनी१७५देवीओ,मझमनी१५० देवीओ, बाहिरलीनि१२५देवीओ,ए सर्व परिवार दक्षिणदिशाना चमरेंद्रनो जाणवो. एमज उत्तरदिशाना बलेंद्रनी३परिषदजाणवी पण एटलो फेर पहेलीना २०हजारदेवता.बिजाना२४हजारदेवता. त्रिजाना२८हजारदेवता.हवे एहना नवनी कायना देवतानी त्रण परिषद ते पहेलीना पचासहजार बीजीनासाठहजार,त्रीजीनासितेरहजार.बलेंद्रनी देवीओनी३परिषद. पहिलोनी४५०देवीओ,विजीनी४००देवीउ,त्रिजीनी३५०देवीओ.हवे एहना नवनीकायना देवतानिदेवीओनी त्रण परिषद. पहेलीनी२२५ देवीओ. बिजोनी२००देवीओ. त्रिजीनी १७५. ११. __बारसे लोकपालकहेछे. सोम, जम, वरुण, वेसमण. सोमनो वारो पूर्वदिशे, जमनोवारोदक्षिणदिशे, वरुणनोवारो पश्चिमदिशे, वेसमणनोवारो उत्तरदिशे. शोमने वारे सुखशाता होय. जमनेवारे मारमरकिने मेघ घणाहोय. वरुणने वारे गड गुंबड ने रोग घणा होय. वेसमणने वारे सुगाल सुभिक्ष ने लाभ घणा होय. १२ तेरमे त्रायत्रिंशक ३३ छे. ते गुरु समान, प्रोहित समान, पूज्य Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. . १२५ समान, मित्र समान, पिता समान, आज्ञा आराधक छे. १३. चौदमे शुभ वर्ग, गंध, रस, स्पर्श, भोमक्ता थका भवनपति विचरे छे. २. हवे त्रिजो वाणन्यंतरनो द्वार कहे छे. पहेले नाम, विजे चिन्ह, निजे वर्ग, चोथे वस्त्र, पांचमे सामानिक, छठे आत्म रक्षक, सातमे देवांगना, आठमे अणिका, नवमे अणिकाना अधिपति, दशमे उद्योत, इग्यारमे परिषद, बारमे ४ बोल. पहेले नाम कहे छे पिशाच, भुत,जक्ष, राक्षस, किंनर, किंपुरुष, महोरग, गंधर्व, आणपन्ने, पाणपन्ने, इसीवाइ, भुइवाइ, कंदीय, महा कंदीय, कोहंड, पयंगदेव. १६. बिजे चिन्ह कहे छे, पहेलाने कलंबवक्षनुचिन्ह, विजाने शालिवृक्षy चिन्ह, त्रिजाने वक्षनु चिन्ह, चोथाने पाडलिवृक्षनु चिन्ह, पांचमांने अशोकक्षyचिन्ह, छठाने चंपकक्षनुचिन्ह, सातमाने नाग वृक्षनुचिन्ह, आठमाने टिंबरु वृक्षy चिन्ह, ए ८ दक्षिण दिशानां कह्या. एमज ८ उत्तर दिशाना जाणवा. २. हवे त्रीजे वर्ण ते पहेला, त्रिजा, सातमा ने आठमा ए चारनो श्याम वर्ण, बीजानो कालो वर्ण, पांचमानो निलोवर्ण, चोथा ने छठानो धोलो वर्ग. हवे चोथे वस्त्र कहे छे. निला राता पीळा ने धोला विविध प्रकारना ते पण संध्याना रंग सरिखा जाणवा, ४. पांचमे सामानिक ते एकेकाने चारचार हजार सामानिक देवताछे.५ छठे आत्मरक्षक ते सामानिकथी चोगुणा जाणवा. ६. सातमे देवांगना ते एकेकाने चार चार देवीओ छे. एकेकी देवी १ हजार रुप वैक्रेय करे,भोग भोगववाने अर्थे धणी पण एटला Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांच बोल. १२६ रुप वैक्रेय करे. ७. हवे ८ मे ७ अणिका कहे छे. गंधर्व, नट, हय, गय, रथ, पायक, महीष, ८. नवमे अणिकाना अधिपति एमज जाणवा ९. हवे ९० मे उद्योत कहे छे. देवतानो, देवीनो, आभरणनो शुभ पुद्गलनो १०. हवे ११ मे ३ परिषद. समीयाना ८ हजारदेवता, चंडाना १० हजार देवता. जायाना १२ हजारदेवता. आवकुं जानुं प्रथमनि रिते जाणवु. बारमे शुभवर्ण, गंध, रस, स्पर्श भोगवता थका वाणव्यंतर विचरे छे. १२ इति वाणव्यंतरनो द्वार समाप्तं ३ sa चोथो ज्योतिषीनो द्वार कहे छे. पहेले नाम, बिजे वाहक, त्रिजे वर्ण, चोथे वस्त्र, पांच सामानिक, छठे आत्मरक्षक, सातमे लांबपणुं ने पहोलपणु, आउनु उंचपणुं ने जाडपणुं, नवमे पंक्ति, दशमे परिषद, इग्यारमे उद्योत, बारमे देवीओ, तेरमेनित्यरा हुने पर्व राहु, चौदमे परिवार, पनरमे अणिका, सोलमे अणिकाना अधिपति, सतरमे संघपण, अठारमे व्याघात, ओगणिसमे निर्व्याघात, विशमे देख, एकविशमे चाल, वाविशमे तप, त्रेविशमे उंचपणु, चोविशमे आंतरं, पचीशमे४बोल. पहेले नाम ते चंद्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारा. १. विजे वाहक कहे छे, चंद्रमा सूर्यना विमानने सोल सोल हजार देवता उपाडेछे तेहनोविवरोकछे. चारहजारदेवता सिंहने रूपे पूर्वदिशे उपाडे छे. चारहजारदेवता हाथिनेरूपे दक्षिण दिशेउपाडेछे, चार हजार देवतानृषभनेरुपे पश्चिमदिशे उपाडेछे. चारहजारदेवता घोडानेरुपे उत्तरदिशेउपाडेछे, एवं १६ हजार देवता चंद्रमा सूर्यना विमानने Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १२७ उपाडे छे. आठहजारदेवता ग्रहनाविमाननेउपाडेछे. चारहजारदेवता नक्षत्राविमानने उपाडे छे. बेहजारदेवता ताराना विमानने उपाडेछे. ते चारे दिशे पांच सें पांच सें एवेजरुपे जाणवा. राहुने चंद्रमानी परेजाणवु. २ त्रिजे वर्ण कहे छे. ज्योतिषीना विमाननी मांहि कनकनो वर्ण ने बाहिरनो स्फाटिक रत्न समान जाणवो. चोथे वस्त्र पूर्वनी परे विविध प्रकारना जाणवा ते पण संध्यानारंग सरिखाजाणवा. ४. पांच सामानिक देवता ४ हजार जाणवा. छठे आत्मरक्षक देवता १६ हजार जाणवा. सातमे बोले लांबपणु ने पहोलपणुं कहे छे— चंद्रमानुं विमान एक जोजन ६१ भाग करिये तेहवा५६ भागनुं लांबु ने पहोलुं छे. सूर्यनुं विमान एकसठिया ४६ भागनुं लांं ने पहोलुं छे. ग्रहनुं विमान २गाउनु लांबुने होलुंछे. नक्षत्रनुं विमान १गाउनुं लांबुने पहोलुं छे. तारानुं विमान अर्द्ध गाउनुं लांबु ने पहोलुं छे. ७. आठमे उंचपणु ने जाडपणुं कहेछे, चंद्रमानुं विमान एकसठिया २८भागनुं उंचुंनेजाडुं.सूर्यनुंविमान एकसठिया २४भागनुं उंचुंनेजाई छे. ग्रहनुंविमान १ गाउनुं उंचुंनेजाई छे, नक्षत्रनुंविमान अर्द्धगाउनु उचुंनेजाडुं छे. तारानुं विमान पा गाउनुं उचु ने जाडुं छे. ८. नवमे पंक्ति कछे छाशठछाशठनि ४ पंक्ति छे, १३२ चंद्रमाने १३२ सूर्य छे ए बेहुलीने २६४. हवे गति कहे छे सर्वथी मंद गति चंद्रमानि तेहथी सूर्यनी शीघ्र गति, तेहथी ग्रहनि शीघ्र गति, तेहथी नक्षत्रनी शीघ्रगति, तेहथी तारानी शीघ्र गति सर्वथी थोडिरूद्धि तारानी तेहथी नक्षत्रनी अधिक रुधि जाणवि, तेहथी ग्रहनी अधिक रुद्धि जाणवि. तेहथी सूर्यनी Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ पांच बोल, ९. अधिक रुद्धि जाणवी. तेहथी चंद्रमानी अधिक रुद्धि जाणवी. दशमे परिषद कहे छे. परिषद ३ इशा, तुडिया, पच्चा. पहेलीना ८ शहस्त्र देवता, बिजाना १० सहस्र देवता, त्रिजाना१२ सहस्रदेवता १०. इग्यारमेयोत कछे. देवतानो, देवीनो, आभरणनो शुभपुद्गलनो, विमाननो, ११. बारमे देवी कहेछे, एकेकाने चारचार देवीउ छे एकेकि चार चार हजार वैक्रे यरुपकरे, धणीपण भोगने अर्थ एटलारूप वैक्रेय करे. D तेरमे नित्य राहु ने पर्वराहु कछे नित्यराहु ते चंद्रमाने केडे छे. ते अमावास्यानी एकमथी मांडिने एकेकि कळा छोडतो जाय. पुनमने दिने चंद्रमा १६ कळा संपूर्ण थाय, अने पुनमने पडवेथी एकेकि कळा दबावतो जाय अमावास्याने दहाडे १ कळा चंद्रमांनि रहे, अने पर राहु बेहुने आडे आवे, चंद्रमानुं ग्रहण उघ०६मासे उत्० तालिश मासे आवे अने सूर्यनुं ग्रहण जघ० ६मासे उत्० अडतालीशवर्षेआवे तेहमां नित्यराहुना विमान श्यामवर्णाछे अने पर्वरा हुन विमानपंचवर्णा. ते नित्य राहुना २ विमान अने पर्वर |हुना २० विमानजंबुद्विपमां छे. चंद्रमा सूर्पना मांडला क्षेत्रफरशे तो५१० जोजन क्षेत्र फरशेते मांहि. १८० जोजन जंबुद्विप मांहि फर से अने ३३० जोजनलवण समुद्रमां फरशे. चंद्रमाना. १५ मांडला छे तेमांहि. ५ मांडला जंबुद्विप मांहि करे अने १० मांडला लवण समुद्रमां करे. मांडलेनो मांडले आवेतो १५ दिने आवे. सूर्यना १८४मांडला छे. तेमांहि. ६५ मांडला जंबुद्विपमां करे अने ११९ मांडला लवण समुद्रमां करे. मांडलेनो मांडले आवे तो छ मासे आवे. सूर्यने मांडले व वे जोजननुं आंतरु, चंद्रमा मांडले मांडले ३५ जोजनने एकसठिया ३१भाग भने एकसठीया एकभागना ७भाग करिये तेहवा ४ चुरणिया भागनुं आंत रु. १३. Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. चौदमे परिवार कहे छे. एक चंद्रमा ने एक सूर्यनो परिवार. २८ नक्षत्र, ८८ ग्रह, अने छाशठ हजार नवसें पंचोतेर क्रोडाक्रोहि तारा छे. एटलो परिवार जाणवो. १४. पंदरमे बोले ७ अणिका कहे छे. गांधर्व, नट, इय, गय, रथ, सुभट, वृषभ, १५. सोळमे अणिकाना अधिपति एमज जाणवा. १६. सतरमे संघयण कहे छे छ ये संघयणनो धणी ज्योतिषी थाय.१७. अढारमे व्याघात कहे छे. व्याघात सहित आंतरं पड़े तो एक विमानथी बिजा विमानने जघ०२६६जोजन-आंतरं, अनेउत्०१२ हजारबसेने४२जोजन- आंतरं. १८. ___ओगणिशमे निर्व्याघात कहे छे. निर्व्याघात सहित आंतरं पडे तो जघ० ५००धनुषy, उत्विमान विमानने २गाउनु आंतरं. ___हवे विशमे देखवू कहेछे. अषाढ मासे कर्क संक्रांति ने दहाडे १८मुहर्तनो दिवसने १२मुहूर्तनि रात्रि ते दिवसे उगतो सूर्य ४७२६३ जोजनने साठिया२१भाग वेगळेथी उगतो देखाय. अने पोत्र मासे मकर संक्रांतिने दहाडे १२ मुहूर्त्तनो दिवस ने १८ मुहूर्ननि रात्रि ते दिवशे उगतो सूर्य ३१८३१ जोजनने एकसठिया ३० भाग वेग थी उगतो सुर्य देखाय. २०. ___एक विशमे चाल कहे छे. अषाढ मासे कर्क संक्रांतिने दारे एकेक मुहूर्ते सूर्य पांच हजार बसें एकावन जोजनने साठिया ओगणत्रिश भाग चाले. आखे दिवशे थइ ने ९४५२६ जोजमने साठिया ४२भाग चाले अने पोष मासे मकरसंक्रांतिने दहाडे एकेक मुहर्ने सूर्य. ५३०५ जोजनने साठिया १५भाग चाले आखे दिवसे थइने. ६३६६३ जोजन चाले. २१. Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० पांच बोल. .. बाविशमे तपत्रो कहे छे. सूर्य उंची १०० जोजन तपे छे, हेठो १८०० जोजन तपे छे अने त्रिछो ४७२६३ जोजनने साठिया २१ भाग तपेछे. २२. विशमे उंचपणुं कहेछे-समभूतल थकी ७९० जोजन उंचा जइये तिवारे तारामंडल आवे तिहाथी१०जोजन उंचपणे सूर्यविमान छे, तिहांथी८० जोजन उंचपणे चंद्रमान विमान छे, तिहाथी ४जोजन उंचपणे नक्षत्रना विमान छे, तिहांथी४जोजन उंचपणे बुधनो तारो छे, तिहांथी३जोजन उंचपणे शुक्रनो तारो छे, तिहाथी ३जोजन उंचपणे बृहस्पतिनो तारो छे, तिहांथी३जोजन उंचपणे मंगलनो तारो छे, तिहांथी३जोजन उंचपणे छेहलो शनिश्चरनो तारो आवे एम ११० जोजनमां ज्योतिष चक्र छे. २३. ___ चोविसमे आंतरं कहे छे. चंद्रमां चंद्रमाना विमानने सूर्य सूर्यना विमान ने १ लाख जोजन- आंतरं छे, अने चंद्रमा सूर्यना विमानने अर्द्ध लाख जोजननु आंतरं छे. पचीशमे बोले शुभ वर्ण गंध रस स्पर्श भोगवता थका ज्योतिषि विचरे छे. २५, हवे पांचमो वैमानिकनो द्वार कहे छे. पहेले नाम, बिजे आधार, त्रिजे वर्ण,चोथे वस्त्र, पांचमे सामानिक, छठे आत्मरक्षक, सातमे जाडपणु,आठमेउंचपणुं नवमे पुष्फाविकीर्णविमान,दशमे आवलिकाबंधविमान,इग्यारमे परिषद्,बारमे उद्योत, तेरमेदेवीओ,चौदमे लोकपाल, पनरमे त्रायत्रिशक, सोळमे७अणिका, सतरमे अणिकाना अधिपति,अढारमे संघषण,ओगणीशमे अवधिनुंदेख,विशमे ४बोल. पहेले नामकहेछ. सुधर्म.१, इशान २, सनतकुमार ३, माहेंद्र ४, ब्रह्मलोक ५, लंतक ६, महाशुक्र ७, सहस्त्रार ८, आणत ९, प्राणत १०, Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. आरण११, अच्युत१२. नव ग्रैवेयकना नाम भद्दे, सुभद्दे, सुजाए, सुमाणसे, पीयदंसणे, सुदंसणे, आमोहे, सुपडीबद्ध, जसोधरे. पांच अनुत्तर विमानना नाम, विजय, विजयंत, जयंत, अपराजित, सर्वार्थसिद्ध. हवे मुक्ति शिलाना नाम-इसीतीवा, इसिपभारातीवा,तणुतीवा, तणुतणुतीवा, सिद्धितीवा, सिद्धालएतिवा, मुत्तितिवा, मुत्तालएतिवा, लोयगेतिवा, लोगथुभिएतिवा, लोगपडिबोहएतिवा, सव्वपाणभुयजीवसत्तसुहावहेतिवा. ___ बिजे आधार कहे छे. पहेला बे देवलोक घनोदधिने आधारे रह्या छे. त्रिजुचो) ने पांचमु ए ३ देवलोक घनवायने आधारे रखा छे. छटुं सातमु ने आठमु ए ३ देवलोक घनोदधि घनवाय बेने आधारे रह्या छे. नवमांथि ते सर्वार्थसिद्ध मुधि एक आकाशने आधारे प्रतिष्ठित छे. विजे वर्ण कहे छे. पहेले बिजे देवलोके ५ वर्ण लाभे, प्रिजे चोथे देवलोके १ कालो वजिने ४ वर्ण लाभे, पांचमे छठे देवलोके ३ वर्ण लाभे ते कालो ने निलो ए २ वा. सातमे, आठमे २ वर्ण लाभे, पीलो ने धोलो.नवमांथि ते सर्वार्थसिद्धलगे १धोळो वर्ण लाभे. चोथे वस्त्र कहे छे. वार देवलोकना देवताना वस्त्र विविध प्रकारना ते पण सध्याना रंग सरिखा जाणवा. उपरे वस्त्रनुं कारण नथी. ___पांचमे सामानिक कहे छे. पहेला देवलोकना देवता ने ८४ हजार सामानिक देवता. विजाने ८० हजार सोमानिक, त्रिजाने ७२ हजार सामानिक, चोथाने ७० हजार सामानिक, पांचमाने ६० हजार सामानिक, छठाने ५० हजार सामानिक, सातमाने ४० हजार सामानिक, आठमाने ३० हजार सामानिक, नवमां दशमांने र हजार सामानिक, इग्यारमा बारमांने १० हजार सामानि Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ पांच बोल. छठे बोले आत्मरक्षक कहे छे. सामानिकथी चोगुणा जाणवा. सातमे विमानना भोयतळीयान जाडपणुं कहे छे. पहेला बिजा देवलोकनुं तळीयु २७०० जोजन- जाडु, त्रिजा चोथा देवलोकन वळीयु २६०० जोजननु जाडं, पांचमां छठा देवलोकनुतळीयु २५०० जोजननु जाडु, सातमा आठमा देवलोकन तळीयुं २४०० जोजननं जाई. नवमां, दशमां, इग्यारमां, बारमां देवलोकनुं तळीयुं २३०० जोजन- जाडु, नव ग्रैवेयकनुं तळीयु २२०० जोजननुं जाई छे, पांच अनुत्तर विमाननु तळीयुं २१०० जोजन- जाडुं छे. ___ आठमे महोलनु उंचपणु कहे छे. पहेला बिजा देवलोकना ५०० जोजनना उंचा महोल, विजा चोथा देवलोकना ६०० जोजनना उंचा महोल, पाचमा छठा देवलोकना ७०० जोजनना उंचा महोल, सातमां आठमां देवलोकना ८०० जोजनना उंचा महोल, नवमां दशमां इग्यारमा ने वारमा देवलोकना ९०० जोजनना उंचा महोल, नव ग्रैवेयकना १००० जोजनना उंचा महोल, पांच अनुत्तर विमानना ११००जोजनना उंचा महोल, हवे प्रतर कहे छे.पहेले विजे देवलोके १३ प्रतर छे. त्रिजे चोथे देवलोके १२ प्रतर छे, पांचमे देवलोके ६ प्रतर, छठे देवलोके ५ प्रतर, सातमे, आठमे, नवमे, दशमे, इग्यारमे ने बारमे ए ६ देवलोके चार चार प्रतर छे. नवग्रैवेकमां ९ प्रतर, पांच अनुत्तर विमाननो.१ प्रतर, ए सर्व मळी ६२ प्रतर जाणवा. नवमे पुष्फाविकीर्ण विमान कहे छे. चोरासीलाख नेवासीहजार एकसो ओगणपचास पुष्फाविकीर्ण विमान जाणवा. दशमे आलिका बंध विमान अठोतेरसो ने चुमोतेर जाणवा. हवे ११ मे परिषद कहे छे.पहेला देवलोकना इंद्रने ३ परिषद.पहेलीना १२ हजार देवता, बीजीना १४ हजार देवता, त्रिजीना Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत मकरण संग्रह. १३३ १६ हजार देवता, एम बिजा देवलोके १० सहस्र, १२ सहस्र, १४ सहस.त्रीजा देवलोके ८ सहस्र, १० सहस्र,१२ सहस्त्र. चोथे देवलोके ६ सहस्र, ८ सहस्र, १० सहस्त्र. पांचमे देवलोके ४ सहल. ६ सहस्र, ८ सहस्र. छठे देवलोके २ सहस,४ सहल, ६ सहस. सातमे हेवलोके १ सहस, २ सहस, ४ सहस्र, आठमे देवलोके ५००, १ सहस, २ सहस्र, नवमे दशमे देवलोके २५०, ५००, १०००. इग्यारमे बारमे देवलोके १२५, २५०, ५००. हवे बारमे उद्योत कहे छे देवतानो देवीनो, आभरणनो, शुभ पुगलनो, ने विमाननो. तेरमे देवाओ कहे छे. एकेका इंद्रने आठ आठ देवीओ छे. एकेकि देवी सोळ सोळ हजार रूप वैक्रेय करे, अने धणी पण एटला रूप वैक्रेय करे. चौदमे लोकपाल कहेछे. एकेका इंद्रने चार चार लोकपाल छे. वारा पूर्वनिपरे जाणवा. सोम ने जमर्नु आयुष १ पल्यने १ पल्यना त्रिजा भागनुं अधिक जाणवू, वरुणर्नु देशे उणा २ पल्यनुं आयुष जाणवू वेशमण- पुरा बे पल्यनुं आयुष जाणवू. पनरमे त्रायत्रिसक ते पूर्वनीपरे जाणवा. सोलमे अणिका ७ ते गंधर्व, नट, हय, गय, रथ, पाळा, वृषभ. सत्तरमे अणिकाना अधिपति एमज जाणवा. आढारमे संघयण कहे छे. पहेलाथी ते चोथा देवलोक सुधी ६ संघयणनो धणी जाय पांचमे छठे देवलोके १ छेवटु वर्जिने पांच संघयणनो धणी उपजे. सातमे आठमे देवलोके ४ संघयणनो धणी जाय ते किलकु ने छेवटु ए २ वर्जिने. नवमे दशमे इग्यारमे बारमे देवलोके ३ संघयणनो धणी जाय.नव ग्रैवेयकमां २ संघयणनो पणी Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ वीस पदवीना बोल. जाय. पांच अनुत्तर विमानमा १ वज्ररुषभनाराचसंघयणनो धणीउपजे. ओगणीशमे अवधनुं देख कहे छे. पहेला बिजा देवलोकना देवता निचुं पहेली नरकना तळा सुधी देखे, उंचुं पोताना विमाननी ध्वजा लगे देखे. त्रिछु असंख्याता द्विप समुद्र लगे देखे. त्रिजा चोथा देवलोकना देवता नीचुं बीजी नरकना तळा सुधी देखे, उंचुं त्रि तेटलुंज देखे. पांचमां छठा देवलोकना देवता नीचुं त्रिजी नरकना तळा सुधी देखे, उंचुं त्रिछं तेटलुंज देखे. सातमां आठमां देवलोकना देवता नीचुं चोथी नरकना तळा सुधो देखे, उच्च त्रिधुं तेटलुंज देखे. नवमां दशमां इग्यारमां ने बारमा देवलोकना देवता नीचुं पांचमी नरकना तळा सुधी देखे, उचुं त्रिछु तेटलुंज देखे. नवग्रैवेयकना देवता नीचुं छठी नरकना तळा सुधी देखे, उंचुं त्रिलुं तेटलुंज देखे. सर्वार्थसिद्ध महा विमानना देवता किंचित् उणिलोक नाली देखे. नारकी त्रापाने आकारे देखे. भुवनपति पालाने आकारे देखे. व्यंतर झालर ने आकारे देखे. ज्योतिषि पडहाने आकारे देखे. १२ देवलोकना देवता मादलना आकारे देखे. नवग्रैवेयकना देवता विखर्या फलने आकारे देखे. चार अनुत्तर विमानना देवता कुंवारीकाना कंचुवाने आकारे देखे. सर्वार्थसिद्धना देवता जवनालिने आकारे देखे. विशमे बोले शुभ वर्ण गंध रस स्पर्श भोगवता थका वैमानिक विचरे छे. इति पांचमो वैमानिकनो द्वार समाप्तं इतिपांचबोलसमाप्तं. ॥ अथ श्री वीस पदवीना बोल. ॥ तेना नाम कछे प्रथम ७एकेंद्रिय रत्न, ७पंचेंद्रिय रत्न ९ महोटी पदवी, तेहमां ७ एकेंद्रिय रत्नना नाम कहे छे. चक्ररत्न, छत्र रत्न, चर्मरत्न, • Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. दंडरत्न,अशिरत्न,मणिरत्न,कांगणिरत्न. ए७एकेंद्रियरत्ननानामकया. हवे ७ पंचेंद्रिय रत्नना नाम कहे छे. सेनापति, गाथापति, वाद्धिक, पुरोहित, स्त्री रत्न, अश्व रत्न, गज रत्न ए पंचेंद्रिय रत्नना नाम कह्यां. हवे ९ महोटि पदवीना नाम कहे छे. अरिहंतनी, चक्रवर्तीनी, बलदेवनी, वासुदेवनी, केवलिनी, साधुनी, श्रावकनी, सम्यद्रष्टिनी, भंडलिक राजानी, ए ९ महोटि पदवी कही. एवं सर्व मळी २३ पदवी. - हवे १४ रत्न शुशुं काम करे? चक्ररत्न षखंड साधतां मार्ग बतावे, छत्र रत्न ते ४८ कोस प्रमाणे छाया करे, चर्मरत्न ते नदी आदे पार उतारे, दंडरत्न ते तमस गुफाना बार उघाडे, अशिरत्न ते शत्रुने हणे, मणिरत्न ते उद्योत करे, कांगणि रत्न ते ४९ मांडला आलेखे तथा तोला माप वधारे, सेनापति ते देश साधे, गार्थापति ते धान रसवती निपजावे, वाधिक ते आवास घर निपजावे, पुरोहित ते घाव साजा करे तथा शांतिकर्म करे विघ्न टाळे, स्त्रीरत्न ते भोग साधनने काम आवे, अश्व ने गज बेहु चडवाने काम आवे. हवे १४ रत्न किहां किहां उपजे ते कहे छे. चक्र, छत्र, अशि, दंड, ए चार आयुधशाळामां उपजे. चर्म मणि ने कांगणि ए३ लक्ष्मीना भंडारमा उपजे. सेनापति, गाथापति, वाधिक, पुरोहित, ए ४ पोताना नगरमां उपजे. स्त्री विद्याधरनी श्रेणिमां उपजे. अश्व ने गज ए २ वैताडने मूले उपजे. हवे १४ रत्ननी कायार्नु परिमाण कहे छे. चक्र छत्र ने दंड ए ३ वाम प्रमाणे वाम ते ४ हाथ प्रमाणे,चर्मरत्न ते २ हाथ प्रमाणे. खगरत्न ते ५० अंगुलनुं लांबू ने १६ अंगुलनुं पहोलू ने अर्द्ध अंगुजनुं जाडु. मणिरत्न ४ अंगुल, लांबू ने २ अंगुल, पहोलं. कांगणि रत्न ने छ तळां, आठ खुणां, बार हांशो, सोनीनी अहिरणने संठाणे Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ त्रेवीस पदवीना बोल. १ अंगुलन लांबू पहोल ने उंचं. सेनापति,गाथापति,वाद्धिक,पुरोहित ए४नी अवगाहना चक्रवर्ती प्रमाणे उंचि जाणवी स्त्रीरत्न चक्रवर्तीथी ४ अंगुल नीची होय. अश्वरत्न १०८ अंगुलनो लांबो काननामूलथी ते पुंछना मूललगे अने ८० अंगुलनो उंचो. गजरत्न चक्रवर्तिथी बमणो उंचो होय ए २३ पदवी. हवे कइ गतिमाहेथी निकल्यो ते केटली पदवी पामे ते कहे छे. पहेली नरकना निकल्या १६ पदवी पामे ते २३ मांहेथी ७ एकेंद्रिय रत्न वा. विजी नरकना निकल्या, १५ पदवी पामे पूर्वे १६ कहि तेहमांथी १ चक्रवर्तिनी वजि. त्रिजी नरकना नीकल्या तेर पदवी पामे ते १५ मांथी बलदेव ने वासुदेव ए बे वा. चोथी नरकना निकल्या १२ पदवी पामे ते तेर माथि १ तिर्थकर वा, पांचमी नरकना नीकल्या इग्यार पदवी पामे, ते १२ मांहेथी १ केवली वा. छठी नरकना नीकल्या दश पदवी पामे. ते साधुजी वा. सातमी नरकना निकल्या ३ पदवी पामे. अश्व गज सम्यक्त्वदृष्टि ए ३ पदवी पामे. भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी ए ३ नानीकल्या एकविश पदवी पामे, ते वासुदेवने १ तिर्थकर ए २ वा. पृथ्वी, पाणी, वनस्पति गर्भज मनुष्य ने गर्भज तिर्यंच, एटलाना निकल्या १९ पदवी पामे ते २३ मांथी तिर्थकर, चक्रवर्ती बलदेव, वासुदेव, ए ४ वा. बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चौरिद्रिय, समुर्छिम तिर्यंच ने समुर्छिम मनुष्य ए ५ ना निकल्या १८ पदवी पामे ते १९ मांथी १ केवलि वा. तेउवाउना निकल्या ९ पदवी पामे ते ७ एकेंद्रियरन ने हाथि, घोडो, ए ९ पदवी पामे. पनर परमाधामी ने पहेला किल्विषीना निकल्या १८ पदवी पामे ते २३ मांथी ४ उत्तम पुरुषने, १ केवलि वा. उपल्या २ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १३७ किल्विषीना निकल्या ११ पदवी पामे ते १८ मांथी ७ एकेंद्रिय वर्ज्या, शेष ११ पामे. सुधर्म, इशान, ए २ देवलोकना निकल्या २३ पदवी पामे. त्रिजाथी ते आठमां देवलोक सुधिना तथा नव लोकांतिकना निकल्या १६ पदवी पामे ते २३ मांथी ७ एकेंद्रिय रत्न वर्ज्या शेष १६ पामे. नवमां देवलोकथी नव ग्रैवेयक साधना निकल्या चौद पदवी पामे ते १६ मांथी अश्व, ने गज, ए २ वर्ज्या शेष १४ पामे. पांच अनुत्तर विमानना निकल्या ८ पदवी पामे ते २३ मांथी १४ रत्न ने १ वासुदेव वर्ज्या, शेष ८ पामे. संज्ञिमांहि १५ पदवी लाभे ते २३ मांथी ७ एकेंद्रिय ने १ केवलिनी ए ८ वर्जी, शेष १५ लाभे. असंज्ञि मांहि ८ पदवी लाभे ते ७ एकेंद्रिय ने १ समकीतनी ८ लाभे. तिर्थकर तथा चक्रवर्तीमा ६ पदवी लाभे ते तिथे - करनी, चक्रवर्तीनी, मंडलिकनी, समकितनी, साधुनी, ने केवलिनी ए ६ लाभे. वासुदेवम ३ पदवी लाभे वासुदेवनी, समकितत्री, मंडलिकनी, ए ३ लाभे. बलदेवमां पांच पदवी लाभे, बलदेवनी मंडलिकनी, साधुनी, केवलिनी, ने समकितदृष्टिनी, ए ५ लाभे. मनुष्य. मांहि पदवी १३ लाभे, नव महोटि पदवी ने सेनापति, गाथापति, बार्द्धिक, ने पुरोहित, एवं सर्व मळी १३ पदवी लाभे. मनुष्यणी मांहि पदवी ५ लाभे सम कितनी, श्राविकानी, साध्वीनी, केवलिनी, नेत्री रत्ननी. ए ५ इति २३ पदवीना बोल समाप्तं. अथ श्री सिझणाद्वार. १ पहेली नर्कना निकल्या एक समये १० सिझे. २ बिजी नर्कना निकल्या एक० १०. ३ श्रिजि नर्कना निकल्या एक० १०. Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिझणाद्वार. ४ चोथी नर्कना निकल्या एक० ४. ५. भवन पतिना निकल्या एक० १०.६ भवनपतिनी देवीना निकल्या एक० ५. ७ पृथ्वीना निकल्या एक०४ सिझे. ८ पाणिना निकल्या एक० ४ सिझे. ९ वनस्पतिना निकल्या एक० ६. १० संज्ञी तिर्यंचना निकल्या एक० १० सिझे. ११ तिर्यचणीना निकल्या एक० १०. १२ मनुष्यना निकळ्या एक० १०. १३ मनुष्यणीना निकळ्या एक० २०. १४ पुरुषः मरो स्त्री थइ सीझेतो एक० १०. १५ पुरुष मरी नपुषक थइ सीझे तो एक० १०. १६ स्त्री मरी स्त्री थइ सीझेतो. एक० १०. १७. स्त्री मरी पुरुष थइ सीझे तो एक०१०.१८ स्त्री मरी नपुषक थइ सीझे तो एक० १०. १९ नपुसक मरी स्त्री थइ सीझे तो एक० १०. २० नपुसक मरी पुरुष थइ सीझे तो एक० १०. २१ नपुसकमरी नपुसक थइ सीझे तो एक० १०. २२ वाणव्यंतरना निकळ्या एक० १० सिझे. २३ वाणव्यंतरनी देवीना निकळ्या एक०५. २४ ज्योतिषीना निकळ्या एक० १०. २५ ज्योतिषीनी देवीना निकळ्या एक० २०. २६ वैमानिकना निकळ्या एक० १०८ सिझे. २७ वैमानिकनी देवीना निकळ्या एक० २०. २८ स्वलिंगे सिझे तो १०८ सिझे. २९ अन्य लिंगे सिझे तो १० सिझे. ३० गृहस्थ लिंगे सिझे ता ४ सिझे. ३१ स्त्रीलिंगे २० सिझे.३२ पुरुषलिंगे १०८ सिझे. ३३ नपुंसकलिंगे १० सिझे. ३४ उर्द्ध लोके ४ सिझे. ३५ अधो लोके २० सिझे. ३६ त्रिछा लोके १०८ सिझे. ३७ उत्कृष्टि अवगाहना वाला एक० २ सिझे. ३८ जघन्य अवगाहना वाला एक० ४ सिझे. ३९ मध्यम अवगाहनावाला एक० १०८ सिझे.४० समुद्रमा २ सिझे. ४१ नदी प्रमुख शेष जलमां३ सिझे. ४२. तिर्थमां १०८ सिझे. ४३ अतिर्थमा १० सिझे. ४४ तिर्थकर २० सिझे. ४५ स्त्री तिर्थकर एक Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १३९ समय बे सिझे. ४६ अतिर्थकर १०८ सझे. ४७ स्वयं बुद्ध ४ सिझे. ४८ प्रत्येक बुद्ध १० सिझे. ४९ बुद्ध बोहि १०८ सिझे. ५० एक सिद्धाते एक समये १ सिझे. ५१ अनेक सिद्धाते एक समये उत्। १०८. ५२ विजय विजय प्रते एक समये विश विश सिझे. ५३ भद्रशाल धन १ नंदनवन २ सोमनस वन ३ ए ३ मा परि चार सिझे. ५४ पंडग वनमा २ सिझे. ५५ अकर्मभूमिमा १० सिझे. ५६ कर्म भूमिमां १०८ सिझे. ५७ पहेले, विजे, पांचमे ने छठे ए ४ आरे दश दश सिझे. ५८ निजे, चोथे, ए २ आरे १०८ सिझे. ५९ अवसर्पिणी१ उत्सर्पिणीर ए २ मां १०८, १०८ सिझे.६० नोउत्सापणी नोअवसर्पिणीमा १०८ सिझे. ६१ एकथी मांडिने ३२ लगे सिझे ती० ८ समय मुधि. ६२-३३ थी मांडिने ४८ सुधि सिझे तो ७ समय: लगे. ६३-४९ थी मांडिने ६० सुधि सिझे तो ६ समय लगे, ६४-६१ थी मांडिने ७२ सुधि सिझे तो ५ समय लगे. ६५-७३ थो मांडिने ८४ सुधिसिझे तो ४ समय लगे. ६६-८५ थी मांडिने ९६ सुधि सिझे तो ३ समय लगे. ६७-९७ थी मांडीने १०२ सुधि सिझे तो २ समय लगे. ६८-१०३ थी मांडीने १०८ सुधि सिझे तो १ समय लगे. ____ अल्पाबहुत्व. सर्वथी थोडा चोथी नारकीना निकल्या सिद्ध थाय १, तेथी त्रीजी नारकीना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय २,तेथी बीजी नारकीना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय ३,तेथी वनस्पतिना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय ४,तेथी पृथ्वि कायना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय ५,तेथी पाणीना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय ६, तेथी भवनपतिनी देवीना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय ७, तेथी भवनपतिना देवताना निकल्या संख्यात Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० सिझणाद्वार. गुणा सिद्ध थाय ८, तेथी वाणव्यंतरनी देवीना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय ९, वाणव्यंतरना देवताना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय १०, ज्योतिपीनी देवीना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय १९, ज्योतिषीना देवताना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय १२, मनुष्यणीना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय १३, मनुष्यना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय ९४, पहेली नरकना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय १५, त्रिर्यचणीना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय १६, त्रिर्यचना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय १७, पांच अनुत्तर विमानना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय १८, नव ग्रैवेयकना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय १९, बारमां देवलो - कना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय २०, अगीयारमां देवलोकना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय २१, दशमां देवलोकना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय २२, नवमां देवलोकनां निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय २३, आठमा देवलोकना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय २४, सातमां देवलोकना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय २५. छठा देवलोकना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय २६, पांचमां देवलोकना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय २७, चोथा देवलोकना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय २८, त्रीजा देवलोकना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय २९, बीजा देवलोकनी देवीना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय ३०, बीजा देवलोकना देवताना निकल्या संख्यातगुणासिद्धथाय ३१, पहेला देवलोकनी देवीना निकल्या संख्यात गुणा सिद्ध थाय ३२, पहेला देवलोकना देवताना नीकल्या संख्यातगुणा सिद्ध थाय २३, इति सिझणा द्वार समाप्तं. Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Y जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. अथ श्री विरह द्वार. समुचय चार गतिनो विरह काल जघन्य १ समयनो, उत्कृष्टो १२ मुहूर्त्तनो. हवे पहेली नरके ज० १ समय० उ० २४ मुहूर्तनो. बीजी नरके ज०१ समयनोउ०७ दिननो. त्रीजी नरके ज०१ समयनो, उ० १५ दिननो. चोथी नरके ज० १ समयनो उ० १ मासनो पांचमी नरके ज० १ समयनो उ० २ मासनो. छठी नरके ज०१ समयनोउ० ४ मासनो.सातमी नरके ज०१ समयनो उ०६मासनो. उपजवानो तथा चवववानोविरह पडे. हवे दस भवनपतीनो ज०१ समयनो उ० २४ मुहूर्तनो. पांच एकेंद्रीय अविरहिया संख्याताने ठामे संख्याता उपजे. असंख्याताने ठामे असंख्याता उपजे अनंताने ठामे अनंता उपजे समय समय उपजे समय समय चवे. त्रण विगलेद्रीयनो ज० १ समयनो उ० अंतमुहूर्तनो. समुर्छिम तिर्यंच पंचेंद्रीयनो ज०१ समयनो, उ० अंतर्मुहूर्त्तनो. गर्भज तिर्यच पचंद्रीयनो ज० १ समयनो उ० १२ मुहुर्तनो. समुर्छिम मनुष्यनोज० १ समयनो उ० २४ मुहूर्त्तनो. गर्भन मनुष्यनो ज० १ समयनो उ० १२ मुहूतनो. वाणव्यंतर,ज्योतिषी,वैमानिकमां पहेला,बीजा देवलोक सुधीनो ज० १ समयनो, उ० २४ मुहूर्तनो विरह काल. त्रिजे देवलोके ज. १ समय उ० ९ दिन ने वीस मुहूर्त्तनो. चोथे देवलोके ज०१ समय, उ० १२ दिन ने १० मुहूर्तनो. पांचमे देवलोके ज० ? समय उ० साडा बावीसदिननो. छठे देवलोके ज०१ समयनो उ० ४५ दिननो. सातमे देवलोके ज० १ समयनो उ० ८० दिननो विरहकाल.आठमे देवलोके ज० १ समयनो उ १०० दिननो. नवमे दशमे देवलोके Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ पांच देवना. बोल. ज० १ समयनो उ० संख्याता मासनो ज्यां लगे १ वरस न होय. इग्यारमे बारमे देवलोके ज० १ समयनो उ० संख्याता वरसना ज्यां लगे सो वरस न होय. पहेली त्रिके ज० १ समयनो उ० संख्याता वर्षना सेंकडा, ज्यां लगें हजार वरस न होय. बीजी त्रीके ज०१ समयनो, उ० संख्याता हजार वरस, ज्यां लगे लाख वरस न होय. त्रीजी त्रीके ज०१ समयनो, उ० संख्याता लाख वरसनो, ज्यां लगे क्रोड वरसन होय. चार अनुत्तर विमानमांज०१ समयनो उ० पल्यना असंख्यातमां भागनो विरहकाल. सर्वार्थसिद्धमां ज०१ समयनोउ. पल्यना संख्यातमा भागनो विरहकाल. सिद्धनो विरह ज०१ समयनो, उ० छ मासनो विरहकाल. चार गतिमां पंचेंद्रीय आश्री विरहकाल ज० १ समयनो उ० १२ मुहर्तनो. सर्व इंद्र स्थानकनो विरह ज० १ समयनो उ०६ मासनो. इति श्री विरह द्वार समाप्तं. अथ श्री पांच देवना बोल. पहेलं नाम द्वार, बिजु गुण द्वार, त्रिजु उववाय द्वार, चोथु स्थिति द्वार, पांचमुं रुद्धि तथा विक्रुवणा द्वार, छठं चवण द्वार, सातमु संचिठणा द्वार, आठमुं अंतर द्वार, नवमुं अल्प बहुत्व द्वार. ए ९ द्वार पांच देव उपर उतारे छे. हवे पहेलं नाम द्वार कहे छे. भविय द्रव्य देव, नर देव, धर्म देव, देवाधि देव, भाव देव. ___ हवे बीजु गुण द्वार कहेछे. मनुष्य तथा तिर्यंचपंचेंद्रिय जेहने देवतामा उपजवु छे तेहने भविय द्रव्य देव कहीये. चौद रत्न नव निधान जेहने होय तेहने नरदेव कहीये. साधुना सत्याविश गुणे Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १४३ करी सहित होय तेहने धर्मदेव कहिये. अढार दोष रहित ने बार गुणेकर सहित हो तेहने देवाधि देव कहिये. अढार दोष ते कहे छे. अज्ञान १, क्रोध २, मद ३, मान ४, माया ५, लोभ ६, रति ७, अरति ८, निद्रा ९, शोक १०, असत्य ११, चोरी १२, मछर १३, भय १४, माणिवध १५, प्रेम १६, क्रिडा प्रसंग, १७ हाय १८. ए १८ दोष रहित अने १२ गुणे करि सहित ते बार गुण कहे छे. जिहां जिहां भगवंत उभा रहे बेसे समोवसरे तिहां तिहां दश बोल सहित ते भगवंतथी बार गुणो उँचो तत्काल अशोक वृक्ष थइ आवे स्वामिने छांयडो करे १. भगवंत जिहां जिहां समोवसरे तिहां तिहां पांच वर्णा अचेत फुलनी दृष्टि थाय ढवण प्रमाणे ढगला थाय २. भगवंतानी जोजन प्रमाणे वाणी विस्तरे सहुना मननो संशय हरे ३. भगवंतने चोविश जोड चामर विझाय ४. स्फटिक रत्नमय पादपीठ सहित सिंहासन स्वामिने आगले थाय ५. भामंडल अंबोडाने ठेकाणे तेज मंडल बिराजे दिशो दिशना अंधकार टाळे ६. आकाशे साडा बार क्रोड गेबि वाजां वागे ७. भगवंतनी उपरे त्रण छत्र उपरा उपरि बिराजे ८. अनंतज्ञान अतिशय ९. अनंत अचअतिशय परम पूज्यपणं १०. अनंत वचन अतिशय ११. अनं० अपायापगम अतिशय ते सर्व दोष रहितपणु १२. ए १२ गुणे करी सहित तथा चोत्रीस अतिशय पांसि वचनातिशयआदे दइने अनंतगुणेकरी सहित होय तेहने देवाधिदेव कहिये. भाव देव ते केहने कहीए ? भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी, वैमानिक ए चार जातिना देवताने भावे प्रवर्ते छे तेहने भाव देव कहिये. हवे त्रिजुं उबवाय द्वार कहे छे. भविय द्रव्य देवमां, मनुष्य तिर्यच जुगलीया तथा सर्वार्थसिद्ध ए ३ ठाम वर्जिने बाकि सर्व Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ देवना पांच बोल. ठामना आवि उपजे.नर देवमां चार जातिना देवताने पहेली नर्क ए ५ ठामना आवी उपजे. धर्मदेवमां, छठी सातमी नर्क तेउ वाउ मनुष्य तिर्यच जुगलीया ए ६ ठाम वर्जिने शेष सब ठामना आवि उपजे. देवाधिदेवमां पहेली बीजी त्रिजी नर्कने किलविषी वर्जिने वैमानिक देवना आवि उपजे, भावदेवमां तिर्यच पंचेंद्रिय ने संज्ञि मनुष्य ए २ ठामना आवि उपजे. - हवे चो) स्थिति द्वार कहे छे. भविय द्रव्य देवनी जघ० अंत० उन्० ३ पल्यनि. नरदेवनी जघ० सातसें वर्षनी उत्० चौरासी लाख पूर्वनि. धर्म देवनी जघ० अंत० उत् देशे उणी पूर्व कोडिनी देवाधि देवनी जघ० बहुतेर वर्षनी उत्० ८४ लाख पूर्वनी. भाव देवनी जघ० दश हजार वर्षनी उत्०३३ सागरनी. हवे पांचमुं रूद्धि तथा विक्रुवणा द्वार कहे छे भविय द्रव्य देवमां जेहने वैक्रेय लब्धि उपनि होय तेहने,नरदेवने तो होयज, धर्म देवमां जेहने होय तेहने,भाव देवने तो होयज. ए४ वैक्रेय रूप करे तो ज० १, २,३, उ० संख्याता करे शक्ति तो असंख्याता रुप करवानी छे पण करे नहि. देवाधिदेवनी शक्ति घणी छे पण करे नहि. हवे छटुं चवण द्वार कहे छे भविय द्रव्य देव चवि देवता थाय. नर देव चवि नर्के जाय. धर्म देव चवी वैमानिक तथा मोक्षमां जाय. देवाधिदेव तो मुक्ति जाय. भाव देव चविने पृथ्वी पाणी वनस्पति बादरमां ने गर्भज मनुष्य तिर्यंचमां जाय. हवे सातमु संचिठणा द्वार कहे छे. सांचठणा ते देवनो देवपणे रहे तो केटलो काळ रहे ते कहे छे. भविय द्रव्य देवनि संचिठणा जघ० अंत० उत्० ३ पल्योपमनि, नर देवनि जघ० सातसें वर्षनी उत्० ८४ लाख पूर्वनि, धर्मदेवनी जघ० १ समयनी उत्० देशे Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १४५ उणी पूर्व क्रोडिनी. देवाधि देवनी जघ० बहुतेर वर्षनी उत्० ८४ छाख पूर्वनी.भाव देवनी जघ० दश हजार वर्षनी,उत्०३३ सागरनी. हवे आठमुं अंतरद्वार कहे छे. भवियद्रव्यदेवतुं आंतरं पडे तो जघ० दश हजार वर्षने अंतर्मुहूर्त अधिक उत्० अनंता काळर्नु आंतरं पडे. नरदेवनुं जघ० एक सागर झाझेरुं उत्० अर्द्ध पुद्गल परावर्तन देशे उणुं. धर्मदेवनु जघ० २ पल्य झाझेरु, उत्० अर्धे पुद्गल परावर्तन देशे उणुं.देवाधिदेवर्नु आंतरं नथी. भाव देवर्नु जघ० अंत० उत्० अनंता काळy. इवे नवमुं अल्पबहुत्व द्वार कहे छे सर्वथी थोडा नर देव १. तेथी देवाधिदेव संख्यात गुणा २. तेहथी धर्मदेव संख्यातगुणा ३. तेहथी भवियद्रव्य देव असंख्यात गुणा ४. तेहथी भावदेव असंख्यात गुणा ५. इति पांच देवना बोल संपूर्ण. अथ श्री दिशाणुवाइ. समुचय जीव सर्वथी थोडा पश्चिम दिशे कारण के पश्चिम दिशे गौतम द्विप छे तथा चंद्रमा सूर्यना द्विप छे तेथी पाणी थोडं छे ते माटे निल फुल पण थोडि छे तेणे करि जीव थोडा छे १.तेथी पूर्व दिशे विशेषाहिया कारण के, गौतम द्विप नथी २.तेथी दक्षिण दिशे विशेषाहिया कारण के, चंद्रमा सूर्यना द्विप पण नथी ३. तेथी उत्तर दिशे विशेषाहिया कारण के, उत्तरदिशे संख्यातमे द्विपे संख्याति जोजन क्रोडा क्रोडीनुं मानसरोघर छ सीहां पाणी घणु छे तेथी निकुलमा भीष घणा छे ४. पृथ्वीफायना जीव सर्वथी थोडा Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ दिशाणुवाई. दक्षिण दिशे कारण के, दक्षिण दिशे ४ क्रोडिने ६ लाख भवनपतिना भवन छे तिहां पोलार घणी छे ने पृथ्व थोडी छे. तेथी उत्तर दिशे विशेषाहिया कारण के, भवनपतिना भवन थोडा छे ३ क्रोडि छाशठ लाख भवन छे तेथी पोलार थोडी छे ते माटे पृथ्वि घणी छे. तेथि पूर्व दिशे विशेषाहिया कारण के, भवन नथी पण चंद्रमा सूर्यना द्विप छे ते माटे पृथ्वी घणी छे. तेथी पश्चिम दिशे विशेपाहिया कारण के, गौतम द्विपछे ते माटे पृथ्वी घणी छे, एमज अपकाय, वनस्पतिकाय, त्रशकाय, बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चौउरिद्रिय, तिर्थं च पंचेंद्रिय, ए७ समुच्चय जीवनी परे जाणवा. तेउकाय, मनुष्य, सिद्ध, ए ३ सर्वथी थोडा कारण के, दक्षिण उत्तरे क्षेत्र नाहना छे. तेथी पूर्वदिशे संख्यातगुणा कारण के क्षेत्र महोटा छे ते माटे, तेथी पश्चिम दिशे विशेषाहिया कारण के. पश्चिम दिशे अधो गाम विजय छे तिहां जीव घणा छे माटे. वाउकाय जीव सर्वथि थाडा पूर्व दिशे कारण के, भुमि घणि नकोर छे ते माटे. तेथी पश्चिम दिशे विशेषाहिया कारण के, विजय उंडी छे ते माटे. तेथी उत्तर दिशे विशेषाहिया कारण के, भवननी पोलार छे ते माटे. तेथी दक्षिण दिशे विशेषाहिया कारण के, भवन ने नरकावासा घणा छे तेथी पोलार घणि छे ते माटे वाउकाया घणा छे. नार कि सर्वथी थोडा पूर्व, पश्चिम, ने उत्तर दिशे कारण के, तिहां पुष्पाविकिर्ण नरकावासा थोडा छे अने ते वळी संख्याता जोजनना छे, ते माटे नारकी थोडा छे. तेथी दक्षिण दिशे असंख्यात गुणा कारण के, कृष्णपक्षि नारकी दक्षिण दीशना उपजनहार घणा छे ते माटे. ए समुच्चय नारकि आश्रि कं एम प्रत्येक प्रत्येक नरके ण दिशना नारकि थोडा ते पूर्व पश्चिम ने उत्तरना. ते थकी दक्षिण दिशना असंख्यात गुणा अधिक छे. सातमी नरकना ३ दिशना Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४७ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. नारकि थकि दक्षिण दिशना नारकि असंख्यात गुणा, सातमी नारकना दक्षिण दिशना नारकि थकि छठि नरकना ३ दिशना नारकि असंख्यातगुणा, ते थकि छठोनरकना दक्षिणदिशना नारकि असंख्यात गुणा,एणि परे पहेलि नरक सुधिजाणवु भवनपति देवता सर्बथी थोडा पूर्व,पश्चिम दिशे. तेथि उत्तरदिशे असंख्यातगुणा अधिक कारण के, भवन घणा छे ते माटे,तेथी दक्षिण दिशे असंख्यात गुणा,भवन घणा छे ते माटे. वाणव्यंतर देवता सर्वथी थोडा पूर्व दिशे कारण के, भुमि घणी कठिन छे ते माटे, तेथी पश्चिम दिशे विशेषाहिया, व्यंतरना नगर घणा छे ते माटे, तेथी उत्तर दिशे विशेषाहिया, तेथी दक्षिण दिशे विशेषाहिया, तिहां कृष्णपक्षि घणा छे ते माटे. ज्योतिषी देवता सर्वथी थोडा पूर्व, पश्चिम दिशे कारण के, पूर्व पश्चिम दिशे चंद्रमा सूर्यना द्विपा छे तिहां ज्योतिषी थोडा रहे छे ते माटे. तेथी दक्षिण दिशे विशेषाहिया कारण के,दक्षिण दिशे कृष्णपक्षि घणा छे,तेथी उत्तर दिशे विशेषाहिया कारण के, उत्तर दिशे मानसरोवर छ तिहां मच्छादिक घणा छे ते मच्छने ज्योतिषिना विमान ढुकडा देखिने जाति स्मरण ज्ञान उपजे तेथी व्रतादि अंगीकार करे ते नियाणु करिने ज्योतिषीमां उपजे तेमाटे ज्योतिषी उत्तर दिशे घणा. सुधर्म, इशान, सनंतकुमार, माहेंद्र, ए ४ देवलोकना देवता सर्वथी थोडा पूर्व पश्चिम दिशे कारण के, पूर्व पश्चिम दिशे आवलिका बंध विमान अल्पछे ते माटे, तेथी उत्तर दिशे असंख्यात गुणा कारण के, उत्तर दिशे पुष्फाविकीर्ण विमान घणा छे ते माटे, तेथी दक्षिण दिशे विशेषाहिया कारण के, दक्षिण दिशे कृष्णपक्षी देवता घणा छे ते माटे. पांचमा देवलोकथी मांडिने ८ मा देवलोक सुधीना देवता सर्वथी थोडा पूर्व, पश्चिम, ने उत्तर ए त्रण दिशना. तेथी Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंडा जोयणना बोल. दक्षिण दिशाना असंख्यातगुणा कारणके, तिर्यच पंचेंद्रिय प्रमुख घणा उपजे छे ते माटे. नवमा देवलोकथी मांडिने सर्वार्थसिद्ध विमान लगे ४ दिशे सरिखा जाणवा. कारण के, सर्व ठेकाणे मनुष्य उपजे छे ते माटे. इति दिशाणुवाइ समाप्तं. अथ श्री खंडा जोयणना बोल. खंडा जोयणादि १० बोलनो विचार विचारीए छीए. जंबुद्विप १ लाख जोजननो लांबो ने पहोलो छे ते वाटलो तेलना पुडलाने आकारे छे. वाटलो रथना पइडाने आकारे छे. वाटलो कमलनी कणिकाने आकारे छे. वाटलो पूर्ण चंद्रमाने आकारे छे. तेनी परिधी ३ लाख १६ हजार २२७ जोजन ३ कोस १२८ धनुष ने साडातेर अंगुल झाझेरानी छे. हवे जंबुद्विप १० द्वारे करी वखाणे छे. गाथा खंडा १,जोयण २,वासा ३,पव्वय ४, कुडाय ५ तिच्छ ६, सेढिओ ७. विजय ८, दह ९,सलिलाउ १०, पिंड एहोइ संघहणी ॥१॥ ए दश द्वार छे तेमां प्रथम खंडा द्वार कहे छे. जंबुद्विपना भरत सरिखा २९० खांडवा छे ते कहे छे भरतक्षेत्रनुं ? खांडवू, चुल हिमवंत पर्वतना २ खांडवा, हेमवय क्षेत्रना ४ खांडवा, महा हिमवंत पर्वतना ८ खांडवा, हरिवास क्षेत्रना १६ खांडवा, निषढ पर्वतना ३२ खांडवा, महाविदेह क्षेत्रना ६४ खांडवा, निलवंत पर्वतना ३२ खांडवा, रमकवास क्षेत्रना १६ खांडवा, रूपि पर्वतमा ८ खांडवा, एग्णवय क्षेत्रना ४ खांडवा, शिखरि पर्वतना २ खांडवा, इरवत क्षेत्रनुं १ खांडवु एवं सर्व मळीने विखंभ पहोलपणे दक्षिण उत्तरे Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १४९ थहने भरत जेवडा पोलपणे १९० खांडवा थाय. इति पहेलो खंडा द्वार समाप्तं. हवे बिजो जोयणद्वार कहे छे. जोयण कहेता जंबुद्विपना चारे हांशे जोजन जोजनना खंड करिये तेबारे सातसें नेतुं क्रोडि छपन का चोराशुं हजार एकसो ने पचास चोरस थाय उपरे १ कोस पनरसें पनर धनूष वधे उपर ६० अंगुल बधे. इति बिजो जोयण द्वार समातं. हवे बीजो वासा द्वार कहे छे. वासा कहेता जंबुद्विपने विषे ७ क्षेत्र ते भरत १ हेमबय २ हरिवास ३ महाविदेह ४ रमकवास ५ एरणबय ६ इरवत ७ ए ७ क्षेत्र तथा एक महाविदेहना ४ भाग गणिये तो पूर्व महाविदेह पश्चिम महाविदेह ८ देवकुरु ९ उत्तरकुरु १० एवं ६ ने ४ भेळवतां १० क्षेत्र थाय. तेहनुं विखंभपणुं, बाहा, जीवा, धनुषपिठ ४. ए ४ कहे. भरत क्षेत्रना २ भेद दक्षिण भरत, ने उत्तर भरत. दक्षिण भरतनुं विखंभपशुं २३८ जोजन ने ३ कळानुं, पहनी बाहा नथी. तेहनी जीवा ९७४८ जोजन ने १२ कळा. तेहनी धनुषपिठ ९७६६ जोजन ने १ कळा झाझेरि. हवे उत्तर भरतनुं विखंभपणुं २३८ जोजन ने ३ कळानुं तेहनी बाहा १८९२ जोजन ने साडीसात कळानी, तेहनी जीवा १४४७१ जोजन ने ६ कळा माठेरि, तेहनी धनुषपिठ १४५२८ जोजन ने ११ कळानी एवं इरवत क्षेत्रनुं पण जाणवु. २. हिमवय, हिरणवय, ए २ क्षेत्रनुं पोलपणुं २१०५ जोजन ने ५ कळानुं. तेहनी बाहा ६७५५ जोजन ने ३ कळा तेहनी जीवा ३७६७४ जोजन ने १६ कळा. तेहनी घनूषपिठ ३८७४० जोजन ने १० कळा. हरिवास, रमकवास ए २ क्षेत्रनुं विखंभपं ८४२१ जोजन ने १ कळा तेहनी बाहा १३३६१ जोजन ने ६ कळा तेहनी जीवा ७३९०१ जोजन ने१७कळा. तेहनी धनूषपिठ ८४०१६ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० खंडा जोयणना बोल. जोजन ने ४ कळा, महाविदेह क्षेत्रनु विखंभपणुं ३३६८४ जोजन ने ४ कळा, तेहनो वाहा ३३७६७ जोजन ने ७ कळा, तेहनी जीवा १ लाख जोजननी तेहनी धनूषपिठ १५८११३ जोजन ने १६ कळा झाझेरि.देवकुरु, उत्तरकुरु ए २ क्षेत्रनुं विखंभपणुं ११८४२ जोजन ने २ कलावं, तेहनी बाहा नथी तेहनी जीवा ५३००० जोजननी तेहनी धनूषापठ ६०४१८ जोजन ने १२ कळा. इति त्रिजो वासा द्वार समाप्तं. __ हवे चोथो पव्वय द्वार छे.पव्वय क०जंबुद्विपने विषे २६९ पर्वत छे.ते कहे छे-६ वर्षधर पर्वत, १ मेरु,१ चित्त,१ विचित्तो,१जमक, १ समक,२०० कंचनगिरि,४ गजदंता,१६ वखारा,३४ लांबा वैताढ, ४ वाटला वैताद, एवं सर्व मळीने २६९ पर्वत छे. तेहनु उंचपणुं, उंडपणु, विखंभपणुं, बाहा, जीवा, धनूषपिठ, कहे छे. चुलहिमवंत, ने शिखरि ए २ पर्वत सो सो जोजनना उंचा छे, अने पचीस पचीस जोजनना धरतीमां उंडा छे, तेमनुं पहोलपणुं १०५२ जोजन ने १२ कला, तेमनी बाहा ५३५० जोजन ने १५ कळा, तेमनी जीदा २४९३२ जोजन ने अर्द्ध कळा माठेरी,तेमनी धनूषपिठ २५२३० जोजन ने ४ कळा. महाहिमवंत ने रुपिए २ पर्वत वसे बसे जोजननां उंचा अने पचास पचास जोजनना धरतीमां उंडा छे, तेमनुं विखभपणु ४२१० जोजन ने १० कळानु, तेमनी बाहा ९२७६ जोजन ने ९ कळा, तेमनी जीवा ५३९३१ जोजन ने ६ कळा झाझेरी,तेमनी धनूषपिठ ५७२९३ जोजन ने १० कळा, निषढ अने निलवंत ए २ पर्वत चारसो चारसो जोजनना उंचा छे, अने सो सो जोजनना धरतीमां उंडा छे, तेमनु विखंभपणु १६८४२ जोजन ने २ कळानु,तेमनी बाहा २०१६५ जोजन ने२ कळा,तेमनी जीवा९४१५६ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १५१ जोजन ने २ कळा, तेमनी धनूषपिठ १२४३४६ जोजन ने ९ कळा. ए ६ वर्षधर पर्वत थथा. मेरु पर्वत एक लाख जोजननो छे ते १ हाजर जोजननो धरतीमांहि डंडो छे ते मांहि प्रथम २५० जोजन पृथ्वीमय छे, २५० जोजन पाषाणमय छे, २५० जोजन वज्र हीरा - मय छे, २५० जोजन शर्कर पृथ्वीमय छे, एवं १ हजार जोजननो डंडो छे ए प्रथम कांड. ते उपरे नवाणुं हजार जोजननो मेरु उंचो छे ते मांहि पोणा सोळ हाजर जोजन अंकः रत्नमय छे. पोणासोळहाजर जोजन स्फटिक रत्नमय छे. पोणासोलहजार जोजन पिळा सुवर्णमय छे. पोणासोलहजार जोजन रुपामय छे, ए ६३ हजार जोजननो बीजो कांड. ते उपरे त्रिजो कांड छत्रिश हजार जोजननो जांबुनद राता सुवर्णमय छे. एवं सर्व मळीने १ लाख जोजननो मेरुपर्वत छे. ते मूल १००९० जोजन ने एक जोजनना ११ भाग करिये तेहवा १० भागनो धरतीने मूळे पोळो छे, दश हजार जोजननो धरतीए समभूतळे लांबो पहाळो छे, धरतीथकी इग्यार हजार जोजन उंचा जाइए तिहां नव हजार जोजननो लांबो ने पहोको छे एम इग्यार इग्यार हजारे एकेक हजार घटाडतां शिखरे १ हजार जोजननो लांबो पहोलो छे तेहनी त्रिगुण झाझेरि परिधि छे. मेरुने ४ वन छे, भद्रशाल वन, नंदन वन, सोमनस वन, ने पंडग वन, भद्रशाल वन ते मेरुने चारेकोर धरती उपरे छे. ते पूर्व पश्चिमे वाविश बाविश हजार जोजनं लांबू छे, अने अढिसो अढिसो जोजननुं उत्तर दक्षिणे पहोलुं छे. तेहने एक पद्मवर वेदिका छे एक वनखंडे सघले चारेबाजु विटि छे, मेरुपर्वत थकी पूर्व दिशे ५० जोजन वनमां जाय तिहां सिद्धायतन छे. ते ५० जोजननुं लांबू ने २५ जोजननुं पहोलं छे, अने ३६ जोजननुं उंचुं छे. अनेक स्तंभ छे. ते सिद्धायतनने Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ खंडा जोयणमा बोल. ३ बारणा छे. पूर्वे, दक्षिणे, ने उत्तरे ए ३. तेहना दरवाजा आठ आठजोजननाउंचा छे, ने ४ जोजनना पहोळा छे. ते सिद्धायतनना मध्य विभागने विषे एक मणिमय पिठिकाछे, ते ८ जोजननी लांबी ने पहोली छे, ४ जोजननी जाडपणेछे सर्व रत्नमय छे ते उपरे१देवछंदो कयो ते८जोजननो लांबो ने पहोलोछे अने८जोजननो झाझेरो उंचोछे. तिहां जिन प्रतिमा छे तेहनुं वर्णन अन्य स्थळेथी जाणवू. जाव धुपना कडछा छे. एज प्रमाणे चारे दिशे ४ सिद्धायतन छे ते एमज जाणवा. चारे दिशे मेरु पर्वतथी ५० जोजन इशान खुणे वनमां जाय तिहांज ४ वावडिओ छे,मेरुथी ५० जोजन अग्नि खुणे वनमां जाय तिहां४ वावडिओ छ, मेरु थी ५० जोजन नैरुत खुणे वनमा जाय तिहां ४ वावडिओ छे,मेह थी ५० जोजन वायव्य खुणे वनमांजाय तिहां ४ वावडिओछे.ते एकेकी वावडि५०जोजननी लांबी अने २५ जोजननी पहोलीछे.अने दश दश जोजननी उंडियोछे, ते मांहि चार दिशे तोरण सहितछे ते वावडियोना नाम पद्मा,पद्म प्रभा,कुमुदा,कुमुद प्रभा,ए४ पावडियो मध्ये २ शकेंद्रना ने २ इशानेंद्रना महोल छे ते चारे पांचसो पांचसो जोजनना उंचा छे अने अढिसो जोजनना लांबा ने पहोळा छे, उंचा शिखर बंध जाणवां. भद्रशाल वनमा ८ कुट छे भद्रशाल धन थकी पांचसें जोजन मेरु उपर जइये तिहां नंदन वन आवे ते नंदन वन ५०० जोजन चक्रवाल विखंभपणे फरतो वाटलो वलयाने आफारे छे. ते मेरु पर्वतने टुकड़े छे. जिहां घणा देवता देवांगना हास्य रति खेले छे. तिहां पण ४ सिद्धायतन छे,१६ वावडिओ छे, ४ महोल छे, पूर्वनि परे ९ कुट छे. वलि नंदन वन थकी साडा वासठ हजार जोजन उंचा जइये तिहां सोमनस वन आवे ते ५०० भोजन चक्रवारू विखंभषणे फरतो पाटलो वलयाने आकारे छे. Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १५३ मेरुने विटि रघु छे. ४ सिद्धायतन छे. १६ वावडिओ छे, ४ महोल छे. तिहां थकी ३६ हजार जोजन मेरुने शिखरे जइये तिहां पंडग वन आवे ते ४९४ जोजन चक्रवाल विखंभपणे फरतो वाटलो वलयाने आकारे छे, मेरुनी चुलिकाने विटि रह्यं छे. पंडगवन ने विषे १ चुलिका छे ते ४० जोजननि उचि छे, १२ जोजननी मूळे पहोळी छे, अने ४ जोजननी मथाळे पहोळी छे, आठ जोजननी वचमां पहोळी छे, गायना पुंछने आकारे छे. सर्व वैरुलि रत्नमय छे. तेहने एक पद्मवर वेदिका छे उपर घणि समरमणिक भूमिका छे ते चुलिका उपरे १ सिद्धायतन छे ते १ कोशन लांबुं ने, अर्ध कोशवें पहोल्लु छे, अने देशेउणुं कोशनु उंचं छे. अनेक स्तंभा छे जाव धुपना कडछा छे. ते पंडग वनमा ४ सिद्धायतन छे. १६ वावडिओ छे ४ महोल छे ते पूर्वनि परे जाणवू. पंडग वनमा ४ अभिषेक शिला छे तेहना नाम पंडशिला, पंडुकंबलशिला, रक्त शिला, रक्त कंबल शिला. ए४ शिला कहि ते अर्द्ध चंद्रमाने आकारे छे. पूर्व पश्चिमनि शिला उत्तर दक्षिणे पांचसो पांचसो जोजननी लांबि छे, अने पूर्व पश्चिमे अढिसो अढिसो जोजननी पहोळी छे. उत्तर दक्षिणनी शिला ते पूर्व पश्चिमे पांचसो पांचसो जोजननी लांबि छे, अने उत्तर दक्षिणे अढिसो जोजननी पहोळी छे, ४ जोजननी जाडपणे छे. सर्व कनकमय छे. ए ४ ने ऋण दिशे पगथिया छे. पूर्व पश्चिमनी शिला उपर बबे सिंहासन छे अने उत्तर दक्षिणनी शिला उपरे अकेकुं सिंहासन छे, ते पांचसो पांचसो धनूषना लांबा ने पहोळा छे अने २५० धनुषना उंचा छे. तिहां तिर्थकर देवनो जन्म महोत्सव करे छे. जंबुद्विप मध्ये जघन्य २ तिर्थकरनो ने उत्० ४ तिर्थकरनो जन्म महोत्सव करे छे, Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ खंडा जोयणना बोल. मेरुना १६ नाम कहे छे. मंदर, मेरु, मनोरम, सुदर्शन, स्वयंप्रभ, गिरिराज, रत्नोच्चय, तिलकोपम, लोकमध्य, लोकनाभि, रत्न सूर्यावर्त, सूर्यावरण, उत्तम, दिशादि, अवतंश, ए १६ नाम कला. हवे चित्त, विचित्त ए २ पर्वत देवकुरु क्षेत्रमां छे. निषढपर्वतथी उत्तरे ८३४ जोजन ने एक जोजनना ७ भाग करिये तेवा४ भाग जइये तिहां सीतोदा नदीने पूर्व पश्चिमने कांठे छे. अने जमक समक नामना वे पर्वत उत्तरकुरु क्षेत्रमां छे, निलवंत पर्वत थकी दक्षिणे ८३४ जोजन ने १ जोजनना ७ भाग करिये तेहवा ४ भाग जइये तिहां सिता नदीने पूर्व पश्चिमने कांठेछे. चित्त, विचित्त, जमक ने समक ए ४ पर्वत छे ते १ हजार जोजनना उंचा छे अने अढिसो जोननना धरती मांहि उंडा छे. एक हजार जोजनना मूळे लांबा पहोळा छेसाडासातसें जोजनना वचमा लांबा पोळा छे, उपरे पांचसो जोजना लांबा पोळा छे तेहनी त्रिगुणी ज्ञाझेरी परिधि छे. बसे कंचन गिरि पर्वत ते सिता सितादा नदीनी बचे पांच पांच द्रह छे अने एकेक द्रह पासे एकेक कोरे दश दश पर्वत छे, एम बिजा पासे पण दश दश पर्वत छे एवं १० द्रहने बने कांठे मळीने विश विश पर्वत छे. ए दश ने कांठे बसे कंचनगिरि पर्वत थाय. ते सो सो जोजनना उंचा छे, पचीश पचीश जोजनना धरती मांहि उंडा छे, मूळे सो जोजनना लांबा ने पहाळा छे, वचे पोणोसो जोजनना लांबा ने पहोळा छे, उपरे पचास जोजनना लांबा ने पहोळा छे मनी त्रिगुणी झाझेरि परिधि छे. हवे ४ गजदंता कहे छे. गंध मादन, मालवंत, विज्जुप्रभ, ने सोमनसप्रभ. तेमां निषढ थकि बे, ने निलवंत थकि बे, गजदंता निकळीने मेरु पासे चारे आविने अडकि रह्या छे. ते ३०२०९ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत मकरण संग्रह. १५५ जोजन ने ६ कळाना लांबा छे निषट अने निलवंत ने अडतां चारसो चारसो जोजनना उंचा छे, अने सो सो जोजनना घरतीमां डंडा छे, अने पांचसो पांचसो जोजनना पहोळा छे. मेरु पासे जइये तिहां पांचसो पांचसो जोजनना उंचा छे, अने सवासो सवासो जोजनना धरती मांहि डंडा छे, घटता अंगुलने असंख्यातमे भागे पोळा छे, ए हस्तिना दांतने आकारे छे. सोल वखारा पर्वत कहे छे. चित्त १, विचित्त २, नलीन ३, एकसेल ४, त्रिकुट ५, वेसमण ६, अंजण ७, मायंजण ८, अंकावर ९, पद्मावर १०, आशिविष ११, सुहावह १२, चंदे १३, सूरे १४, नागे १५, देवे १६, एवं १६ ते १६५९२ जोजन ने २ कळाना लांबा छे, पांचसो पांचसो जोजनना पहोळा छे, निषढ निलवंत थकी निकळतां चारसो चारसो जोजनना उंचा छे, अने सो सो जोजनना धरतीमां डंडा छे, सिता सितोदा पासे पांचसो पांचसो जोजनना उंचा छे, अने सवासो जोजनना धरती मांहि डंडा छे, पांचसो पांचसो जोजनना पोळा छे. वखारा पर्वत घोडाना खंधने आकारे छे. चोत्रिश लांबा वैताढ तेमां १ भरतनो वैताढ, १ इरवतनो वैताढ, अने ३२ विजयना ३२ एवं ३४ वैाढ ते पचीश पचीश जोजनना जंचा छे अने सवाछ जोजनना धरती मांहि उंडा छे, पचास पचास जोजनना पहोळा छे तेमनी बाहा ४८८ जोजन ने १६ कळा झाझेरी छे तेमनी जीवा १०७२० जोजन ने १२ कळानी. तेमनी धनुष पिठ २०७४३ जोजन ने १५ कळा. एकेके वैताढे व गुफा छे तमस मुफा अने खंड प्रपात गुफा. ए २ गुफाओ पचास पचास जोजननी लांब अने १२ जोजननी पहोळि छे अने आठ जोजननी उंचि छे तेमांहि बबे नदी छे तेना नाम उमगजला ने निमगजला. एक विश जोजन Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ खंडा जोयणना बोल. जइये तिहां उमगजला नदी आवे ते त्रण जोजनना पहोटमां छे ते मांहि हाथि घोडां बळद मनुष्यनुं कलेवर कचरो पडे तेने त्रिण वार भमाडि उछाळी नांखे ते कारणे उमगजला कहिये विहांयी २ जोजन आघा जइये तिहां निमगजला नदी छे ते ३ जोजनना पहोमां छे ते मांहि हाथि घोडा मनुष्य बलदनुं कलेवर अनेरुं पुद्गल पडे तेने गवार भमाडिने हेतुं बेसाडे ते कारणे निमगजला कहिये. शेष ३२ दिर्घ वैता महा विदेह क्षेत्र मांहि छे ते पण ए सरिखा छे पण बाहा, जीवा, धनुष पिठ नथी पलंगने आकारे छे. हवे ४ वाटला वैता कहे छे. सदावइ, विडावइ, गंधावर, ने मालवंत, ए ४ वाटला वैताद जुगलियाना क्षेत्रमां छे ते १ हजार जोजनना उंचा छे २५० जोजनना धरती मांहि डंडा छे मूळे १ हजार जोजनना लांबा ने पहोळा छे धानना कोठारने आकारे छे तेनी ३१६२ जोजन ज्ञाझेरानि परिधि छे श्वेत वर्णे छे. एवं सर्व मळीने २६९ पर्वत थय । इति चोथो पर्वत द्वार समाप्तं. हवे ५ मो कुट द्वार कहे छे. कुडाय क० जंबुद्विप मांहि ५२५ कुट छे ते मांहि ४६७ कुट पर्वत उपरे छे तेहनो विवरो कहे छे ३४ दिघे वैताठ, निषठ, निलवंत अने मेरु एवं ३७ पर्वत अने विज्जुप्रभ, मालवंत, ए २ गजदंता ए ३९ पर्वत उपरे नव नव कुट छे. ३९ ने नवे गुणता ३५१ कुट थाय. चुलहिमवंत ने शिखरि ए२ पर्वत उपरे अग्यार अग्वार कुट छे एवं २२. महाहिमवंत ने रूपि ए २ पर्वत उपरे आठ आठ कुट छे एवं १६ कुट. सोल वखारा पर्वत उपरे चार चार कुट छे एवं ६४ कुट. सोमनस ने गंधमादन ए २ गजदंता उपरे सातसात कुट छे एवं १४ कुट. एवं सर्व मळीने ४६७ पर्वत उपरना थया, अने शेष ५८ कुट भूमि उपरना छे ते कहे कुट Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १५७ छे ३४ ऋषभकुट ते १ भरतनो, १ इरवतनो, अने ३२ विजयना ३२, एवं ३४. अने भद्रशाल वनना ८, देवकुरुना ८, उत्तरकुरुना ८एवं सर्व मळीने ५८ कुट भूमी उपरना थया एवं सर्व मळीने ५२५ कुट थया. इति ५ मो कुटद्वार समाप्त. ___हवे ६ ठो तिर्यद्वार कहे छे तिर्य क० जेबुद्विप मध्ये १०२ तिर्थ छे ते केम ? ३२ विनय, १ भरत, १ इरवत, एवं ३४ ठेकाणे छे एकेकामां त्रण त्रण तिथ छे मागध, वरदाम, प्रभास, ए ३ ते अनि खुणे, नैरुत्य खुणे, वायव्य खुणे, एवं ३४ तेरी १०२ तिय थाय. इति छठो तिर्थद्वार समाप्त. हवे ७ मो श्रेणि द्वार कहेछे सेहिओक० जंबुद्विपमाहि १३६ श्रेणिरो छे ते वैताब्य पर्वत उपरे दश दश जोजन उंचा चढिये तिहां १ दक्षिणे ने १ उत्तरे ए बे विद्याधरनि श्रेणियो छे, ते माहि भरतना वैताढ उपरे गगन वलभादिक ५० नगर दक्षिगनी श्रेणिये छे, अने रथ चक्रवालादिक ६० नगर उत्तरनी श्रेणिये छे. एमज इस्वतना वैताढ उपरे ६० नगर दक्षिणनी श्रेणिये छे, अने ५० नगर उत्तरनी श्रेणिये छे, महाविदेहना ३२ वैताह उपरे दक्षिण उत्तरनी श्रेणीये पंचावन पंचावन नगर छे, सर्व मळीने ३७४० नगर विद्याघरनी श्रेणीये छे एवं ३४ दु ६८ विद्याधरनी श्रेणि छे. वळी विद्याधरनी श्रेणियो १० जोजन उंचा चडिये तिहां आभियोगिया देवतानी २ श्रेणि आवे. १ दक्षिणे, ने १ उत्तरे एवं ३४ दु ६८ श्रेणी आभियोगिया देवतानी छे. एवं सर्व मळीने ६८ विद्याधरनी ने ६८ देवतानी एवं १३६ श्रेणीयो छे, इति ७ मो श्रेणि द्वार समाप्तं, हवे ८ मो विजयद्वार कहे छे. विजय क० उंबुद्विप मांहि ३४ विजयरूप स्थानक छे तेना नाम, कछे १, सुकछे २, महाकछे ३, Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ खंडा जोयणना बोल. कछगावइ ४, आवत्ता ५, मंगला ६, पुखला ७, पुखलावती ८ ए ८ विजय सिता महानदी ने उत्तर दिशे पूर्व महाविदेहने विषे श्री मेरु पर्वतथी मांडिने सिता मुख वन सुधि प्रथम खांड, जाणवू. वछे ९, सुक्छे १०, महावछे ११, वछगाइ १२, रमे १३, रमक १४, रमणिक १५, मंगलावइ १६, ए८ विजय सिता नदीने दक्षिण पासे सिता मूख वनथी मांडिने मेरु सुधि मायंजण वखारा पर्वत सुधि बीजु खाडवू.जाणवु, पद्ये १७,सुपो १८,महापद्ये १९, पद्मगवाइ २०, संखे २१, कुमुदे २२, नलीणे २३, नलीणावती २४, ए ८ विजय सितोदा नदीने दक्षिणने कांठे विज्जु प्रभ गजदत्ता पछि अंकावति वखारा पर्वतथि ते सितोदा मूख वन सुधि त्रीजु खांडवू जाणवू, वप्पे २५, सुवप्पे २६, महावप्पे २७, वप्पगाइ,२८, वग्गु २९, सुवग्गु ३०, गंधिले ३१, गंधिलावइ ३२ ए ८ विजय ते सितोदा मुख वनथी मांडीने सितोदा नदीने कांठे देव वखारा पर्वत सुधि चोथुखांडवु जाणवू. ए ३२ विजय महाविदेह क्षेत्रमा छ ते सघळी विजय १६५९२ जोजनने २ कळानी उत्तर दक्षिणे लांबी छे अने २२१३ जोजन माठेरानी पूर्वपश्चिमेपहोळी छे.ए प्रमाणे ३२ विजयनी ३२ अने एक भरतनी, एक इरवतनी एम ३४ राजधानी छे. ३४ तिमिसगुफा, ३४ खंड प्रपात गुफा, ३४ कृतमाल देवता, ३४ नटमाल देवता, ३४ रुषभकुट एटला वाना शास्वता छे. इति ८ मो विजयद्वार समाप्तं. हवे ९ मो द्रहद्वार कहे छे द्रह क० जंबुद्विपमा १६ द्रह छे तेना नाम पद्मद्रह, महापद्मद्रह,पुंडरिकद्रह, महापुंडरिकद्रह, तिगिछद्रह, केशरिद्रह, ए ६ द्रह वृषधर पर्वतना. हवे ५ द्रह देबकुरुने विषे छे. निषढद्रह, देवकुरुद्रह, सूर्यद्रह, सुलसद्रह, विज्जुप्रभद्रह, ए पांच द्रह Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १५९ देवकुरु क्षेत्रमा सितोदा नदीनी बचे छे. एमज उत्तरकुरु क्षेत्रने विषे सिता नदीने मध्य भागे ५ द्रह छे. तेना नाम निलवंतद्रह, उत्तरकुरु द्रह, चंद्रद्रह, एरावतद्रह, मालवंतद्रह, एवं १० ने ६ उपय एवं १६ द्रह था. हवे पद्म अने पुंडरिक द्रह ए २ द्रह १ हजार जोजनना लांबा अने ५०० जोजनना पहोळा छे, १० जोजनना धरती मांहि डंडा छे. ए प्रमाणेज देवकुरु उत्तरकुरुना १० द्रह जाणवा, एकेका द्रहमांहि १२०५०१२० कमळ छे सघळा रत्नमय छे पद्मद्रह मध्ये १ महोदुं कमळ छे ते श्रीदेवीनं छे, अने १०८ कमळ श्रीदेवीना भंडारना छे, ४ कमळ महत्तरिकाना छे, ७ कमळ अणिकाना छे १६ हजार कमळ आत्मरक्षक देवना छे, ४ हजार कमळ सामानिक देवना छे, ८ हजार कमळ मांहिली परिषदना छे, १० हजार कमळ चलि पाना छे, १२ हजार कमळ बाहिरली परिषद्ना छे, तेने फरता ३ कोट कमळना छे. तेमां ३२ लाख कमळ पहेला कोटना छे. ४० लाख कमळ वचलाकोटना छे. ४८ लाख कमळ बाहिरला कोटना छे. एवं सर्व मळीने १२०५०१२० कमळ थया, ते मांहि महोदुं कमळ १ जोजननुं लांबुं ने पहोळु छे, अर्द्ध जोजननुं जाडुं छे, १० जोजननुं पाणि मांहि उडुं छे, बे गाउ पाणीथी उंचु छे. १० जोजन सर्वागे झाझेरुं कहेलुं छे. ते कमळनुं वज्र रत्नमय मूल छे. रिष्ट रत्नमय कंदछे, बैरुलि रत्नमय निलवरणा बाहेरला पानडा छे. जांबु - नंद राता रत्न ने सुवर्णमय मांहिला पानडा छे. तपाच्या सोनामय केशरी छे. नाना प्रकारना मणिमय ते उपरे पांखडियो छे. सोनानि कर्णिका छे, वे कोशनी कर्णिका लांबि ने पहोळी छे, एक कोशनो जाडपणे डोडो छे, ते उपरे घणुं रमणिक छे तेना मध्य देश भागे श्री देवीनं घर छे ते १ कोशनुं लांबु ने अर्ध कोशनुं पहोळं छे अने देशे उं the Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० खंडा जोयणना बोल. कोश उंचुं छे अनेक स्तंभा छ ओपाव्या सुवर्ण सरिखा सोभे छे ते जोवा योग्य छे. ते भुवनने ३ बारणा छे, पूर्वे, दक्षिणे, उत्तरे, ते बारणा ५०० धनुपना उंचा छे अढिसे धनुषना पहोळा छे ते भुवनमा एक मणि पिठिका छे ते ५०० धनुषनी लांबी ने पहोळी छे. २५० धनुषनी उंची छे, ते मणि पिठिका उपरे १ देवशय्या रहेबानो पलंग छे. हवे महापद्मद्रह, ने महापुंडरिकद्रह ए २ द्रह एकेको २ हजार जोजननो लांबो ने १ हजार जोजननो पहोलो छे अने १० जोजननो घरता मांहि उंडो छे. महापद्मद्रहमा हीदेवी रहे छे. महा पुंडरिक द्रहमां बुद्धि देवी रहे छे. एहना कमळ श्रीदेवीनि परे जाणवा पण कमळनुं मान बमणुं जाणवू ते मांहि महोटुं कमळ २ जोजन, लांबु ने पहोळ छे, अने १ जोजन जाईं छे. हवे तिगिछ दह ने केशरि द्रह ए २ द्रह एकेको ४ हजार जोजननो लांबो ने बे हजार जोजननो पहोलो छे. १० जोजननी धरती मांहि उंडो छे तिगिछ द्रहमां धृति देवी रहे छे, केशरि द्रहमा कात्र्ति देवी रहे छे, एहनु महोटुं कमळ ४ जोजननुं लांबु ने पहोछं छे, अने २ जोजनन जाडुछे.कमळ श्रीदेविनी परे जाणवा. एम साळेद्रहना १२०५०१२० कमळने १६गुणा करतां शाश्वता कमल १९२८०१९२० कमल थाय. अने ५ द्रह देवकुरुमां, ५ उत्तरकुरुमां ए १० द्रह धरती उपरे छे, तेहने नामे देवना नाम छे एक पल्यनुं आयुष छे, अने चुलहिमवंत पर्वत उपरे पनद्रह छ तिहां श्रीदेवीनो वास छ, शिखरी पर्वत उपरे पुंडरीक द्रह छे. तिहां लक्ष्मीदेवीनो वास छे.महाहिमवंत पर्वत उपरे महापद्मद्रह छ, तिहां हिदेवीनो वास छे. रुपि पर्वत उपरे महा पुंडरिकद्रहछे,तिहांबुद्धि देवीनो वासछे, निषढ पर्वत उपरे तिगिछद्रहछे, विहां धृतिदेवीनो बास छे. निलवंत पर्वत उपरे केशरि द्रह छे, विहां Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. कीर्ति देवोनो वास छे. ए ६ देवीओ भवनपतिनी जातिनी जाणवी. तेहर्नु आयुष १ पल्यनुं छे. इति ९ मो द्रह द्वार समाप्तं. हवे दशमो सलिला द्वार कहे छे. सलिलाओ क० बुद्विप मध्ये १४५६०९० नदियो छे ते मांहि पद्म द्रहने पूर्व दिशिने तोरणेथी . गंगा नदी निकळी ५०० जोजन पूर्व साहमी गइ तिहां गंगा वर्तन कुट छ तिहां अफलाणी तिहांथो दक्षिण दिशे चालि ते ५२३ जोजन ने ३ कळा दक्षिण दिशे पर्वत उपरे गइ, तिहां महोटा घडाना मुखमांथी पाणी पडे तेम मोतिना हार सरिखं महा मघरमच्छना मुखने आकारे प्रनालि जीभोकामांथी कांइक अधिक १०० जोजन उंचेथी पाणि पडे छे. ते जीभीका अर्द्ध जोजननी लांबी छे अने सवाछ जोजननी पहोळी छे. प्रनालि मघरमच्छना विकस्या मुखने संठाणे छे सर्व वज्रमय छे, आछी तेजवंत छे, ते मांहिथी पाणि पडे छ, तिहां १ महोटो गंगा प्रपात नामा कुंड छे, ते कुंड ६० जोजननो लांबो ने पहोळो छे. १० जोजननो उंडो छे, ते कुंडनी रुपामय उपकंठपालि छे, वज्रपाषाणमय तळं छे, सुखे मांहि उत्तरिये, नाना मणिरत्ने करि कांठो बांध्यो छे, वज्रमय तल्लं छे सुव नो मध्य भाग छ, रुपानि वेलु छे. गंभिर शितळ जळ छे, अने ते कमळ पानडे छायु छे, घणा उत्पल कमल छे, कुमुद, नलीन, पुंडरिक, शतपत्र, सहस्रपत्र, कमळ घणा छे, गंगा कुंडने ३ बारणा छे, त्रण दिशे पगथीया छे, पूर्व दिशे, दक्षिण दिशे, पश्चिम दिशे. पगथीयानो वर्ण पाषाणना जेवो छे. तेहनो उपल्या भाग रिष्ट रत्नमयछे, वैरुलि रत्नमय स्तंभा छे, सोना रुपाना पाटिया छे, लोहिताक्ष रत्नमय खिला छे, वज्रमय सांधो जडि छे, मणिना आलंबन पकडवा ने पगथिया आगळे प्रत्येक प्रत्येक तोरण छे. ते मणि सुवर्ण मुक्ता Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ खंडा जोयणना बोल. फल हारे करि शोभे छे. ते गंगा प्रपात कुंडनी बचे १ गंगा द्विप नामा द्विपो कह्यो ते ४ जोजननो लांबो ने पहोलो छे. बे कोश पाणि थकि उंचो छे. सर्व रत्नमय छे. गंगा द्विप उपरे घj रमणिक .छे ते उपर १ गंगा देवीनुं भवन का ते १ कोशन लांबु ने अर्द्ध कोशनुं पहोलु छे अने देशे उणु कोश उंचुं छ. अनेक स्तंभा छे. तेहनो वर्णव श्रीदेवीनि परे जाणवो. गंगानुं शास्वतुं नाम छे, ते गंगा प्रपात कुंडना दक्षिण दिशना बारणाथी गंगा नदी निकळीने उत्तर भरत मध्ये वहेति थकि ७ हजार नदी साथे खंड प्रपात गुफाने वैताढ पर्वतने हेठे थइने, दक्षिणाई भरत मांहि वहेति बिजी ७ हजार नदी भळति थकि सर्व १४ हजार नदीने परिवारे जगती ने भेदिने पूर्वना लवण समुद्र मांहि भळी. एमज सिंधु पण पश्चिम दिशे जाणवि. सलिलाउं क. जंबुद्विप मांहि १४५६०९० नदियो छे तेहनो विवरो कहे छे. गंगा, सिंधु, रत्ता, रतवइ, ए ४ नदीयो मूल थकि निकळता सवाछ जोजननी पहोळीओ अने अर्द्ध गाउनि उडियो छे. छेहडे समुद्रमा भळतां साडीबासठ जोजननी पहाळि अने अढि जोजननि उडि छे. एकेकिनो चौद चौद हजार नदियोनो परिवार जाणवो. सर्व मळीने १४ चोकुं ५६००० हजार नदियो थइ. हवे रोहिया, रोहितंसा ए २ नदि हेमवय क्षेत्रमा छे अने सुवर्ण कुला ने रुपकुला ए २ नदीयो हिरणवय क्षेत्रमा छे एवं ४ नदी निकलतां साडा बार जोजननी पहोळी अने १ गाउनी उडि छे. छेडे समुद्रमां भळतां सवासो जोजननी पहोळी अने अढि जोजननी उंडि छे. एकेकिनो अठ्याविश अठ्याविश हजार नदीयोनो परिवार जाणवो. सर्व मळोने एक लाख ने १२ हजार नदीयो थइ. हवे हरिकंता, हरिसलिला, ए वे नदीयो इरिवास क्षेत्रमा छे, अने नरकंता, नारिकंता, ए २ Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह १६३ नदीयो रमकवास क्षेत्रमा छे ए ४ नदीयो मुळे निकळतां पचीच पचीश जोजननी पहोळी छे अने २ गाउनी उंडी छे. छडे समुद्रमा भळतां अढिसो अडिसो जोजननी पहोळी छे, अने पांच पांच जोजननी उडी छे. एकेकि नदीनो परिवार छपन छपन हजार नदीयोनो जाणवो. एवं ४ थइने २ लाख ने २४ हजार नदीयो थइ. सिता, सीतोदा, ए २ नदीयो महाविदेह क्षेत्रमा छे. ते मूळे पचास पचास भोजननी पहोळी छे, चार चार गाउनी उंडी छे, छेडे समुद्रमांमळतां, पांचसा पांचसो जोजननी पहोलो छे, दश दश जोजननी उंडी छे. एकेकिनो पांच लाख ने बत्रिश हजारनो परिवार छे. एवं २ नो परिवार १० लाख ने ६४ हजार नदियोनो जाणवो.महा विदेह क्षेत्रनी १६विजयमां गंगा ने सिंधु बब्बे छे एटले १६ बत्रिश थइ अने १६ विजयमां रत्ता, ने रत्तवइ बे छे ते पण १६ दु ३२ थइ एवं महाविदेह क्षेत्रमा ६४ नदीयो छे, ६४ नुं पहोळपणुं भरतनी गंगानी परे जाणवू. ते एकेकिनो चौद चौद हजार नदीयोनो परिवार जाणवो. चोसठ ने १४ हजारे गुणतां ८ लाख ने ९६ हजार नदीयो थाय. अने देव कुरुनी ८४ हजार अने उत्तर कुरुनी ८४ हजार, एवं १ लाख ने ६८ हजार अने ८ लाख ने ९६ हजार मांहि भेळविए एटले १० लाख ने ६४ हजार थाय, एटलो परिवार सीता सीतोदानो जाणवो. अने शेष १२ नदीयोनो परिवार ३ लाख ने ९२ हजार एवं सर्व मळीने १४ लाख ५६ हजार नदीयो याय. अने ९० महोटी नदीयो जाणवी. हवे १२ अंतर नदीयो महाविदेह क्षेत्रमा छे ते ८ विजयनुं १ खांडवु ते मांहि ३ नदीयो, पूर्व महाविदेहने उत्तर ने खांडवे अने दक्षिणने खांडवे ३ ए ६. एमज पश्चिम महाविदेहने उत्तर खांडवे ३ अने दक्षिणने खांडवे ३ ।। Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ योनी पदनो थोकडो. एवं १२ अंतर नदीयो छे, ते एकेकि सवासो सवासो जोजननी पहोलो छे अने अढि अढि जोजननी उडी छे. १६५९२ जोजन ने २ कळानी लांबी छे. ते १२ अंतर नदीना नाम कहे छे. गाहावइ, दहावइ, पंकावइ, ततजला, मतजला, ऊमतजला, खिरोदा, सिंहसोया, अंतो वाहिणी, अमि मालिनी, फेणमालीनी, गंभीर मालिनी. एवं सर्व थइ महोटि नदीयो १४, ६४, १२, थइने ९० नदीयो थइ. एहनो परिवार सर्व नदीयोनो थइने, १४५६०९० नदीयो थाय इति १० मो सलिला द्वार संक्षेपथी समाप्तं १० इति खंडाजोयण समाप्त. अथ श्री योनी पदनो थोकडो. श्री पन्नवणाजी सूत्र पद ९ मे योनीनो अधिकार चाल्यो छे. योनी त्रण प्रकारनी छे. शीतयोनी, उष्णयोनी, शीतोष्णयोनी, हवे तेनो विस्तार कहे छे-पहेली नरकथी त्रीजी नरक सुधी शीतयोनीया, चोथी नरके शीतयोनीया घणा, अने उष्णयोनीया थोडा, पांचमी नरके उष्णयोनीया घणा अने शीतयोनीया थोडा, छठी नरके उष्णयोनीया,सातमीनरके महाउष्णयोनीया.अग्निवर्जीने चारस्थावर, त्रण विग्लेन्द्रिय, समुच्चय तिर्यच अने मनुष्यमांत्रण योनी पामे. तेउकायमां एक उष्णयोनी सान तिर्यच, संनि मनुष्य अने देवतामां योनी एक शीतोष्णनी.हवे तेनो अल्पवहुल कहे छे-सर्वथी थोडा शीतोष्णयोनीया, तेथी उष्णयोनीया असंख्यात गुणा, तेथी अयोनीया सिद्धभगवंत अनन्त गुणा. तेथी शीतयोनीया अनन्तगुणा.वळी योनी त्रण प्रकारे कही छे-सचेत, अचेत, ने मिश्र. नारकी अने देवतामां Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १६५ योनी एक अचेत. पांच स्थावर, त्रण विग्लेंद्रिय समुच्चत तिर्यंच, अने समुच्चय मनुष्यमां योनी त्रण पामे छे. हवे संत्री तिर्यच अने संत्री मनुष्यमा योनी एक मिश्र. हवे तेनो अल्पबहुत्व कहे छे. सर्वथी थोडा मिश्र योनीया अनंता गुणा. वळी योनी त्रण प्रकारनी-संवुडा, वियडा, ने संवुडावियडा. संवुडा कहेतां ढांकी,वियडा कहेतां उघाडी, संवुडा वियडा कहेतां कांइक ठांकी अने कांइक उघाडी. हवे पांच स्थावर, देवता अने नारकीमां योनी एक संवुडा, त्रण विग्लेन्द्रिय, समुच्चय तिर्यच अने मनुष्यमांत्रण योनी पामे. संनी तियेच अने संत्री मनुष्यमा योनी एक संवुडावियडा. हवे तेनो अल्पबहुत्व कहे छे. सर्वयी थोडी संवुडावियडा, तेथी वियडा योनीया असंख्यातगुणा, तेथी अयोनीया अनन्तगुणा, तेथी संवुडा योनीया अनन्तगुणा. वळो योनी त्रण प्रकारनी छे. संखा कहेतां शंखने आकारे, कच्छा कहेता काचबाने आकारे,वंशपत्ता कहेतां वांसना पांदडाने आकारे. चक्रवतिनी खीरत्ननी योनी शंखने आकारे ते योनीवाळी स्त्रीने संतान न थाय. ५४ सलाखा पुरुषनी मातानी योनी काचबाने आकारे होय, अने सर्व मनुष्यनी मातानी योनी वांसना पांदडांने आकारे होय. इति श्री योनी पदनो थोकडो संपूर्ण. अथ श्री तेर बोलनो थोकडो. श्री पन्नवणा सूत्र पद पंदरमे तेर बोलनो विवरो छे ते कहे छे. श्री वीरभगवानने गौतम स्वामी वंदणा नमस्कार करीने एम पुछे छे के हे भगवान ! पहेले बोले-सो वर्षनाजुग केटला ? संव Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेर बोलनो योकडो. च्छर केटला ? अयन केटला ? रुतु केटली ? मास केटला ? पक्ष केटला ? अठवाडीयां केटला ? दिन केटला? पहोर केटला? मुहूर्त केटलां ? घडी केटली ? अने श्वासोश्वास केटला ? उत्तरः-सोवरसना वीस जुग थाय, सो वरसना सो संवच्छर थाय, बसें अयन थाय. रुतु छसो थाय. महीना बारसें थाय, पक्ष चोवीसें थाय, अठवाडीयां अडतालीसें थाय, दिवस छत्रीस हजार थाय, पहोर बे लाख ने अठ्यासी हजार थाय, मुहूर्त दश लाख ने ऐसी हजार थाय, घडो एकवीस लाख ने साठ हजार थाय, श्वासोश्वास चारसे ने सात क्रोड अडतालीस लाख चालीस हजार थाय. बीजे बोले एक दिवस शुद्ध समकित सहित रागद्वेषरहित क्षमादया सहित पोषो करे तो शुं फळ थाय ? उ०-सत्यावीसें सत्तोतेर क्रोड,सीतेर लाख,सित्तोतेर हजार सातसे सोत्तेर पल्योपम अनेएक पल्योपमना जव भाम करीए तेमांथी आठ भाग झाझेरानु शुभ देवतार्नु आउखु बांधे. त्रीजे बोले एक पहोरनो शुद्ध समकीत सहीत संवर करे तो तेनुं शुं फळ थाय ? उ०;-त्रणसें, छेतालीस करोड, बावीस हजार, बसें ने बावीस पल्योपम अने एक पल्योपमना आठ भाग करीए तेमांथी सात भाग झाझेरानु शुभ देवतार्नु आउखु बांधे. . चोथे बोले एक मुहूर्त शुद्ध समकीत सहीत सामायक करे तो तेनुं शुं फल थाय ? उ०;-बाणु करोड, ओगणसाठ लाख, पचीस हजार, नवसेंने पचीस पल्योपम अने एक पल्योपमना सात भाग करीए तेमांथी त्रण भाग झाझेरा शुभ देवतान.आउखु बांधे. पांचमे बोले एक घडीनो संवर करे तो शुं फळ थाय ? उ०;छेतालीस करोड, ओगणत्रीस लाख, बारहजार नवसेंने सडसठ पल्योपम अने एक पलना छ भाग करीए तेमांथी चार भाग झाझेरा Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १६७ शुभ देवतानुं आउखु बांधे. छठे बोले एक नवकारशी तप करे तो शुं फळ थाय ? उ०ओगणत्रीश लाख त्रेसठ हजार बसें ने सड़सठ पल्योपम अने एक पल्योना चोथो भाग शुभ देवतानुं आउखु बांधे. ७ में अनुपूर्वी गणे तो शुं फळ थाय ? उ०- पांचसे सा० पाप नासे. ८ में बोले एक उणोदरी तप करे तो ? उ०- सो वरसना पाप नासे. ९ में उपवास करे तो ? उ० हजार वरसना नारकीना पाप नासे. १० में छठ करे तो ? उ०- एक लाख वर्षना नारकीना पाप नासे. ११ में अठम करे तो ? उ०- १ करोड वर्षना नारकीना पाप नासे. १२ में बोले चार तथा पांच उपवास करे तो ? उ० क्रोडान क्रोड वरसना नारकीना पाप नासे. १३ में बोले एक घडीना श्वासोश्वाश केटला थाय ? उ० - एक हजार आठ साडी बेतालीस थाय. वे घडीना श्वासोश्वास प्रण हजार सातसें ने तोतेर थाय. एक दीवश रातना श्वासोश्वास एक लाख तेर हजार एकसो ने नेतुं थाय. पोरशीना श्वासोश्वास पंदर हजार ने बाणु थाय. पंदर दिवसना श्वासोश्वास सोल लाख सत्ताणु हजार आठसें ने पचास थाय. एक मासना श्वासोश्वास त्रीस लाख पंचाणु हजार सातसें थाय. नव मासना श्वासोश्वास त्रण करोड चौद लाख दश हजार बसें ने पचीस थाय. एक वरसना श्वासोश्वास चार क्रोड सात लाख अडताळीस हजार चारसें थाय. सो वरसना श्वासोश्वास चार सें सात क्रोड अडतालीस लाख ने चालीस हजार चार सेंहजार थाय. हवे श्वासोश्वास उपर सुख दुखनी वातो कहे छे. ब्रह्मदत्त चक्रवर्त्तिनुं आउखु सातसें वरसनुं हतुं तेना श्वासोश्वास अठावीसे ने बावन क्रोड आडत्रीस लाख एंसी हजार थाय. तेटळा श्वासोश्वास पुरा Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ छकायना भवनो थोकडो.. करीने सातमी नरके अपइठाण नरकावासे तेत्रीस सागरोपमनी स्थितिए गया. त्यां तेमणे मनुष्यना भवमा जे श्वासोश्वास लीधा तेमां अकेक श्वसोश्वास उपर नरकमां केटलं दुःख पडे छे ते कहे छे, अगीआर लाख छपन हजार नवसें ने पचास पल्यापम अने एक पल्योपमनोत्रीजो भाग झाझेरो नरकमां दूःख भोगवे छे. हवे सुख आश्री कहे छे. धना अणगारे नवमास संजम पाल्यो तेना श्वासोश्वास त्रण करोड पचास लाख एकसठ हजार ने त्रणसें थाय. ते धन्नाअणगारे एटला श्वासोश्वास संजम पाळी सर्वार्थसिद्धे सुख पाम्या. ते मनुष्यना एक श्वासोश्वास उपर एकसो ने सात क्रोड, सत्ताणु लाख छर्नु हजार, नवसें अठाणुं पल्योपम, अने एक पल्योपमना छठा भाग माठेरा एटलं सुख भोगवे. पुंडरीक अणगारे त्रण दिवस संजम पाळ्यो तेना श्वासोश्वास त्रण लाख, ओगणचालीस हजार पांचसेंने सित्तेर श्वासोश्वास लीधा. एक श्वासोश्वास उपर सर्वार्थसिद्धमां ते अणगार नवहजार सत्तावीश क्रोड, छोतेर हजार क्रोड आठसें ने एकसठ पल्यापम अधिक एटलं सुख देवमां भोगवे छे. एमज एटलं कुंडरीक संसारमा जवाथी नर्कना दुःख भोगवे छे. इति श्री तेर बोलना थोकडा संपूर्ण. ॥ अथ श्री छकायना भवनो थोकडो॥ श्री गौतम स्वामि वीर भगवानने वंदणा नमस्कार करी पूछे छे के, हे भगवान ! छकायना जीव अंतर मुहूर्तमा केटला भव करे ? श्री वीरभगवान कहे के हे गौतम : पृथ्वी, पाणी, अग्नि, Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १६९ वायरो ए जघन्य एक भव करे, उत्कृष्टा बार हजार आठसेंचोवीस भव एक अंतर मुहूर्तमां करे. अने वनस्पतिना बे भेद ते प्रत्येक अने साधारण. हवे प्रत्येक जघन्य एकभव उत्कृष्टा बत्रीसहजार भव करे अने साधारण जघन्य एकभव अने उत्कृष्टा पांसठ हजार पांचसे छत्रीस भव करे. बेइंद्रिय जघन्य एक भव अने उत्कृष्टा ऐंसी भव करे. तेइंद्रिय जघन्य एकभव अने उत्कृष्टा साठभव करे.चौरेंद्रिय जघन्य एक भव अने उत्कृष्टा चालीसभव करे, असंज्ञी तियेच जघन्य एकभव अने उत्कृष्टा चोवीस भव करे. संज्ञी तिर्यच अने संज्ञी मनुष्य जघन्य अने उत्कृष्टो एकज भव करे इति श्री छकायना भवनो थोकडो संपूर्ण. ॥ अथ श्री छ लेश्यानो थोकडो. ॥ श्री उत्तराध्ययन सूत्र, अध्यन चोत्रीसमे छ लेश्यानो थोकडो चाल्यो छे तेमां प्रथम लेश्याना अगीयार द्वार कहे छे:-नाम, वर्ण, रस, गंध, स्पर्श, परीणाम, लक्षण, स्थानक, स्थिति, गति अने चवन, ए अगीयार नाम कह्यां, हवे तेनो विस्तार कहे छे.. प्रथम नामद्वार कहे छे-कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापुत लेश्या, तेजु लेश्या, पद्म लेश्या, अने शुक्ल लेश्या.. बीजो वर्णनो द्वार कहे छे-कृष्ण लेश्यानो वर्ण जेवो पाणी सहित मेघ काळो, जेवां पाडानां शीगडां काळां, जेवां अरीठानां बीज, जेवु गाडातुं खंजन, आंखनी कीकी ए करतां अनन्त गुणो काळो. १. नील लेश्यानो वर्ण-जेवो अशोक वृक्ष नीलो, जेवीचासपक्षीनी Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० छ लेश्यानो थोकडो. पांख, जेई वैडुर्यरत्न एथी अनन्त गुणो नील लेश्यानो नीलो वर्णछे. ___२. कापुत लेश्यानो वर्ण जेवां अळशीना फुल, जेवी कोयलनी पांख, जेवी पारेवानी डोक कांइक राती, कांइक काळी ए करतां अनन्तगुणो अधिक कापुत लेश्यानोवर्ण जाणवो. ३. तेजु लेश्यानो वर्ण जेवो उगतो सूर्य रातो, जेवी सुडानी चांच, जेवी दीवानी शीखा ए करतां अनन्त गुणो आधक रातो. ४. पद्म लेश्यानो वर्ण-जेवो हडताळ, जेवी हळदर, जेवां शणनां फूल, ए करतां अनन्त गुणो अधिक पीळो. ५. शुक्ल लेश्यानो वर्ण-जेवो शंख, जेई अंक रत्न, जेवू मोगरान फूल, जेवू गायदुध, जेवो रुपानो हार एकरतां अनन्त गुणो अधिक श्वेत.. ६.त्रीजो लेश्याना रसनोंद्वार कहे छे-कृष्ण लेश्यानो रस जेवो कडवो तुंबडो, जेवो कडवो लींबडानो रस, जेवो रोहीणी नामे वनस्पतिनो रस, एथी अनन्त गुणो अधिक कडवो रस. १. नील लेश्यानो रस-जेवो झूठनो तीखो रस, जेवो पीपर-मरीनो रस, एथी अनन्त गुणो अधिक तिखो रस. २. कापुत लेश्यानो रसजेवो कुणीकाची केरीनो रस, जेवांकाचां कोठानो रस,एथी अनन्त गुणो अधिक खाटो रस. ३. तेजु लेश्यानो रस-जेवो पाका आंबानो रस, जेवो पाका कोठानो रस, एथी अनन्त गुणो कांइक खाटो ने कांइक मीठो रस. ४. पद्म लेश्यानो रस-जेवो वारुणीनो रस, जेवो आशप (सरखा) नो रस, जेवो मधुनो रस एथी अनन्त गुणो मधुरो रस. ५. शुक्ल लेश्यानो रस-जेवो खजुरनो रस, जेवो द्राक्षनो रस, जेवो दुधनो रस, जेवो साकरनो रस एथी अनन्त गुणो अधिक मीठो रस ६. Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १७१ चोथो लेश्याना गंधनो द्वार कहे छे-जेवो गायना मडाना, कुतरानां मडामो, सर्पना मडानो एथी अनन्त गुणो अधिक अप्रसस्थ, प्रथम त्रण माठी लेस्यानो गंध जाणवो. १. जेवो कपुर, केवडो, प्रमुख सुगंधी पदार्थ वाटतां (घुटता) जेवी सुगंध नीकळे ते करता अनन्त गुणो प्रसस्थ त्रण सारी लेश्यानो गंध जाणवो. पांचमो लेश्याना स्पर्शनो द्वार कहे छे-जेवी करवतनी धार, जेवी गायनी जीभ, जेवू मुंझनु तथा वांसनुं पान, ते करतां अनन्त गुणो माठी अप्रसस्थ लेश्यानो स्पर्श जाणवो. १. जेवी बुर नामे वनस्पति, जेवु माखण, जेवां सरसवनां फूल, जेवू मखमल ए करतां अनन्त गुणो अधिक प्रसस्थ लेश्यानो स्पर्श सुंवाळो जाणवो. २. छठो लेश्याना परिणामनो द्वार कहे छे-लेश्या त्रण प्रकारे प्रणमे-जघन्य, मध्यम, अने उत्कृष्ट. तथा नव प्रकारे प्रणमे ते उपर त्रण कही तेना अकेकना त्रण त्रण भेद थाय. जेमके, जघन्यनो जघन्य, जघन्यनो मध्यम, जघन्यनो उत्कृष्ट ए रीते दरेकना त्रण त्रण भेद करतां नव भेद थाय. एम नवना सत्तावीस भेद थाय, एम सत्तावीस ना एकाशी भेद थाय, एम एकाशीना बशे ने तालीस भेद थाय, एटले भेदे लेश्या परिणमे. सातमो लेश्यानां लक्षणनो द्वार तेमां प्रथम कृष्ण लेश्यानां लक्षण कहे छे-पांच आश्रवनो सेवनार, त्रण अगुप्तिवंत, छकाय जीवनो हींसक, आरंभनो तित्र परिणामी तथा द्वेषी, पाप करवामां सहासिफ, निठोर परिणामी, जीवहींसा शुग रहित करनार, अजीतेंद्री एवा जोगे करी सहित होय तेने कृष्ण लेष्यानु लक्षण जाणवू. नील लेश्यानां लक्षण कहेछे-इविंत, अमृखवंत,तप रहित,मायावी, पाप करतां लाजे नहीं, गृधी, धृतारो, प्रमादी, रसनो लोलुपी, Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -- १७२ छ लेस्थानो योकडो. मायानो गवेष, आरंभनो अत्यागी, पापने विषे सहासीक, ए नील छेश्यानां लक्षण जाणवां. कापुत लेश्यानां लक्षण कहे छ-बांका.बोलो वांकां काम करनार, माया करीने हरखाय, सरळपणा रहित, मोढे जुदो अने पुठे जुदो, मिथ्या खोटा वचननो बोलनार, चोरी मच्छरनो करनार, ए कापुत लेश्यानां लक्षण जाणवां. तेजु लेश्याना लक्षण कहे छे-मर्यादावंत, माया रहित, चपळपणा रहित, कतोहळ रहित, विनयवंत, दमीतेंद्री, शुभ जोगवंत, उपध्यान तप सहित, दृठ धर्मी, प्रिय धर्मी, पाप थकी बीहे, ए तेजुलेश्यानां लक्षण जाणवां. पद्म लेश्यानां लक्षण कहे छे-क्रोध, मान, माया, लोभ, पातळा कर्या छे. प्रशांत चित्त आत्मानो दमणहार, योग, उपध्यान सहित होय, थोडाबोलो, उपशांत, जीतेंद्रि, ए पदभ लेश्यानां लक्षण जाणवां. शुकल लेश्याना लक्षण कहेछे-आतध्यान, रौद्रध्यानथी सर्वथा रहित, धर्म ध्यान, शुकल ध्यान सहित, दश प्रकारनी चित्त समाधिए करी सहित, आत्माना दमणहार,इत्यादिक शुकळ लेश्यानां लक्षण जाणवां. ___आठमो लेश्याना स्थानकनो द्वार कहे छे-असंख्याती उत्सपिणी अवसर्पिणोना जेटला समय थाय तथा असंख्याता लोकना जेटला आकाश प्रदेश थाय, एटलां लेश्यानां स्थानक जाणवां. नवमो लेश्यानी स्थितिनो द्वार कहे छे-कृष्ण लेश्यानी स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्तनी, उत्कृष्टी ३३ सागरोपम ने अंतर्मुहुर्त अधिक नील लेश्यानी स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्तनी, उत्कृष्टी दश सागरोपम ने पलनो असंख्यातमो भाग अधिक, कापुत लेस्यानी स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्तनो, उत्कृष्टी त्रण सागरोपम ने पलनो असंख्यातमो भाग अधिक तेजु लेश्यानो स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्तनी, उत्कृष्टो बे सागर ने पलनो असंख्या मो भाग अधिक; पद्म लेश्यानी Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्तनी उत्कृष्टी दश सागरोपम ने अंतर्मुहूर्त अधिक, शुक्ल लेश्यानी स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्तनी, उत्कृष्टी ३३. सागरोपम ने अंतर्मुहूर्त अधिक. ए समुच्चय लेश्यानी स्थिति कही, हवे चार गतिनी लेश्यानी स्थिति कहे. छे. प्रथम नारकीनी लेश्यानी स्थिति कहे : छे - कात लेश्यानी स्थिति जघन्य दश हजार वर्षनी, उत्कृष्टा त्रण सागरापम ने पलनो असंख्यातमो भाग, नील लेश्यानी स्थिति जघन्य त्रण सागर ने पलनो असंख्यातमो भाग, उत्कृष्टी दश सागर ने पलनो असंख्यातमो भाग, कृष्ण लेश्यानी स्थिति जघन्य दश सागर ने पलनो असंख्यातमो भाग, उत्कृष्टि तेत्रीस सागर ने अंतर्मुहूर्त अधिक ए नारकीनी लेश्या कही. हवे मनुष्य तीन स्यानी स्थिति कहे छे - पहेली पांच लेइयानी स्थिति जघन्य उत्कृष्टी अंतर्मुहूर्त्तनी, शुकल लेस्यानी स्थिति केवळी आश्री जघन्य अंतर्मुहूर्तनी, उत्कृष्टी नव वर्ष उणी पूर्व क्रोडनी. हवे देवतानी लेस्थानी स्थिति कहे छे - भवनपति, वाणव्यंतर ए मां कृष्णलेस्यानी स्थिति जघन्य दश हजार वर्षनी, उत्कृष्टी पलना असंख्यातमा भागनी, नील लेस्थानी स्थिति जघन्य कृष्ण लेस्यानी उत्कृष्टी स्थितिथी एक समय अधिक ने उत्कृष्टी पलनो असंख्यातमो भाग, कापुत लेस्यानी स्थिति जघन्य नील लेस्यानी उत्कृष्टी स्थितिथी एक समय अधिक, उत्कृष्टी पलना असंख्यातमा भागनी, तेजुलेस्यानी स्थिति जघन्य दश हजार वर्षनी, भवनपति वाणव्यंतरनी उत्कृष्टी वे सागर ने पलनो असंख्यातमो भाग अधिक, वैमानिक देवनी पत्र लेख्यानी स्थिति जघन्य तेजुलेस्थानी उत्कृष्टी स्थितिथी एक समय अधिक, वैमानिकनी उत्कृष्टी दश सागर ने अंतर्मुहूर्त अधिक, वैमानिकनी शुक्ल लेस्थानी स्थिति जघन्य पद्म Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ चार कषायनो थोकडो. स्थानी उत्कृष्ट |स्थतिथी एक समय अधिक, उत्कृष्टि तेत्रीस सागर उपर अंतर्मुहूर्त अधिक. दशमो लेश्यानी गतिनो द्वार कहे छे-कृष्ण, नील, कालुत ए ऋण अमसस्थ अधम लेश्या तेणेकरी जीव दुर्गति जाय. तेजु, पद्म, शुक्ल ए त्रण धर्म लेश्या, तेणे करीने जीव सुगतिए जाय. अगीआरमो लेश्याना चवननो द्वार कहे छे- सघळी लेश्या प्रथम प्रणमती वखते कोइ जीवने उपज के चवकुं नथी तथा लेस्थाना छेल्ला समये कोइ जीवने उपजबुं के चबवुं नथी परभवने विषे केम चवे ते कहे छे-लेस्या परभवनी आवी थकी अंतर्मुहूर्त गया पछी शेष अंतर्मुहूर्त आउखा आडा रहे थके जीव परलोकने विषे जाय. इति श्री लेस्यानो थोकडो संपूर्ण. अथ श्री चार कषायनो थोकडो . श्री पन्नवणाजी सूत्र पद चौदमे कषायनो वर्णन चाल्यो छे. कषाय १६ प्रकारे कही छे - १. पोताने माटे, २. परने माटे, ३. तदुभया कहेता बन्ने माटे, ४. खेत कहेतां उघाडी जमीनने माटे ५. बथु कहेतां ढांकी जमीनने माटे, ६. शरीर माटे, ७ उपधिने माटे, ८ निरर्थकपणे, ९. जाणतां १०. अजाणतां ११. उपशांतपणे, १२. अणुपशांतपणे, १३. अनंतानुबंधी क्रोध, १४. अप्रत्याख्यानी क्रोध, १५. प्रत्याखानी क्रोध, १६. संजलनो क्रोध, एवं १६. ते १६ समुच्चय जीव आश्री अने चोवीश दंडक आश्री एम २५ ने सोले गुणतां ४०० थाय हवे कषायना दळीआ कहे 9 Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १७५ छे-चणीआ, उपचणीआ, बांध्या, वेदया, उदीरीया, निर्जर्या एवं छ. ते भूतकाळ, वर्तमानकाळ, अने भविष्यकाळ आश्री एम ६ ने त्रणे गुणतां १८ थाय. ते एक जीव आश्री अने १८ बहु जीव आश्री एवं ३६ थाय ते समुच्चय जीव आश्री, अने चोवीश दंडक आश्री, एम ३६ ने २५ से गुणतां ९०० -थाय. अने ४०० उपर कह्या ते मळी कुल १३०० क्रोधना, १३०० मानना, १३०० मायाना अने १३०० लोभना, एवं सर्व मळी ५२०० थाय. इति कषायनो थोकडो संपूर्ण. अथ श्री संजयाना बोल. गाथा॥पनवणा १ वेय २ रागे ३, कप्प ४ चरित ५पडिसेवणा नाणे ७; तिच्छेय ८ लिंगे ९शरीरे १०,खेत ११ काल १२ गइ १३ संजम १४ निकासे १५॥१॥जोगु १६ वउगे १७ कसाए १८, लेशा १९ परिणाम २० बंध २१ वेदेय २२; कम्मोदीरणा२३ उपसंपजहणा २४, सन्नाय २५ चाहारे २६ ॥२॥ भव २७ आगरिसे २८ कालं २९ तरेय ३०, समुघाय ३१ खेत ३२ फुसणाय ३३; भावय ३४ परिमाणे ३५ खलु,अपाबहुच्च ३६ संजयाणं ॥३॥ इति गाथा त्रण संपूर्ण. उपली त्रण गाथानो अर्थ विस्तारी कहे छे. १ पन० सामायक चारित्रना । ते बावीस जिनने वारे तथा महा बे भेद एक थोडा काळ, ते विदेह क्षेत्रे १. छेदोपस्थानीयना प्रथम जिनेश्वरने तथाचर्म जिने- बे प्रकार, एक अतिचार सहित परने वारे. बी घणा काळy | ने पंच महाव्रत आरोपीए बीचं Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ संजयाना बोल. अतिचार रहित ने पंच महाव्रत कल्प, जिनकल्प, स्थिवर कल्प आरोपीए २. परिहार विशुद्ध चा- अने कल्पातीत, तेमां स्थिती रित्रना बे प्रकार, एक तप करवा कल्पमा ५ चारित्र लाभे अस्थिति पेठो. बीजो परिहार विशुद्ध चा- कल्पमां ३ चारित्र लाभे सामारित्र सेवीने नोकल्यो ते ३. यक, सुक्ष्म संपराय, जथाख्यात मुक्षम संपराय चारित्रना बेप्रकार, ए३लाभे जिनकल्प अने स्थिवर एक उपसम श्रेणीथी पडतो,बीजो कल्प एरमा आगल्या ३चा०लाभे क्षपक श्रेणीए चडतो ४. यथा- | कल्पातीतमा ३ चारित्र लाभे ख्यात चारित्रना बे प्रकार एक सा०, सु०,जथाख्यात ए ३ लाभे छदमस्थ, बीजो केवळीनो ५. ५पुलाक १, बकुस २, पति २ सामायक, छेदोपस्थानीय, | सेवणा ३, कषाय कुसील ४, सवेदी ने अवेदी बे. जो अवेदी | निर्गथ ५, स्नातक ६, तेमां पुहोय तो? उपशम वेदीने,क्षीणवेदि लाक बकुस, पति सेवणा, ए ३ होय. अने सवेदी होय तो ?त्रणे मा बे चारित्र लाभे, सामा०, वेदमां होय. अने परिहार विशुद्ध छेदो०. ए बे चारित्र लाभे कसवेदी होय पण अवेदी न होय. | षाय कुक्षीलमा आगल्या ४चारित्र सवेदी होय तो पुरुष, पुरुष न- | लाभे निर्गथमां ने स्नातकमां पुंसक ए बे वेदमां होय. सुक्ष्म | एक जथाख्यात चारित्र लाभे. संपराय, अने जथाख्यात ए अ- ६ हवे प्रतिसेवणा द्वार कहे वेदीहोय.उपसमनेक्षीणवेदीहोय. छे प्रतिसेवीमा आगल्या २ चा ३ आगला ४ चारित्र स- रित्र लाभे. तेमां पण मूल गुण रागी, अने जथाख्यात वीतरागी उत्तर गुण प्रतिसेवीमांबे आगल्या ते उपसम ने क्षीणरागी होय. चारित्र लाभे अने अप्रतिसेवीमां ४ स्थिती कल्प, अस्थिति तो ५ चारित्र लाभे. Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. लाभे नही. १० हवे शरीरद्वार कहे छे सामा०, छेदो०, ए २ मां ३ शरीर, ४ शरीर तथा ५ शरीर पण लाभे. पाछला ३ चारित्रमां ३ शरीरलाभे ते उदारिक, तेजस ने कार्मण. ७ हवे ज्ञानद्वार कहे छे, आगल्या ४ चारित्रमां २ ज्ञान, ३ ज्ञान के ४ ज्ञान लाभे. जथाख्यातमां ज्ञान ५ भजना, अज्ञान एके चारित्रमां लाभ नही. हवे केटलं भणे सामा० छेदो०, सूक्ष्म०, जथाख्यात, ए ४ चारित्र जघन्य ८ प्रवचनमाता भणे, उत्० १४ पूर्व पुरा भणे परिहार विशुद्ध नवमा पूर्वनी त्रिज आचार वत्थु भणे उ० देशे उणा १० पूर्व भणे. ८ हवे तीर्थद्वार कहे छे. तीर्थमां पांच चारित्र लाभे. अतीर्थमां ३ चारित्र लाभे ते सामा सुक्ष्मसंपराय, जथाख्यात. तिर्थ कर, प्रत्येक बूधमां पण एज ३ चारित्र लाभे. ९ हवे लिंगद्वार कहे छे. द्रव्यलिंग आश्री सलिंगमां ५ चारित्र लाभे. अन्यलिंग गृहलिंगमां परिहार विशुद्ध वरजीने ४ चा रित्र लाभे. भावलिंग आश्री सलिंगमां ५ चारित्र लाभे. अन्यलिंग गृहलिंगमां एके चारित्र | १७७ ११ हवे क्षेत्रद्वार कहे . कर्मभुमीमां जन्म छत आश्री ५ चारित्र लाभे, अकर्म भुमीमां एके चारित्र न लाभे. साहारण आश्र कर्मभुमीमां, अकर्म भुमीमां परीहारविशुद्धवरजीने ४ चारित्रलाभे. १२ हवे कालद्वार कछे अवसर्पिणी, उत्सर्पिणी ए २ मां ५ चारित्र लाभे. नो भवसर्पिणी नोउत्सर्पिणीमां छेदोप०, परिहार०, एबेवरजीने ३ चारित्रलाभे. तेमां अवसर्पिणी काळमां जन्म आश्री १, २, आरामां एके चारित्र न लाभे ३, ४, आरामां ५चारित्र लाभे, पांचमां आरामां २चारित्र लाभे सामा० ने छेदो ० छठे आरे एके न लाभे, हवे छत Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ संजयाना बोल. आश्री १, २, आरामां एके चा- १३ हवे गतिद्वार कहे छे. रित्र न लाभे. ३, ४, ५, आरामां नरक, तियेच, ने मनुष्य ए ३ ५ चारित्र लाभे. छठा आरामां गतिमां न जाय. १ देव गतिमां एके चारित्र लाभे नही.साहारण जाय. तेमां सामा० छेदो० ए आश्री परिहार विशुद्ध वरजीने | २ आराधक आश्री जघन्य ४चारित्रलाभे.हवे चढता काळमां पहेले देवलोके उत्० अनुत्तर जन्म आश्री पेले आरेएकेचा- | विमाने जाय. परिहार विशुद्ध रित्र न लाभे.२, ३,४, आरामां | जघन्य पहेले देवलोके जाय अने ५ चारित्र लाभे. ५, ६,आरामां | उत्० आठमे देवलोके जाय. एके चारित्र लाभे नही. हवे छत सुक्ष्म संपराय, जथाख्यात ए २ आश्री १, २, आरामां एके चा- ज० उ० अनुत्तर विमाने जाय, रित्र न लाभे. ३, ४, आरामां ५ | अने जथाख्यातवाळो मोक्ष पण चारित्र लाभे, ५, ६, आरामां जाय. हवे आराधक पांच पदवी एके चारित्र न लाभे हवे साहा- पामे. इंद्रनी, सामानीकनी,त्राय रण आश्रो परिहारविशुद्धवरजीने | त्रिसकनी,लोकपाळनी,नेअहमेंद्र४चारित्र लाभे नोउत्सर्पिणी नो- | नी पदवी पामे. तेमां सामा० ने अवसर्पिणीमां जन्म छत आनी छेदो-ए२पांचपदवीपामे.परिहार जुगलीयाना क्षेत्रमा एके चारित्र | विशुद्ध १ अहमेंद्रनी वरजीने ४ न लाभे. पंचमहाविदेह क्षेत्रमा पदवी पामे सूक्ष्म संपरायने जथाछेदो०, परिहार विशुद्ध वरजीने ख्यात ए बे १ अहमेंद्रनी पदवी ३ चारित्र लाभे. हवे साहारण पामे. हवे विराधक आश्री पांचे आश्री परिहार विशुद्ध वरजीने चारित्रवाळा ज०, भवनपतीमा ६ अकर्म भूमि ने १ महाविदेह जाय, उ० पेहेले देवलोके जाय, एवं ७ क्षेत्रमा ४ चारित्र लाभे. पदवी पांच मांहेली एके न पामे. Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिदाव प्रकरण संग्रह. १७९ हवे स्थिति कहे छ आवता भव परिहार विशुद्ध ३ साथे छठाण आश्री आगल्यारचारित्रनीज०बे वडियो. उपल्या २ थी अनंत गुणपल्यनी, उ०३३ सागरनी. परि- हीण. छेदोपस्था० सामायक०, हार विशुद्धनी ज० बे पल्यनी छेदो० परिहार विशुद्ध साथे छउ०१८ सागरनी, सूक्ष्म संपराय ठाण वडियो, उपल्या २ थी अजयाख्यात ए २ चारित्रनी जघ- नंत गुण हीण. हवे परिहार विशुद्ध न्य० उत्कृष्टी ३३ सागरनी. - सामा०, अने छेदोप० परिहार १४ हवे संजमठाण द्वार विशुद्ध साथे छठाण वडियो,उपला कहे छे आगल्या ३ चारित्रना | २ थीअनंत गुण हीण. हवे सुक्ष्म असंख्याता स्थानक, सूक्ष्म संप- | संपराय सामायक छेदोप० परिरायना असंख्याता स्थानक, अंत हार विशुद्धथी अनंत गुण अधिक मुं० काळ प्रमाणे समय २ प्रते | पण नो तुल्य. सूक्ष्म संपराय चारित्रनी विशुद्धिना विशेष भा- | सूक्ष्म संपराय साथे छठाणवडीयो, पथी ते असंख्य थाय अने जथा- | जो हिणो होय तो अनंत गुणख्यातनुं एकज स्थानक. हवे | हीणो, जो अधिको होय तो अअल्प बहुत्व सर्वथी थोडा जथा- नंत गुण अधिक, अने तुल्य पण ख्यातना स्थानक, तेथी सूक्ष्म | होय अने जथाख्यातथी अनंतगुण संपरायना असंख्यात गुणा, तेथी। हीण.जथाख्यात आगल्या४थी अ. परिहार विशुद्धना असंख्यात | नंत गुण अधिक.जथाख्यात जथा गुणा, तेथी सामा० ने छेदोप० । ख्यात साथे तुल्य. हवे अल्प बहुमाहोमांहि तुल्य नेअसंख्यातगुणा. त्व सर्वथी थोडा सामायक छेदो १५ हवे निकास द्वार कहे पस्थापनीकना ज० पर्यव यांहोछे पांचे चारित्रना अनंतापर्यव मांहि तुल्य, तेथी परिहार विशुभाणवा सामायक, छेदोप०, ने द्धना ज० पर्यव अनंतगुणा, तेथी Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० संजयाना बोल. परिहार विशुद्धना, उ० पर्यव अ- अने सूक्ष्मसंपरायमा १ संजलनो नंतगुणा, तेथी सामायक छेदो- लोभ लाभे.जथाख्यात उपसम ने पस्थापनियना उन्० पर्यव अनंत | क्षिणकसाई होय. गुणा अने मांहोमांहि तुल्य, तेथी | १९ हवे लेश्या द्वार कहे सूक्ष्म संपरायना ज० पर्यव अ- छे. सलेशीमां पांचे चारित्र लाभे. नंतगुणा, तेथी सूक्ष्म संपरायना अलेशीमां एक छेलो. सामा०, उ० पर्यव अनंतगुणा, तेथीजथा- छेदोपस्थापनीयमा लेश्या६लाभे. ख्यातना ज० उ० पर्यव अनंत परिहार विशुद्धमां पाछली ३ गुणा ने माहोमांहि तुल्य. लेश्या लाभे. उपल्या २ मां १ १६ हवे जोग द्वार कहे छे. सुक्ल लेश्या लाभे. पांचे चारित्र सजोगीमां ते मन २० हवे परिणाम द्वारकहे जोग, वचन जोग, काय जोग छे. वर्द्धमान परिणाममां पांचे ए ३ मां आगल्या चारित्र ४ चारित्रलाभे.हायमान परिणाममां लाभे अने अजोगीमां एक जथा- आगल्या ४ चारित्र लाभे, अवख्यात लाभे. स्थित परिणाममा सुक्ष्म संपराय १७ हवे उपयोग द्वार कहे | वरजीने ४ चारित्र लाभे. तेमां छे सागार उपयोगमां पांचे चारित्र आगल्या ४ नी जघन्य वृद्धि १ लाभे. अणगार उपयोगमा सूक्ष्म समो उत्० अंतर्मुहू०. अने जथासंपराय वरजीने ४ चारित्र लाभे. ख्यातनी ज०उ० वृद्धि अंतर्मु०. १८ हवे कपाय द्वार कहे | हवे हायमानमा आगल्या ४ नी छे. आगल्या ४ चारित्र स कसाई, ज० १ समो उ० अंतर्मु०. हवे एक छेहलो अकसाई. आगल्या अवस्थितमा आगल्या ३ नी ज० ३ चारित्रमा संजलनो क्रोध, १ समो उ०७ सम०. जथाख्यामान, माया, लोभ, ए ४ लाभे | तनी ज० १ समो उत्कृष्टी देशे Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जेन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. उणा पूर्व क्रोडनी. २४ हवे उपसंपजहणाद्वार __२१ हवे बंध द्वार कहे छे. कहे छे. सामायक चारित्रवाळो आगल्या ३ चारित्र ७ कर्म तथा चडे तो, छेदो० सुक्ष्म संपरायपणुं ८ कर्म बांधे. ७ बांधे तो आउखु पामे अने पडे तो असंजति. वर्जिने. सुक्ष्म संपराय ६कर्म बांधे ने श्रावकपणुं पामे. छेदो० चडे आउखु मोहनीवरजीने. जथा- | तो परिहार० सुक्ष्मपणुं पामे, पडे ख्यात एक सातावेदनीय बांधे तो सामा० असंजती०नेश्रावकअथवा अबंध पण होय. पणुं पामे. परिहा० चडे नही पडे .. २२ वेद द्वार कहे छे. आ- | तो छेदो० असंजतीपणुं पामे. गल्या ४ चारित्र आठे कर्म वेदे | सुक्ष्म संप० चडे तो जथाख्यात अने जथाख्यात सात कर्म वेदे | पणुं पामे, पडे तो सामा०छेदो मोहनीय वरजीने. तथा ४ वेदे | असंजमपणुं पामे.जथाख्यात चडे तो वेदनी, आयु, नाम,गोत्र०ए४ तो मोक्षमांजाय, पडे तो सुक्ष्म० ____२३ हवे उदीरणाद्वार कहे असंजमपणुं पामे. छे.आगल्या ३चारित्र आठकर्मनी २५हवे सन्नाद्वार कहे छे. सनाउदीरणा करे ७ नी करे तो वउतामांआगल्या ३चारित्रलाभे. आउखु वरजीने ६नी करे तो नोसनावउतामांपांचेचारित्रलाभे. वेदनी वरजीने. सुक्ष्म संपराय। २६आहारद्वार कहेछे. पांचे ६ कर्मनी उदीरणा करे, आउखु | चारित्र आहारकमां लाभे. एक मोहनी वरजीने ५ नी करे तो जथाख्यात अणाहारकमां पणहोय. आउखु मोहनी वेदनी वर्जिने. | २७ हवे भवद्वार कहे छे. जथाख्यात ५ नो उदोरणा करे | सामा० छेदो० ज० १ भव, उत्तथा २ नी करे तो नाम गोत्र, कृष्टा ८भव करे.बाकी ३चारित्रएश्नी उदीरणा करे. वाळा ज०१ भव, उ०३ भव करे. Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संभयाना पोज. २८ हवे आकर्षद्वार कहेछे. ( ज०२०० वरस, उ०देशे उणीर एक भव आश्री सामायक० ज- पूर्वक्रोड.सुक्ष्मज०१समो,उ० अंघन्य १ वार आवे उत्० प्रत्ये तर्मुजयाख्यातज०उ०सर्वेकाळ. कसे (९००) वार आवे. छेदो० । ३० हवे अंतरद्वार कहे छे. ज. १ उतू० वीसपहुत्तं १२०. | एक वचन आश्री पांचे चारित्रनुं परिहार ज०१ उत्०३, सुक्ष्म० ज० अंतर्मु० उ० अर्द्ध पुद्गल देशे ज० १ उ० ४, जथाख्यात ज. उणुं आंतरुं पडे, बहुवचन आश्री १ उ०२, हवे घणा भव आश्री सामा० ज० उ० अंतर नथी. सामा० ज० २ वार आवे उ० छेदो० ज० ६३००० वर्ष, उ० प्रत्येक हजारवार आवे. छेदो० १८ क्रोडा क्रोड सागरनुं. परिज०२ उत्०९६०. परिहा० ज० | हा० ज० ८४००० वर्ष, उ०१८ २ उ०७. सुक्ष्म० ज०२, उ० ९. क्रोडाक्रोडसागर.सुक्ष्म जघन्य जवाख्यात ज० २, उ० ५. १ समय, उ० ६ मासनु. जथा २९ हवे स्थितीद्वार कहेछे | ख्यातनु० ज० उ० आंतरु नथी. एक वचन आश्री सामा० छेदो० । ३१ हवे समुद्घातद्वारकहे ज० १ समय उ० देशे उणीपूर्व छे.सामा०छेदो०ए २मां ६समुद्क्रोडनी. परिहा० ज० १ समो, घात लाभे,परिहार०३ समुद्घात उ. २९ वरस उणी पूर्व क्रोड. | पहेली लाभे सुक्ष्म समुद्घातनथी सुक्ष्म० ज० १ समो, उ० अंतर्मु० जथाख्या०१केवळसमुद्घातलाभे. जयाख्यात ज०१ समो, उ० | ३२ हवे क्षेत्रद्वार कहे छे. देशे उणी पूर्व क्रोड, घणा भव | लोकने संख्यातमे भागे के असंआश्री. सामायकनी ज०उ० सर्व ख्यातमे भागे के घणे संख्यातमे काळ. छेदोप०ज०२५०वरसउ० | भागे के घणे असंख्यातमे भागे ५० लाख क्रोड़ सागर. परिहा० । के सर्व लोकने विषेचारित्रलाभे? Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह उत्तर छोकना असंख्यातमांभा- २, ३, उ० १६२ ते १०८ गमां तो आगल्या ४ चारित्र क्षपक, ५४ उपसम०.जयाख्यात लाभे, अने एक जथाख्यात० ज० १, २, ३, उत्० १६२ ते असंख्यातमे भागे, घणे असंख्या- १०८ क्षपक० ५४ उपसम०.पूर्व तमे भागे,तेसर्व लोकने विषे लाभे. | पडिवजमाण आश्री जोहोय तो, ३३ हवे फरसना द्वार कहे | सामा० ज० उत्० प्रत्येक हजार छे ते क्षेत्र द्वारनी परे जाणवो. क्रोड. छेदो० ज० उ० प्रत्येकसे ३४ हवे भाव द्वार कहे छे. क्रोड, परिहार विशुद्ध ज०१,२, सामा०, छेदो, परिहा०, सुक्ष्म० . ३ उ० प्रत्येक हजार, सुक्ष्म० ज० ए ४मां भाव १क्षयोपशम लाभे. १, २, ३, उतू प्रत्येकसें जथाजथाख्यातमां उपशम ने क्षायक ख्यात ज० उ० प्रत्येक क्रोड. ए २ भाव लामे. ३६ अल्प बहुत्व द्वार कहे ३५ हवे परिमाण द्वार कहे | छे सर्वथी थोडा मुक्ष्म संपराय, छे. हचे पडिवजमाण आश्री जो तेथीपरिहार संख्यात गुणा,तेथी होय तो, सामा० ज० १, २, ३, जथाख्यात० संख्यात मुणा,तेथी उ० प्रत्येक हजार.छेदो०, परी- छेदो० संख्यातगुणा तेथीसामा० हार०, ज० १, २, ३, उत० संख्यातगुणा लाभे. इति संजप्रत्येकसें. सुक्ष्मसंपराय ज० १, | याना बोल संपूर्ण. ॥ अथ श्री नियंठाना बोल.॥ माथा पनघणार वेयर रागे३, कप्प४ चरित्त५पडिसेरणा नाणे: तत्थेयटलिंगेश्वरीरे१०,खेच११काल १२गइ१३संजय१४निकासे१५. Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ नियंठाना बोल. जोगु१६वउगे१७ कसाए १८,लेशा१९ परीणाम२० बंघ२१वेदेय२२; कम्मोदीरणा २३ उवसंपजहणा २४, सन्नाय २५ आहारे २६. २. भव२७आगरीसे२८कालं२९तरेय३०,समुग्घाय३१खेत३२फुसणाय३३ भावेय ३४ परीमाणे ३५ खलु, अप्पाबहुच ३६ नीयंठाणं. ३. उपली ३ गाथानो अर्थ विस्तारी कहे छे. १ हवे पन्नवणा द्वार कहे | लगाडे. ते पुलाकना पांच भेद, छे. पुलाक १, बकुस २, प्रति | ज्ञान पुलाक,दर्शन पुलाक,चारित्र सेवणा ३, कपाय कुशील ४, पुलाक, लिंग पु०, यथा सूक्ष्म निग्रंथ ५, सनातक ६. पुलाक पुलाक. पुलाक ते ज्ञानादि अतीते सइंसा धानना पुळानी परे, चार सेववे करी संजम सार रहित बकुस ते सइंसा धाननी परे, प्रती करे तेने पुलाक कहीये.वकुस ते सेवना ते मसल्या धाननी परे, शरीर वकुस, शरीरनी सुश्रषा कपाय कुशील ते उपण्या धाननी विभूषा करे ते. उपकरण बकुस परे, नीयंठो ते कणकी सहित | ते झलहलत उपकरण करे,उपककणनी परे, सनातक ते अणीशुद्ध रणादि अधीक संग्रहे वस्त्र पात्रादि चोखानी परे. हवे पुलाकना बे | प्रक्षालनादि करे. वकुसना ५भेद भेद.लबद्धी पुलाक तेचक्रवर्तिनी | आभोग बकुस. अणभोग बकुस. सेन्या चूरण करण शक्ति संपन्न | संवूड बकुस.असंवूड बकुस.जथा ते लब्द्धी पुलाक, प्रतिसेवणा सुक्ष्म बकुस. हवे लक्षण कहेछे. पुलाक ते मूळ गुण उतर गुणमां| जाणीने दोष लगाडे ते आभोग दोप लगाडे. मूळ गुण ते पांच बकुस. अणजाणे दोष लगाडे ते आश्रव मांहेलो अनेरो दोष अणभोग बकुस.छानोदोषलगाडे लगाडे. उतर गुण दोष ते दश ते संवूड बकुस. प्रकट दोष लपचखाण मांहेलो अनेरो दोष । गाडे ते असंवूड बकुस.यथामुक्ष्म Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८५ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ते किंचित दोष लगाडे. ते साति- | षाय कुशील.हवे नियंठो ते मोहनि चारनिरतिचार बेने भेला सहुसा कर्मथी नीकल्यो संपूर्ण ग्रंथ रहित धाननी परे संजमने काबरुं करे उपसमीत, यथा निर्मल लायक ते बकुस. हवे प्रतिसेवना कुसी- भाविक, कषाय वरजित, वीतलना ५ भेद कहे छे. ज्ञान प्रति- रागावस्थायेवर्ति, ते मुनिनो प्रथम सेवना, दर्शण प्रतिसेवना, चारित्र समय ते पढम समय नियंठो. प्रतिसेवना, लिंग प्रतिसेवना, अपढम समय ते बीजा समयादिके जथा सूक्ष्म प्रतिसेवना. इंद्रियादि वर्ते ने अपढम समय नियंठो. ते वस्य अने पिंड विसुध्यादि सुमती । गुणस्थानकने पर्यंत वर्ति समयनो भावना तपपडिमां अभी ग्रहित । ते चरम समय नीयंठो. ते गुणएटले उत्तर गुण मूळ गुण विरा- ठाणाना छेला समयथी पूर्वला धता सर्वज्ञनी आज्ञाथी न्यूनाधिक समय वर्ति ते अचरम समय निप्रवर्ने ते प्रतिसेवना ज्ञानादि ५ यंठो,यथासुक्ष्मतेगुणठाणाना सर्व जाणवा. कषाय कुसील ते संज- समय वी ते यथा सुक्ष्म नियंठो लना कषायने उदये करी कुछित स्नातक ते घातिकर्म मळ पखाजेहने सील स्वभाव कषाय उदय ळवाथी टाळवाथी परम पवित्र थाय अप्रशस्तपणुं थाय ते माटे नाह्यानी परे उज्वल परीणामी कषाय कुशील.दोषलगाडवा सरी- रूपातीत ध्यानी ते स्नातक पंच खा निमित्तवासी परिणाम थाय नाम विख्यात अछवी ते जोग पण प्रवर्तनां सहेजमां दोष न ल- नीरुध्या माटे अछवी. असवल गाडे ते कषाय कुशीलना ५ भेद ते निरतिचार काबरास रहित ज्ञान कषाय कुशील, दर्शन कषाय ते माटे असबल. घनघाति कर्म कुशील, चारित्र कषाय कुशील, क्षय कर्या ते माटे अकर्मास लिंग कषाय कुशील यथा सूक्ष्म क- संशुद्धनाणदंसण धरे अरहाजीन Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नियंठाना बोळ. केवळी ते, सम्यक् शुद्ध निर्दोष | कल्प, कल्पातित ए पांच तेमां ज्ञान दर्शनना धरणहार अरहाजी- स्थितिकल्प अस्थिति कल्पमां ने ते रहस्य छानी वात नहीं ते ६ ए नियंठा लाभे. जिनकल्पराग द्वेषना जीतनार माटे केवळी मांही बीजो, त्रिजो, चोथो ए३ कहीये अपरीसावी ते नवा कर्म नियंठा लाभे. स्थिवर कल्पमा आवे नही ते माटे अपरीसावी सर्व आगल्या ४ नियंठा लाभे. कयोगनारुंघवाथी.ए नामनी प्रज्ञा- ल्पातितमां उपल्या ३ नियंठा पनापरुपणाद्वारकिंचित् निरुपणं. लाभ ए द्वार ४ थो. २ वेद द्वार आगला ४ सवेदी ५. चारित्र द्वार. सामायक उपल्या २ अवेदी. तेमां पुलाक, ने छेदोपस्थापनीय ए २ मां स्त्रि वेदमां नहि. पुरुष अने पु- आगल्या ४ नियंठा लाभे. परिरुष नपुंसक ए २ मां होय. बकुस हार विशुद्ध ने सुक्ष्म संपराय . ने प्रतिसेवना ३ वेदमां होय, क- ए २ मां कषाय कुशिल नियंठो षाय कुशील सवेदी होय तो त्रणे लाभे. जथाख्यात चारित्रमा उवेदमां होय अने अवेदी होय पल्या २ नियंठा लाभे. ए ५. तो उपसम ने क्षीण वेदमां होय. ६.प्रतिसेवी द्वार.आगल्या निग्रंथ उपसम ने क्षीण वेदमां ३ नियंठा प्रतिसेवी. उपल्या होय. स्नातक क्षीण वेदमां होय ३ नियंठा अप्रतिसेवी तेमां पुए द्वा० २. | लाक मूळ गुण उत्तर गुणमां दोष ३. रागद्वार आगल्या ४ लगाडे. प्रतिसेवना मूळ गुण नियंठा सरागी. निग्रंथ ने सना- उत्तर गुणमां दोष लगाडे. बकुस तक क्षीणरागी होय ए ३. मुल गुणमां दोष लगाडे पति ४. कल्पद्वार. स्थितिकल्प, सेवना मूळ गुण उत्तर गुणमां अस्थितिकल्प,जिनकल्प,स्थिवर- दोष लगाडे उपल्या ३ नियंठा Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जेन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. दापन लगाडे ए ६ द्वार. १० शरिरद्वार. पुलाकमां ___७. नाणद्वार आगल्या ३ | ३ शरिर लामे. बकुसने पतिनियंठामां ज्ञान २ तथा ३ अने | सेवना ए २ मां३ शरिर लाभे. चोथा पांचमा नियंठामा २ज्ञान, | उदारिक, तेजस ने कार्मण ए ३ ३ तथा ४. स्नातकमां १ केवळ- | लाभे. तथा ४ लामे तो वैक्रेय ज्ञान. हवे पुलाक भणे तो जघन्य | वध्यु अने कषाय कुशीलमांशनवमां पूर्वनी त्रीजी आचारवस्तु | रिर ३, ४, ५ लाभे अने निसुधी उत्त० नव पूर्व पूरा भणे | ग्रेथ ने स्नातकमां शरिर ३ लाभे. १. बकुस ने प्रतिसेवना भणे तो | उदारिक, तेजस ने कार्मण. ए ज० ८ प्रवचन माता, उत्०१० द्वार १०. पूर्व पूरा भणे. कषाय कुशील | ११ क्षेत्रद्वार. जन्म आश्री नियंठो ज० ८ प्रव० उ० १४ | कर्मभूमिमां छए नियंठा लाभे. पूर्व पूरा भणे. स्नातक तो श्रुत | अकर्मभूमिमां एके न लाभे. केवळी छे सर्वज्ञ छे. ए ७ द्वार. | छत आश्री पण छए लाभे. ८.तिर्थद्वार. तिर्थ, अतिर्थ ति- साहारण आश्री पुलास वर्जीने र्थकर प्रत्येक बुद्धए४.तेमां तिर्थमां ५ नियंठा लाभे. कर्मभूमि ने छ ए नियंठा लाभे. बाकी ३ मां अकर्म भूमि बंनेमा ४ लामे. ए उपल्या ३ नियंठा लाभे ए ८. द्वार ११ मो. ९. लिंगद्वार. द्रव्यथी स- १२ कालद्वार. समुच्चे अ. लिंग, अन्यलिंग, गृहलिंग ए ३ । वसर्पिणी, उत्सर्पिणी, नोअब. लिंगमां ६ ए नियंठालाभे. अने| सर्पिणी, नोउत्सर्पिणीमां ६ भावथी अन्यलिंग,गृहलिंगमा एके नियंठा लाभे. तेमां अवसर्पिणी न लाभे ने सलिंगमा छ ए लाभे. उत्तरतो काळ तेमां ६ आरा ए द्वार ९ मो. तिहां जन्म आश्री पहेलाने बीजा Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ नियंठाना बोक. आरामां एके न लाभे. त्रीजाने । के नहि. अने साहारण आश्री चोथा आरामां ६ नियंठा लामे. पुलाक वर्जीने ५ नियंठा लाभे. पांचमा आरामां ३ नियंठा लाभे. पांच महाविदेह क्षेत्रमा जन्म छत बीजो, त्रीजोने चोथो ए ३ लाभे. आश्री छए नियंठा लाभे. साहाछठा आरामा एके नहि. हवे छत रण आश्री पुलाक वर्जीने ५ आश्री पहेला बीजा आरामां नियंठा लाभे. ए द्वार १२ मो. एके नहि त्रीजा, चोथाने पांचमां १३ गतिद्वार. आगल्या ५ आरामा छ ए नियंठा लाभे. नियंठा आराधक ते एक विमाछठा आरामां एके न लाभे. स- निक देवगतिमां जाय. स्नातक हारण आश्री पुलाक वर्जीने मोक्ष जाय. तेमां पुलाक ज. ५ नियंठा ६ ए आरामा लामे. पहेले देवलोके जाय. उ० आचडता काळमां जन्म आश्री पहेले ठमे देवलोके जाय. बकुस ने आरे एके नहि, वीजे त्रीजे अने प्रतिसेवना ज० पहेले देवलोके चोथे आरे ६ नियंठालाभे.पांचमे जाय. उ० बारमे देवलोके जाय. छठे आरे एके नहि. छत आ- कषाय कुशिल ज० पहेले देवश्री पहेले, बीजे आरे एके नहि. लोके जाय. उ० सर्वार्थ सिद्धत्रीजे, चोथे आरे ६नियंठा लाभे. मां जाय. नियंठा ज० उ० अपांचमे छठे आरे एके नहि.साहा- नुत्तर विमानमां जाय. स्नातक रण आश्री पुलाफ वर्जीने छ । मोक्षमां जाय. आराधक पदवी ए आरामां ५ नियंठा लाभे. नो-पांच पामे. इंद्रनी, सामानिकनी, उत्सर्पिणी, नोअवसर्पिणी काळ | त्रायत्रिंशकनी, लोकपाळनी, अते हेमवय, एरणवय, हरिवास, हमेंद्रनी. ए ५ मांहेली आगल्या रमकवास, देवकुरु, उत्तरकुर, ए ३ नियंठा पदवी ४ पामे. एक ६ क्षेत्रमा जन्म छत आश्री ए- अहमेंद्रनी नहि. कषाय कुशिल Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. पदवी ५ पामे. निर्ग्रथ एक पदवी अहमेंद्रनी पामे. स्नातक मोक्ष जाय, विराधक आगल्या ५ नियंठा ज० भवनपतिमां जाय उ० पहेले देवको के जाय. पदवी ५ मांहेली एके न पामे, ए १३. १४. स्थितिद्वार. देवतामां जाय विहां स्थिति केटली पामे. पुलाक ज० प्रत्येक पल्यनी उ० १८ सागरनी पामे. बकुसने प्रतिसेवना ज० प्रत्येक पल्यनी उ० २२ सागरनी पामे. कषाय कुशिल ज० प्रत्येक पल्यनी उ० ३३ सागरनी पामे. निग्रंथ ज० उ० ३३ सागरनी पामे. स्नातक मोक्ष जाय. ए द्वार १४ मो. १५. संजम स्थानद्वार. आगल्या ४ नियंठाना असंख्याता संजम स्थानक ते परिणामना स्थानक छे। अने निर्ग्रथ ने स्नातक एकेकुं स्थानक छे. हवे अल्पबहुत्व, पहेले बोले सर्वथी थोडा निर्ग्रथ ने स्नातकना स्थानक बने मांहोमांही तुल्य. तेथो बीजे वोले पुलाकना स्थानक १८९ असंख्यात गुणा. तेथी त्रीजे बोले बकुसना स्थानक असंख्यातगुणा तेथी चोथे बोले प्रति सेवनाना स्थानक असंख्यात गुणा. तेथी पांचमे बोले कषायकुशीलना स्थानक असंख्यात गुणा ५० ए द्वार १५ मो. १६. निकासद्वार ते पर्यवपर्यव छे. पुलाक, पुलाक साधे द्वार. एकेका नियंठाना अनंता छठाण वडिया. पुलाक बकुस प्रतिसेवनाथी अनंतगुण हीणा. कषाय कुशील साथै छठाण वडिया उपल्या बेथी अनंaगुण हिणा. १. हवे बकुस, पुलाकथी अनंतगुण अधिक. बकुस प्रतिसेवना कषाय कुशौल साथै छठाण वडिया. उपल्या बेथी अनंतगुण हीण. २. प्रतिसेवना पुलाकथी अनंतगुग अधिक. बकुस प्रतिसेवना कषाय कुशील साथ छठाण वडिया. उपल्या बेथी अनंतगुण हीणा ३. कषाय कुशील आगल्या ४. साथ छठाण Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९० . नियंठाना बोल. वडिया. उपल्या बेथी अनंतगुण असंख्यात गुण, अनंतगुण हिण. हीणा ४. निग्रंथ ने स्नातक ए ६. हवे अधिक होय तो,अनंत आगल्या चारथी अनंतगुणा अ- भाग, असंख्यात भाग, संख्यात विक ने मांहोमांही तुल्य. ६. भाग, संख्यात गुण, असंख्यात अल्पबहुत्वद्वार. पहेले बोले स- | गुण, अनंतगुण अधिक ६. ए वथी थोडा पुलाक ने कषाय कु- षट गुणनीहानी वृद्धि जाणवी शीलना जघन्य पर्यव मांदोमांही ए द्वार १६ मो. तुल्य १. तेथी बीजे बोले पुला- १७ जोग द्वार. आगल्या कना उत्कृष्टा पर्यव अनंतगुणा ५ नियंठा सयोगी होय तो ३ २. तेथी बीजे बोले बकुस ने जोग होय, ने छठो स्नातक प्रतिसेवना जघन्य पर्यव मांहो- | सयोगी होय तो ३ जोग होयं मांही तुल्य ने अनंतगुणा ३. अजोगी होय तो जोग एके नहि. तेथीचोथे बोले बकुसना उत्कृष्टा | ए द्वार १७ मो. पर्यव अनंतगणा ४. तेथी पांचमे १८ उपयोग द्वार छ ए बोले प्रतिसेवनाना उ० पर्यव नियंठामां साकार उपयोगने अअनंतगुणा ५. तेथी छठे बोले णाकार उपयोग बंने लाभे ए कषाय कुशीलना पर्यव उ० अ. द्वार १८ मो. नंतगुणा ६.तेथी निग्रंथ ने स्ना- १९ कषाय द्वार. आगली तकना पर्यव मांहोमांही ३ चोकडोमां एके नियंठो न तुल्य ने अनंतगुणा ७. छठाण लाभे. संजवलनी १ चोकडी वडिया ते शुं ? हीणो होय के आगल्या त्रण नियंठामा होय. अधिको होय. जो हिणो होय अने कषाय कुशीलमां संजवलना तो अनंत भाग, असंख्यातभाग, चारे होय. अने जो ३ होय तो संख्यात भाग, संख्यात गुण, क्रोध वर्जीने, बे होय तो मान Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १९१ वर्जीने ने एक होय तो माया हत उ० देशे उणी पूर्वक्रोड वर्जीने तेमां क्रोध,मान,मायानी | ए द्वार २१. भजना लोभनी नियमा होय ४ २२ बंध द्वार. पुलाक ७ निग्रंथ उपसम तथाक्षीण कषायी कर्म बांधे. आउखु वर्जीने. बकुहोय, स्नातक क्षीण कषायी होय | सने प्रति सेवना७-८ कर्म बांधे, ए द्वार १९ मो. ७ बांधे तो आउखुं वर्जीने.कषाय २० लेश्याद्वार. आगल्या कुशील ६, ७, ८ कर्म बांधे, ३ नियंठामां उपली ३ लेश्या सात कर्म बांधे तो आउखुं वहोय. कषाय कुशीलमां ६ लेश्या | जीने, ६ कर्म बांधे तो आयुष्य होय ने निग्रंथ ने शुकल लेश्या तथा मोहनी वर्जीने. निग्रंथ १ स्नातकमां परम शुक्ल लेश्या | साता वेदनीकर्म बांधे.स्नातक १ अने अलेशी पण होय ए द्वार२०. साता वेदनी बांधे ने स्नातक अ___ २१ परिणाम द्वार. छ ए | बंधक पण होय. ए द्वार २२ मो. नियंठामां वर्द्धमान परिणाम होय २३ वेद द्वार.आगल्या ४ तो आगल्या ४ मां जघन्य १ आठे कर्म वेदे, निग्रंथ मोहनी समो उ० अंतर्मुहूर्त, उपल्या २ कर्म वर्जीने ७ कर्म वेदे,स्नातक ना जघन्य उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त. ४ का ४ कर्म वेदे वे० आ० ना० गो० हवे हायमान परिणाम आगल्या४ | ए ४ वेदे. ए द्वार २३ मो. ना ज० एक समो उ० अंत० उ | २४ उदीरणा द्वार. पुलाक पल्या २ ना हायमान परिणाम | ६ कर्मनी उदीरणा करे आउखं होय नहि. अवस्थित परिणाम १, वेदनी २ वर्जिने. बकुसने आगल्या ४ ना ज० १ समो प्रतिसेवनाआठ कर्मनी उदीरणा उ० ७ समा, निग्रंथ ज० १ समो| करे अने जो ७ नी करे तो आउ० अंत०, स्नावकना ज० अंत- । उखु बजिने.६नी करे तोआउखु Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२ नियंठाना बोल. ने वेदनी वर्जिने. कषाय कुशिल८ | संजति, श्रावक ए ५ थाय. निर्ग्रथ चडे तो स्नातकपणुं पामे अने जो पडे तो कषाय कुशील पशुं पामे असंजति पण थाय. स्नातक मोक्ष जाय पण पडं नथी. ए द्वार २५ मो. कर्मनी उदीरणा करे, ७ नी करे तो आउखु वर्जिने ६ नी करे तो आयुष्य वेदनी वर्जिने ५ नी नी करे तो मोहनी आउखं वेदनी वर्जिने. अने निग्रंथ आउखु वेदनी मोहनी ए ३ : वर्जिने ५ कर्मनी उदीरणा करे, तथा नाम, गोत्र ए २ नी उदीरणा करे. स्नातक नाम, गोत्रनी उदीरणा करे तथा नपण करे. उदीरणा द्वार २४. २५ उवसंपजहणा द्वार पुलाक चडे तो कषाय कुशील पणुं पामे अने जो पडे तो असंजति पशुं पामे. बकुस चडे तो प्रति सेवनाने कषाय कुशीलपणुं पामे. अने जो पडे तो असंजतिने श्रादकपणुं पाये. प्रतिसेवना चडे तो कषाय कुशीलपणुं पामे. अने जो पडे तो बकुस, असंजति, श्रावकपणं एत्रण पामे. कषाय कुशील चडे तो निर्ग्रथ पणुं पामे अने जो पडे तो पुलाक, बकुस, प्रतिसेवना, अ २६ संज्ञा द्वार बीजो चीजो चोथो ए ३ नियंठा सनावउतामां होय. नो सनावडतामां ६ नियंठा लाभे ए द्वार २६ मो. २७ आहार द्वार. आगल्या पांच नियंठा आहारक होय. छठो नियंठो स्नातक आहारकने अणाहारक होय. ए द्वार २७ मो. २८ भव द्वार. पुलाक ज० १ भव करे. उ० ३ करे. वकुश, प्रतिसेवना, कषाय कुशील ए ३ ज०१ भव उ०८ भव करे. निग्रंथ ज०१ भव उ० ३ भव करे. स्नातक मोक्षमां जाय. ए द्वार २८ . २९ आकर्षक द्वार. आकर्षक १ भवे पुलाक ज० १ वार उ० ३ बार आवे, बकुस प्रतिसेवना कषाय कुशील ज० १ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १९३ निग्रंथ ज० १ ० २ बार आवे. स्नातक ज० उ०१ वार आवे. घणा भव आश्री. पुलाक ज० २ वार उ० ७ वार आवे. बकुस, प्रतिसेवना, कषायकुशील ए ३. ज०२ उ० प्रत्येक हजार वार आवे. निर्ग्रथ ज०२ उ० ५ वार आवे. स्नातक ने पुनर्भव छे नहि. ए द्वार २८ मो. उ० प्रत्येक सो ९०० वार आवे | आंतरुं पडे. स्नातकने आंतरं नथी. हवे घणा जीव आश्री पुलाकने ज० १ समो, उ० संख्याता वर्षनुं. निर्ग्रथने ज० १ समो, उ० ६ मासतुं शेष बाकिने आंतरु नथी. ३०. २९. स्थितिद्वार- स्थिति १ भव आश्री पुलाकनी ज० अंत० उत्० अंत० बकुस प्रतिसेवना कषायकुशीलनी ज० १ समो. उ० देशे उणी पूर्व क्रोड निग्रंथ नी ज०१ समो. उ० १ अंतर्मु० स्नातकनी ज० १ अंत० उ० देशे उणी पूर्व क्रोड घणाभव आश्री, पुलाने निर्ग्रथनी ज० १ समो उ० १ अंत० बाकी ने सर्वथा काळ ए द्वार २९ मो. ३० अंतर द्वार - अंतर एक जीव आश्री आगल्या ५ नियंठाने ज० अंत०, उ० अर्द्ध पुद्गल देसे उणुं ३१ समुद्घात द्वार - समुद्रघात, पुलाकमांत्रण, वेदनी, कषाय, मारणांतिक ए ३ लाभे. बकुस ने प्रतिसेवनामां पांच समुद्घांत. वेदनी, कषाय, मारणांतिक, वैक्रेय, अने तैजस, ए ५. कषाय कुशीलमां ६ समुद्घात, केवल०वजीने. निर्ग्रथमां समुद्घात नथी.... स्नातकमा १ केवळ समुद्रात लाभे. ३१. ३२ क्षेत्र द्वार - ते ६ नियंठा लोकने संख्यातमे भागे होय के असंख्यातमे भागे के घणे संख्यातमे भागे के घणे असंख्यातमे भागे के सर्व लोकमां होय ? तेनो उत्तर आगल्या ५ नियंठा लोकने असंख्यातमे भागे होय. शेष ४ बोले न होय. स्ना Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ नियंठाना बोल. घणे असंख्यातमे भागे ने सर्व लोकमां होय. ३२. ३३ फरसना द्वार - ते पण क्षेत्र द्वारनी परे कहेवो. ३३. तक लोक असंख्यातमे भागे । स्नातक ज० १, २, ३, उ० १०८ पुन्त्रपडिवज्जमाण आश्री पुलाक होय तो ज० १, २, ३, उ० प्रत्येक हजार, बकुस ने प्रतिसेना होय तो ज० प्रत्येकसें क्रोड, उ० प्रत्येक क्रोड, कषाय कुशील होय तो ज० उ० प्रत्येक हजार क्रोड, निग्रंथ ज० १, २, ३, उ० प्रत्येकस. स्नातक ज० उ० प्रत्येक क्रोड. ३५. ३४ भाव द्वार - आगल्या ४ नियंठा क्षयोपसम भावे होय. निर्ग्रथ उपशम ने क्षायक भावे होय. स्नातक १ क्षायक भावे होय. ३४. ३५ परिणाम द्वार - पडिव - जमाण ते नवीन थाता होय ते वर्तमान आश्री एक समे जो होय तो पुलाक, चकुस, प्रतिसेवना ज० होय तो १, २, ३, उ० प्रत्येक सो. कषाय कुशील ज०होय तो १, २, ३, उ० प्रत्येक हजार निर्ग्रथ ज० होय तो १, २, ३, उ० १६२ तेमां १०८ क्षपक श्रेणीना अने ५४ उपसम श्रेणीना ३६ अल्पबहुत्व द्वार - सवैथी थोडा निग्रंथ, तेथी पुलाक संख्यातगुणा, तेथी स्नातकसंख्या तगुणा, तेथी बकुस संख्यातगुणा, तेथी प्रतिसेवना संख्यात गुणा, तेथी कषाय कुशील संख्यात गुणा. ए छ नियंठानो अधिकार सूत्र श्री भगवति शतक २५ मे उद्देशे छठे छे. इति श्री नियंठा बोल समाप्त. Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ____१९५ अथ श्री षट् द्रव्यना बोल, परिणाम जीवमुत्तं, सपएसाएगखेत किरियाय; निचंकारणकत्ता, सध्वगयमियरेहिंअप्पवेसा ॥१॥ ए गाथा हवे एहनो अर्थ कहे छे. शिष्य आत्मार्थी पंचांग नमावी पुछे छे जे हे स्वामिन् ! षट् द्रव्यमा परि णामि द्रव्य केटला अने अपरिणामि द्रव्य केटला? गुरु कहे छे हे आयुष्मन् शिष्य ! निश्चय नये षद द्रव्य पोतपोताने स्वभावे स्वरुपे पोत पोताना गुण पर्यायनि परिणति रुपे छ ए स्वभाव परिणामि अने व्यवहार नये जीव ने पुद्गल ए २ विभाव परिणामि शेष ४ द्रव्य अपरिणामि. १.हवे छ द्रव्यमा एक जीवास्तिकाय, जीवद्रव्य, चैतन्य.शेष ५ जड, अजीव द्रव्य छे. २. हवे छ द्रव्यमा एक पुदल द्रव्य मुर्तिमान छे. शेष ५ अमूर्ति छे. ३. छ द्रव्यमां एक काळद्रव्य अप्रदेशी, समयद्रव्य छे. शेष ५ समदेशी छे. धर्म, अधर्म असंख्यात प्रदेशी. आकाश लोकालोक प्रमाणे छे माटे अनंत प्रदेशी. पुद्गल द्रव्य एक परमाणु यावत् अनंता खंधो छे माटे अनंत प्रदेशी छे.अने जीवात्मा असंख्यात प्रदेशी छे. ४. छद्रव्य निश्चयनये एक, छये द्रव्य अनेक, धर्म० अधर्म० द्रव्यथी एक, गुण पर्याय प्रदेशथी अनेक, गुण अनंता. पर्याय अनंता, प्रदेश असंख्याता, आकाशना प्रदेश पण अनंता. काळ द्रव्य वर्तना लक्षणे एक.गुण पर्याय समयथी अनेक. गुण अनंता. पर्याय अनंता. समय अनंता ते केम ? एक आवलिकाना चोथा असंख्यात प्रमाणे समय थाय. एम यावत् दश क्रोडाकोडी सागरोपमे एक उत्सपिणी. दश क्रोडाकोडि सागरो Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षट् द्रव्यना बोक. पमे एक अवसप्पिणी, विश क्रोडाक्रोडि सागरोपमनो एक काळचक्र थाय.एहवा अनंता काळ चक्रे एक पुद्गल परावर्तन थाय.एहवा अनंता पुद्गल परावर्तननो अतीतकाळ गयो. वर्तनकाळ एक समयज. अनंत पुद्गल परावर्तननो आगमियो काळ आवशे.एम त्रण काळना समय अनंता. हवे पुद्गल द्रव्य पुरण गलन स्वभावे एक, गुण पर्याय प्रदेशथी अनेक. गुण अनंता, पर्याय अनंता, प्रदेश अनंता अनंता परमाणुया. अनंता द्वि प्रदेशीया. अनंता त्रिप्रदेशीया. अनंता चौ प्रदेशीया. अनंता पंच प्रदेशीया. एमयावत् अनंता संख्यात प्रदेशीया. अनंता असंख्यात प्रदेशीया. अनंता अनंत प्रदेशीया खंध छे ते माटे एक अनंत प्रदेशीया खंधमा अनंत प्रदेशीया प्रदेश के माटे पुद्गल अनंत प्रदेशी छे. जीवास्तिकाय चैतन्य लक्षण द्रव्यथी एक छे, गुण पर्याय प्रदेशथी अनेक. गुण अनंता. एक जीवना प्रदेश असंख्याता. एहवा आत्म द्रव्य छे. अने व्यवहार नये ? धर्म, अधर्म०, आकाश०, ए त्रणे एक. अने काळ पुद्गल ने जीव ए ३ द्रव्य अनेक छे सकलन भिन्न भिन्न प्रवर्तन अवस्थापणुं छे माटे अनंत ५. छ द्रव्यन क्षेत्र आधारसमान एक आकाश द्रव्य छे.शेष ५ द्रव्य क्षेत्रो आध्येय रहेवा योग्य वस्तु छे. ६. छ द्रव्य निश्चय स्वरुपे पोतपोतानी क्रिया रुपे तो षट् द्रव्य सक्रिय छे. चलण सहाय रुप १, स्थिर सहाय रुप २, आश्रय रुप ३, वर्तना रुप ४, पुरण गलन हानिद्धि रुप ५, उपयोग चैतन्य रुप ६ ए ६ सक्रिय अने व्यवहार नये गमनागमन पर रुष चलण क्रिया आश्रि पुद्गलने जीव ए २ सक्रिय शेष ४ द्रव्य अक्रिय. ७. छ द्रव्य निश्चय नये नित्य अने एक पक्षे छए अनित्य ते केम ? धर्मना, अधर्मना चार गुण छे तेमां पर्यायमां खंध लोक प्रमाणे नित्य छे. अने देश, प्रदेश, Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. अगुरु लघु ए ३ पर्याय अनित्य छे.आकाशमा ४ गुण तेमां लोकालोक प्रमाणे खंध नित्य छे. देश प्रदेश अगुरु लघु अनित्य छे. काळद्रव्यना ४ गुण नित्य. ४ पर्याय अनित्य छे. पुद्गल द्रव्यना ४ गुण नित्य. ४ पर्याय अनित्य. जीवद्रव्यना ४ गुण ३ पर्याय नित्य, अगुरु लघुपर्याय अनित्य. ८. छ द्रव्यमा एक जीव कारणी छे एटले जीव ने पांचे द्रव्य कारण रुप छे. पांच द्रव्य अकारणी छे.९. छ द्रव्यमां स्वरुप, चलण स्वभाव स्थिर स्वभाव, अवकाश दान, नवीन पुराण स्वभाव, पुरण गलन स्वभाव, उपयोग लक्षण, चैतन्य स्वभाव. छःए स्वभावना कर्ता छे. अने व्यवहार नये एक जीव द्रव्य परभाव रुपनो कर्ता छे. शेष ५ द्रव्य अकर्ता छे. १०. छ ए द्रव्यमां सर्वव्यापी एक आकास द्रव्य, लोकालोक प्रमाणे छे. माटे शेष ५ द्रव्य लोक व्यापी छे. ११. इयर अप्पवेशाके० यद्यपि छ ए.द्रव्य एक क्षेत्रमा खिर निरनि परे एकठा मळी रह्या छे तो पण एक बिजामां कोइ कोइमां भळे नहि ए द्रव्यनो विचार. हवे धर्मास्तिकाय ते केहने कहिए ? धर्म ते चलण स्वभावरूप, गतिमान पुरुषवत्, अस्ति के० त्रण काळमां छे, काय के. असंख्य प्रदेशनो समूह तेने धर्मास्तिकाय द्रव्य कहिये. तेना ४ गुण अरुपी, अचैतन्य, अक्रिय, चलण सहाय, तेना पर्याय पण ४ स्कंध, देश, प्रदेश, अगुरु लघु. १. एम अधर्म कहेता चलणस्वभाव ने प्रतिपक्षी ते स्थिर स्वभाव. स्थितिमान् पुरुषवत्. अस्ति के० त्रण काळमां छे. काय के० असंख्य प्रदेशनो समूह. तेने अधर्मास्तिकाय द्रव्य कहिये, तेना ४ गुण, अरुपि, अचैतन्य, अक्रिय, स्थिर सहाय. तेना पर्याय पण ४ पूर्ववत् . आकाश के० अवगाह आश्रय दानरुप भिंतमां खालीनी पेठे. अस्ति के० त्रण काळमां छे Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद द्रव्यना पोल. काय के० अनंत प्रदेशनो समूह तेने आकाशास्तिकाय द्रव्य कहिये. तेना ४ गुण अरुपि, अचैतन्य, अक्रिय, अवकाश दान, तेना पर्याय ४ पूर्ववत्. ३. जीव ने पुद्गल उलट पालट करे तेने काळ कहिये तेना ४ गुण अरुपि, अचैतन्य, अक्रिय, वर्तना लक्षण, तेना पर्याय ४ अतित अनागत, वर्तमान, अगुरु लघु, ४. समये समये हानि वृद्धिरुप स्वभाव अस्ति केत्रण काळमांछे.काय के० बेथी मांडि अनंत प्रदेशनो समूह तेने पुद्गलास्तिकाय द्रव्य कहिये. तेना ४गुण रुपि, अचैतन्य, सक्रिय,पुरण गलण तेना पर्याय ४ स्कंघ,देश, प्रदेश, अगुरु लघु, तथा बिजा पण पर्याय ४ वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, ५. द्रव्य प्राण भाव प्राणे करि जीवे ते जीव. अस्ति के० त्रण काळमां छे काय के० असंख्य प्रदेशनो समूह तेने जीवास्ति काय द्रव्य कहिये. तेना ४ गुण. केवळ ज्ञान, केवळ दर्शन, स्वरुप रमण, स्थिरता चरण, क्षायक अनंत शक्ति. तेना पर्याय ४ अव्या बाध, अनावगाह, अमूर्ति, अगुरु लघु, ६. एम पुद्गलनो विचार, एक परमाणुमां ५ वर्ण माहिलो १ वर्ण, बे गंध माहिलो १ गंध, पांच रस मांहिलो १ रस, ८ स्पर्श मांहिला २ स्पर्श, वे परमाणु मळे त्यारे द्वि प्रदेशी खंध थाय. तेमां २ वर्ण, २ गंध, २ रस, ४ स्पर्श, त्रण परमाणु मळे त्यारे त्रिप्रदेशी खंध थाय. तेमां त्रण वर्ण, २ गंध, ३ रस, ४ स्पर्श, ते शित, उष्ण, स्निग्ध, ने लुख, चार परमाणु मळे त्यारे चतुः प्रदेशी खंध थाय तेमां ४ वर्ण २ गंध, ४ रस, ४ स्पश. पंच परमाणु मळे त्यारे पंचप्रदेशी खंध थाय तेमां ५ वर्ण, २ गंध, ५ रस, ४ स्पर्श एम छ, सात, आठ यावत् संख्यात, असंख्यात अनंत प्रदेशी खंधमां यावत् चोथे अनंते अभ जोपयो त गुग अधिक. सिद्ध ने अनंतो भागे ओछा पर Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १९९ माणु मळे त्यारे उदारिकने ग्रहण योग्य वर्गणा थाय. एम अनंत- .. गुणी अधिक वर्गणा मळे त्यारे वैक्रेयने ग्रहण करवाने योग्य वर्गणा थाय. एम आहारक वर्गणा, तेजस वर्गणा, भाषा वर्गणा, श्वासोश्वास वर्गणा, मनो वर्गणा, अने कार्मण वर्गणा ए ८ वर्गणा मांहि पहेली बिजी वर्गणा अनंतगुणी, बीजीथी त्रीजी अनंतगुणी, एम आठे वर्गगा जाणवी. तेमां उदारिक, वैक्रेय, आहारक, तैजस, ए ४ मां ५ वर्ण, २ गंध, ५ रस, ८ स्पर्श, अने भाषा. उश्वास, मनोअने कार्मण ए ४ वर्गणामां ५ वर्ग, २ गंध, ५ रस, ४ स्पर्श ए ४ वर्गणा अगुरुलघुनी जाणवी. हवे पट द्रव्यमां आठ आठ पक्ष कह्याछे. नि १, अनित्य २, एक ३, अनेक ४, सत् ५, असत् ६, वक्तव्य ७, अवक्तव्य८, हवे तेमां नित्य, अनित्य, एक, अनेक. ए४ पक्ष तो पूर्वे काा. तेज सत् ते छ द्रव्य पोत पोताना द्रव्य, क्षेत्र, काळ, भाव रूपे छता छे. तेमां धर्मास्तिकायनो स्वद्रव्य चलण सहाय गुण. अधमस्तिकायनो स्वद्रव्य स्थिर सहाय गुण. आकाश० स्वद्रव्य अवकाश दान गुण. काळ० स्वद्रव्य वर्तना, लक्षण गुण. पुद्धल० स्वद्रव्य पूरण गलन गुण. जीवास्तिकाय स्वद्रव्य उपयोग लक्षण गुण. एम छ द्रव्यनुं स्वक्षेत्र कहे छे. धर्म० अधर्म० स्वक्षेत्र असंख्यात प्रदेशी. आकाश० स्वक्षेत्र अनंत प्रदेशी. काळनो स्वक्षेत्र एक समय पुद्गलनो स्वक्षेत्र एक परमाणु एहदा अनंता. जीवनो स्वक्षेत्र असंख्य मदेशी. एम छ द्रव्यनो काळ पोतपोताना अगुरु लघुनी समय समयनी प्रणति करे छे ते छ द्रव्यनो स्वकाळ. छ द्रव्यनो स्वभाव ते छ र द्रव्यमां पोतपोताना ४ बोल पोतपोतामां छे, अने बिजा द्रव्यना ४ बोल तेमां नथी. जेम धर्मास्तिकायमां पोताना द्रव्य क्षेत्र काळ भाव ए चार बोल छे. बीजा ५ द्रव्यना Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० षट् द्रव्यना बोल. बिजा ५ ना अछता द्रव्य नथी. एम छ ए द्रव्यमां पोतपोताना ४ बोल छे. नथी. एम स्वभाव ए सत् पक्ष कह्यो अने असत् ते क्षेत्र काळ भाव पर द्रव्यना अछता रूपे तो असत् छे. जेम धर्म० द्रव्य अधर्मादि ५ पर द्रव्यना द्रव्य क्षेत्र काळ भावे असत के० अछतो छे. एम छ ए द्रव्यमां जाणवु छ द्रव्यमां वक्तव्य ते वचनथी कहेवा योग्य एहवा अनंता स्वभाव एक एक द्रव्यमां छे, अने अवक्तव्य के० वचनथी कहेवाय नहि केवळज्ञाने जणाय एहवा अनंता धर्म स्वभाव एक एक द्रव्यमां रह्या छे. एम अनंता गुण पर्याय पण कहेवा. सर्व पदार्थ केवळिये दिठा तेने अनंतमे भागे अभिलाष्यवाक वर्गणा योग्य अनभिलायने अनंतमे भागे ते अभिलाय. वळी अभिarora अनंतमे भागे वक्तव्य कला तेने अनंतमे भागे गणधर महाराजे सूत्र गुंध्या छे, तेथी असंख्यातमे भागे हमणा आगम रह्या छे ए ८ पक्ष. वळी नित्य अनित्य पक्षथी उपनी चोभंगी कहे छे. अनादि अनंत ते जेनी आदि ने अंत नथी ते प्रथम भांगो. जेनी आदि नथी ने अंत छे ते अनादि सांत बिजो भांगो. जेनी आदि छे ने अंत पण छे ते सादि सांत त्रिजो भांगो. जेनी आदि छे पण अंत नथी ते सादि अनंत चोथो भांगो. धर्मास्तिकायमा ४ गुण अनादि सांत भांगो नथी पर्याय ४ खंध, देश, प्रदेश, अगुरु लघु, ए ४ सादि सांत त्रिजे भांगे छे. सिद्धना जीवमां धर्मास्तिकायना प्रदेश सादि अनंत चोथे भांगे छे. एमज अधर्म द्रव्यमां. आकाशमां पण ए रीते जाणवुं पण एटलो विशेष के खंध अनादि अनंत पहेले भांगे जाणवुं. काल द्रव्यमां गुण ४, अनादि अनंत पहेजे भांगे छे. अने पर्यायां अतीत काळ अनादि सांत विजे भांगे छे. वर्तमान काळ सादि सांत त्रिजे भांगे छे. अनागत काळ सादि अनंत चोथे भांगे Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. २०१ छे. पुद्गल द्रव्यमा ४ गुण अनादि अनंत प्रथम भांगे छे. जीव पुद्गलनो संबंध अभव्य जीवने अनादि अनंत प्रथम भांगे छे. अने पुद्गल खंधथी ते सादिसांत त्रिजे भांगे छे. जघन्य १ समय उत्कृष्टो असंख्य काळ ते माटे सादिसांत भांगो अने सादि अनंत भांगो पुद्गलमां नथी.अने भव्य जीवने पुदलनो संबंध अनादि सांत चोथे भांगे छे. जीव द्रव्यमां गुण ४ अनादि अनंत प्रथम भांगे छे. जीवने कर्मनो संयोग भव्य जीवने अनादि सांत कारण के कोइक वखते ते कर्मथी छुटशे. नरक तिर्यचना भव करवा ते सादि सांत त्रिजे भांगे जाणवा. अने जीवमां सिद्धपणु प्रकटे ते सादि अनंत चोथे भांगे जाणवू एम षद्रव्यनो विचार लेश मात्र छे. हवे आत्म द्रव्यनो विचार,आत्मा ३. एक बहिरात्मा, बीजो अंतरात्मा, त्रिजो परमात्मा, तेमां बहिरात्मा ते धन, स्वजन, शरीर, कर्म, सर्व पर पुद्गलिक वस्तु माहरि अने हुँ पण एहनो एहवी परिणामनी लोलुपता, अज्ञान, मोह, मिथ्यात्वे परिणम्यो तेने बहिरात्मा कहिए. (दुहो) पुद्गलसु रातो रहे,जाणे एह निधान;तस लाभे लोभ्यो रहे,(सो)बाहिरात्म अभिधान पुद्गल विषय विलास द्रव्य कुटुंबादिमां रातो ने रातो तलालीन परिणामे मग्न रहे. अने मनोज्ञ पुद्गल मळे थके जाणे जे एह उपरांत विजुं कांइ निधान नयी, ते पुद्गलना लाभ मांज लोभि रहे तेनुं नाम बहिरात्मा. ते पहेला गुणठाणाथी त्रिजा गुणठाणा सुधि जाणवो. . ___.. हवे बीजा अंतरात्मानुं लक्षण कहे छे. (दुहो) पुद्गल खल संगी परे,सेवे अवसर देख तनुं अशक्तज्यु लाकडी, ज्ञान भेद पद लेख १ पुद्गलनों संबंध खल निच दुर्जन-मनुष्यान संगति सरिखो जाणे. पण अण चाल्ये पुद्गलनो संग करे. जेम शरिरे असमर्थ लाकडि राखे, ते लाजतो थको पण समर्थाइ राखे नहि. तेम परिणामथी Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ पेंद्र द्रव्यना बात. ज्ञान सम्यकत्वे करी पुद्गलीक वस्तु जीव वस्तुनो भेद करी अंतरंग परिणामथी उदासी परिणामे आत्मीक वस्तु न्यारी ओलखीने तेनुं ध्यान करण रुचिवाळाने अंतरात्मा पद प्रकटे ते चोथे गुणठाथी मांडीने १२मा गुणठाणा सुधी जाणवो. हवे त्रीजा परमात्मानुं लक्षण कहे छे. (दुहो) प्यारो आप स्वरुपमे, न्यारो पुद्गल खेल, सो परमात्मा जाणीए, नहि जस भव को मेल. आत्मा स्वरुपने विषे मग्न रहे. (दुहो) समता रमता उर्द्धता, ज्ञायकता सुख भास, वेदकता चैतन्यता, ए सब जीव विलास. २. एटला बोल प्रगट थाळे शुद्ध प्रणतिये अने पुद्गलना खेळथी न्यारो होय. (दुहे ) तनता मनता वचनता, जडता जड सह मेळ, लघुता गुरुता गमनता, ए अजीव के खेल, ३. ए सर्वपर वस्तु मात्र कर्म चैतन्यताथी न्यारो रहे, जेहने पुनरपि भवादि सर्व मेल रहित ते परमात्मा तेरमे, चादमे गुणठाणे तथा सिद्धने परमात्मा कहिये. मां द्रव्यात्मा असंख्यात प्रदेशी बहिरात्मानी प्रणतिये परिणम्यो ते वहिरात्मा, एमज अंतरात्मा परमात्मा पण कहिये. एमज कपायात्मा ते निश्चय व्यवहार सर्व रीते बहिरात्माज कहिये. योगात्मा निश्चय नये तो बहिरात्मा, व्यवहारनये शुद्ध योग ते अंतरात्मा, अशुध्ध योग से बहिरात्मा, उपयोग आत्मा तेमां ज्ञानात्माना उपयोगमा ४ ज्ञान अंतरात्मा केवलज्ञान परमात्मा, दर्शन आत्मानां ३ दर्शननो उपयोग शुद्ध प्रणविये अंतरात्मा, अशुद्ध प्रणतिये बहिरात्मा, केवळ दर्शनना उपयोग ते परमात्मा, अज्ञाननो उपयोग ते बहिरात्मा, ज्ञानात्मामा ४ ज्ञान अंतरात्मा, केवळज्ञान परमात्मा, दर्शन आत्मामां ३ दर्शन शुद्ध प्रणतिये अंतरात्मा, अशुद्ध प्रणतिये बहिसत्मा, केवळदर्शन ते परमात्मा, चारित्र आत्मामां, ५ चारित्र क्षयोपशमनी Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. २०३ परिणतिये अंतरात्मा, अने जथाक्ष्यात चारित्र क्षायक केवळी चारिअनी परिणतिनि अपेक्षाये परमात्मा, वीर्यात्मामां, बाळवीर्यनी परिपति ते कहिरात्मा, बाळ पंडित वीर्यनी श्रावकनी शुध्धपरिणति ते अंतरात्मा.अशुध्ध परिणति ते बरिरात्मा.पंडित वीर्य क्षयोपशम परिपसिनी अपेक्षाये छद्ममस्तन पंडितवीर्य अंतरात्मा अने लायक केवळी पंडित वीर्यनि परिणतिनी अपेक्षाये परमात्मा.ए आठ आत्मानो लेश मात्र अधिकार कहो. पदव्य आत्म बोधनो विचार लेश मात्र निरुपणे, विस्ताररूचिये,सात नय, चार प्रमाण चार निक्षेप, षट् उपक्रम, नव अनुगम, ओघनिष्पन, नामनिष्पन, सुत्रलायकनिष्पन, निक्षेप नियुक्ति, स्याद्वादि, असंख्य प्रदेशी, अनंत नयात्मक सिध्धांतनी वाणीनी विस्तार करतां पार न पामीये, पण सार भूत एटलं जे असंख्य प्रदेशी, अनंत केवळज्ञान अनंत केवळदशन अनंत स्वरुप स्थिरता रमण, अनंत क्षायक शक्ति, अनंत परमक्षमा अनंत परम माईच, परम आजव परम संतोष, परम समता, परम शीतल दशा, परम शांति, परम दांति, परम क्षायक सम्यक्त, परमक्षायक भाव, परम शुध्ध परिणामिक भावमयि शुध्ध सत्तानी रासि, निस्पृहि, स्वतंत्री, इछा रोध निरासंती नाहं मम, अरागी,अद्वेषी, अमोहि, अविकारी, सहजानंदि, स्वरुप विलासी, स्वरुप मोक्ष कर्ता, स्वरुप मोक्ष भोक्त्ता, स्वरुप तत्व रमणीय, तत्वानंदि, तत्व विश्रामी, स्वरुप स्थायी, तत्व विलासी, तत्वानुभवी, अछेद, अभेद, अप्रतिहत अविनाशी, अजरअमर, निःकलंकी, अगम्य, अलक्ष, अकल, अगोचर, अगाध, सच्चिदानंद, पूर्णानंद, पूर्णब्रह्म, आत्मद्रव्य अनंतगुणि, अनंतपर्यायमयि, अनंतशुध्धात्मधर्ममयि, आत्मसत्तानी सदहणा प्ररुपणा स्पर्शना करवी. एहवी शुद्ध सत्ता, केवळ ज्ञानादि Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ पट् द्रव्यना बोल. आत्म द्रव्यने न माने तेनी साध्य शुन्य साधना-क्रिया जेम घृत अथवा लुण विना रस वती न शोभे तेवी छे. तेम सत्ताये केवळज्ञान न माने अने जीव गमे तेटली क्रिया करे, द्रव्य ज्ञाननो अभ्यास करे, ते करणी सर्वे शुभाश्रव पुन्यफळनी दाता छे. ते तो परभाव छे, अनंत वार जीव पाम्यो ते पाम्यानुं शुं आश्चर्य छ ? ते माटे आचारंग, नंदि, मोक्ष मार्गाध्ययन, भगवति, पन्नवणा, अनुयोगद्वारादि, दश वैकालिक सूत्रोना रहस्यने गुरु गमथी समजे, आराधे सकळ आगमनी शाखे आत्माथि मोक्षार्थि निर्जरार्थिने तो एकांतहित, पार्श्वमणी, चिंतामणी, रसकुंपि, अमृत रसकुंभ, चित्रावेली, कल्पवेली, सिद्धिमंत्रथी अधिक, अनोपम, सार सर्व ज्ञान- तत्त्व ए जे केवळज्ञान सत्ता ए मानीने शक्ति प्रमाणे शुद्ध व्यवहार क्रिया करीने शुध्ध सत्ता प्रगट करवी. ए सर्व सद्हणाथी क्रोडी गमे युक्तिवाळा मळे तोपण सद्हणाथी न चळवू फरी फरीने जीवने आत्म द्रव्यनी शुध्ध केवळ श्रध्धा थवीज महा. दुर्लभ छे, ते माटे ज्ञानामृतमां झीली, सकळ जंतुनी रक्षा करी, गुणीना गुणग्राम करी, आत्मानी निंदा करी, सकळ जीवने उपगार बुद्धि चितवी, सर्व इया, अवर्णावाद मात्रनोनिषेध करी,सकळ उपगारी पुरुषनो क्षण क्षण उपगार समरी सरल स्वभावी उदासी भावे रहिने पूर्व अनंत जीव सत्ताने वर्या,वरेछे आगामी काळे वरसे.पणुं शुंकहिए? ए विचारणा तोपोताना जीवने हाथ छे,ए शिखामण प्रमाण करे तेहना सकळ कार्य सिद्ध थाय, इति षट् द्रव्य विचार संपूर्ण. Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०५ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. अथ श्री रूपी अरूपीना बोल. गाथा ॥ कम्मठ पावठाणाय, मणवय जोगाय कम्मदेहा; एसाचौफासा, घणतणवाय घणोदही १. .उरालाय चौदेहा, पुग्गलथ्थिकाय दव्वलेसा; तह काय जोगोय, नायव्वा अठ फासा २. धम्मा धम्मागासा जीव, अद्धापावठाणावत्तियः दिठिपचुठाणा, उवओग भावलेसाय ३: उग्गहासन्ना बुही, चौचौ एगेगसठीय; ए ए सव्वमणीया, अरु वितथ्थनायव्वा ४. ए चार गाथानो अर्थ कहे छे कर्म ८, पाप १८. मन जोग, वचन जोग, अने कार्मण शरीर, ए २९ बोलमा ४ स्पर्श लाभे १. घनवाय, तनवाय, ने घनोदधि तथा उदारिक वैक्रय, आहारक ने तेजस ए ४ शरीर तथा पुद्गलास्तिकाय, तथा छ द्रव्य लेशा, अने कायजोग ए १५ बोलमा ८ स्पर्श लाभे. २. ए ४४ बोल रूपिना जाणवा. धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीव, काळ, अढार पापनि निवृत्ति, त्रण दृष्टि उठाण, कर्म, बळ, वीर्य, पुरुषाकार पाकर्म, तथा बार उपयोग, ने छ भाव लेश्या, अवग्रह, इहा, अवाय, धारणा, तथा चार संज्ञा उत्पातनी, विनयनी, कर्मनी, पारिणामनी, ए ४ बुद्धि ए ६१ बोल अरूपीना जाणवा. इति रूपी अरूपीना बोल समाप्तं. Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ पचीस वोलनो पोको. अथ श्री पचीस बोलनो थोकडा. || पहेले बोले महावीर प्रभुए एका एक दीक्षा लीघी अने मोक्ष पण एकाएक गया. उर्द्धलोके सर्वार्थसिद्ध विमान एक लाख जोजननुं छे, त्रिछा लोके जंबुद्वीप एक लाख जोजननो छे; अधो लोके सातमी नरके अपठाण नरकावासो एक लाख जोजननो छे. चित्रा नक्षत्र, शांति नक्षत्र, आरद्रानक्षत्र, ए त्रण नक्षत्रनो एकेको तारो को छे. १. बीजे बोले धर्मकरणी करती वखते वे दीशा सन्मुख बेसी करवी ते पूर्व अने उत्तर. वे प्रकारे धर्म को छे; गृहस्थ धर्म अने साधु धर्म. वे प्रकारे जिव कह्या छे, सिद्धना जीव अने संसारी जीव. वे प्रकारे दुःख कथं छे, ते शारीरिक दुःख अने मानसिक दुःख. पूर्वा फाल्गुणी नक्षत्र, उत्तरा फाल्गुणी नक्षत्र, पूर्वा भाद्रपद अने उत्तरा भाद्रपद ए चार नक्षत्रना बबे तारा कह्या छे. २. त्रीजे बोले श्रावक त्रण मनोरथ चितवे ते एवी रीते के, हे भगवान ! हुं आरंभ अने परिग्रह क्यारे छांडीश ? हे भगवान ! हुं पंचमहाव्रतधारी क्यारे थइश ? हे भगवान ! हुं आलोयणा करी संथारो क्यारे करीश ? ते वखतने धन्य छे. त्रण प्रकारना जिन कह्या छे:- अवधीज्ञानी जिन, मनः पर्यवज्ञानी जिन, केवळज्ञानी जीन. त्रण प्रकारना पात्र साधुने खपे ते - माटीनुं, तुंबडानुं, काष्टतुं. साल नक्षत्राण त्रण तारा का छे. अभिच, श्रवण, अश्वनी, भरणी, मृगशर, पुष्य, ज्येष्ठा ए सात नक्षत्र, ३. चोथे बोले श्रावकने चार विसामा कह्या छे भार वहेनारने दृष्टांते. एवी रीते के भार एक खमेथी बीजे Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत मकरण संग्रह. २०७ खमे ले ते एक विसामो, कोइ जग्याए ओटले के चोतरे बोजो मुकीने पीशाब करवा जाय के झाडे फरवाजाय तेबीजो विसामो, गाम दुर होय रस्तामां धर्मशाळा के जक्षनु देवळ आवे त्यां रात रहे ते त्रीजो विसामो, पोताने के धणीने त्यांभार मके तेचोथो विसामो. हवे ए दृष्टांत श्रावकना उपर उतारे छे. ते जेम भार लीधो तेम श्रावकने बोजो ते अढार पाप रुप. तेना चार विसामा नीचे प्रमाणेश्रावक आठम, पाखी, अपवास एकास' करे ते पाप रुप बोजोएकखांधेयी बीजेखांचे लेवारुप ते पहेलोविसामो. केमके अपवास कर्यो ते पोतानी जातने माटे खावानुं बंध कर्यु अथवा पाप बंध कर्यु पण बीजाने माटे कर, पडे छे, तेथी पहेलोविसामो जाणवो. श्रावक एक सामायक वे सामायक अथवा बे घडीनुं चार घडी- देशावगासिक करे ते बीजोविसामो जाणवो. केमके एटलो वखत पापमांथी रोकायो. श्रावक आठम पाखीना पोषघ करे ते रात रहेवारुप त्रीजो विसामो. श्रावक आलोयणा करी संथारो करे ते वारे सर्व पापयी निवयों ए भार घेर मुकवारुप चोथो विसामो, श्रावकने चार प्रकारनु रात्रिभोजन कथु छे ते जेमके रात्रिए रांधे अने दिवसे खाय ते अशुद्ध. दीवसे रांधे अने रात्रिए खाय ते पण अशुद्ध रात्रे रांधे अने रात्रे खाय ते पण अशुद्ध. दीवसे रांधे अने दीवसे खाय ते शुद्ध. वळी एज चार भांगा बीजी रीते कहे छे:-अंधारीजग्याए रांधे अने अजवाळे खाय ते अशुद्ध. अजवालामां रांधे अने अंधारीजगाए खाय ते पण अशुद्ध. अंधारी जग्याएरांधे अने अंधारीजग्याएखाय ते पण अशुद्ध. अजवाळीजग्याए रांधे अने अनवाळीजम्याए खाय ते शुध्ध. पुर्वाषाढा नक्षत्र,उत्तराषाढा नक्षत्र,अनुराधा नक्षत्र ए ऋणना चार चार तारा कया छे. Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पचीस बोलनो थोकडो. पांचमे बोले समकितना लक्षण पांच सम, संवेग, निर्वेग, अनुकंपा, आस्ता, पांच समकितना दुषण कह्या छे. मिथ्यावी ए बोलाव्या पहेला पोते तेने बोलावे ते, मिथ्यात्वीना सामुं वारंवार जोनुं ते, मिध्यात्वीने पहोंचाडवा जंबु ते, कामविना तेना मकान उपर जबुं ते, वारंवार तेना मकान उपर जवं ते, ए पांच दुषण. पांच समकितना भूषण कहे छे. धर्मने विषे चतुराई राखे ते समकितनुं भूषण. जिनशासनने अनेक रीते दीपावे ते, साधुनी सेवा करे ते, धर्मथी डगताने स्थिर करे ते, साधु साधर्मीनी वैयावच्च करे ते. ए पांच भूषण जाणवा. शरीर माथी पांच ठेकाणेथी जीव नीकळे ते कहे छे. पगने तळीएथी नकळे ते नरके जाय. जांगेथी नोकळे ते तीर्यचमां जाय. छाती थी नीकळे ते मनुष्यमां जाय, मस्तकेथी नीकले ते देवलोकमां जाय. अने सर्वागथी नीकळे ते मोक्षजाय. पांच प्रकारे जोव धर्म न पामे ते कहे छे - अहंकारी, क्रोधी, रोगी, प्रमादी, अने सलील. पांच नक्षत्रना पांच पांच तारा कला छे ते रोहीणी, पुनर्वसु, धनिष्ठा, विशाखा, हस्त. २०८ छठे बोले छप्रकारे साधु आहार करे ते कहे छे - क्षुधावेदनी समावाने माटे, वैयावच्च करवाने माटे, इरीयासुमति शोधवाने माटे, संयमना निर्वाहने माटे, शरीर नभाववाने माटे, रात्रीए धर्म जागरण करवाने माटे, छ धर्मना देवगुरुना नाम कहे छे - जैन धर्ममां देव अरिहंत, गुरु निर्ग्रथ. बोद्ध मतमां देव बुद्ध, गुरु फुंगी. शीव मतमां देव रुद्र, गुरु योगी. देवी मतमां देवी धर्म, गुरु वैरागी, न्याय मतमां देव जगतकर्ता, गुरु संन्यासी. मीमांशक मतमां देव अलख, गुरु दरवेश. समकीतनी छ जतना कहे छे - अन्य तीर्थीना गुणग्राम न अन्य तीर्थीने माने वांदे ने पूजे नहि, अन्य तीर्थीए बोलाव्या Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०९ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. विना पोते बोले नहि. वारंवार ए साथे आलाप संलाप करे नहि. अन्य तीर्थीने तरण तारण मानी अन्नपाणी आपे नहि. ( दयाबुद्धी अनुकंपानो आगार)अन्य तीर्थीने धर्मबुद्धिए वस्त्र पात्रआपेनहि,साता नीमीते आपे. छ लेश्याना विचार कहे छे. कृष्ण लेश्यावाळाने जीव हिंसा करवानी ईच्छा होय. नील लेश्यावाळाने चोरीनी इच्छा होय.कापुत लेश्यावाळाने मैथुननी इच्छा होय.तेजु लेश्यावाळाने तपवर्या करवानी इच्छा होय.पद्म लेश्या वाळाने दान देवानी इच्छा होय. शुक्ललेश्यावाळाने मोक्षना इच्छाहोय.कृतिका,अश्लेषा ए बे नक्षत्रना छ छ तारा छे. सातमे बोले सात कारणे छद्मस्थ जाणवो. प्राणातिपात करे, मृषावाद बोले,अदत्तादान दीए,शब्द रुप गंध रस स्पर्श तेनो स्वाद ले. पूजा सत्कार वांछे.निर्वद्य परुपे पण सावध वरते.जेवु परुपे तेवुकरी शके नहि, ए सातवाना जेनामां होय ते छद्मस्थ जाणवो.सात प्रकारे आउखु त्रुटे ते कहे छे. ध्रास्को पडवाथी मरे,शस्त्रथी मरे, मंत्र मुठथी मरे, घणे आहारे अजीर्णथी मरे, शुलादीक वेदनाथी मरे, सादीक करडेथी मरे, श्वासोश्वास रंधावाथी मरे, ए सात प्रकारे आउखु तुटे. हवे सात नय कहे छे. निगम नय, संग्रह नय, व्यवहार नय, रुजु मुत्र नय, शब्द नय, समभिरुढ नय, एवंभूत नय, ए सात नय कहा. मघा नक्षत्रना सात तारा कह्या छे. आठमे बोले आचार्यनी आठ संपदा.आचार संपदा,शरीर संपदा,सूत्र संपदा, वचन संपदा, प्रयोग संपदा, मति संपदा,संग्रह संपदा,वाचना संपदा. एकल विहारी साधु साध्वीना आठ अवगुण कह्या छे तेना नाम-क्रोधी.होय ते एकलो रहे, अहंकारी होय ते एकलो रहे, कपटी हीय ते एकलो रहे, लोभी होय ते एकलो रहे, पाप कर Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० पचीस बोलना थोकडो. वामां आसक्त होष ते एकलो रहे, कतोहलो मरकरी होय ते एकलो रहे, धुतारी होय ते एकलो रहे, माठा आचारनो घणी होय ते एकलो रहे. आठ गुगनो धगी एकलो हाय तेना- नाम -संगमने विषे दृढ प्रणामनो धणी गुरुनी आज्ञा लइ एकलो रहे, घणा सूत्रनो जाण एकलो रहे, जघन्य दश पूर्वनो भणेलो उत्कृष्ट चउद पूर्वनो भणेलो एकलो रहे, चार ज्ञाननो धणी एकलो रहे, महा वळनो घणी एकलो रहे, क्लेश रहीत होय ते एकलो रहे, संतोषी होय ते एक रहे, धैर्यवंत होय ते एकलो रहे. देखता आठ प्रकारे अंध ह्या ते कहे छे. कामांध, क्रोधांध, कृपणांध, मानांघ, मांध, चोरांध, जुगटयांध, चुगल्पांघ, ए आउ आंधळा जाणवा. आठ महा पापी कहे छे - आत्मघाती, विश्वासघातो, गुण ओळवनार, गुरुद्रोही, कुडी साक्षी पुरे ते, खाटी सलाह आपे ते, पञ्चखाण वारंवार भांगे ते समय धर्म परूपे ते महा पापी. नवमे बोले नव प्रकारे शरीरमां रोग उपजे ते कहे छेखायता रोग उपजे. अजीरणमां खाय तथा घगुं बेसी रहे तो रोग उपजे, धणुं डंबे तो रोग उपजे, घगुं जागे तो रोग उपजे, दिशा रोके तो रोग उपजे, पिशाब रोके तो रोग उपजे, घगुं चाले रोग उपजे वस्तु भोगवे तो रोग उनजे, वारंवार विषय सेवे तो रोग उपजे नव बोल समजवाना का ते कहेछेरजपुतने क्रोध घणो, क्षत्रीयने मान घणुं, गुणकाने माया घणी, ब्राह्मणने लोभ घणो, मित्रने राग घगो, श्पोकने द्वेष घणो, जुगारीने शोच घणो, चोरनी माताने चिंता घगी, कायरने भय घणो. दशमे बोले नारकीना जीवने दश प्रकारनी वेदना कहे छे - अनंती भूख, अनंती तरस, अनंती टाढ, अनंतो गरमी, अनंतो दाघ, अनंतो भव, अनंतो ज्वर, अनंती खरज, T Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. २११ अनंतुं परवशपणुं, अनंतो शोक. दस कारणे देवतार्नु आयुष्य बंधाय. दश प्रकारे ज्ञानमां वृद्धि करनार नक्षत्रनां नाम. मृगसर, आर्द्रा, पुष्य, पूर्वाभाद्रपद, पूर्वाषाढा, पूर्वाफाल्गुनी, मूळ, अश्लेषा, हस्त,चित्रा.ए दश नक्षत्रमा ज्ञान भणे तो वृद्धि थाय ने विघ्न जाय. अगीयारमे बोले महावरना ११ गणधरना नाम कहे छे इंद्रभुती, अग्निभुति, वायुभुति, व्यक्त्त, सुधर्मा स्वामी, मंडित पुत्र, मौरीपुत्र, अपित, अचळभ्राता, महेतार्य, प्रभास. - अगिआरमे बोले ज्ञानवधे ते कहे छे.उद्मम करता ज्ञान वधे.निद्रा तजे तो ज्ञानवधे,अणुदरीकरे तो ज्ञान वधे, थोडं बोले तो ज्ञान वधे, पंडितनी सोबत करे तो ज्ञान वधे,विनय करे तो ज्ञान वधे,कपट रहित तप करे तो ज्ञान वधे,संसारमा आसक्ति घटे तो ज्ञान वधे,माहोमांही चर्चा वार्ता करे तो ज्ञान वधे,ज्ञानी पासे भणे तो ज्ञान वधे,इंद्रीयोना विषयनो त्याग करे तो ज्ञान वधे, मुळनक्षत्रना अगीआर तारा छे. वारमे बोले बार कारणे आत्मानुं परम कल्याण थाय ते कहे छे-समफित निर्मळ पाळे तो आत्मानुं पाम कल्याण थाय-श्रेणीक राजानी पेरे १. नीयाणा रहीत करणा करे तो परम कल्याण थाय-तामल तापसनी पेरे २. मन वचन कायाना जोग कबजे राखे तो परम कल्याण थाय-गजसुकुमार मुनिनी पेरे ३. छती शक्तिए क्षमा करे तो परम कल्याण याय-परदेशी राजानी पेरे ४. पांच इंद्रीने दमन करे तो परम कल्याण थाय-धर्मरुची अणगारनी पेरे ५. साधुनो शुद्ध आचार पाळे तो परम कल्याण थाय-धना अणगारनी पेरे ६. धर्म उपर श्रद्धा पतित राखे तो परम कल्याण थाय-वरुण नाग नतुयाना मित्रनी पेरे ७. माया कपट छांडे तो परम कल्याण थाय-मलिनाथना छ Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ पचीस बोलनो थाकडो. मीनी पेरे ८. आश्रवमां संवर निपजावे तो परम कल्याण थायसंजति राजानी पेरे ९. रोग आवे हाय वोय न करे तो परम कल्याण थाय - अनाथी निग्रंथनी पेरे १०. परिसह आव्या समभाव राखे तो परम कल्याण थाय - मेतारज मुनिनी पेरे ११. तृष्णा उत्पन्न थ‍ तेने पाछी वाळे तो परम कल्याण थाय-कपील केवळीनी पेरे १२. तेरमे बोले तेर तणखा कछे - जन्मरुपी रु अने मरणरुपी तणखा १. संजोग रूपी रु अने विजोग रुपी तणखो २. ज्ञाता रुपी रु अने अशाता रुपी तणखो ३. संपदा रूपी रु अने आपदा रूपी वणखो ४. हरख रूपी रु अने शोग रूपी तणखो ५. शील रुपी रु अने कुशील रुपी तणखो ६. ज्ञान रुपी रु अने अज्ञान रूपी तणखो ७. समकित रुपी रु अने मिथ्यात्व रुपी तणखो ८. संजम रुपी रु अने असंजम रुपी तणख ९. तपस्या रुपी रु अने कोध रुपी तणखो १०. विवेक रुपी रु अने अभिमान रूपी तणखो ११. स्नेह रुपी रु अने माया रुपी तणखो १२. संतोष रूपो रु अने लोभ रूपो तणखा १३. ए तेर तणखा. हवे तेर काठीआ कहे छे. जुगार, आळस, शोक, भय, वीकथा, कौतक, क्रोध, कृपणबुध्धि, अज्ञान, वहेम, निद्रा, मद, मोह, ए तेर काठीआ. चौदमे बोले व्याख्यान सांभळनारना १४ गुण कहे छे-भक्तिवंत होय १ मीठाबोलो होय २. गर्व रहीत होय ३. सांभळ्या उपर रुची होय ४. चपळता रहित एकाग्र वित्ते सांभळनार होय ५. जेतुं सांभळे तेवुं पूछनारने बराबर कहे ६ वाणीने प्रकाशमां लावनार होय ७ घणा शास्त्र सांभळीने तेना रहस्पनो जाण होय ८. धर्म कार्यमां आळस न करनार होय ९. धर्म सांभळतां निद्रा न करनार होय Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह २१३ १०. बुद्धिवंत होय ११. दातार गुण होय १२. जेनी पासे धर्म सांभळे तेना गुणनो फेलाव करनार होय १३. कोइनी निंदा न करे तेमज तेमनो वादविवाद न करे १४. पंदरमे बोले वनीत शिष्यना पंदर गुण कहे छे - गुरुथी fter आसने बेसवा वाळोहोय १. चपळपणा रहित होप २. माया रहित होय ३. कतोहळ रहित होय ४. करकस वचन. रहित होय ५० लांबो वखत पहोंचे तेवो क्रोध न करनार होय ६. मित्र साथै मित्रता राखे ७. सुत्र भणी मद न करे ८. आचार्यादिकनी निंदा न करे ९. शिखामण देनार उपर क्रोध न करे १०. पुंठ पाछळ वालेसरीना - गुण बोले ११. कलेश ममता रहित होय १२. तत्वनो जाण होय १३. विनयवंत होय १४. लज्जावंत इंद्रिनो दमनार होय १५. सोळमे बोले सोळ प्रकारना वचन जाणवा ते कहे छे - एक वचन घट, पट, वृक्ष १. द्विवचन घटौ, पटो, वृक्षौ २. बहुवचन घटाः पटः वृक्षाः ३. स्त्री लिंगे वचन कुमारी, नगरी, नदी ४. पुरुष लिंगे वचन देव, नर, अरिहंत, साधु ५. नपुंसक लिंगे वचन. कपट, कमळ, नेत्र ६. अतीत काळ वचन ( गयो काळ ) करेलु, थपलं ७. अनागत काळ वचन ( आवतो काळ ) करशे, थशे, भांगशे ८. वर्तमानकाळ वचन करे छे, थाय छे, भणे छे ९. परोक्ष वचन कार्य तेणे कर्यु १०. प्रत्यक्ष वचन एमज छे ११. उपनित वचन ए पुरुष रूपवंत के १२. अपनीत वचन जेम ए पुरुष कुरुपर्वत छे १३. उपनीत अपनात वचन जेम ए रूपवंत पण कुशीलिओ छे १४. अपनीत उपनीत वचन जेम ए पुरुष कुशीलि ओपण रूपवंत छे १५० "सायिक वचन मन बोले (तुटेलुं वचन) रु वाणी आनी पेरे रुपा १६० सतरमे बोले सतर प्रकारनो संयम कहे छे-पृथ्वीकायनी दया Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ पचीस बोलनो थोकडो.. पाळवी ते संयम १. अपकायनी दया पाळवी ते संयम २. तेउकायनी ३.वायुकायनी४. वनस्पतिकायनी ५. बेइंद्रीयनी ६. तेइंद्रीयनी ७. चउरींद्रीयनी ८. पचेंद्रीयनी ९.अजीर कायनी १०. पेहानी ११. उपहानी १२.पमजणानी १३. परीठावणीया १४. मन १५. वचन. १६. काया. १७. ए सत्तर प्रकारनो संयम. ___ अढारमे बोले अढार द्रव्य दीशा कहे छे-पूर्व १, पश्चिम २, उत्तर ३, दक्षिण ४, इशान खूणो ५, अग्नि खूणो ६, नैऋत्य खूणो ७, वायव्य खूणो ८, विदीशीना आठ आंतरा ए बधा थइने सोळ अने उंची सत्तर अने नीची अढार, ए अढार. अढार भाव दिशा कहे छे-पृथ्वी १. अप २.तेउ ३.वायु ४. अग्रबिआ ५. मूळविआ ६. पोरविआ. ७. खंघबीआ. ८. बेइंद्रीय ९. तेइंद्रीय १०. चउरींद्रीय ११.पंद्रीय १२.तिर्यंच १३. कर्मभुमी १४. अकर्मभुमि १५. छपन अंतरद्वीपा १६. देवता १७. नारकी १८.ए अढार. ओगणीसमे बोले काउसग्गना ओगणीस दोष कहे छेढींचण उपर एक पग राखीने काउसग्ग करे तो दोष १. काया. आधी पाछी हलावे तो दोष २. ओठौंगण दे तो दोष ३. माथु नमावी उभो रहे तो दोष ४. हाथ उंचा राखे तो दोष ५. मोढे माथे ओढे तो दोष ६. पग उपर पग राखे तो दोष ७. शरीर वांकु राखे तो दोष ८.साधुनी बराबर रहे तो दोष ९. गाडानी उंधनी पेरे उभो रहे तो दोष १०.केडेथी वांको उभो रहे तो दोष ११. रजोहरण उंचो राखे तो दोष १२. एक आसने न रहेतो दोष १३. आंख ठेकाणे न राखे तो दोष १४. माथु हलावे तो दोष १५.. खोखारो करे तो दोष १६. डील हलावे तो दोष १७. मरडे तो. दोष १८. शून्य चित्त राखे तो दोष १९. Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रहः वीशमे बोले वीस प्रकारे जीव तिर्थकर गोत्र बांधे ते कहे छे:--अरिहंतना गुण ग्राम करे तो कर्मनी क्रोड खंपावे, उत्कृष्ट रस आवे तो तिर्थकरगोत्र बांधे १. सिद्धना गुणग्राम करे तो २. सिध्धांतना गुणग्राम करे तो ३.गुरुना गुगग्राम करे तो ४.स्थिवरना गुणग्राम करे तो ५. बहुसूत्रीना गुणग्राम करे तो ६. तपस्वीना गुणग्राम करे तो ७. ज्ञान उपर उपयोग वारंवार राखे तो ८. शुद्ध समकित पाळे तो ९. विनय करे तो १०. बे वखत पडिक्कमणुं करे तो ११. वृत पचखाण चोख्खां पाळे तो १२. धर्मध्यान शुक्लध्यान ध्यावे तो १३. बार भेदे तप करे तो १४. सुपात्रने दान दे तो १५.वैयावच्च करेतो १६.सर्व जीवने सुख उपनावे तो १७. अपूर्व ज्ञान भणे तो १८. सूत्रनी भक्ति करे तो १९. तिर्थकरनो मार्ग दीपावे तो २०. ए विस. - एकवीसमे बोले श्रावकना एकवीश गुण कहे छे:-अशुद्र १. जशवंत २. सौम्य प्रकृति ३. लोकप्रिय ४. स्वभाव आकरो नहि ५. पापथी डरे ६. श्रद्धावंत ७. लब्धलक्ष ८. लज्जावंत ९. दयावंत १०. मध्यस्थ ११. गंभीर १२. सौम्य द्रष्टी १३. गुणरागी १४. धर्मकथक १५. साचानो पक्ष करनार १६. शुद्ध विचारी १७. घरडानी रीते चालनार १८. विनयवंत १९. कीवेला गुगने भुले नहि २०. परहितकारी २१. एएफवीश. बावीसमे बोले बावीस जण साथे वाद न करवों ते कहे छे:-धनवंत साथे १.बळवंत साथे२.घगा परिवार साथे ३.तपस्वी साथे ४. हलका माणस साथे ५.अहंकारी साये ६.गुरु साथे ७. स्थीवर साथे ८. चोर साथे ९. जुगारी साथे १०. रोगी साथे ११. क्रोधी साथे १२. जुठाबोला साथे १३. कुसंगी साथे १४.राजा साथे १५० Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ पचीस बोलनो थोकडो. शीतळ लेशावाला साथे १६.तेजु लेश्यावाळा साथे १७.मोढे मीठा बोला साथे १८.दानेश्री साथे १९. ज्ञानी साथे २०. गुणका साथे २१. बाळक साथे २२. ए बावीस. क्षेत्रीसमे बोले पांच इंद्रीयना वीस विषय कहेछे:-श्रोतेंद्रियना त्रण विषय--जीव शब्द,अजीव शब्द, मिश्र शब्द. चक्षु इंद्रियना पांच विषय--कालो, पीलो, लीलो, रातो, धोलो, घ्राणेंद्रीयना बे विषय-- मुभी गंध, दुर्भागंध, कुल दस. फरस इंद्रीयना आठ विषय ते खरखरो मुंहाळो, हलको, भारे, टाढो, उनो, लुखो, चीकणो, रसइंद्रीयना पांच विषय-तीखो, कडवो, कषायलो, खाटो, मीठो. चोवीसमे बोले चोवीस टोटा कहे छे:--भणवा गणवानी आळस करे तो ज्ञाननो टोटो बहु सूत्रनी शाख १. साधु साध्वीना दर्शन न करे तो समकितनो टोटो-सोमिल ब्राह्मणनी शाख २. वखतसर पडीकमणुं न करे तो वृत पञ्चखाणनो टोटो-उत्तराध्ययन अध्य० २९ नी शाख ३. साधु साध्वी मांहो मांही वयावच्च नकरे तो तीर्थनो टोटो--ठाणांगनी शाख ४. तपस्यानी ने आचारनी चोरी करतो देवतामां उंची पदवीनोटोटो--दशवकालिक भगवतीनी शाख ५. कठण कलुश भाव राखेतो शीतळतानोटोटा-समवायंगनी शाख ६.अजतनाथीचाले तो जीव दयानोटोटो-दशवकालीकनीशाख७. रुपनो ने योवननोमद करे तो शुभ कर्मनो टोटो-पनवणानी शाख ८. मोटामो विनय न करे तो तीर्थकरनी आज्ञानो टोटो-व्यवहार सूत्रनी शाख ९. माया कपट करे तो जश कीर्तिनो टोटो--आचारंगनी शाख १०. पाउली रात्रे धर्म जाग्रिकान जागे तो धर्मध्याननो टोटो नीशीयनी शाख ११, क्रोध कलेश करे तो स्नेह भावनो टोटोचेडा कुर्णीकनी शाख १२, मन उंचुनीL करे तो अक्कलनो टोटो Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. २१७ भृगु पुरोहीतनी शाख १३.स्त्रीना लालचुने ब्रह्मचर्यनो टोटो--उत्तराध्ययननी शाख १४. साधु -साध्वी, श्रावक-श्राविका मांहोमांही हेत मेळाप न राखे तो जैन धर्मनो टोटो--शंख पोखलोनीनो शाख १५. सुपात्र ने उलट भावे दान न आपे तो पुण्य प्रकृतिनो टटोकपोला दासीनी शाख १६. साधु गाम नगर विहार न करे तो धर्म कथानो टोटो-शेलक राजऋषिनी शाख १७. भणे गणे नहि तो जिनशाननो टोटो-समाचारीनी शाख १८. वृत पञ्चखाणनी आलोयणा करे नहि तो मोक्षना सुखनो टोटो-पार्श्वनाथनी बसें छप्पन साम्बीनी शाख १९. अरीहंत, धर्म, ने चार तीर्थना अपर्णवाद बोले तो सत् धर्मनो टोटो-ठाणांगनी शाख २०. साधुनु वचन माने नहि तो उंची गतिनो टोटो-ब्रह्मदत्तनी शाख २१. साधु-साध्वी, गुरु-गुरुणोनी आज्ञा उल्लंघे तो आराधकपणानो टोटो सुकुमालीकानी साख.तथाखंधकजीनो शाख२२.भगवानना वचन उपर श्रद्धान राखें तो शुद्ध मार्गनो टाटा-जमालीनी शाख २३. भणे ठेवारंवार संभारेनहिता मेळवेली विद्याना टोटो-जब रुपिनीशाख२४. पचीसमे बोले साडापचीश-आर्य देश तथा तेनो नगरीना नाम कहे छे-मगध देश-राजश्री नगरी १, अंग देश- चंपानगरी २, वंग देश--तामलीप्त नगरी ३, कलींग देश-- कंचनपुर नगर ४, काशी देश--वणारसी नगरी ५, कोशळ देश अयोध्या नगरी ६, कुरु देश--गजपुर नगरी ७, कुपवर्त देश--सोरीपुरनगरीट,पंचाळदेश--कंपीलपुर नगरी९,जंगलदेश-अइछत्तानगरी. १०, कच्छ देश--कोसंबी नगरी ११, सांडोल देश-नंदीपुर नगरी १२, माळव देश--भदिलपुर नगरी १३, वच्छ देश-वैराटनगरी १४ दशारण देश--मृगावती नगरी १५, वरण देश--इच्छापुर नगरी Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८. वाटे वहेता जीवना बोल. १६, विदेह देश-शिवावती नगरी १७, सिंध देस--वितीभय पाटण नगरी १८, सौवीर देश--मथुरा नगरी १९, विदेह देश--मीथीला नगरी २०,मुरसेन देश--पावापुर नगरी २१,भंग देश--मांसपुर नगरी २२, पाटण देश--मांडावती नगरी २३, कुणाल देश-सावथी नगरी २४,सोठ देश-द्वारका नगरी २५, केका देश--सितांबीका नगरी २६,ए साडीपचीस आर्य देश इति श्री पचीस बोलनो थोकडो समासः श्री वाटे वहेता जीवना बोल. वाटे वहेतां जीवने समकित चार लाभे ते वेदक वर्जीने १. वाटे वहेतां जीवने शरीर बे लाभे तेजस ने कारमण २. वाटे वहेतां जीवने गुणस्थानक त्रण लाभे पहेलं बीजु ने चोथु ३. वाटे वहेतां जोवने जोग एक लाभे ते कारमण ४. वाटे वहेतां जीवने उपयोग दस मनपर्थव ने चक्षु दर्शन ए वे वर्जीने ५. वाटे वहेतां जीवने लेश्या छ ६. वाटे वहेतां जीवने द्रष्टि बे लाभे ते समद्रष्टि ने मिथ्याद्रष्टि ७. वाटे वहेतां जीवमां अज्ञान त्रण लाभे ८. वाटे वहेतां जीवमां समुदयात बे पहेली लाभे ९. वाटे वहेतां जीवमां ज्ञान चार लामे मनपयेव टाळीने १०. वाटे वहेतां जीवमां दर्शन त्रण चक्षुदर्शन वर्जीने ११. वाटे वहेतां जीवमां वेद त्रण लाभे १२. वाटे वहां जीवमा प्राप्ति एके नहि १३. वाटे वहेतां जीवनी स्थिती जघन्य एक समयनी उत्कृष्टि चार समयनी १४. वाटे वहेतां जीवमां कषाय चार लाभे १५. वाटे वहेतां जीवमां इंद्री एके नहि १६. वाटे वहेतां जीवमां जीवना भेद सात अपर्याप्ता लाभे १७. वाटे वहेतां जीवमां Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिदांत मकरण संग्रह.......... २१९. समकिती अने मिथ्यात्वी १८.वारे घहेतां जीवां प्राण एक आयुपलामे १९. वाटे वहेता जीवमा असंज्ञी ने संज्ञी बे लाभे २०. वाटे वहेतां जीयमा त्रस स्थावर ए बे लाभे २१. वाटे बहेतां जीवमा आत्मा सात ते चारित्र आत्मा वनिने २२. वाटे वहेता जीवभा चारित्र एके नहि २३. वाटे वहेतां जीवमां संज्ञा चार लाभे २४. वाटे वहेतां जीव एक अभासका हाय २५. वाटे वहेता जीवां करण अठयावीस लामे २६. वाटे वहेतां जीवमां हेतु तेत्रीस लाभे २७. वाटे वहेता जीवमा मुक्ष्म ने बादर बे लाभे २८. वाटे वहेतां जीवमा अणाहारीकपणु लामे २९. वाटे वहेतां जीवमां किरीया एके नहि ३०. वाटे वहेता जीवमा जोग एक कारमणनो ३१. वाटे वहेतां जीव मन रहित होय ३२. वादे वहेतांजीवना बोल समाप्त. अथ श्री प्रमाण बाधनो थोकडो. भव्य जीवना बोधने अर्थे ३ प्रकारना अंगुल तथा ३ प्रकारना पल्योपमनुं मान सूत्र अनुयोग द्वारथी कहे छे. तेमां प्रथम ३ मकारना अंगुलना नाम, आत्म अंगुल, उत्सेधांगुल, प्रमणांगुल, आत्म अंगुलनु मान कहे छे, भरतादि १५ क्षेत्र छे, तिहां जे काळे जे आरे जे मनुष्य होय, ते मनुष्य पोतपोताने १२ अंगुले १ मुख थाय अने ९ मुखे एक पुरुषतुं उंवपणानुं मान थाय, एटले १२ नवा १०८ आत्म अंगुलनो पुरुष उचो होय, ते पुरुष ने प्रमाणापेत कहिए, मान युक्त पुरुष केहने कहिये, पुरुष प्रमाणे संडि कुंडि हाय तेने जले करि परिपूर्ण भरिये, तेमां पुरुष बेशे Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० प्रमाण बोपनो योकडो. तेवारे एक द्रोण प्रमाणे जल कुंडि माहियी बाहिर निकले तथा एक द्रोण प्रमाणे जले करि कुडि उणि होय ते कुंडिमां ते पुरुष बेशे परिपूर्ण जले भराय तेने मानोपेत पुरुष कहिए, द्रोण ते केवड़ो होय ते कहे छे, बे असलीये १. पसली थाय, वे पसलीये १ सइ थाय, चार सइए १ कुडव थाय, चार कुड़वे १ पाथा थार, चार पाथे १ आढो थाय. चार आढे १ द्रोण थाय, ए द्रोग मान का, ए.रीते मानोपेत पुरुष कहिये, उन्मानयुक्त्त पुरुष केहने कहिये, जे पुरुष तोळयो थको अई भार धाप तेने उन्मानयुका पुरुष कहिये, अर्द्ध भार- मान कहे छे एक हजार ने पचाश ..पले अर्द्ध भार थाय, ए अद्ध भारतुं मान कयु, प्रमाण मान उत्मान युक्त लक्षण साथियादिक व्यंजन मस तिलादिक गुग, क्षमा दाना. दिक सहीत जे पुरुष होय ते उत्तम पुरुष जाणवो, उत्तम पुरुष १०८ आत्म अंगुलनो उंचों होप, मध्यम पुरुष १०४ आत्म अंशुलनो उंचो होय, एहवा ६ आत्म आपुले १ पगना मध्य भागनुं पहोळपणुं थाय, बे पगे १ त थाय, बे वते १ हाथ थाय, वे हाथे १ कुक्षि थाय, बे कुक्षिए १ धनुष थाय, बे हजार धनुषे १ गाउथाय, चार गाउ ए १ जोजन थाय, जे काळे मनुष्यनु आत्म अंगुल होय ते आत्म अंगुले ते वखतना नगर, गाम, वन, कुवा, तळार, वार,गढ, पोळ, कोठा,मान,रथ,गाहादिक ७३ बोलना नाम कह्यांछे ते मपाय.उत्सेघ.गुलनु मान कहे छे, अनंता सुक्ष्म परमाणुवा भेला करिये त्यारे १ व्यवहारि प्रमाणु थाय, तथा जालोने विषे मूर्यना किरण तेमां रज उडतो देवाय ते रजनो अनंतमो भाग तेने व्यवहारि परमाणु कहिये. अन्यमतिओ रजना तेत्रिशमां भागने परमाणु कहे छे. पण व्यवहारि परमाणु ते कहेवाय के जे शस्त्रादी कोइ प्रकारे छेदाय Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेन सिसव मकरण संर. नहि अग्निमां बळे नहि, पाणीमां चाल्यो जाय पण भिजाय नहि, गंगा महानदोनो प्रवाह उंचो चुलहिमवंत पर्वतथी पड़े छे ते प्रवाह सा:मो चाल्यो जाय पण खलाय नहि, घात पामे नहि, पाणिना बिंदुमा रहे पण पलळे नही, ते अति तिखे शखे करि देवतानी शक्तिये छेदता एक खंडनो विनो खंड न थाय. तेने तत्वज्ञाता परमाणु कहे छे.. एहवा अनंताव्यवहारि परमाणु एकठा मले तेबारे १. उष्णसनियो थाय. आठ उष्णसन्निये १ सणसन्नियो थाय. आठ सणसन्निये १. उद्धरेणु थाय, आठ उर्द्धरेणुये १-शरेणु. बेंद्रीयादिक श-जीवने चालता रज उडे ते त्रसरेणु कहेवाय. आठ प्रशरेणुये १ रथरेणु. रयादिक हिंडता रज उडे ते रथरेणु थाय. आठ रथरेणु-ए १. देवकुरु-उत्तरकुरुना जुगलीया मनुष्यना वाळाप्रनु जाडपणुं थाय. आठ देवकुरु-उत्तरकुरुना वाळाने १ इरिवास रमकवास क्षेत्रना जुगलियाना वाळाग्रनुं जाडपणु थाय. आठ हरिवासरमाससना काळा-१ हेमवय एरमवानाक्षेत्रना जुगली याना बाळान, जाडापगुं. थाय. आठ हेमवय एरणवरना वाळाने १ पूर्व पश्चिम महाविदेह क्षेत्रना मनुष्यना वाळोपर्नु जाडणुं थाय. आठ-पूर्व पश्चिम महाविदेहना वाळाने १ भरत इरवतना मनुष्यना वाळापर्नु जाडपणुं थाय. एहवा ८ वाळाने १ लिख थाय, आठ लिखे १ जु थाय, आठ जुये १ जवमध्य थाय, अठ जब मध्ये १ अंगल याय, ६ अंगुले १ पग थाय, १२ अंगुले १ वेंत थाय. २४ अंगुले १ हाथ थाय, ४८ अंगुले. १ कुक्षि थाय, ९६ अंगुले १ धनूष थाय, २ हजार धनूषे १ गाउ थाय. ४ गाउए १ जोजन थाय, ए-उत्सेधांगुले २४ दंडकनी अवघेणा वर्णवी छ. प्रमाणांगुलनु मान कहे छे. भरतादिक चक्रवतीनुं कांग Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ प्रमाण बोपनो योकडो. णिरत्न होय. ते ८ सोनइया भार छे. सोनइयानुं तोल कहे छे. ४ मधुरत्रिफले १ स्वेत सरसत्र थाय, १६ सरसवे १ अडद थाय, २ अडदे १ गुंजा थाय, ५ गुंजाये १ मासो थाय. १६ मासे १ सोनइयो थाय, एहवा ८ सोनइया भारतुं कांगगिरत्न होय. तेने छ तळा, ८ खुणा, १२ हांश छे. सोनींनी अहिरणने संठाणे छे. ते कांगणिरत्ननी एकेकी हांश उत्सेधांगुलनि पहोळी छे. अने जे उत्सेधांगुल ते समण भगवंत महावीरनु अर्द्धअंगुल थाय तेने हजार गुणुं करिये तेवारे १ प्रमाणांगुल थाय. एटले महावीरस्वामीनापांचसे आत्मअंगुले १ प्रमाणांगुल थाय, एहवा ६ प्रमाणांगुले १ पग थाय, १२ अंगुले १ वेत थाय, २४ अंगुले १ हाथ थाय, ४८ अंगुले १ कुक्षि थाय, ९६ अंगुले १ धनूष थाय, २ हजार धनूषे १ गाउ थाय, ४ गाउये १ जोजन थाय, ए प्रमाणांगुले पृथ्वी, पर्वत, विमान, नरकावासा, द्विप, समुद्र, नरक, देवलोक,लोक,अलोक,शास्वती जमीन रत्न प्रभादिक २८ बोलनु तथा द्विपसमुद्रादि २८ बोलनु लांबपणुं, पहोळापणुं, उंचपणुं, उंडपणुं, परिधि प्रमुखना मान वर्णव्या छे. ए ३ प्रकारना अंगुल कह्या ते प्रत्येक प्रत्येकना त्रण त्रण भेद श्रेणिअंगुल, प्रतरांगुल, घनांगुल, तीहां असत्कल्पनाये श्रेणि ते असंख्याता जोन क्रोडाक्रेडि प्रमाणे लांबी, अने एक आकाश प्रदेश नी पहोळी जाडपणे लोकांत सुधि होप तेने श्रेणि कहिये. ते श्रेणिने श्रेणि गुणो करिये तेने प्रतर कहिये, ते प्रतरने श्रेणि गुणो करिये तेने घन कहिये. ते घनीकृत लोकने संख्यात गुणो करिये तेवारे संख्याता लोक अलोकमां थाय ते संख्याता लोकने असंख्यात गुणा करिये त्यारे असंख्याता लोक अलोकमां थाय. ते असंख्याता लोकने अनंत Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. २२३ गुगा करिये तेबारे अनंता लोक अलोकमां थाय. अने ते अनंता लोकना जेटला आकाश प्रदेश छे तेटला निगोदना एक शरीरमांहि निगोदिया जीव छे. असंख्याता सुक्ष्म निगोदे १ बादर निगोद थाय. एक निगोदमां अनंता जीव जाणवा. ए त्रण प्रकारना अंगुल कह्या. त्रण प्रकारना पस्योपमनुं मान कहे छे तेमां पस्योपमना ३ भेद उद्धार पल्योपम, अद्वापस्योपम, क्षेत्र पल्योपम, एक एकना बबे भेद सुक्ष्म ने बादर प्रथम बादर उद्धार पल्योपमनुं स्वरुप कहे छे एक जोजननो उत्सेधांगुले लांबो पहोळो ने उंडो एहवो १ पालो कलपिये तेनी त्रिगुणि झाझेरी परिधि होय ते पालो देवकुरु उत्तरकुरुना जुगलीयाना मस्तकना केश ते एक दिनथी मांडिने ७ दिनना उग्या वालाग्रे करि भरिये, एहवो तो ठांसी भरिये के अनिमांहि बळे नहि, वायरे करी उडे नहि, पाणी करी सडे नहि, पोलारना अभावथि विध्वंशे नहि. दुर्गव थाय नहि, चक्रवर्तीनु सैन्य उपर चाले तोपण नमे के डोले नहि, गंगानदीनो प्रवाह उपर चाले तोपण पाणि मांहि भेदाय नहि. पालामाथि समये समये एक एक वाळा काढिये. एम काढतां जेटले काळे पालो खाली थाय अने बाकी एके रज रहे नहि तेटला काळने बादर उद्धार पल्योपम कहिये, ते पस्योपम संख्यात समयनो जाणवो एहवा दश क्रोडाक्रोडि पल्योपमे १ बादर उद्धार सागरोपम थाय, केवळ परुपणा मात्र छे ए बादर उद्धार पल्योपम. हवे सुक्ष्म उद्धार पल्योपमनुं मान कहे छे,जेम एक जोजननो पालो कल्पिये ते पूर्ववत् ते पालामांहि देवकुरु उत्तरकुरुना जुगलीयानामाथाना केश एकदिनथी सात दिनना उग्यावालाग्र लइये एकेका वालाग्रना असंख्याता खंड करीए ते खंड केवडानाहना थाय? चक्षु,इंद्रियनी अवघेणाथी असंख्यात्मे Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४. प्रमाण बोधनो थोकडो. भागे अने नाहना सुक्ष्म वनस्पति जीपना शरीरनी अवघेमाथी असं. ख्यातगुणा महोटा अने जेवई एक बादर पृथ्वोकायना जीवनुं शरिर तेवडा वाळाना खंड न्हाना थार, ते वाळापना खंड अग्निये वळे नहि, वायरे उडे नहि, ते वाळायने खंडे करी पालो ठांसी भरीये, ते पाला माहेथी समये समये अकेको बालापनो खंड काढीये एम काढतां जेटले काळे ते पालो खाली थाय तेटला काळने सुक्ष्म उद्वार पन्योपप कहीये.ए पल्योपम असंख्याता समयनो थाय एहवा दशकोडा क्रोडी पल्योपमे एक सुक्षम उद्धार सागरोपम थाय. ए सागरोपमे द्वीप समुद्रनुं मान वर्णव्युं छे. अहो उध्धार सागरोपमना जेटला समय थाय तेटला द्वीप समुद्र त्रिछालोकमां छे. जंबुद्वीप एकलाख जोजननो लांबो ने पहोलो एम ठाम बमणो, लक्ण समुद्र बे लाख जोजननो धातकिखंड चार लाख जोजननो एम ठाम बमणा असंख्याता द्वीप समुद्र जाणवा ए सुक्षम उद्धार पल्योपमः हवे अध्या पन्योपमनु स्वरुप कहे छे. तेना बे भेद सुक्षम अने बादर तेमां बादर अद्धा पल्मोपम केहने कहिए? एक जोजननो लांबो पहोलो ने उंडोचारे हांसे सरखो पूर्ववत् पालो कल्पिर देवकुरु उतरकुरु जुगलोया मनुष्धना वाळाकरी पालो ठांसी भरीये, पछी सो सो वर्षे एकेको बालान काढिये,एम काढतां जेटले काळे ते पालो खाली थाय,तेटला काळने बादर अद्धा पल्योपम कहिये, ए पत्य संख्याता क्रोडि वर्षे थाय, एहवा दश क्रोडाक्रोडि बादर अद्धा पल्योपमे १ बादर अद्धा सागरोपम थाय. केवळ परुपणा मात्र छे. हवे सुक्षम अद्धा पल्योपमनु स्वरुप कहेछे एका जोजननो लांबो पहोलो ने उंडो पूर्ववत् कलपिये तेहमा पूर्ववत् देवकुरु, उत्तरकुरु, क्षेत्रना जुगलोयाना वालाग्रने असख्याता खंड करी भरीये, पालामांथी सो सो वर्षे एकेक खंड Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन सिद्धति मकरण संग्रह. २२५ काढीये; जेटले काळे ते पालो खाली थाय. तेटला काळने सुक्ष्म अद्धा पल्योपम कहीए. ए हवा दश क्रोडाकोडी पल्योपमे १ सुक्ष्म अद्धा सागरोपम थाय ए सागरोपम. नारकी, तियेच, मनुष्य, देवता. ए ४ गतिना आयुष्य वरणव्या छे, हवे क्षेत्र पल्यापम कहे छे. क्षेत्र पल्येपमना २ भेद. सुक्ष्म ने बादर. तेमां बादर क्षेत्र पल्बोपम केहने कहिए. एक जोजननो लांबो पहाळो ने उंडो पूर्ववत् पालो कल्पीए. तेमां पूर्ववत् देवकुरु उत्तरकुरु क्षेत्रना जुगलीयाना माथाना वालाग्रे भरीये ते पाला माहिला वालाग्रना फरस्या आकाश प्रदेशने समये समये अपहरता जेटळे काळे ते पालो खालि थाय. तेटला काळने, बादर क्षेत्र पल्योपम कहिये. ए पालो खाली थतां असंख्याति अवसप्पिणी उत्सप्पिणी वहिजाय, एहवा दश क्रोडाक्रोडि पल्योपमे १ बादर क्षेत्र सागरोपम थाय.आसर्व केवल प्ररूपणा मात्र छे. हवे सुक्ष्म क्षेत्र पल्योपमनुं स्वरूप कहे छे. एक जोनननो लांबो पहोलो ने उंडो पूर्ववत् पालो कलपिये, तेमां देवकुरु उत्तरकुरु क्षेत्रना जुगलियाना वाळापना असंख्याता खंड करि भरिये ते पाला माहिला वाळापना फरस्या आकाश प्रदेश तथा अणफरस्या आकाश प्रदेश छे ते फरस्या अणफरस्था आकाश प्रदेशने समये समये अपहरिये, जेटले काळे पालो खालि थाय. तेटला काळने १ सुक्ष्म क्षेत्र पल्योपम कहिये, एहवादश क्रोडाकोडि सुक्ष्म क्षेत्र पल्योपमे १ सुक्ष्म क्षेत्र सागरोपम थाय. ए सागरोपमना द्रष्टिवाद सूत्रे भाव वरणव्या छे. ए ३ प्रकारना अंगुल तथा ३ प्रकारना पल्योपमनुं मान कयु. इति प्रमाणबोध समाप्त. Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ चाद बोलनो अल्प बहुत्वं. ॥ अथ श्री चौद बोलनो अल्प बहुत्व ॥ सर्वथी थोडा संज्ञी पचेंद्रिय पर्याप्ता १. तेथी संज्ञी पंचेंद्रीय अपर्याप्ता असंख्यात गुणा २. तेथी चौरंद्रीय पर्याप्ता संख्यात गुणा ३. तेथी असंज्ञी पचेंद्रिय पयाप्ता विषेसाहिया ४. तेथी बेरंद्रिय पर्याप्ता विषेसाहिया ५. तेथी तेरेंद्रिय पर्याप्ता विषे साहिया ६. तेथी असंज्ञी पंचेंद्रिय अपर्याप्ता असंख्यातगुणा ७. तेथी चौरेंद्रिय अपयाप्ता विषेसाहिया ८. तेथी तेरेंद्रिय अपप्तिा विषेसाहिया ९. तेथी बेरेंद्रिय अपर्याप्ता विषेसाहिया १०. तेथी एकेंद्रिय वादर पर्याप्ता अनंतगुणा ११. तेथी एकेंद्रियबादर अपर्याप्ता असंख्यातगुणा १२. तेथी सुक्ष्म एकेंद्रिय अपर्याप्ता असंख्यातगुणा १३. तेथी मुक्ष्म एकेंद्रिय पर्याप्ता संख्यातगुणा १४. अथ श्री श्वासोश्वासनो थोकडो. श्री पन्नवणाजी मूत्र पद सातमे श्वासोश्वासनो अधिकार चाल्यो छे तेमां गौतमस्वामी वीर प्रभुने पूछता हता के हे भगवन् ! नारकी अने देवता केवी रीते श्वासोश्वास लीए छे ? वीर प्रभुए कधु के हे गौतम ! नारकोना जीव निरंतर घमणनी पेरे श्वासाश्वास लीए छे. अमुरकुमारना देवता जघन्य सात थोक, उतकृष्टा एक पक्ष झाझेरे श्वासोश्वास लीए छे.वाणव्यंतर ने नव नीकायना देवता जघन्य सात थोक, उतकृष्टा प्रत्येक मुहूर्ते. ज्योतिषी ज. अने० उ० प्रत्येक मुहूर्ते. पहेले देवलोके ज० प्रत्येक मुहूर्त अने उ० वे पक्षे. बीजे देवलोके ज० प्रत्येक मूहूर्त झाझेरे, उ० वे पक्ष झाझरे. बीजे देवलोके ज० बे पक्षे, अने उ० सात पक्षे. चोथे Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जेन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. २२७ देवडोके ज० चे पक्ष ज्ञाझेरे. अने उ० सात पक्ष झाझेरे. पांचमे देवलोके ज०सात पक्षे.अने उ०दस पक्षे.छठे देवलोके ज० दश पक्षे. उ० चौद पक्षे. सातमे देवलोके ज० चौद पक्षे उ. सत्तर पक्षे. आठमे देवलोके ज० सत्तर पक्षे, उ० अढार पक्षे. नवमे देवलोके न० अढार पक्षे, उ० ओगणीस पक्षे. दशमे देवलोके ज० ओगणीस पक्षे. उ० वीस पक्षे. अगियारमे देवलोके ज० वीस पक्षे. उ० एकवीस पक्षे. बारमे देवलोके ज० एकवीस पक्षे. उ० बावीस पक्षे. पहेली त्रीकमां ज० बावीस पक्षे, उ० पचीस पक्षे. बीजी त्रीकमां ज० पचीस पक्षे. उ० अठावीस पक्षे. त्रीजी त्रीकमां ज० अठावीस पक्षे. उ० एकत्रीस पक्षे. चार अनुत्तर विमानमां ज० एकत्रीस पक्षे. उ० तेत्रीस पक्षे. सर्वार्थसिद्धमांज० उ० तेत्रीस पक्षे. एम तेत्रीस पखवाडीये श्वास उंचोले अने तेत्रीस पखवाडीए श्वास नीचो मुके. इति श्री श्वासोश्वासनो थोकडो संपूर्ण. आराधिक-विराधिक. (श्री भगवतीजी सूत्र शतक पहेले, उदेशे बीजे ) १ असंजति भव्य द्रव्यदेव जघन्य भवनपति, सुधी जाय अने उत्कृष्ट नवप्रै वेयक सुधी जाय. २ आराधिक साधु ज० पहेला देवलोक सुधी, उ० सर्वार्थसिद्ध विमान सुधी जाय. ३ विराधिक साधु ज०भवनपति,उ० पहेला देवलोक सुधी जाय. ४ आराधिक श्रावक ज. पहेला देवलोक सुधी, उ० बारमा देवलोक सुधी जाय. ५ विराधिक श्रावक ज०भवनपति, उ०ज्योतिषी सुधीजाय. Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ त्रण जाग्रिका. ६ असंजति तिर्यच ज० भवनपति, उ० वाणव्यंतर सुधी जाय. ७ तापसना मतवाळा ज० भवनपति, उ० ज्योतिषी सुधी जाय. ८ कंदर्पीया साधु ज०भवनपति, उ० पहेला देवलोक सुघी जाय. ९ अंबड संन्यासीना मतवाळा ज०भवन० उ०पांचमा देवलोक सुधी. १० जमालीना मतवाळा ज०भवन० उ० छठ्ठा देवलोक सुधी जाय. ११ संज्ञी तिर्यच ज० भवनपति, उ० आठमा देवलोक सुधी जाय. १२ गोशाळाना मतवाळा ज०भवन० उ०बारमा देवलोक सुधी. १३ दर्शन विराधिक स्वलिंगी साधु ज० भवनपति, उ० नव ग्रैवेयक सुधी जाय. १४ आजीवीकामती ज०भवनपति, उ० बारमा देवलोक सुधी जाय इति आराधिक- विराधिकनोथोकडो संपूर्ण. त्रण जाग्रिका. श्री वीर भगवानने गौतम स्वामी पूछता हवा, के है भगवान् ! जाग्रिका केटला प्रकारे कही छे ? भगवान कहे - हे गौतम! जाग्रिका ऋण प्रकारनी कही छे, ते सांभळ- १ धर्म जागरण, २ अधर्म जागरण, ३ सुदखु जागरण तेमां प्रथम धर्म जागरणना चार भेद. १ आचार धर्म, २ क्रिया धर्म ३ दया धर्म, ४ स्वभाव धर्म. मां प्रथम आचार धर्मना पांच भेद - १ ज्ञानाचार, २ दर्शनाचार, ३ चारित्राचार, ४ तपाचार, ५ वीर्याचार. तेमां ज्ञानाचारना ८ भेद, दर्शनाचारना ८ भेद, चारित्राचारना ८ भेद, तपाचारना १२ भेद, वीर्याचारना ३ भेद ए रीते ३९ थया. ज्ञानाचारना ८ भेदः - १ ज्ञान भगवाने वखते ज्ञान भणवु, Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. २२९ २ ज्ञान लेता विनय करवो, ३ ज्ञाननु बहु मान करवू, ४ ज्ञान भणतां यथाशक्ति तप करवो, ५ अर्थ तथा गुरुने गोपववा नहि, ६ अक्षर शुद्ध, ७ अर्थ शुद्ध. ८ अक्षर अर्थ बने शुद भणे. दर्शनाचारना ८ भेदः-१ जैनधर्ममां शंकारहितपणुं, २ पाखंडधर्मनी वांछा रहित, ३ करणीना फळनुं संदेह रहितपणुं, ४ पाखंडीना आडंबर देखी मुंझाय नहि, ५ स्वधर्मनी प्रशंसा करे, ६ धर्मथी पडताने स्थिर करे, ७ स्वधर्मनी भक्ति करे, ८ जैनधर्मने अनेक रीते दीपावे, कृष्ण महाराज तथा श्रेणिकनृपनी पेरे. चारित्राचारना ८ भेदः-१ इर्या समिति, २ भाषा समिति, ३ एषणा समिति, ४ आयाणभंडमत निखेवणा समिति, ५ उचार पासवण खेल जळ संघाण पारिठावणीया समिति, ६ मन गुप्ति, ७ वचन गुप्ति, ८ काय गुप्ति. तपाचारना १२ भेदः-छ बाह्य अने छ आभ्यंतर, ए बार. छ वाद्य तपनां नामः-१ अणसण, २ उणोदरी, ३ वृत्ति संक्षेप, ४ रसपरित्याग, काय कलेश, ६ इंद्रियपतिसंलीनता हवे भ्यंतर तपना छ भेदः--१ प्रायश्चित, २ विनय, ३ वैयाबच्च, ४ सझाय, ५ ध्यान, ६ कार्योत्सर्ग. एम कुल बार भेद तपाचारना जाणवा तेमां इहलोक परलोकना सुखनी वांछारहित तप करे. अथवा आजीविकारहित तप करे एतपना वार आचार जाणवा. वीर्यावारना ३ भेदः-बळ, वीर्य, धर्म काममां गोपवे नहि, पूर्वोक्त ३६ बोलमां उद्यम करे, शक्ति अनुसारे काम करे, एवं ३९ भेद आचार धर्मना कह्या. हवे बीजो क्रियाधम, तेना सीत्तेर भेदनां नामः-चार प्रकारे पिंड विशुद्धि, पांच समिति, बार प्रकारनी भावना, साधुनी बार Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० प्रण जाग्रिका. पडिमा, पांच इंद्रियनो निरोध, पचीस प्रकारनी पडी लेहणा, पण गुप्ति, चार अभिग्रह, एवं ७०. ___ हवे त्रीजो दयाधर्म तेना आठ भेदनां नाम कहे छे:-१ प्रथम स्वदया ते पोताना आत्माने पापयी बचावे ते, २ परदथा ते बीजा जीवनी रक्षा करवी ते, ३ द्रव्यदया ते देखादेखीथी, शरमयी, अथवा कुळआचारे दया पाले ते, ४ भावदया खरी समजणपूर्वक पाणी उपर अनुकंपा लावी, तेनो जीव बचाववो तथा पतीत यतां अटकाववो ते, ५ वहेवारदया ते जेवी श्रावकने दया पाळवानी कही छे ते साचवे ते, घरनां अनेक कामकाज करतां जतना राखवी ते, ६ निश्चयदया ते आपणा आत्माने कर्मबंधयी छोडाववो, तेनो खुलासो ए छे के पुद्गल परवस्तु छे, तेना उपरथीममता उतारीने तेनो परिचय छांडीने आपणा आत्माना गुणमां रमण करवू, जीवनुं कर्मरहित शुद्ध स्वरुप प्रगट करवू ते निश्चय दया, चौदमा गुणस्था नकने अंते संपूर्ण लाभे. ७ स्वरुपदया ते कोइ जीवने मारवाने भावे पहेला ते जीवने सारी रीते खवरावे अने शरीरे मातो करे, सार संभाळ ले, ए दया उपरथी देखाव मात्र छे, परंतु पाछळथी ते जीवने मारवाना परिणाम छे, ते उतराध्ययन सूत्रना सातमा अध्ययनमा बोकडाना अधिकारथी समजबु.८ अनुबंधदया ते जीवने त्रास पमाडे पण अंतरथी तेने साना देवानो कामी छे ते, जेमके माता पुत्रने रोग मटाडवाने अर्थे कडवू औषध पाय पण अंतरथी तेनुं भलं चहाय छे, तथा जेम पिता पुत्रने भली शिखामण आपवा माटे उपरथी तर्जना करे, मारे, पण अंतरथी तेनुं भलं चहाय छे तेम. चोथो स्वभाव धर्मः–ते जे वस्तु जीव अथवा अजीव तेनी जे प्रणति छे तेना बे भेदः-तेमां एक शुद्र स्वभावथी अने बीजो Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. २३१ कर्मना संजोगथी अशुद्ध प्रणति छे ते जीवने विषयकषायना संजोगयी विभावना थाय छे. हवे जीव अने पुद्गलने विभाव छे, तेने दूर करीने जीव आपणा ज्ञानादिक गुणमां रमण करे ते स्वभाव धर्म अने प्रद्गलनो एक वर्ण, एक गंध, एक रस, बे फरसमां रमण थाय ते पुद्गलनो शुद्ध स्वभाव धर्म जाणवो. ए सिवाय बीजा चार द्रव्यमा स्वभाव धर्म छे पण विभाव धर्म नथी, ते चलण गुण, स्थिर गुण, अवकाश गुण, वर्तना गुण, ते पोतपोताना स्वभाबने छोडता नथी ते माटे शुद्ध स्वभाव धर्म छे. ए चार प्रकारनी धर्म जानिका कही. बीजी अधर्मजाग्रिका-ते संसारमा धन कुटुंब परिवारमा आसक्त थइ कुमाग आरंभादिक करवा तेनी रक्षाअन्यायथी करवी, तेना उपर सराग द्रष्टिथी अधर्म करवो ते अधर्म जाग्रिका जाणवी. त्रीजी सुदखु जाग्रिका ते सु कहतां भली, दखु कहेतां चतुराइवाळी जाग्रिका श्रावकने होय छे, केमके सम्यकज्ञान, दर्शन, सहित धन कुटुंबादिक तथा विषय कषायने खोटा जाणे छे,देशथी निवां छे, उदय भावथी उदासीनतापणे छे, त्रण मनोरथ चितवे छे, त सुदखु जाग्रिका जाणवी. इति त्रण जाग्रिका संपूर्ण. अवधि पद. श्री पन्नवणाजी सुत्र पद तत्रीसमे अवधि पदनो थोकडोचाल्यो तेमां प्रथम दश द्वार छे तेना नाम कहे छे:-भेदद्वार १, विषय द्वार २, संठाणद्वार ३, आभ्यंतर अने बाह्यद्वार ४, देश थकी अने सर्व यकी ५, अणुगामी ६, हायमान अने वर्धमान ७, अवठ्ठीया ८, Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ अवधि पद. पडवाइ ९, अपडवाइ १०. १ पहेलो भेदद्वार-तेमां नारकी अने देवता भव प्रत्ये देखे एटले उपजती वखते साथे अवधिज्ञान होय छे.तिर्यच अने मनुष्य क्षयोपशम प्रमाणे देखे. २. वीजो विषय द्वार-एटले पहेली नरकना नारकी जघन्य साडात्रण गाउ देखे, उत्कृष्टा चार गाउ देखे. बीजी नरकना नारकी जघन्य त्रण गाउ, उत्कृष्टा चार गाउ देखे. बोजी नरकना नारकी ज० अढी गाउ, उ० त्रण गाउ देखे. चोथी नरकना नारकी ज० वे गाउ, उ० अढी गाउ देखे. पांचमीना ज० दोढ गाउ, उ० बे गाउ देखे. छठीना ज. एक गाउ उ० दोढ गाउ देखे. सातमीना ज० अर्ध गाउ, उ. एक गाउ देखे. भवनपति ज० पचीश जोजन सुधी देखे, उ० त्रण प्रकारनुं देखे. उचुं पहेला बीजा देवलोक सुधी, नीचुं त्रीजी नरकना तळा सुधी, अने त्रीर्छ पलना आउखावाळा संख्याता द्वीप समुद्र देखे, अने सागरना आउखावाळा असंख्याता द्वीप समुद्रदेखे. वाणव्यंतर अने नव निकायना देवता ज० पचीस जोजन, उ० त्रण प्रकार- देखे,उंचु पहेला देवलोक सुधी,नीचुं पाताळ कळसा सुधी अने त्रोछु, संख्याताद्वीप समुद्र देखे. ज्योतिषीज०आंगुलनो असंख्यातमो भाग,उ० त्रण प्रकारचं देखे. उंचुं पोताना विमाननी धजा सुधी, नीचुं नरकना तळा मुधी अने त्रीर्छ पलना आउखावाळा संख्याता द्वीप समुद्र देखे अने सागरना आउखावाळा असंख्याता द्वीप समुद्र देखे.त्रीजा देवलोकथी यावत् सर्वार्थसिद्ध विमानना देवता उंचं पोतपोताना विमाननी धजा सुधी देखे, त्रीर्छ असंख्याता द्वीप समुद्र देखे, नीचुं त्रीजा चोथावाला बीजी नरकना तळा सुधी, पांचमा, छहावाला त्रीजी नरकना तळा सुधी, नवमांथी बारमा सुधीना पांचमी नरकना तळा सुधीनव ग्रैवेयकना Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. २३३ छट्ठी नरकना तळा सुधी, चार अनुत्तर विमानना सातमी नरकना तळा सुधी, अने सर्वार्थसिद्धना देवता सातमी नरकना तळा सुधी देखे. तिर्येच ज० आंगुलनो असंख्यातमो भाग, उ० संख्याता द्वीप समुद्र देखे. मनुष्य ज० आंगुलनो असंख्यातमो भाग, उ० marath अने अलोकमां लाक जेवडा असंख्याता खांडवा देखे. ३. श्रीजो संठाणद्वार नारकी त्रापाने आकारे देखे, भवनपतीपालाने आकारे देखे, वाणव्यंतर झालरने आकारे देखे. ज्योतिषी पहाडने आकारे देखे, बार देवलोकना देवता मृदंगने आकारे देखे. नवग्रैवेयकना देवता फूलनी चंगेरीना आकारे देखे, अनुत्तर विमानना देवता कुंवारी कन्याना कंचवाने आकारे देखे . ४. चोथो आभ्यंतर अने बाह्यद्वार:- नारकी, देवता आभ्यंतर देखे, तिर्यच बाह्य देखे, मनुष्य आभ्यंतर अने बाह्य देखे, कारण के तीर्थकर दवने अवधिज्ञान साथेज होय छे. ५. पांचमो देश अने सर्वथकीद्वार : - नारकी, तिर्यच अने देवता देश थकी अने सर्व थकी देखे. ६. छट्टो अणुगामी अने अणाणुगामीद्वार:- नारकी, देवताने अणुगामी कहेतां साथे जनाएं अवधिज्ञान होय, अने तिर्यचने अणुगामी अने अणानुगामी बन्ने होय. ७- ८. सातमो हायमान वर्द्धमान अने आठमो अवठीया द्वारनारकी देवताने अवठीया कहेतां होय तेटलं अवधिज्ञान रहे. मनुष्य अने तिर्यचने हायमान वर्द्धमान अने अवठीया ए त्रण प्रकार होय. ९- १०. नवमो पडीवाइ अने दसम अपडीवाइद्वारः - नारकी अने देवताने अपडीवाइ अवधिज्ञान होय, मनुष्य अने तिर्यचने पडीवाइ भने अपडीवाइ बने जाणवा. इति अवधिपद संपूर्ण. इति जैन सिद्धांत प्रकरण संपूर्ण. Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मनुक्रमणिका. अंक. थोकडो पार्नु | अंक थोकडो पार्नु १ नवतत्व १ थी १३ १९ योनी पद १६४ थी १६५ २ छकायना बोल १४थी१८ २० तेर बोल १६५ थी १६८ ३ लघु दंडक १८ थी ४१ २१ छकायनाभव १६८-१६९ ४ गतागत ४१ थी ४६ २२ छ लेश्या १६९ थी १७४ ५ गुणस्थान ४७ थी ६८ २३ चार कषाय १७४थी १७५ ६ मोटो बासठीओ ६८थी८० २४ संजया १७५ थी १८३ ७ अठाणुं बोल ८१ थी ८३ २५ नियंठा १८३ थी १९४ ८ छ आरा ८३ थी ९१ २६ षटद्रव्य १९५ थी २०४ ९ जिनांतरा ९१ थी १०० १० कर्मप्रकृति १०१ थी १०७ २७ रुपीअरुपी २०५ २८ पचीश बोल २०६थी २१८ ११ धर्मध्यान १०८थी ११६ २९ वाटे व्हेता २१८ थी २१९ १२ पांच बोल ११६थी १३४ १३ पदवीनाबोल १३४थी१३७ ३० प्रमाणबोध २१९ थी २२५ १४ सिझणा द्वार १३७थी१४०/ ३१ चौद वोलनो अल्पबहुत्व १५ विरह द्वार १४१ थी १४२ ३२ श्वासोश्वास २२६ - १६ पांच देव १४२ थी १४५ | ३३ आराधिक वि० २२७-२२८ १७ दिशाणुवाइ १४५ थी १४८ ३४ त्रण जाग्रिका २२८-२३१ १८ खंडा जोयण १४८थी१६४ | ३५ अवधिपद २३१ थी २३३ Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ પંડિત મુનિ મહારાજ શ્રી નાનચંદ્રજી સ્વામીકૃત તથા ? સંગ્રહ કરી સુધારેલાં આંત ઉપયોગી ને સસ્તાં પુસ્તક. | બુકાના નામ. અવૃત્તિ. કીંમત સુબોધ સંગીત માળા.ભાગ૧-૨-૩ પાકું પુડું બીજી 1-0-0 y ભાગ 3 જો ત્રીજી 0-3-0 સામાયિક સ્વરૂપ, બીજી 0-3-0 સંસ્કૃત કાવ્યાનંદ ભાગ 2-3 પેલી 1-0-0 આધ્યાત્મિક ભજન પદ સંગ્રહ બીજી 1-0-0 છેદ સંગ્રહ ત્રીજી 0-3-0 નમીરાજ ( અતિ રસમય વેલ) પેલી 04-0 શ્રી સુબોધ કુસુમાવળી બીજી 0-2-0 જૈન સિદ્ધાંત પ્રકરણ સંગ્રહ (૩પ થોકડાઓ) (શાસ્ત્રી સુંદર લિપિમાં) બીજી 2-0-0 સંવાદ શારદ પેલી 0-2-6 ઉત્તરાધ્યયન સૂકાની 84 કથાઓ પાકું પઠું બીજી 1-0-0 ઉંડું , 0-12-0 જેન પ્રશ્નોત્તર કુસુમાવળી - -- બીજી 09-3-0 રેશીટેશન ભા. 2-3 (દરેકના) પેલી 03-0 Úમવતી, સુહાસિની, ઈદુમતી (દરેકના) પેલી 0-2-0 સામાયિક પ્રતિકમણ (અર્થ સહિત) પિલી 04-0 જેન સિદ્ધાંત પાઠમાળાં દશવૈકાલિક તથા ઉત્તરાધ્યયન સંપૂર્ણ તથા પુછુસ્કુણું, ભક્તામરાઠી છે તે અરજી 0-12-0 સામાયક પ્રતિક્રમણ થી ૦૯-ર-૦ આધ્યાત્મિક પ્રબંધાવળી (પાંસે મણકા ભેગા પાઠ્ઠા પુઠાના.). પેલો 1-0-0 y (પચે મણકા છુટાની આખીસીરીઝના) , 0-12-0 શતાવધાની 5. મુનિશ્રી રત્નચંદ્રજી સ્વામી, ન રીત ભાવના શતક ( પેલી 1-4-0 કાવ્યાનંદ ભા. ૧લો (જેમાં 38* લેકેનો સંગ્રહ)બીજી 0-4-0 મળવાનું છે. શ્રી અજરામર જૈન વિદ્યાશાળાના સેક્રેટરી-લીબડી. 8 U