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पांच बोल. कल्लोलादिकनी लहेरे करी चार गति चोवीस दंडकने विषे परिभ्रमणा करतां जगत जीवने श्री जैन धर्मरुप द्विपानो आधार छे. तथा संजमरुप नावानो शुद्ध समकितरुप निर्जामक नावनो खेडणहार छे. एषी नावाए करी जीव सिद्धिरुप महा नगरने विषे पहोंचे. विहां अनंत अतुल विमल सिद्धना मुख जीव पामे. एधर्म ध्याननी चोथी अणुप्पेहा कही. एहवा धर्मध्यानना गुण जाणीने सदा धर्मध्यान भ्याइये जेम परम सुख पामीये. इति धर्मध्यान संपूर्ण.
अथ श्री पांच बोल.
पहेलो नारकीनो द्वार, बीजो भवनपतिनो द्वार, बीजो वाणव्यंतरनो द्वार, चोथो ज्योतिषीनो द्वार, पांचमो वैमानीकनो द्वार. __हवे पहेलो नरकनो द्वार कहे छे. पहेले नाम, बीजे गोत्र, त्रीजे अर्थ, चोथे पिंड, पांचमे पोलार, छठे अलोक, सातमे आधार, आठमे आंतरा, नवमे पुष्फाविकीर्ण ने आवलिका बंध, दशमे अंधकार, इग्यारमे नारकी ने उपजवाना स्थानक, बारमे क्षेत्रवेदना, तेरमे पनर परमाधामीना नाम, चौदमे जीव अजीवना परिणाम, पनरमे नारकी ने अवधिनुं देखवू, सोलमे संघयण, सतरमे कोण जीव कइ नरके उपजे, अढारमे चार बोल कहेवाशे.
हवे पहेले नाम कहे छे. घमा, वंशा, शिला,अंजणा,रिठा, मघा, माघवइ, ए साते उंधा छत्रने आकारे छे. . बीजे गोत्र कहे छे. रत्नप्रभा, शर्कर प्रभा, वालुप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा,तमप्रभा,तमतमाप्रभा,रत्नप्रभातेश्यामाटे?सोलहजार जोजननो