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________________ १८८ नियंठाना बोक. आरामां एके न लाभे. त्रीजाने । के नहि. अने साहारण आश्री चोथा आरामां ६ नियंठा लामे. पुलाक वर्जीने ५ नियंठा लाभे. पांचमा आरामां ३ नियंठा लाभे. पांच महाविदेह क्षेत्रमा जन्म छत बीजो, त्रीजोने चोथो ए ३ लाभे. आश्री छए नियंठा लाभे. साहाछठा आरामा एके नहि. हवे छत रण आश्री पुलाक वर्जीने ५ आश्री पहेला बीजा आरामां नियंठा लाभे. ए द्वार १२ मो. एके नहि त्रीजा, चोथाने पांचमां १३ गतिद्वार. आगल्या ५ आरामा छ ए नियंठा लाभे. नियंठा आराधक ते एक विमाछठा आरामां एके न लाभे. स- निक देवगतिमां जाय. स्नातक हारण आश्री पुलाक वर्जीने मोक्ष जाय. तेमां पुलाक ज. ५ नियंठा ६ ए आरामा लामे. पहेले देवलोके जाय. उ० आचडता काळमां जन्म आश्री पहेले ठमे देवलोके जाय. बकुस ने आरे एके नहि, वीजे त्रीजे अने प्रतिसेवना ज० पहेले देवलोके चोथे आरे ६ नियंठालाभे.पांचमे जाय. उ० बारमे देवलोके जाय. छठे आरे एके नहि. छत आ- कषाय कुशिल ज० पहेले देवश्री पहेले, बीजे आरे एके नहि. लोके जाय. उ० सर्वार्थ सिद्धत्रीजे, चोथे आरे ६नियंठा लाभे. मां जाय. नियंठा ज० उ० अपांचमे छठे आरे एके नहि.साहा- नुत्तर विमानमां जाय. स्नातक रण आश्री पुलाफ वर्जीने छ । मोक्षमां जाय. आराधक पदवी ए आरामां ५ नियंठा लाभे. नो-पांच पामे. इंद्रनी, सामानिकनी, उत्सर्पिणी, नोअवसर्पिणी काळ | त्रायत्रिंशकनी, लोकपाळनी, अते हेमवय, एरणवय, हरिवास, हमेंद्रनी. ए ५ मांहेली आगल्या रमकवास, देवकुरु, उत्तरकुर, ए ३ नियंठा पदवी ४ पामे. एक ६ क्षेत्रमा जन्म छत आश्री ए- अहमेंद्रनी नहि. कषाय कुशिल
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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