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जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. तेहनो एह विचार. जीवे जेवेरसेकरिपूर्वे जेवा शुभाशुभ ज्ञानावरणीयादिक कर्मउपाया॑ छे. ते शुभाशुभकर्मना उदयथी जीव तेहवां सुख दुःख अनुभवे छे. ते अनुभवताथका कोइ उपर राग द्वेष न आणीये. समताभाव आणीए. मन, वचन, कायाना शुभयोग सहित श्री जैनधर्मने विषे प्रवर्तिये. जेम निराबाध परम सुख पामीए. ए धर्मध्याननो त्रीजोभेद कह्यो. ___ हवे धर्मध्याननो चोथो भेद कहे छे संठाणविजए कहेतां त्रणलोकना आकारनु स्वरुप चिंतवीए.तेनुं ए स्वरुप,आलोक सुपइठकने आकारे छे.जीव अजीवे संपूर्ण भर्यो छे. असंख्याताजोजननी क्रोडाक्रोडि प्रमाणे त्रीछो लोक छे. तिहां असंख्याताद्वीपसमुद्र छे. तथा असंख्याता वाणव्यंतरना नगर छे. तथा असंख्याता ज्योतिषीना विमान छे,तथा असंख्याती ज्योतिषीनी राजधानी छे. तीहां अढी द्वीप मांहि तीर्थकर जघन्य २० उत्कृष्टा एकसो सितेर होय. तथा केवली जघन्य बे क्रोडि, उत्कृष्टा नव क्रोडि तथा साधु जघन्य बे हजार क्रोडि, उत्कृष्टा नव हजार क्राडि, तेहने पंदामि नमंसामि, सकारेमि समाणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पजुवास्सामि.तथा त्रिछा लोकमांहि असंख्याता श्रावक श्राविका छे. तेहना गुणग्राम करिये. ते त्रिछा लोकथकी असंख्यात गुणो अधिको उर्द्धलोक छे. तिहां बार देवलोक नवग्रैवेयक पांचअनुत्तरविमान सर्व थइने चोरासी लाख सत्ताणुं हजार वीस विमान छे. तथा ते उपर सिद्धसिला छे. त्यां सिद्ध भगवंत बिराजे छे. तेहने वंदामि जाव पजुवासामि ते उर्द्ध लोकथी नीचो अधोलोक छे. तिहां चोरासी लाख नरकावासा छे. सातक्रोडि ब्होंतेरलाख भवनपतिनाभवन छे. एहवा त्रण लोकनां सर्व स्थानक समकित राहत करणी विना सर्वजीवे अनंती वार जन्म