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________________ १५४ खंडा जोयणना बोल. मेरुना १६ नाम कहे छे. मंदर, मेरु, मनोरम, सुदर्शन, स्वयंप्रभ, गिरिराज, रत्नोच्चय, तिलकोपम, लोकमध्य, लोकनाभि, रत्न सूर्यावर्त, सूर्यावरण, उत्तम, दिशादि, अवतंश, ए १६ नाम कला. हवे चित्त, विचित्त ए २ पर्वत देवकुरु क्षेत्रमां छे. निषढपर्वतथी उत्तरे ८३४ जोजन ने एक जोजनना ७ भाग करिये तेवा४ भाग जइये तिहां सीतोदा नदीने पूर्व पश्चिमने कांठे छे. अने जमक समक नामना वे पर्वत उत्तरकुरु क्षेत्रमां छे, निलवंत पर्वत थकी दक्षिणे ८३४ जोजन ने १ जोजनना ७ भाग करिये तेहवा ४ भाग जइये तिहां सिता नदीने पूर्व पश्चिमने कांठेछे. चित्त, विचित्त, जमक ने समक ए ४ पर्वत छे ते १ हजार जोजनना उंचा छे अने अढिसो जोननना धरती मांहि उंडा छे. एक हजार जोजनना मूळे लांबा पहोळा छेसाडासातसें जोजनना वचमा लांबा पोळा छे, उपरे पांचसो जोजना लांबा पोळा छे तेहनी त्रिगुणी ज्ञाझेरी परिधि छे. बसे कंचन गिरि पर्वत ते सिता सितादा नदीनी बचे पांच पांच द्रह छे अने एकेक द्रह पासे एकेक कोरे दश दश पर्वत छे, एम बिजा पासे पण दश दश पर्वत छे एवं १० द्रहने बने कांठे मळीने विश विश पर्वत छे. ए दश ने कांठे बसे कंचनगिरि पर्वत थाय. ते सो सो जोजनना उंचा छे, पचीश पचीश जोजनना धरती मांहि उंडा छे, मूळे सो जोजनना लांबा ने पहाळा छे, वचे पोणोसो जोजनना लांबा ने पहोळा छे, उपरे पचास जोजनना लांबा ने पहोळा छे मनी त्रिगुणी झाझेरि परिधि छे. हवे ४ गजदंता कहे छे. गंध मादन, मालवंत, विज्जुप्रभ, ने सोमनसप्रभ. तेमां निषढ थकि बे, ने निलवंत थकि बे, गजदंता निकळीने मेरु पासे चारे आविने अडकि रह्या छे. ते ३०२०९
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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