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जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह.
आहारकना बे नही. उपयोगसमुर्छिमने छ. वे ज्ञान, बे अज्ञान, बे दर्शन. गर्भजने नव उपयोग. त्रण ज्ञान, त्रण अज्ञान, प्रण दर्शन. तिमज आहार ले जघन्य उत्कृष्टो छ दिसनो आहार ले. तथा त्रण प्रकारे आहार ले, ओज, रोमने, कवल, आहार ले. ते पण सचेत अचेतने मिश्र. उववाय ते आवीने उपजे. समुर्छिममां दस दंडकना. पांच स्थावर, त्रण विगलेंद्री, मनुष्यने त्रिजंच, गर्भजमां चौविसे दंडकना आवीने उपजे. स्थिति जलचर समुर्छिमने गर्भजनी ज० अंत० उ० पूर्व क्रोडनी. थलचर समुछिमनी ज० अंत० उ० चौरासी हजार वर्षनी. अने गर्भजनी ज० अंत० उ० त्रण पल्योपमनी. उरपरसर्प समुर्छिमनी ज० अंत० उ०
पनहजार वरसनी. अने गर्भजनी अ० अंत० उ० पूर्वक्रोडनी. भुजपर समुर्छिमनी ज० अंत० उ० बेतालीस हजारवरसनों अने गर्भजनी ज० अंत० उ० पूर्व क्रोडनी. खेचर समुर्छिमनी ज० अंस० उ० बोहोतेर हजार वरसनी अने गर्भजनी ज० अंत० उ० पल्यापमना असंख्यातमो भाम. समोहियामरण ने असमाहियामरण ए बे मरण छे. चवण के० चवीने, समुर्छिम जाय तो बाविस दंडकमां. ज्योतिषीने विमानीकमां जाय नहि. अने गर्भज चोवीसे दंडकमां जाय. गइ ते. समुछिम अने गर्भज मरीने चार गतिमां जाय. आगइ ते आवे समुर्छिममां बे गतिनो मनुष्य ने तिर्यंचनो, अने गर्भजमां चारे मतिनो आवे. प्राण समुछिमने नव मन नही, अने गर्भजने प्राण दशे लाभे. जोग समुर्छिमने बे. कायजोग ने वचनजोग. अने गर्भजने त्रण जोग. मन, वचन, ने कायजोग. इति विसमा तिर्यचपंचेंद्रीनो दंडक संपूर्ण
हवे एकविसमा मनुष्यनो दंडक कहे छे. तेमां समुर्छिम मनु