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________________ २१४ पचीस बोलनो थोकडो.. पाळवी ते संयम १. अपकायनी दया पाळवी ते संयम २. तेउकायनी ३.वायुकायनी४. वनस्पतिकायनी ५. बेइंद्रीयनी ६. तेइंद्रीयनी ७. चउरींद्रीयनी ८. पचेंद्रीयनी ९.अजीर कायनी १०. पेहानी ११. उपहानी १२.पमजणानी १३. परीठावणीया १४. मन १५. वचन. १६. काया. १७. ए सत्तर प्रकारनो संयम. ___ अढारमे बोले अढार द्रव्य दीशा कहे छे-पूर्व १, पश्चिम २, उत्तर ३, दक्षिण ४, इशान खूणो ५, अग्नि खूणो ६, नैऋत्य खूणो ७, वायव्य खूणो ८, विदीशीना आठ आंतरा ए बधा थइने सोळ अने उंची सत्तर अने नीची अढार, ए अढार. अढार भाव दिशा कहे छे-पृथ्वी १. अप २.तेउ ३.वायु ४. अग्रबिआ ५. मूळविआ ६. पोरविआ. ७. खंघबीआ. ८. बेइंद्रीय ९. तेइंद्रीय १०. चउरींद्रीय ११.पंद्रीय १२.तिर्यंच १३. कर्मभुमी १४. अकर्मभुमि १५. छपन अंतरद्वीपा १६. देवता १७. नारकी १८.ए अढार. ओगणीसमे बोले काउसग्गना ओगणीस दोष कहे छेढींचण उपर एक पग राखीने काउसग्ग करे तो दोष १. काया. आधी पाछी हलावे तो दोष २. ओठौंगण दे तो दोष ३. माथु नमावी उभो रहे तो दोष ४. हाथ उंचा राखे तो दोष ५. मोढे माथे ओढे तो दोष ६. पग उपर पग राखे तो दोष ७. शरीर वांकु राखे तो दोष ८.साधुनी बराबर रहे तो दोष ९. गाडानी उंधनी पेरे उभो रहे तो दोष १०.केडेथी वांको उभो रहे तो दोष ११. रजोहरण उंचो राखे तो दोष १२. एक आसने न रहेतो दोष १३. आंख ठेकाणे न राखे तो दोष १४. माथु हलावे तो दोष १५.. खोखारो करे तो दोष १६. डील हलावे तो दोष १७. मरडे तो. दोष १८. शून्य चित्त राखे तो दोष १९.
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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