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________________ पांच बोल. १२६ रुप वैक्रेय करे. ७. हवे ८ मे ७ अणिका कहे छे. गंधर्व, नट, हय, गय, रथ, पायक, महीष, ८. नवमे अणिकाना अधिपति एमज जाणवा ९. हवे ९० मे उद्योत कहे छे. देवतानो, देवीनो, आभरणनो शुभ पुद्गलनो १०. हवे ११ मे ३ परिषद. समीयाना ८ हजारदेवता, चंडाना १० हजार देवता. जायाना १२ हजारदेवता. आवकुं जानुं प्रथमनि रिते जाणवु. बारमे शुभवर्ण, गंध, रस, स्पर्श भोगवता थका वाणव्यंतर विचरे छे. १२ इति वाणव्यंतरनो द्वार समाप्तं ३ sa चोथो ज्योतिषीनो द्वार कहे छे. पहेले नाम, बिजे वाहक, त्रिजे वर्ण, चोथे वस्त्र, पांच सामानिक, छठे आत्मरक्षक, सातमे लांबपणुं ने पहोलपणु, आउनु उंचपणुं ने जाडपणुं, नवमे पंक्ति, दशमे परिषद, इग्यारमे उद्योत, बारमे देवीओ, तेरमेनित्यरा हुने पर्व राहु, चौदमे परिवार, पनरमे अणिका, सोलमे अणिकाना अधिपति, सतरमे संघपण, अठारमे व्याघात, ओगणिसमे निर्व्याघात, विशमे देख, एकविशमे चाल, वाविशमे तप, त्रेविशमे उंचपणु, चोविशमे आंतरं, पचीशमे४बोल. पहेले नाम ते चंद्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारा. १. विजे वाहक कहे छे, चंद्रमा सूर्यना विमानने सोल सोल हजार देवता उपाडेछे तेहनोविवरोकछे. चारहजारदेवता सिंहने रूपे पूर्वदिशे उपाडे छे. चारहजारदेवता हाथिनेरूपे दक्षिण दिशेउपाडेछे, चार हजार देवतानृषभनेरुपे पश्चिमदिशे उपाडेछे. चारहजारदेवता घोडानेरुपे उत्तरदिशेउपाडेछे, एवं १६ हजार देवता चंद्रमा सूर्यना विमानने
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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