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________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १२७ उपाडे छे. आठहजारदेवता ग्रहनाविमाननेउपाडेछे. चारहजारदेवता नक्षत्राविमानने उपाडे छे. बेहजारदेवता ताराना विमानने उपाडेछे. ते चारे दिशे पांच सें पांच सें एवेजरुपे जाणवा. राहुने चंद्रमानी परेजाणवु. २ त्रिजे वर्ण कहे छे. ज्योतिषीना विमाननी मांहि कनकनो वर्ण ने बाहिरनो स्फाटिक रत्न समान जाणवो. चोथे वस्त्र पूर्वनी परे विविध प्रकारना जाणवा ते पण संध्यानारंग सरिखाजाणवा. ४. पांच सामानिक देवता ४ हजार जाणवा. छठे आत्मरक्षक देवता १६ हजार जाणवा. सातमे बोले लांबपणु ने पहोलपणुं कहे छे— चंद्रमानुं विमान एक जोजन ६१ भाग करिये तेहवा५६ भागनुं लांबु ने पहोलुं छे. सूर्यनुं विमान एकसठिया ४६ भागनुं लांं ने पहोलुं छे. ग्रहनुं विमान २गाउनु लांबुने होलुंछे. नक्षत्रनुं विमान १गाउनुं लांबुने पहोलुं छे. तारानुं विमान अर्द्ध गाउनुं लांबु ने पहोलुं छे. ७. आठमे उंचपणु ने जाडपणुं कहेछे, चंद्रमानुं विमान एकसठिया २८भागनुं उंचुंनेजाडुं.सूर्यनुंविमान एकसठिया २४भागनुं उंचुंनेजाई छे. ग्रहनुंविमान १ गाउनुं उंचुंनेजाई छे, नक्षत्रनुंविमान अर्द्धगाउनु उचुंनेजाडुं छे. तारानुं विमान पा गाउनुं उचु ने जाडुं छे. ८. नवमे पंक्ति कछे छाशठछाशठनि ४ पंक्ति छे, १३२ चंद्रमाने १३२ सूर्य छे ए बेहुलीने २६४. हवे गति कहे छे सर्वथी मंद गति चंद्रमानि तेहथी सूर्यनी शीघ्र गति, तेहथी ग्रहनि शीघ्र गति, तेहथी नक्षत्रनी शीघ्रगति, तेहथी तारानी शीघ्र गति सर्वथी थोडिरूद्धि तारानी तेहथी नक्षत्रनी अधिक रुधि जाणवि, तेहथी ग्रहनी अधिक रुद्धि जाणवि. तेहथी सूर्यनी
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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