SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. वस्तु मिलिने मिश्र श्रीखंडनो दृष्टांत. श्रीखंड जिम खाटो ने मिठो, मिठास. समान समकित ने खटास समान मिथ्यात्व, ते जिनमार्ग पण रुडा जाणे, तथा अन्य मार्ग पण रुडा जाणे. जिम काइक नगर बाहिर साधु महापुरुष पधार्या छे, तेहने श्रावक वांदवा जाय छे, तेहवामां मिश्रदृष्टिवालो मित्रामिल्यो, तिणे पुछयु जे किहां जाओछा ? तिवारे श्रावक कहे जे साधु महापुरुषने वांदवा जइये छीए, तिवारे मिश्रदृष्टिवालो कहे एहने वांदे शुं थाय ? तिवारे श्रावक कहे जे महालाभ थाय, तिवारे कहे जे हुं पण वांदवा आवं, इम कहिने मिश्रगुणठाणावाले वांदवाने पग उपाडया, तेहवामां विजो महामिथ्यात्वी मित्र मिल्यो,तेणे पुछयु के स्थाभणि जावछो ? तिवारे मिश्रगुणठाणावालो कहे जे साधु महापुरुषने वांदवा जइये छीए, तिवारे महामिथ्याति कहे जे एहने वांदे शुं थाय ? ए तो मेला घेला छे, इम कहिने भोलवि नांख्या अने पाछो वाल्यो, तिवारे साधुज्ञानिने श्रावके वांदिने पुछयु, जे स्वामि वांदवा पग उपाइयो तेहने शुं गुण निपनो ? तिवारे ज्ञानिगुरु कहे छे, जे काला अडद सरिखो हतो ते छडिदाल सरिखो थयो, कृष्णपक्ष टलिने शुक्लपक्षी थयो, अनादि कालना उलटो हतो ते सुलटो थयो, समकित सन्मुख थयो पण पग भरवा समर्थ नहि, तिवारे गौतम स्वामि हाथ जोडी मान मोडि वंदणा नमस्कार करिने श्रीभगवंतने पुछता हवा, स्वामिनाथ ! ते जोवने शुं गुण निपना? तेवारे श्रीभगवंत कहेछे, ते जीव ४ गती, २४ दंडकमां भमिने पण उत्कुष्टो देशे उणो अर्द्ध पुद्गल परावर्तनमा संसारनो पार पामशे ३. चाथु अविरतिसम्यक्त्व दृष्टिगुणठाणुं तेहना शुं लक्षण ? ७ प्रकृति ने क्षयोपशमा अनंतानुबंधि क्रोध, मान, माया, लोभ, सम्यक्त्वमोहनीय, मिथ्या
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy